हैलो।
मेरा नाम लतीफ़ा अल मख़तूम है।
मेरा जन्मदिवस दिसंबर 5, 1985 है।
मेरी माँ हुरिया अहमद लमारा हैं
वह अल्जीरिया से हैं।
मेरे पिता संयुक्त अरब अमीरात के प्रधानमंत्री हैं
और दुबई के शासक,
मोहम्मद बिन रशीद सईद अल मख़तूम।
उनकी तीन बेटियों का नाम लतीफ़ा है।
मैं मँझली हूँ।
यानी एक मुझसे बड़ी हैं और एक छोटी है।
उनकी दो बेटियाँ मरियम नाम से भी हैं।
कुल मिलाकर मेरे तीस भाई और बहनें हैं।
यह सब बताना ज़रूरी था
क्योंकि इस वीडियो को यह कह कर बदनाम या ख़ारिज किया जा सकता है
कि "नहीं, बस एक लतीफ़ा यहाँ है और दूसरी वहाँ"
जी हाँ, तीन लतीफ़ा हैं और मैं उनमें से एक हूँ।
मैं बीच वाली लतीफ़ा हूँ।
मेरी सगी बहनें मेथा और शम्सा हैं।
दोनों मुझसे बड़ी हैं
और माजिद वह मुझसे कम आयु के हैं।
और मैं इस वीडियो को बना रही हूँ क्योंकि यह मेरा आख़िरी वीडियो साबित हो सकता है।
हाँ।
बहुत जल्द, मैं किसी तरह.. यहाँ से जा रही हूँ।
और नतीजा क्या होगा पता नहीं, लेकिन
मुझे निन्यानवे प्रतिशत यकीन है कि यह हो सकेगा।
और अगर नहीं हो पाया तो यह वीडियो मेरे काम आ सकता है।
क्योंकि मेरे पिता सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा की परवाह करते हैं।
वह अपनी प्रतिष्ठा के लिए जानें भी ले सकते हैं।
उन्हें.. उन्हें केवल अपने आपकी और अपने अहम की परवाह है।
तो यह वीडियो मेरा जीवन बचा सकता है।
लेकिन अगर आप इस वीडियो को देख रहे हैं तो यह एक बुरी ख़बर है।
या तो मेरी जान जा चुकी है या मैं एक बहुत, बहुत,
बहुत बुरी स्थिति में हूँ।
तो मैं कहाँ से शुरू करूँ?
साल 2000 में,
मेरी बहन शम्सा जब वह इंग्लैंड में छुट्टियों पर घूमने गई हुई थीं।
तब वह अठारह साल की थीं और उन्नीसवाँ साल चल रहा था।
वो वहाँ से भाग गईं।
और वो दो महीने, जिनमें वो आज़ाद रह पायी
हम संपर्क में थे और मैं उस वक्त दुबई में थी
अपनी माँ और दूसरी बहन के साथ।
जबकी वह यात्रा पर अपनी सौतेली माँ और..
और उन सभी के साथ गयी थी।
इसलिए वो..
वो वहाँ से भागी क्योंकि दुबई में उसके पास ज़्यादा आज़ादी नहीं थी।
उसके पास वह स्वतंत्रता नहीं थी जैसी एक सभ्य दुनिया में किसी को भी हासिल
हुआ करती है। जैसे
कार चला पाना या बाहर निकल पाना या अपने भविष्य से जुड़े कोई
भी निर्णय ले पाना।
अपने निर्णय खुद लेने की स्वतंत्रता आप मानिए कि यहाँ हमारे पास है ही नहीं।
तो जो कुछ आपके पास हमेशा से रहा है, आप उसका महत्व नहीं समझ पाते। और जो चीज़ आपके पास कभी न रही हो वो आपके लिए बहुत मायने रखती है।
तो जी हाँ, उसे भागना पड़ा और इस दौरान वह हर समय मेरे संपर्क में थी।
मैं उस समय चौदह साल की थी।
और हाँ, शम्सा ..
मेरे लिए लगभग एक माँ जैसी थी।
हाँ, वह मेरी बड़ी बहन है पर
मैंने उसे हमेशा अपनी माँ जैसा भी माना क्योंकि उसने हमेशा मेरा ख्याल रखा।
मैं हर एक दिन उससे बात किया करती थी।
तो हाँ उसके जाने के बाद का वक्त मेरे लिए मुश्किल था।
मैं उसके लिए खुश थी, लेकिन साथ ही साथ मुझे उसकी फिक्र भी थी।
और इसके साथ वो
दुबई में अपने दोस्तों में से एक के संपर्क में आयी
जिसका नाम लैला ?? हरब ?? है
और वो लैला को बार बार कॉल किया करती थी।
और मेरे पिता ने क्या किया की वो लैला के घर गए
और उसे एक रोलेक्स का लालच देने की कोशिश की
और कहा की वो उसका फोन टैप करना चाहते हैं
ताकि शम्सा का सही सही पता लगा सकें
और उन्होनें ऐसा ही किया।
लैला ने शम्सा को इस बारे में आगाह किया, और बताया कि
'मेरा फोन टैप किया गया है।'
'वे तुम्हें खोजने की कोशिश कर रहे हैं। सावधान रहना।'
और शम्सा ने इसके बारे में मुझे बताया और मैंने उससे कहा कि,
'लैला को कॉल करना बंद करो। क्योंकि अगर तुम उसे कॉल करोगी तो वो तुम्हें ढूंढ लेंगे। '
मुझे लगता है कि वह यू॰के॰ में बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी।
उसके पास बात करने के लिए और कोई नहीं था। और उसने लैला से बात करना जारी रखा।
तो, हाँ दो महीने के बाद, उसे ढूंढ लिया गया।
वह लगभग सड़कों पर जी रही थी
और एक कार में कुछ लोग आए
और उसके लड़ने, चिल्लाने के बाद भी, जबरन उसे पकड़ कर
कार में कहीं ले गए
और बाद में किसी तरह एक हेलिकॉप्टर से
उसे फ्रांस पहुंचाया और फिर फ्रांस से दुबई ले आए।
उसे प्लेन में बेहोश करके रखा गया।
यह एक निजी जेट था, और किसी भी तरह की तलाशी नहीं की गई।
उसे नशे में रखा गया और दुबई वापस लाया गया
और एक इमारत में कैद कर दिया।
इस इमारत को 'ख़ेमा' नाम से जाना जाता है, यह 'तम्बू' के लिए अरबी का शब्द है।
लेकिन यह एक तम्बू नहीं, सिर्फ 'तम्बू' नाम भर है
और
यह इमारत ज़बील पैलेस में है,
मेरी सौतेली माँ हिंद की संपत्ति।
और उसे वहाँ तालाबंद करके रखा गया।
और उस समय के दौरान,
हम उसे कपड़े या और कुछ चीजें भेज सकते थे।
तो, हमनें छुपाकर उसके लिए एक टेलीफोन भेज दिया।
'हमनें' यानि में और मेरी गोद ली हुई बहन मोना
मोना ?? अल लमारा ??
हम उसके साथ संपर्क में थे और
हमनें चोरी-छिपे टेलीफोन भेजा था ताकि उससे बात कर सकें।
इस दौरान जब वो कैद थी,
वह यू॰के॰ के कुछ पत्रकारों के संपर्क में आई
और उन्होनें 'द गार्डियन' में यह ख़बर छाप दी।
मुझे लगता है कि यह मई 2001 के आसपास का समय था, कब ख़बर छपी मुझे सही सही नहीं पता।
ख़बरें..
अगर आप गूगल पर 'शम्सा अल मख़तूम' नाम लिखें तो पहली ख़बर यही होगी।
उसके भागने का सच और यह सब।
ख़बर छपते ही मुझे लगता है कि उन्हें पता चल गया कि वो किसी के संपर्क में किसी तरह है या
उसकी कोई मदद कर रहा था।
तो पुलिस आई और उन्होनें मोना को उसकी यूनिवर्सिटी से उठा लिया
और उससे पूछताछ की और उसे यातनाएँ दी गईं
और मेरी बहन मेथा उसी दिन शाम को
मेरे कमरे में आयी, और उसने कहा
'मोना को पुलिस ले गयी है और वे उससे पूछताछ कर रहे हैं
और उसे मारा-पीटा भी जा रहा है
तुम शम्सा के बारे में क्या जानती हो? '
और मेथा एक तरह से पुलिस जैसी पूछताछ कर रही थी।
जैसे की
मैं सवाल-जवाब करूंगी और तुम सब साफ-साफ बताओगी।
मैंने कहा कि मैं कुछ नहीं जानती।
और फिर.. ख़ैर
मैंनें अपनी दूसरी गोद ली हुई बहन फातिमा को इस बारे में बताया
फातिमा ?? लमारा ??
जिसे एक अलग कैबिन में बंद रखा जाता था।
उसे वहाँ रखा गया था ..
यह अपने में एक और कहानी है।
वह हमारी संपत्ति पर ही लेकिन एक अलग कैबिन में रहती थी, लेकिन तालाबंद करके।
परिवार के बाकी लोगों से अलग-थलग, क्योंकि वह "शरारती" है।
उसका शरारती व्यवहार।
उसके विद्रोही-स्वभाव के कारण।
तो कह सकते हैं की हमारे घर में उसे एक पिंजरे में रखा जाता था।
ख़ैर .. मैं .. मैंने उसके लिए एक नोट लिखा था और
नौकरानी को कहा उस तक पहुंचा देने के लिए
उसके दरवाज़े के नीचे से सरका देने के लिए और उसने यही किया।
और मैंने उसे बताया कि मोना को उठा लिया गया है और पुलिस उससे पूछताछ कर रही है
और बाकी सब कुछ।
और फिर फातिमा तो जैसे पागल हो गयी, उसने खिड़की तोड़ डाली .. वह .. वह ..
दरवाज़ा।
उसने खिड़की की चौखट उखाड़ दी और बाहर फेंक दी।
उसे तोड़ डाला।
वह बाहर निकल आई।
एक चाकू उठा लिया।
वह अली को धमका रही थी, जो एक खानसामे की तरह है
लेकिन रिश्ते से भाई जैसा भी है
मेरे पिता का दाहिना हाथ।
तो एक तरह से कर्मचारियों का जिम्मा उसके पास था
या ऐसा ही कुछ।
तो उसने एक चाकू ले लिया और वह उसको धमका कर कह रही थी कि
'मैं मोना को देखना चाहती हूँ, मैं मोना को देखना चाहती हूँ'
तो वे फातिमा को भी उठा ले गए।
उसे भी जेल में डाल दिया और उसे भी यातनाएँ दीं।
और फिर उन्हें पता चला कि उसे कुछ भी मालूम नहीं था।
हमनें उसे नहीं बताया क्योंकि हम नहीं बता सकते थे कि हम शम्सा के संपर्क में थे।
ख़ैर उस के बाद क्या हुआ, हाँ उस दिन मैंनें एक तरह से हर किसी को खो दिया।
अपने सभी दोस्तों को, अपनी सभी .. अपनी बहनों को सब कुछ।
मैंनें उस दिन हर किसी को खो दिया।
यह .. यह मेरे लिए बहुत मुश्किल दिन था।
और ज़ाहीर है मैंनें शम्सा के साथ अपना संपर्क खो दिया।
तो लगभग एक साल बाद
16 साल की उम्र में मैंने तय कर लिया है कि मुझे यहाँ से बचकर निकलना है।
उस समय मेरे पास इंटरनेट नहीं था।
नहीं था ..
मैं बहुत .. यह साल 2002 की बात है।
इंटरनेट था, लेकिन मेरे पास नहीं, मुझे इंटरनेट इस्तेमाल की इजाज़त नहीं थी।
तो मेरे पास इंटरनेट नहीं था।
मेरे पास फोन भी नहीं था।
जो फोन था भी उसे मेरे दोस्त ने मुझे दिया था
तो यह मेरे परिवार या किसी और के कहने पर मुझे नहीं दिया गया था।
तो मैंने तय कर लिया कि मैं बचकर यहाँ से निकलूंगी।
मुझे जाना है, मैं यू॰ए॰ई छोड़ दूँगी।
मैं किसी दूसरे देश में एक वकील खोज लूँगी।
या फिर ओमान चली जाऊँगी।
मैं किसी भी तरह निकल भागूंगी और एक वकील खोजुंगी या कुछ और
और शम्सा की मदद करूंगी।
क्या होगा, ज़्यादा से ज़्यादा वे मुझे पकड़कर उसके साथ कैद कर देंगे।
जेल में कम से कम मैं उसके साथ रहूँगी, उसे देख पाऊँगी और उसे पता रहेगा कि मैं खुश हूँ
कि उसके साथ कोई है और वह कुछ भी ऐसा-वैसा नहीं करेगी।
वह खुद को चोट नहीं पहुंचाएगी।
उसकी बहन उसके साथ है, इसलिए वह ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाएगी।
तो..
तो मैं सोच रही थी कि या तो मैं उसे मदद दिला सकूँ या मैं उसके साथ जेल में डाल दी जाऊँ।
तो साल 2002 में मैं भाग निकली।
और उन्होंने मुझे सीमा पर पकड़ा।
और हाँ ..
मैं बहुत, बहुत भोली थी मैंने सोचा था कि कोई भी पार जा सकता है।
मैंने सोचा था कि .. वहाँ एक तरह की सीमा होगी और उसके बाद रेत या और कुछ ..
मुझे यह तक नहीं पता था की सीमा दिखती कैसी है।
मैं पूरी ज़िंदगी कभी सीमारेखा तक नहीं गयी थी।
यह जान सकने के लिए मेरे पास इंटरनेट नहीं था।
मुझे सलाह देने के लिए, बात करने के लिए कोई भी नहीं था।
मैं नहीं कर पायी ..
मैं पूरी तरह अकेली थी।
मैं पास कोई भी नहीं था।
मेरे आसपास किसी को ख़बर नहीं थी.. जैसे कि स्कूल में मेरे दोस्त..
उन्हें पता नहीं था कि मैं किन हालात से गुज़र रही हूँ।
मैं इसके बारे में किसी से बात नहीं कर सकती थी।
तो, हाँ .. मुझे बाहर जाने की इजाज़त नहीं थी।
मुझे बाहर जाने की इजाज़त नहीं थी.. जैसे मैं स्कूल तो जा रही थी।
और कभी-कभी घुड़सवारी करने के लिए परिवार के अस्तबल जाने देते थे
लेकिन इसके अलावा और कुछ नहीं और मैं सीधा अपने घर चली जाती थी।
इसलिए मैंनें.. मेरे पास
मैं..
मुझे कुछ भी नहीं पता था।
तो हाँ, मुझे सीमा पर रोक लिया गया और उसके बाद उन्हें पता चला कि मैं कौन हूँ।
मुझे दुबई वापस ले जाया गया और मेरे पिता के मुख्य सहायक ने मुझे जेल में डाल दिया
मेरे पिता के आदेश पर और उसके बाद उनके सीआईडी के लोगों ने, उन्होनें ..
उन्होनें मुझे जेल में डाल दिया और मुझे यातनाएँ दी गयीं
एक व्यक्ति ने मुझे पकड़कर रखा हुआ था, और दूसरा मुझे पीट रहा था..
और उन्होनें यह बार-बार किया।
पहली बार जब मुझे पीटा जा रहा था, मुझे दर्द महसूस नहीं हुआ
क्योंकि मैं इतने सदमे में थी।
मुझे आभास नहीं हुआ..
ऐसा लग रहा था जैसे कोई तकिया रख कर मार रहा हो।
मुझे दिख रहा था कि वे क्या कर रहे थे, लेकिन मैं ..
मुझे लग रहा थी की क्या सिर्फ मेरे शरीर पर ज्यादती हो रही है?
क्या हो रहा है?
मुझे .. दर्द का आभास नहीं था क्योंकि मुझे लगता है कि मैं इतने
ज़्यादा सदमे में थी और लंबे समय बीना नींद के
और मैं बस .. दर्द का पता ही नहीं लगा ..
नहीं लगा ..
और आधे घंटे तक मुझे पीटा गया।
और उसके बाद जब मुझे यातना दी गयी तो
पांच घंटे तक चला। मुझे बिस्तर से घसीट कर
महल में किसी दूसरी जगह ले गए
उस ही इमारत में,
"ख़ेमा", तम्बू, जो एक तम्बू नहीं है।
और फिर से मुझे यातना दी गयी।
मुझे पता था कि यह कितने समय तक चला, क्योंकि मेरे पास एक घड़ी थी
और उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हारे पिता ने हमें कहा है कि
इसे तब तक पीटो जब तक इसकी जान न चली जाये।
ये कहा है, तुम्हारे पिता ने।
तुम्हारे पिता, दुबई के शासक, यह कहा उन्होनें।
तो उनकी यह सार्वजनिक छवि जो वो दिखाने कि कोशिश कर रहें हैं, मानवाधिकार वगैरह
यह सब बकवास है।
इससे बुरा इंसान मैंने अपने जीवन में नहीं देखा।
बुराई के अलावा कुछ नहीं
उसमें ज़रा भी अच्छाई नहीं है।
वह इतने सारे लोगों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार है
और कई लोगों की ज़िंदगी बर्बाद कर चुका है।
उसे किसी की भी परवाह नहीं है।
वह केवल, अपनी छवि, अपनी प्रतिष्ठा की परवाह करता है
और बड़ी आसानी से किसी की भी जान ले सकता है
लेकिन वह ऐसा खुद नहीं करता।
वह .. वह अपने हाथ गंदे नहीं करता।
यह सब करने के लिए उसके अलग लोग हैं।
उसे परवाह नहीं है।
मेरे चाचा की मृत्यु होने के बाद, उसने उनकी पत्नियों में से एक को मार डाला
..उसे जान से मार डाला
हर किसी को पता है, वो मोरक्को से थी।
और वो भी किस वजह से ..
क्योंकि उसका व्यवहार अपमानजनक था।
वो बहुत..
मुझे लगता है कि वो कुछ ज़्यादा बोल जाती थी
और मेरे पिता को उससे खतरा महसूस होता था।
तो उसे मार डाला गया।
बेशक, अगर मेरे चाचा होते तो यह नहीं होता,
लेकिन मेरे चाचा की मृत्यु के बाद वो यह कर सकता था।
हर कोई जानता है कि वह किस तरह का व्यक्ति है।
तो कुल मिलाकर मैं तीन साल और चार महीने के लिए कैद में थी।
मुझे जून 2002 में जेल में डाला गया था और अक्टूबर 2005 में मैं बाहर आई।
आप खुद ही अंदाज़ा लगा लीजिये।
लेकिन एक सप्ताह के लिए 2003 में मैं जेल से बाहर आयी थी।
उन्होंने मुझे घर भेज दिया,
"घर" यह एक घर नहीं है।
यह मकान है, मेरी माँ का मकान।
उन्होंने मुझे एक सप्ताह के लिए वहाँ वापस भेजा
और ये सब सपने जैसा था।
जब मैं अपने घर पहुँची अपनी माँ से मिलने
मुझे थोड़ी सहानुभूति की उम्मीद थी?
शायद?
क्योंकि जेल में एक सामान्य जेल वाला अनुभव नहीं था
निरंतर यातना, निरंतर यातना।
यहां तक कि जब मुझे शारीरिक यातना नहीं दी जा रही होती थी
तब भी वे मुझे परेशान करते थे।
वे सभी रोशनियां बुझा देते थे।
मैं एकान्त कारावास में थी, अकेली
और वहाँ कोई खिड़कियाँ नहीं थी, न कोई रोशनी,
इसलिए जब वे रोशनी बुझा देते थे, तो घुप्प अंधेरा हो जाता था।
वे कई कई दिनों के लिए इसे बंद कर देते थे, तो ,मुझे पता नहीं
चल पता था कि कब दिन शुरू हुआ और कब खत्म
और उसके बाद वे ..
वे मुझे परेशान करने के लिए आवाज़ें लगाते थे
बीच रात में आकर
मुझे बिस्तर से घसीट कर पीटा जाता था
यह ..
यह किसी भी तरह से एक सामान्य जेल जैसा अनुभव नहीं था।
सिर्फ यातना।
और उन्होंने मुझे कुछ भी नहीं दिया।
मेरे पास अलग कपड़े तक नहीं थे।
तो मैं रोज़ उन्हीं कपड़ों में अपने को किसी तरह साफ रखने कि कोशिश करती थी,
लेकिन मारपीट के बाद मैं चल तक नहीं पाती थी।
तो मैं बाथरूम भी घुटनों के बल जाती थी पानी पीने के लिए, नल खोलने के लिए .. पानी के लिए।
मैं अपनें हाथों और घुटनों के बल जाती थी।
वहाँ कोई चिकित्सीय सहायता नहीं मिलती थी।
उन्हें इसकी परवाह नहीं थी।
वैसे भी वो मुझे ज़िंदा नहीं चाहते थे ।
तो हाँ, मेरे पास कुछ भी नहीं हुआ करता था।
एक पुराना छेदवाला पतला गद्दा था और उसमें ख़ून और गंदगी के दाग थे
बहुत घिन आती थी, इतनी बुरी बदबू।
एक पतला कंबल भी था उतना ही गंदा।
मेरे कपड़े जो मैंने पहने हुए थे।
और आखिर के कुछ महीनों में मुझे एक टूथब्रश दे दिया गया था, सिर्फ एक टूथब्रश,
तो
तो ..
साफ रह पाना बहुत मुश्किल था और अंत में मुझे कुछ कपड़े दे दिए थे,
कपड़े धोने के लिए .. टाईड की तरह, कपड़े धोने का पाउडर।
मैं कपड़े धोने वाले पाउडर से खुद को साफ रखती थी।
यह वास्तव में बहुत ही घृणित था।
तो, हाँ .. उस अनुभव के बाद, मैं एक सप्ताह के लिए घर भेज दी गयी और ..
उन हालात से एकदम से अब घर, साबुन और कपड़े और न जाने क्या क्या यह सब चकरा देने वाला था।
इसलिए मैं दिन में पाँच-पाँच बार नहाया करती थी क्योंकि अब मुमकिन था।
गर्म पानी था।
.. साबुन था।
तौलिया था।
कपड़े थे।
यकीन नहीं होता था।
टूथब्रश है।
खाना है, मेरा मतलब खाने लायक खाना ..
किसी डिब्बे में परोसा हुआ नहीं
मांस और चावल, मांस और चावल।
छोटे से डिब्बे में नहीं।
ऐसा खाना जिसे ..
अब मुझे ताज़ा खाना नसीब था।
जब मैं बाहर आयी मैं बहुत, बहुत कमज़ोर थी।
मेरा वज़न बहुत कम हो गया था।
मेरे कपड़े जैसे चीथड़ों की तरह लटक रहे थे
मुझे नए कपड़ों की ज़रूरत थी।
सब कुछ मेरे लिए सिर्फ एक बड़ा झटका था।
तो मुझे याद है, बहुत अजीब है, लेकिन
मुझे याद है जब मैं पहली बार जेल से बाहर आयी थी
कार में, मुझे याद है ऐसा लग रहा था जैसे कार बहुत तेज से चल रही हो
क्योंकि मैं एक साल और एक महीने तक एक जगह से हिली तक नहीं थी
तो कार में ऐसा लगा जैसे मैं एक रोलर-कोस्टर में थी।
मुझे लगा कि उफ़्फ़ यह कितनी तेज चल रही है।
और जब मैं अपने घर पहुंची सभी लोग मुझसे कितने सामान्य ढंग से बात कर रहे थे।
सामान्य? मेरे साथ जो कुछ हुआ उसके बाद सामान्य?
अब सामान्य होता क्या है मुझे नहीं पता, कुछ भी सामान्य नहीं बचा।
हर वक्त, आज भी ..
हल्की सी आवाज़ से में जाग जाती हूँ
मुझे याद है जेल से बाहर आने के कुछ सालों बाद
जब भी दरवाज़े के बाहर कोई आवाज़ होती
मैं तो चौंककर जैसे, बिस्तर से बाहर आ गिरती थी
एकदम से
मैं .. मैं अपने पैरों पर होती थी, क्योंकि मैं तैयार थी ..
किसी से भी जूझने के लिए तैयार।
हाँ।
तो, हाँ .. वो एक अच्छा समय नहीं था।
तो घर पर अपनी माँ और बहन के साथ एक सप्ताह के बाद भी
उनमें मेरे लिए ज़रा भी सहानुभूति नहीं थी
बल्कि मुझसे तो यह कहा गया
'तुम्हें लगता है तुम्हारे जेल का अनुभव बुरा था?'
'इससे भी बदतर होता है'
और यह सुनकर मुझे एहसास हुआ
मुझे गहरा धक्का लगा बहुत निराशा हुई।
मुझे उम्मीद थी की उनमें कुछ तो दया होगी
जैसी किसी भी माँ में होती है
लेकिन उनमें नहीं थी।
मुझे मेरी बहन, मेथा से भी कोई हमदर्दी नहीं मिली।
ठीक है ... जैसा भी हो
वो मेरी मदद कर सकते थे अगर चाहते तो..
लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया ..
हाँ उन्होनें मुझे जेल नहीं भेजा, लेकिन वे मेरी मदद कर सकते थे।
वहाँ मुझसे मिलने तो आ सकते थे।
वे मेरे लिए थोड़ा संघर्ष कर सकते थे।
थोड़ी दया दिखा सकते थे, लेकिन उन्होंनें
एक तरह से यही जताया
'ओह यह सब तुमने अपने आप खुदपर किया'
नहीं, मैंने ऐसा नहीं किया।
मैंने शम्सा को नहीं कहा था इंग्लैंड से भागने के लिए।
मैंने उसे लैला से बात करते रहने को नहीं कहा था।
मैंने नहीं कहा था की पकड़ी जाओ।
मैंने नहीं किया ..
मैंने खुदपर कुछ नहीं किया।
सिर्फ़ एक ही बात थी ..
मैं अपनी बहन को बचाने की कोशिश कर रही थी और उसकी मदद करने की कोशिश कर रही थी
और मुझे उसकी यह कीमत चुकानी पड़ी
तो हाँ वापस वहीं, मैं घर में थी।
मैं सिर्फ़ एक सप्ताह के लिए घर में रह पायी
क्योंकि एक सप्ताह के बाद मैंनें अपना आपा खो दिया
मुझे ठीक से याद नहीं किस बात पर झगड़ा शुरू हुआ,
लेकिन मैं चीख-चीख के कह रही थी कि
मुझे शम्सा से मिलना है और मेरा चिल्लाना नहीं रुक रहा था।
ऐसा था जैसे..
मैं नहीं बता सकती।
मैं सचमुच सिर्फ चिल्ला रही थी
'मैं शम्सा को देखना चाहती हूँ, मैं शम्सा को देखना चाहती हूँ'
'मैं शम्सा को देखना चाहती हूँ'
और बात इस हद तक चली गयी कि मैं लोगों से लड़ने की कोशिश कर रही थी।
तो उन्होनें मुझे पकड़ा हुआ था और मुझे याद नहीं
है कि उन्होनें किसको कॉल किया।
पुलिस को बुलाया, लेकिन एक वक्त पर कुछ लोगों
ने मुझे पकड़ा हुआ था।
और फिर वहाँ एक डॉक्टर था।
मैंने एक डॉक्टर को देखा और उसने मुझे इंजेक्शन दिया और मुझे या तो एक कार या एक एम्बुलेंस में ले गए,
मुझे याद नहीं।
मुझे लगता है कि यह एक कार थी, और मैं तो बस चिल्ला रही थी।
मुझे याद नहीं।
उन्होंने मुझे दवा देकर शांत करने की कोशिश की।
यह पहली बार काम नहीं किया।
उन्होंने मुझे अस्पताल में डाल दिया।
मुझे याद है उन्होनें मुझे इंजेक्शन देकर शांत किया था।
और फिर हल्का सा याद है.. मैं अस्पताल के बिस्तर पर हूँ और जागने के बाद
लोग मुझे खिलाने की कोशिश कर रहे हैं.. उसके बाद बाथरूम में मेरी नींद टूटती है
इस तरह मैंने कुछ बेहिसाब समय खो दिया.. कुछ दिन खो दिए।
इतना चिल्लाने से मेरी आवाज़ चली गयी थी।
तो, हाँ .. मुझे कुछ समय लगा..
नहीं पता कि मुझे कितना बेहोश रखा गया या मुझे क्या दिया था, लेकिन हाँ मैंने कुछ दिन खो दिए।
और फिर, हाँ .. तो मैंने एक सप्ताह अस्पताल में बिताया
बेआवाज़ और नर्सों के साथ
जो बहुत, बहुत, बहुत अच्छी थीं।
और वे मेरे लिए हर तरह से सब सामान्य बनाने कि कोशिश कर रहीं थीं
इस तरह से नहीं जैसे मैं कोई मानसिक रोगी हूँ ..
क्योंकि मैं एक मानसिक रोगी नहीं हूँ।
मैंने अपनी हल्की आवाज़ में उन्हें बताया कि मेरे साथ क्या हुआ है
मैं उनसे बात कर पाती थी और वे वास्तव में अच्छीं थीं
उन्होनें मुझे सामान्य महसूस कराने की कोशिश की।
ख़ैर.. तो एक सप्ताह घर में और एक सप्ताह अस्पताल में,
और मुझे फिर से वापस जेल में डाल दिया।
तो कुल मिलाकर तीन साल और चार महीने मैंने कैद में बिताए।
और मैं नहीं जानती थी कि कब तक मैं वहाँ रहूँगी।
मुझे सिर्फ इतना बताया गया कि तुम्हारे पिता ने कहा है इसे तब तक पीटो जब तक इसमें जान ना बचे। बस
वे मुझे ख़त्म नहीं कर पाए।
वे चाहते थे, लेकिन नहीं कर पाए।
तो जब मैं दूसरी बार कैद से बाहर आई..
तो मैं ..
मैं तो बस..
मुझे हर किसी से नफ़रत थी।
मुझे किसी पर भरोसा नहीं था ..
मेरे लिए जैसे सभी लोग बुरे थे
किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता था,
जैसे सभी लोगों आपके खिलाफ हों,
मुझे ऐसा लगता था।
इसलिए मैं जानवरों के साथ बहुत समय बिताती थी
घोड़ों, कुत्तों, बिल्लियों के साथ पक्षियों के साथ
अलग अलग जानवरों के साथ।
मैं पने दिन जानवरों के बिताती थी
और फिर मैं अपने कमरे में जाकर कोई फिल्म वगैरह देख लेती थी
लेकिन मैं लोगों के साथ बातचीत नहीं करती थी।
कोई नहीं था जिस पर मुझे भरोसा हो।
और फिर मैं .. हाँ, तो मुझे..
मुझे नहीं पता..
मुझे नहीं पता जेल से बाहर आने के बाद मुझे कितने साल लगे
पूरी तरह से उस अनुभव से उबरने में।
मुझे नहीं पता।
मुझे नहीं पता कब मैं सामान्य हो पायी।
मैं नहीं जानती कि मैं अब भी सामान्य हूँ या नहीं।
मेरा मतलब है यह कुछ ऐसा है कि
आपको बदल देता है,
आप लोगों में विश्वास खो देते हैं।
2017 की गर्मियों में ऐसा बहुत कुछ हुआ,
जिसने मुझ पर दबाव डाला ..
कि अब और नहीं रुका जा सकता, मैं शम्सा के ठीक होने का अब इंतजार नहीं कर सकती ताकि उसे अपने साथ ले चलूँ।
मुझे एहसास हुआ, यह समझने में मुझे लगभग दस साल लगे
कि यहाँ रह कर उसकी कोई मदद नहीं हो रही है।
मैं उसकी यहाँ मदद नहीं कर सकती।
मुझे जाना होगा।
यह एक ही रास्ता है जिससे मैं उसकी मदद कर सकती हूँ।
अपनी मदद कर सकती हूँ।
उसकी मदद कर सकती हूँ।
मैं बहुत से लोगों की मदद कर सकती हूँ, बस निकलना होगा। यहाँ रहकर ..
मैं उसकी बिल्कुल भी मदद नहीं कर सकती।
तो .. और 2017 की,
गर्मियों में मैंने एक अच्छा दोस्त खो दिया है
और मुझे एहसास हुआ कि जीवन कितना छोटा है।
इसकी कोई गारंटी नहीं है।
किसी के परिवर्तन लाने का बैठकर इंतज़ार करने का कोई फ़ायदा नहीं
या किसी के तैयार होने का।
इंतज़ार करने की कोई वजह नहीं, बस एक बड़ा कदम लेना होगा।
शम्सा को कुछ नहीं होगा और एक बार बाहर आ जाओ तो तुम उसकी मदद कर सकती हो।
इसलिए इस वीडियो को बनाने की जरूरत है।
अगर मैं कामयाब ना हो पाऊँ तो।
यह सब व्यर्थ नहीं जाएगा, किसी के पास कुछ फ़ुटेज तो रहेगी।
मुझे ..
मुझे सब कुछ याद करना होगा ये मेरा आख़िरी वीडियो हो सकता है।
मैं और क्या कहूँ पता नहीं।
मैं और क्या कहूँ पता नहीं।
वे निश्चित रूप से इस विडियो को बदनाम करने की कोशिश करेंगे, कहेंगे कि यह एक झूठ है या यह एक अभिनेत्री है
ऐसा ही कुछ।
मैं नहीं जानती और क्या अपने बारे में कहूँ।
तो मैं बस अपने बारे में और अधिक जानकारी देती हूँ।
जब मैं छोटी थी तब दुबई इंग्लिश स्पीकिंग स्कूल जाती थी
और फिर मैं इंटरनेशनल स्कूल ऑफ़ शूएफ़ात गयी
और उसके बाद एक साल के लिए मैं लतीफ़ा स्कूल फॉर गर्ल्स गयी।
और फिर, हाँ, जब मैं जेल से बाहर आई तो ज़बील अस्तबल में घुड़सवारी करती थी।
और फिर फ़ुजैरा में स्कूबा डाइविंग और
बाद में स्काईडाइव दुबई में स्काइडाइविंग शुरू की।
तो ऐसे बहुत से लोग हैं जो मुझे जानते पहचानते हैं।
वे मेरे चेहरे को जानते हैं। उन्हें मेरे बात करने का अंदाज़ पता है।
वो मुझे जानते हैं।
तो भले ही वे कोशिश करें मुझे बदनाम करने की, मुझे आशा है कि
मेरे कुछ दोस्त कहेंगे कि
'मैं लतीफ़ा को जानता हूँ और ये वास्तव में वही है'
वैसे भी मैं अपनी बहन मेथा की तरह दिखतीं हूँ।
मैं अपने भाई माजिद की तरह दिखतीं हूँ और वे दोनों मशहूर लोग हैं।
इसलिए भले ही वे मुझे बदनाम करने की कोशिश करें, मैं मेरे भाई बहन की तरह दिखतीं हूँ।
तो..
और मैंने अपने पासपोर्ट की प्रतियां भी दी हैं
और मेरे प्रमाण पत्र वगैरह
और हाँ ..
मेरा पासपोर्ट मेरे पास नहीं रहता, वो मुझे मेरा पासपोर्ट नहीं देते।
मेरा संयुक्त अरब अमीरात पासपोर्ट कभी मेरे पास नहीं रहता।
मुझे तो उसकी बस एक कॉपी मिली थी ..
अरे मेरा..
जब मैंने अपनी जीसीएसई परीक्षा दी थी
जेल से छूटने के बाद, मैंने कुछ परीक्षाएँ दी थीं और
उनके लिए पासपोर्ट प्रतियों की ज़रूरत थी।
तब मैंने पासपोर्ट की तस्वीर ली थी
और जब मैंने स्काइडाइविंग टैंडम रेटिंग ली थी
एफएआई? शायद यह कहा जाता है..उन्हें चिकित्सीय मंजूरी की ज़रूरत होती है
और उसके लिए पासपोर्ट की एक प्रति की ज़रूरत होती है
तो मैंने अपने पासपोर्ट प्रति की कॉपी बना ली।
वे मुझे मेरा पासपोर्ट नहीं देते, लेकिन उन्होंने मुझे मेरे पासपोर्ट की एक प्रति दी थी।
तो.. मुझे ड्राइव करने की इजाज़त नहीं है।
मैं ना कहीं जा सकती हूँ या दुबई छोड़ सकती हूँ
मैं साल 2000 के बाद से देश से बाहर नहीं गयी।
मैंने बहुत कोशिश की पढ़ने या कुछ भी सामान्य करने की इजाज़त मिले।
पर नहीं।
मुझे ..
मैं कब बाहर जाती हूँ कब वापस लौटती हूँ ..
सब निश्चित समय पर करना होता है।
वे .. मेरी माँ को हमेशा यह जानना होता है कि मैं कहाँ हूँ।
ड्राइवर मेरे पिता को रिपोर्ट देते हैं, मैं कहाँ जाती हूँ वगैरह।
हमारे ड्राइवर चुने हुए होते हैं।
ऐसे ही किसी की भी कार में नहीं जा सकते।
मुझे ड्राइवर के साथ जाना होता है।
ड्राइवर को हमेशा पता रहता है कि मैं कहाँ हूँ।
हाँ, तो यही है मेरी ज़िंदगी।
बहुत ही प्रतिबंधित।
मैं ..
मैं भी बिना इजाज़त किसी दूसरे अमीरात तक नहीं जा सकती।
नहीं।
इसलिए मुझे दुबई में रहना पड़ता है।
हाँ।
तो हाँ, भले ही वो मुझे बदनाम करने की कोशिश करें,
मेरे पास ऐसी बहुत जानकारी है की वो मुझे ख़ारिज नहीं कर सकते।
खैर, वे कोशिश करेंगे और फिर खुद ही ख़ारिज कर दिए जाएंगे।
तो हाँ, यह मेरा आखिरी वीडियो हो सकता है।
मुझे आशा है कि ऐसा नहीं होगा ..
मुझे आशा है कि इस वीडियो की मुझे जरूरत ना पड़े।
मुझे आशा है कि यह वीडियो सिर्फ नष्ट कर दिया जाए और हम सब ठीकठाक रहें
लेकिन इस वीडियो को बनाने की ज़रूरत थी।
नहीं पता और क्या कहूँ।
तो बाहर आने के बाद मैं आशा करती हूँ कि
कि
मेरे पास पासपोर्ट हो
और मेरे जीवन में निर्णय लेने की आज़ादी हो
और मैं जहाँ भी रहूँ शम्सा की मदद कर पाऊँ।
मैं कह सकूंगी कि उसे भी उसका पासपोर्ट दो।
उसे भी बाहर घूमने दो।
मुझसे मिलने दो।
और
मुझे लगता है कि अपनी और किसी दूसरे की मदद का यही एक रास्ता है।
और क्या कहूँ पता नहीं।
मैं अपने जीवन में देखी कई चीज़ों के बारे में बता सकती हूँ।
जब मैं छः महीने की थी, मेरे पिता की बहन मुझे चाहती थी।
तो वह मुझे मेरी माँ से दूर ले गईं।
तो ज़िंदगी के पहले दस साल मैंने महल में गुज़ारे
यह सोचते हुए कि मेरी चाची ही मेरी माँ हैं
और मैं साल में सिर्फ़ एक बार अपनी असली माँ से मिलने जाती थी।
मैं वहाँ कभी रात तक नहीं ठहरती थी।
सिर्फ़ दिन बिताकर, रात में महल चले जाते थे।
और जब मेरा छोटा भाई, तीन महीने का था
मेरी माँ ने उसे भी सौंप दिया।
खैर, यह स्वैच्छिक था क्योंकि वो मुझे अकेले रहने देना नहीं चाहती थीं,
तो उन्होनें मेरे भाई को मुझे सौंप दिया, ताकि हम दोनों साथ रहें।
तो हाँ, ज़िंदगी के पहले दस साल मैं एक झूठ जी रही थी
बाद में मुझे पता चला कि मैं कौन हूँ और फिर मैं अपनी माँ के साथ रहने चली गयी
और मैं अपनी माँ के साथ रहने के लिए झगड़ती थी
शम्सा हमारे उसके साथ रहने के लिए लड़ती थी।
इसलिए मैंने हमेशा शम्सा को उस व्यक्ति की तरह देखा जिसने मुझे बचाया।
इसलिए मैं उसे बचाने की कोशिश कर रही थी, तो ..
लेकिन मैं अब तक सफल नहीं हो पायी।
ओह! वे शायद ऐसा भी कर सकते हैं।
वे शायद शम्सा को विडियो बनाने के लिए मजबूर करें कहलवाएँ कि मैं झूठी हूँ या
मुझे बदनाम करने के लिए ऐसा ही कुछ।
यकीनन वे ऐसा करने की कोशिश करेंगे ..
मैं उन्हें जानती हूँ।
बेशक।
उसके पास किसी तरह की आज़ादी नहीं है।
वह कुछ भी नहीं कर सकती।
वह .. अभी वह ..
उसके साथ एक मनोचिकित्सक रहता है
और वह नर्सों से घिरी रहती है।
वे उसके साथ कमरे में रहते हैं जब वह सोती है।
और जब जागती है तो नोट्स लेते हैं,
कि वो कब सोती है, कब खाना खाती है, क्या खाती है,
क्या कहती है, क्या बातचीत करती है,
उसे अपने सामने गोलियाँ खिलाते हैं,
पक्का करने के लिए कि उसने सारी गोलियाँ ली हैं,
दवाएँ उसके दिमाग को क़ाबू करने के लिए,
मुझे नहीं पता वो क्या हैं।
तो इस तरह उसकी ज़िंदगी को पूरी तरह से नियंत्रित किया जाता है।
और हाँ गर्मियों में एक और बात हुई जो
मुझे कहनी चाहिए थी कि
शम्सा के पास से कुछ मोबाइल फ़ोन बरामद हुए इसलिए..
मेरी माँ और मेरी दूसरी बहन बहुत घबरा गए
कि वह फिर से इंग्लैंड में पत्रकारों से संपर्क करने की कोशिश करेगी
अपनी परिस्थिति या किसी और बारे में उनसे बात करने के लिए,
मेरे पिता की प्रतिष्ठा को धूमिल करने की कोशिश में।
उन्हें इस बात का डर था।
तो इसके बाद उसकी स्थिति और ज़्यादा नियंत्रित हो गयी है।
यही कारण है कि अब एक मनोचिकित्सक रखा गया है हमेशा उसके पास रहने के लिए।
पहले भी मनोचिकित्सक था लेकिन वह हमेशा उसके साथ नहीं रहता था
जैसा अब हो रहा है
और चौबीस घंटे उसके साथ रहने वाली नर्सें।
ऐसा है जैसे जहाँ वो जाती है एक पिंजड़ा उसके साथ-साथ पीछे चलता है,
तो उसके पास कोई .. कोई आज़ादी नहीं है।
तो, हाँ मुझे लगता है कि ..
वो मुझे लगता है कि उसका इस्तेमाल मुझे ख़ारिज करने के लिए कर सकते हैं।
ऐसा हुआ तो देखने लायक होगा
क्योंकि..
हाँ तो वे उसका इस्तेमाल मुझे ख़ारिज करने के लिए कर सकते हैं।
लेकिन वे कभी मुझसे अपने आपको ख़ारिज नहीं करावा पाएंगे क्योंकि
वो..
मैं ज़िंदा उनके हाथ नहीं लगने वाली
ऐसा बिलकुल नहीं होगा।
और क्या कहूँ पता नहीं।
मेरा मतलब है कि साल 2000 से यानी लगभग दो दशक हो चुके हैं, इस पागलपन को शुरु हुए।
अब हम 2018 में हैं, यह सब वाकई सिर घूमा देने वाला था।
बहुत से लोग..
बहुत से लोगों की ज़िंदगी को चोट पहुंची है,
बहुत से लोगों को प्रताड़ित किया गया है,
बहुत से लोगों ने जानें गवाईं हैं
बहुत कुछ हुआ है...
उसने बहुत से कत्लों पर पर्दा डलवाया है
मेरे पिता को किसी का डर नहीं।
इससे बड़े अपराधी की आप कल्पना नहीं कर सकते हैं।
और उनकी छवि एक आधुनिकतावादी की बनाई गयी है
यह सब बकवास है।
मेरे तीस भाई और बहनें हैं।
लेकिन..
उनकी सिर्फ ऐसी तस्वीरें डाली जाती हैं और ऐसी सार्वजनिक छवि दिखाई जाती है जैसे वह एक परिवारिक व्यक्ति हो,
यह .. सब बकवास है।
वो ऐसा नहीं है।
यह सिर्फ पी॰आर॰ है।
उसका लेबनान में एक बेटा है जिसकी वो कभी सुध नहीं लेता।
उसने.. वह उससे शायद एक या दो बार मिला है और तब भी हाथ भर मिलाया था ..
जब वह बेटा दुबई आया था।
वह .. उपेक्षित रहा है इतनी सारी दूसरी संतानों की तरह।
.. वह एक पिता नहीं है।
वह सच में, बहुत ही घृणित ,
बहुत ही घृणित इंसान है।
हाँ,
जिस तरह से उसने अपनी ज़िंदगी गुज़ारी है और दूसरों से उसका व्यवहार रहा है
वह वैसा नहीं है जैसा मीडिया दिखाता है, उसका खुदका मीडिया।
दुबई में याद रखें, मीडिया पूरी तरह नियंत्रित किया जाता है
और लगभग पूरे मध्यपूर्व में भी।
और समझ नहीं आता कि क्या कहूँ।
मुझे लगता है कि अगर इस कोशिश में मेरी जान जाती है
या अगर मैं जीवित बाहर नहीं आ पाती तो कम से कम एक वीडियो तो रहेगा।
यह दुख़ की बात है कि सब इस हद तक आ चुका है की मुझे एक वीडियो बनाना पड़ा, लेकिन यह ज़रूरी है।
और क्या कहूँ पता नहीं।
सोचने की कोशिश कर रही हूँ,
और क्या मैं अपने जीवन के बारे में बता सकती हूँ।
पता नहीं और क्या कहूँ ।
मुझे आशा है कि इस विडियो की मुझे ज़रूरत ना पड़े।
और लग रहा है मुझे इसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
मैं भविष्य के बारे में सकारात्मक महसूस कर रहीं हूँ
और मैं महसूस कर रही हूँ जैसे कि यह एक नयी शुरुआत है।
यह शुरुआत है मेरे द्वारा अपने जीवन का जिम्मा लेने की .. मेरी स्वतंत्रता, निर्णय की स्वतंत्रता।
मुझे इसके इतना आसान होने की उम्मीद नहीं है, कुछ भी आसान नहीं होता है,
लेकिन मुझे आशा है यह मेरे जीवन के एक नए अध्याय की शुरुआत होगी
जिसमें मेरी आवाज़ का कोई महत्व होगा
जहाँ मुझे खामोश नहीं किया जा सकेगा
और मैं अपने बारे बात कर सकूँगी, और शम्सा के बारे में बात कर पाऊँगी।
बता पाऊंगी की हमारे साथ क्या कुछ हुआ।
हाँ, मैं उस कल की राह देख रही हूँ।
हाँ, मैं नहीं जानती,
मुझे नहीं पता की वो सुबह कैसी होगी
जब मैं जागकर सोच सकूँगी..
कि मैं जो चाहूँ आज कर सकती हूँ।
जहाँ चाहूँ जा सकती हूँ।
मेरे पास दुनिया के वे सभी विकल्प हैं जो दूसरों के पास हैं।
कितना अलग और नया अनुभव होगा।
वह अद्भुत होगा।
मैं इसके लिए तत्पर हूँ।
एक देश में फंसे होकर आप एक हद तक ही कुछ कर सकते हैं
और वो भी इन बंधनों के साथ।
एक आम इंसान क्या कर सकता है उसकी कुछ सीमाएँ हैं।
मैं आशावान हूँ आने वाले समय के लिए, शम्सा के अच्छे जीवन लिए।
ऐसा बहुत कुछ है जिसके लिए मैं आशावान हूँ।
हाँ, मुझे वाकई लगता है कि यह मेरे जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत है।
मेरे दुबई में रहने की कोई वजह नहीं बची है।
मेरे यहाँ वापस आने की कोई वजह नहीं बची है।
मेरे आसपास ऐसे लोग हैं जिन्हें में मैं प्यार करती हूँ, लेकिन वे मुझसे मिलने आ सकते हैं।
जैसे मेरे परिवार में कुछ लोग हैं, दोस्त हैं जिनकी मुझे परवाह है,
मैं जहाँ भी रहूँ वे मुझसे मिलने आ सकते हैं।
और एक मुश्किल यह भी है कि मैं कल कहाँ जाऊँगी इसका भी पता नहीं।
मुझे..
मुझे नहीं पता मैं कहाँ रहूँगी।
नहीं पता .. मैं कहाँ रह सकती हूँ।
मुझे कुछ भी पता नहीं है।
मैं नहीं जानती मैं कहाँ जा रही हूँ।
हम नहीं जानते।
मैं जानती हूँ मैं कहाँ ठहरूँगी।
जानती हूँ कहाँ थोड़ी देर के लिए ठहरना होगा, लेकिन आख़िर में मैं कहाँ पहुँचूँगी इसका नहीं पता।
एक तरह से अच्छा ही है।
सभी विकल्प जो मेरे पास होंगे।
हाँ .. क्या मैं कहीं कुछ भूल तो नहीं गयी?
और किस बारे में बात करूँ?
क्या उन सभी हत्याओं के बारे में बात करूँ?
या उन अत्याचारों के बारे में जो मैंने देखे हैं?
किस बारे में बात करूँ?
मैं और क्या बताऊँ नहीं जानती
क्योंकि वो एक बहुत ही लंबी कहानी होगी।
मुझे नहीं पता।
पता होना चाहिए मुझे, हैं ना?
वो कई जानों के जाने के लिए ज़िम्मेदार है।
वो एक बहुत बड़ा अपराधी है।
यहाँ कोई न्याय नहीं है।
उन्हें कोई परवाह नहीं है, खासकर यदि आप एक महिला हैं, आपके जीवन के कोई मायने नहीं।
उन्हें कोई परवाह नहीं है।
यहाँ तक कि उसने सबूत छिपाने के लिए घरों तक को जला दिया है।
घरों को जलाकर राख़ कर दिया।
वह पागल इंसान है।
मुझे लगता है कि समय आ गया है कि वह अपने किए का अंजाम भुगते।
ऐसा होगा।
उसे अंजामों का सामना करना ही होगा।
मेरे साथ वो क्या करता है, यातनाएँ ..
सब कुछ, मैं उससे नहीं डरती।
मुझे उससे कोई डर नहीं।
वह दयनीय है
दयनीय इंसान।
और वह अपने किए का अंजाम भुगत कर रहेगा, उसने जो कुछ किया है
न सिर्फ मेरे साथ, लेकिन हर किसी के साथ।
उसे परिणामों का सामना करना पड़ेगा।
हाँ।
तो, मुझे नहीं लगता मेरे पास अब कहने के लिए ज़्यादा कुछ है।
उम्मीद है, मुझे इस वीडियो की जरूरत नहीं होगी।
और कोई अंतिम शब्द ..
कोई आख़िरी अल्फ़ाज़ ..
मेरे सभी दोस्तों को मेरा आभार, और उन लोगों का जिन्होनें मेरी परवाह की
और मेरे .. परिवार के उन सदस्यों को जिन्हें मेरी परवाह रही,
आपको पता है कि आप कौन हैं,
तुम सबने भले ही मेरी परवाह ना की हो, लेकिन आप में से कुछ ने की।
उन लोगों को मेरा धन्यवाद।
और अगर मैं यहाँ से बाहर नहीं निकल पाती,
मुझे आशा है कि इस सबसे एक अच्छा बदलाव आ पाएगा।
ठीक है।