मैनें आपको पिछले साल तीन बातें बताई थीं।
मैने कहा था कि दुनिया के बारे में सांख्यिकीय जानकारी
सही ढंग से उपलब्ध नहीं कराई गयी है।
इस कारण से, हम अभी तक पुरानी सोच रखते हैं,
विकासशील और औद्योगिक देशों के बारे में, जो कि गलत है।
और यह कि जीवंत चित्रों के ज़रिये इन्हें बेहतर दिखाया जा सकता है।
चीजें बदल रही हैं।
और आज, संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी विभाग के होमपेज पर,
ये लिखा है कि, १ मई तक, सारी जानकारियाँ मुक्त रूप से उपलब्ध होंगी।
(अभिवादन)
अगर मैं आपको स्क्रीन पर तस्वीर दिखा सकता।
तो, तीन बातें होती ।
संयुक्त राष्ट्र ने अपने आंकडे साझा कर दिये हैं,
और इस साफ़्टवेयर का नया प्रारूप आ गया है
इंटरनेट पर, बीटा रूप में,
जिससे कि आप को इसे डाउनलोड भी नहीं करना पड़े।
और अब मैं दोहराता हूँ आपने जो पिछले साल देखा था।
ये गोले देशों को दर्शाते हैं।
यहाँ है इनकी - पैदावार दर - प्रति स्त्री बच्चों की संख्या --
और यहाँ है उम्र के वर्ष।
ये है १९५० का साल - और ये थे औद्योगिक देश,
ये थे विकासशील देश।
और उस समय 'हम' और 'वो' का फ़र्क था।
विश्व में बहुत असमानतायें थीं।
पर फ़िर वो बदल गया, और काफ़ी ठीक तरह से बदला।
और फ़िर ऐसा कुछ हुआ।
आप देख रहे हैं कैसे चीन एक बडा लाल गोला है;
और ये नीला वाला भारत है।
और ये सब हो रहा है .... इस साल मैं कोशिश करूँगा
थोडा संजीदा हो कर आपको दिखा सकूँ
कि असल में बदलाव आया कैसे।
और ये है अफ़्रीका, जो कि एक समस्या की तरह यहाँ नीचे पडा है, है न?
अभी भी बड़े परिवार, और एच.आई.वी. का प्रकोप
से नीचे जाते देश जैसे ये।
और पिछले साल हमने लगभग यही देखा था,
और आगे भविष्य में ये कुछ ऐसा दिखेगा।
और मैं ये बात करूँगा कि क्या ऐसा संभव है?
क्योंकि आप देखिये, यहाँ मैं वो आँकडे पेश कर रहा हूँ जो असली नहीं हैं।
क्योंकि ये है, जहाँ हम असल में हैं।
क्या ऐसा संभव है कि ये हो जाये?
मैं यहाँ अपने सारे जीवन की बात करूँगा।
और मैं सोचता हूँ कि मैं लगभग सौ साल जिऊँगा।
और हम यहाँ है अभी।
और आइये देखते हैं कि दुनिया की आर्थिक स्थिति कैसी है।
और इसे हम बच्चों की मृत्यु के अनुपात में देखेंगे।
आइये अब धुरियाँ बदलते हैं:
यहाँ है बच्चों की मृत्यु दर --- यानि --- जीवन ---
यहाँ चार बच्चे मरते हैं, यहाँ २०० मरते हैं।
और ये है प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. (सकल घरेलू उत्पाद) इस धुरी पर।
और ये था सन २००७.
और अगर हम समय में वापस चलें, मैने कुछ ऐतिहासिक आँकडे जोडे हैं --
यहाँ हम चलते है, चलते है, --- १०० साल पहले के ज्यादा आँकडे है नहीं।
कुछ देशों में तब भी थे आँकडे।
और हम गहरे जाते है,
और अब हम आ चुके है सन १८२० में,
केवल आस्ट्रिया और स्वीडन के पास ही आँकडे हैं।
(हँसी)
और ये लोग बहुत नीचे थे, प्रति व्यक्ति करीब १००० डॉलर प्रति वर्ष पर।
और लगभर एक-बटा-पाँच बच्चे अपनी पहली सालगिरह भी नहीं देख पाते थे।
तो ये है सारे विश्व में जो हो रहा है, एक साथ पूरे विश्व को चलाने पर।
कैसे धीरे धीरे उनकी समृद्धि बढती गयी,
और कैसे उन्होंने आँकडे जोडे।
क्या यह बढिया नहीं लगता जब आँकडे आ जाते है?
इसका महत्व देखा आपने?
और यहाँ, बच्चे लम्बे समय तक नहीं जीते।
पिछली शताब्दी, १८७०, बच्चों के लिये यूरोप में अच्छी नहीं थी,
क्योंकि ये आँकडे ज्यादातर यूरोप से ही हैं।
शताब्दी ख्त्म होने तक का समय लगा
९०% से ज्यादा बच्चों को एक साल से ज्यादा जीवित रख पाने में।
ये भारत उभर रहा है, पहले आँकडॆ आये हैं भारत से।
और ये है अमरीका, दूर जाते हुए, और पैसे कमाते हुए।
और अभी दिखेगा चीन बिलकुल सुदूर कोने में।
और ये माओ-त्से-संग के स्वास्थ के साथ ऊपर उठता है,
लेकिन रईस नहीं होता।
फ़िर उनकी मृत्यु होती है, और डेंग जिआओपिंग पैसे लाते हैं,
और ये यहाँ आ जाता है।
और गोले ऊपर वहाँ हिलते रहते हैं,
और ये है जैसा कि आज विश्व दिख रहा है।
(अभिवादन)
चलिये अमरीका पर एक नज़र डालते हैं।
मेरे पास एक तरीका है -- मै दुनिया से कह सकता हूँ, "यहीं रुक जाओ।"
और मैं अमरीका पर केंद्रित होता हूँ -- हम अभी भी इसका प्रारूप देखना चाहते हैं --
इन्हें मैं ऐसे लगा देता हूँ, और फ़िर हम समय में वापस जाते हैं।
और हम देख सकते हैं कि अमरीका
बिलकुल दाहिनी तरफ़ चला गया है।
और वो पूरे समय ज्यादा पैसे की तरफ़ हैं।
और १९१५ में, यहाँ अमरीका भारत का पडोसी था --
आज के भारत का।
और इसका मतलब है कि वो ज्यादा रईस था,
लेकिन वहाँ बच्चों की मौत आज के भारत के मुकाबले ज्यादा थी।
और ये देखिये -- आज के फ़िलिपींस के मुकाबले।
आज के फ़िलिपींस की वहीं स्थिति है
जो कि अमरीका की पहले विश्व-युद्ध के समय थी।
मगर हमें अमरीका को आगे लाना होगा
अमरीका के स्वास्थ को पहुँचाने के लिये,
फ़िलिपींस के स्वास्थ तक।
करीब १९५७ में, अमरीका का स्वास्थ
फ़िलिपींस के बराबर आ गया है।
और यही है इस दुनिया की करामात जिसे कई लोग वैश्वीकरण कहते है कि,
एशिया, अरब देश, लेटिन अमरीका
आगे हैं स्वस्थ और शिक्षित
मानव संसाधनों में, बजाय आर्थिक रूप के।
और एक गडबड सी है आज जो हो रहा है, उसमें
खासकर उभरती अर्थ-व्यवस्थाओं में।
वहाँ सामाजिक लाभ, और सामाजिक प्रगति,
वित्तीय प्रगति से आगे निकल रही है।
और १९५७ में -- अमरीका का वित्तीय स्वास्थ आज के चिली जैसा था।
और अमरीका को हमें कितना आगे लाना होगा
चिली के आज के स्वास्थ के बराबर आने के लिये?
मेरे हिसाब से हमें वहाँ जाना होगा - २००१, २००२ ---
और अमरीका के पास वही स्वास्थ है जो चिली के पास है।
चिली आगे बढ रहा है।
कुछ दिनों मे चिली के पास बच्चों के जीने की बेहतर संभवनायें होंगी
अमरीका के मुकाबले।
ये बहुत बडा बदलाव है, कि आप के पास
तीस से चालीस साल का फ़र्क है स्वास्थ के मामले में।
और स्वास्थ के बाद है शिक्षा।
और बहुत सारी चीजें हैं मूलभूत सुविधाओं के बारे में,
और मानव संसाधनों के बारे में।
अब इसे हटा देते हैं---
और मैं आपको दिखाना चाहता हूँ
इस बदलाव की गति, इस की दर, कि कितना तेज सब हुआ है
हम वापस जाते हैं १९२० में, और मैं जापान को देखना चाहता हूँ।
और अमरीका और स्वीडन को।
यहाँ मैं एक दौड दिखाना चाहता हूँ
इस पीले सी फ़ोर्ड और
इस लाल टोयोटा के बीच,
और इस भूरी से वोल्वो के बीच।
(हँसी)
और ये हम चलते हैं,
टोयोटा ने शुरुवात अच्छी नहीं रखी है, आप देख सकते हैं,
और अमरीका की फ़ोर्ड रोड के बाहर आ रही है।
और वोल्वो अभी भी ठीक कर रही है।
ये लडाई का वक्त आ गया है। टोयोटा रास्ते से बाहर हो गयी है, और अब
टोयोटा फ़िर से स्वीडन के स्वास्थ की तरफ़ आ रही है ---
आप देख रहे हैं?
और वो स्वीडन से आगे निकल रहे हैं,
और अब वो स्वीडन से ज्यादा स्वस्थ हैं।
यहाँ पर वोल्वो को मैं बेच देता हूँ, और टोयोटा खरीद लेता हूँ।
(हँसी)
और अब हम देख सकते हैं कि किस महान गति से जापान आगे बढ रहा है।
और वो रेस में वापस आ चुके हैं।
और ये भी बदल रहा है।
हमें कई पीढियों पर नज़र डालनी होगी इसे समझने के लिये।
और मैं आपको अपने परिवार का ही इतिहास दिखाता हूँ ---
हमने ये कुछ ग्राफ़ बनाये हैं।
और फ़िर वही बात है, यहाँ नीचे पैसे, और वहाँ स्वास्थ, है न?
और ये है मेरा परिवार।
ये स्वीडन है, १८३० मे, जब मेरे परदादा की दादी का जन्म हुआ था।
स्वीडन तब सियरा लियोन की तरह था।
और ये है जब मेरी परदादी पैदा हुई थी, १८६३।
और तब स्वीडन मोज़ाम्बिक की तरह था।
और ये है जब मेरी दादी पैदा हुयी, १८९१।
और उन्होंने मुझे बचपन में पाला था,
तो मैं अब सांख्यिकी के बारे में बात नहीं कर रहा हूँ --
ये मेरे परिवार का मौखिक इतिहास है।
और मैं आँकडों में तभी विश्वास करता हूँ
जब मेरी दादी उन्हें सही करार देती हैं।
(हँसी)
मेरे ख्याल से इतिहास के आँकडों को प्रमाणित करने का यह सबसे बेहतर तरीका है।
स्वीडन घाना के जैसा था।
ये विशाल अनेकता बहुत ही रोचक है
सह-सहारन अफ़्रीका के अंदर।
मैनें आपको पिछले साल बताया था, और मैं अब फ़िर बता रहा हूँ,
मेरी माँ मिश्र में पैदा हुई थी, और मैं -- मैं क्या हू?
मैं अपने परिवार का मैक्सिकन हूँ।
और मेरी बेटी, वो तो चिली में पैदा हुई थी।
और मेरी पोती सिंगापुर में,
जो कि पृथ्वी की सबसे स्वस्थ जगह है।
इस ने स्वीडन को करीब तीन साल पहले पछाड दिया,
बच्चों के जीने की बेहतर संभावना के साथ।
मगर वो बहुत छोटी जगह है।
वो अस्पताल के इतने नज़दीक होते हैं कि
हम उनसे तेज इन जंगलों में नहीं जा सकते।
(हँसी)
मगर जो है सो है,
तो सिंगापुर ही बेहतर है, कम से कम इस वक्त।
ये बड़ी अच्छी कहानी जैसा लगता है।
मगर ये सच में उतना आसान नहीं है;
क्योंकि अब आपको एक और खासियत दिखाना चाहता हूँ।
हम किसी एक रंग को किसी खास बात से जोड सकते हैं --
देखिये मैं क्या चुन रहा हूँ?
कार्बन-डाई-आक्साइड का निकास, टनों मे, प्रति व्यक्ति।
ये है १९६२, और अमरीक करीब १६ टन प्रति व्यक्ति छोड रहा है।
और चीन ०.६,
और भारत ०.३२ टन प्रति व्यक्ति।
और अब क्या होगा जब हम आगे बढेंगे?
देखिये, अब आप देख रहे है अच्छी कहानी रईस होने की
और स्वस्थ होने की --
सबने इसे अपना कार्बन डाई आक्साइड रिसाव बढा कर पूरा किया है।
आज तक ये किसी ने किया है।
और हमारे पास ताजा आँकडे भी नही है
क्योंकि ये आजकल काफ़ी कीमती जानकारी है।
और ये है , सन २००१।
और एक विचार-गोष्ठी जो मैनें संसार के प्रख्यात नेताओं के साथ की थी,
उसमें सबने कहा, कि समस्या है उभरती हुई अर्थ-व्यवस्थायें,
वो बहुत ज्यादा कार्बन डाई आक्साइड छोड रही हैं।
भारत के पर्यावरण मंत्री ने कहा,
"असल मे, आप लोगों ने ही समस्या को जन्म दिया है।"
ओ.ई.सी.डी. देश -- मतलब ऊँची कमाई वाले देश ---
उन्होंने ने ही पर्यावरण में बदलाव किया है।
"मगर हम आप को क्षमा करते है, क्योंकि आपको नहीं पता था।
अब से हम प्रति व्यक्ति गणना करेंगे।
अब से हम प्रति व्यक्ति ही गणना करेंगे।
और हर कोई इस प्रति व्यक्ति रिसाव के लिये जिम्मेदार होगा।"
ये आपको दिखाता है, कि हमने ढंग की आर्थिक तरक्की
और स्वास्थ तरक्की नहीं की है, दुनिया में कहीं भी
पर्यावरण को दूषित किये बिना।
और यही है जिसे बदलना होगा।
मेरी आलोचना हो सकती है आपको दुनिया का सकारात्मक रूप दिखाने के लिये,
मगर मुझे लगता है कि मैं सही हूँ।
विश्व असल में काफ़ी गडबड जगह है।
इसे हम कहते है डॉलर स्ट्रीट।
हर कोई इसे गली में रहता है।
ये यहाँ जो कमाते हैं -- किस नंबर में वो रहते हैं --
और वो कितना प्रति दिन कमाते हैं।
ये परिवार प्रति दिन करीब एक डॉलर कमाई करते हैं।
हम इस गली में आगे बढते हैं,
यहाँ हमें एक परिवार मिलता है जो करीब ३ डॉलर प्रतिदिन कमाता है।
और फ़िर हम यहाँ आते है -- हमें गली का पहला बगीचा दिखता है,
और वो करीब १० से ५० डॉलर प्रतिदिन कमाते हैं।
और वो रहते कैसे हैं?
अगर हम बिस्तरों को देखें, तो पायेंगे
कि ये फ़र्श पर पडी दरी पर सोते हैं।
ये है गरीबी की रेखा --
८० प्रतिशत पारिवारिक कमाई केवल बिजली और
खाने की समस्या निपटाने में चली जाती है।
ये है दो से पाँच डॉलर की स्थिति, जहाँ आपके पास बिस्तर है।
और यहाँ एक बेहतर बेडरूम है, आप देख सकते हैं।
मैनें आइकिया में इस पर लेक्चर दिया था, और वो इसे देखना चाहते थे
ये सोफ़ा जल्दी से लग जाये।
(हँसी)
और ये सोफ़ा, अब ये यहाँ से कैसे आगे बढेगा।
और रोचक बात ये है , कि जब आप इसमें आगे बढेंगे,
तो आप देखेंगे कि ये परिवार अभी भी फ़र्श पर ही बैठा है,
जब कि यहाँ सोफ़ा है।
अगर आप रसोई देखेंगे, तो आप पायेंगे कि
औरतों के जीवन में बदलाव महज दस डॉलर में नहीं आता।
वो आता है इस से आगे, जब आप
परिवार के लिये अच्छी कार्य-स्थितियाँ पैदा कर सकें।
और अगर सच में फ़र्क देखना है,
तो आप टायलट देखें।
ये बदल सकता है।
ये तस्वीरें अफ़्रीका की हैं,
और ये बेहतर हो सकती हैं।
हम गरीबी से बाहर निकल सकते हैं।
मेरा अपना शोध आई.टी. या इस से जुडी विधा में नहीं है।
मैने २० साल बिताये हैं अफ़्रीकन किसानों से बातचीत करते हुये,
जो कि भुखमरी के कगार पर हैं।
और ये परिणाम है किसानों की ज़रूरत पर किये गये शोध का।
इस में आप को ये नहीं पता लगेगा कि
आखिर शोधकर्ता कौन हैं।
तब ही जा कर शोध वास्तव में समाज में काम कर सकता है --
आप को सच में लोगों के साथ रहना होता है।
जब आप गरीबी से जूझ रहे होते है, बात जिंदगी-मौत की होती है।
खाना खा पाने का सवाल होता है।
और ये युवा किसान, अब ये लड़कियाँ हैं --
क्योंकि माता-पिता एच.आई.वी और एड्स के शिकार हो चुके हैं --
वो एक प्रशिक्षित कृषि-अर्थ-शास्त्री से विमर्श कर रही हैं।
ये मालावी से सबसे माने हुए विद हैं, जनताम्बे कुम्बिरा
और ये विमर्श कर रहे है, कि किस तरह के कसावा इन्हें लगाने चाहिये --
धूप को भोजन में बदलने में माहिर पौधे।
और वो बहुत ही ज्यादा उत्सुक हैं सलाह पाने के लिये,
और गरीबी में भी जिंदा रह पाने में।
ये एक संदर्भ है।
गरीबी से बाहर आना।
एक औरत ने हम से कहा, "हमें तकनीकों की ज़रूरत है।
हमें इस कंक्रीट से घृणा है, घंटों खडे रहना पसंद नहीं।
हमें एक चक्की दें जिस से कि हम अपना आटा पीस सकें,
इस से हम अपने खर्चे उठा सकेंगे।"
तकनीक आपको गरीबी से बाहर निकाल सकती है,
मगर गरीबी से बाहर आने के लिये एक बाज़ार की ज़रूरत है।
ये औरत बहुत खुश है, क्योंकि ये अपने उत्पाद को मार्केट तक पहुँचा सकती है।
मगर ये धन्यवाद देती है स्कूलों में खर्च हुये सरकारी धन का
जिस से इसने गिनती सीखी, और इसे अब बाज़ार में कोई धोखा नहीं दे सकता।
ये चाहती है कि इस का बच्चा स्वस्थ रहे, जिस से कि ये बाजार जा सके
और इसे घर पर न रहना पडे।
और उसे एक ढाँचा चाहिये -- पक्की सड़क तो चाहिये ही
साथ ही ऋण भी चाहिये।
लघु-ऋण से उसे साइकिल मिली, पता है आपको?
और ताजा जानकारी से पता लगेगा कि उसे कब बाजार जाना चाहिये और क्या ले कर।
आप ये कर सकते हैं
मेरा अफ़्रीका का २० साल का अनुभव ये कहता है कि
जो असंभव सा लगता है, वो संभव है।
अफ़्रीका ने कुछ गलती नहीं की है।
पचास सालों में वो पुरातन स्थितियों से आगे आ कर
करीब १०० साल पहले के यूरोप जितनी तरक्की कर चुके हैं,
सही रूप से कार्य कर रहे राष्ट्र सरकार के साथ|
मेरे ख्याल से सह-सहारन अफ़्रीका ने विश्व में सबसे ज्यादा तरक्की की है,
पिछले पचास सालों में।
क्योंकि हम ये भूल जाते हैं कि इन्होंने यात्रा शुरु कहाँ से की।
ये जो वेवकूफ़ाना तर्क है विकासशील देश नाम का,
जो कि हमें, और अर्जेंटीना और मोजाम्बिक को पचास साल पहले एक ही जगह रख देता है,
और कहता है कि मोजाम्बिक नें उतनी तरक्की नहीं की।
हमें दुनिया के बारे में और समझना पडेगा।
मेरा एक पडोसी है जो कि २०० तरह की वाइन के बारे में जानता है।
उसे सब पता है।
उसे हर अंगूर का नाम, तापमान, और बाकी सब पता है।
और मुझे दो ही तरह की वाइन पता है - रेड वाइन, और वाइट वाइन।
(हँसी)
मगर मेरे पडोसी को सिर्फ़ दो तरह के देशों के बारे में पता है --
औद्योगिक और विकासशील।
और मुझे करीब २०० तरह के देश पता है, और मुझे आंकड़े पता हैं।
मगर आप ऐसा कर सकते हैं।
(अभिवादन)
मगर अब संजीदा होना पडेगा। और संजीदा कैसे हों?
ज़ाहिर है, पावर-पाइंट बना कर, है न?
(हँसी)
ऑफ़िस पैकेज को धन्यवाद, है न?
ये क्या है, मैं आखिर बता क्या रहा हूँ?
मैं ये बता रहा हूँ कि विकास के कई पहलू हैं।
हर कोई आपकी प्यारी चीज चाहता है।
अगर आप कार्पोरेट सेक्टर में है, तो आपको लघु-ऋण पसंद आयेंगे।
अगर आप गैर-सरकारी संस्था में लड़ाई लड़ रहे हैं,
तो आपको स्त्री-पुरुष की बराबरी पसंद होगी।
और अगर आप शिक्षक है, तो आप को यूनेक्सो पसंद होगा, वगैरह।
पूरे विश्व के हिसाब से, हमें हमारी पसंदीदा चीज से आगे जाना होगा।
हमें असल में सब कुछ चाहिये।
ये सारी चीजें विकास के लिये जरूरी हैं,
खासकर जब आप गरीबी से लडाई की बात करती हैं,
और आपको सर्व-कल्याण की तरफ़ जाना है।
अब हमें क्या सोचने की ज़रूरत है
कि विकास का लक्ष्य आखिर है क्या,
और विकास का अर्थ क्या है?
मुझे बताने दीजिये कि 'सबसे ज़रूरी' का क्या अर्थ है?
पब्लिक-स्वास्थ का प्रोफ़ेसर होने के नाते, आर्थिक सुधार मेरे लिये
सबसे महत्वपूर्ण है विकास के लिये,
क्योंकि इस से ८०% प्रतिशत लोगों के जीने के बारे में है।
शासन प्रणाली. सरकार के चलने के लिये --
इसी ने कैलीफ़ोर्निया को १८५० से संकट से बाहर निकाला था।
कानून का राज आखिर कार सरकार ने ही लागू किया था।
शिक्षा, मानव-संसाधन भी ज़रूरी है।
स्वास्थ जरूरी है, मगर एक ज़रिये के रूप में शायद नहीं।
पर्यावरण महत्वपूर्ण है।
मानवाधिकार भी ज़रूरी है, मगर उसे थोडे कम नंबर मिले हैं।
लेकिन लक्ष्य क्या है? हम कहाँ जा रहे हैं?
हम पैसे में रुचि नहीं रखते।
पैसा लक्ष्य नहीं है।
वो बहुत बढिया साधन है, मगर लक्ष्य के रूप में उसे जीरो मिलता है।
शासन-प्रणाली, ठीक है, वोट देना थोडा सा मजेदार है,
मगर ये भी लक्ष्य नहीं है।
और स्कूल जाना, नहीं वो भी लक्ष्य नहीं, बल्कि एक साधन है।
स्वास्थ को मैं दो नंबर दूँगा। स्वस्थ होना तो अच्छा है न।
खासकर मेरी उम्र में -- अगर आप यहाँ खडे रह सकते है, तो आप स्वस्थ हैं।
और ये बढिया बात है, तो इसे मिलते हैं दो नंबर।
पर्यावरण बहुत ही ज्यादा ज़रूरी है।
आपके पोते-पोतियों के लिये कुछ नहीं बचेगा अगर आप नही कुछ करेंगे।
मगर ज़रूरी लक्ष्य क्या हैं?
मानवाधिकार, बेशक।
मानवाधिकार ही लक्ष्य है,
मगर ये उतना बडा साधन नहीं है विकास प्राप्त करने का।
और संस्कृति? संस्कृति सबसे ही ज्यादा जरूरी है, मैं कहूँगा,
क्योंकि उस से ही तो जीवन में प्रसन्नता आती है।
जीवन की पूँजी तो वही है न।
तो देखिये, जो असंभव लगता है, वो संभव है।
जी हाँ, अफ़्रीकी देश भी इसे पा सकते हैं।
और मैने आपको दिखाया है कि उन्होंने असंभव को संभव किया है।
और याद रखियेगा, मेरा मुख्य संदेश,
जो कि ये है: कि असंभव सा लगने वाला बिलकुल ही संभव है।
और हम एक अच्छे विश्व की कामना कर सकते हैं।
मैने आपको दिखाया है, बिल्कुल पावर-पाइंट इस्तेमाल करके,
और मुझे लगता है कि मैं आपको संस्कृति से भी मनवा लूँगा।
(हँसी)
(अभिवादन)
मेरी तलवार लाइये!
तलवार निगलने का ये तरीका प्राचीन भारत का है।
संस्कृति की इस पहचान ने हज़ारों साल तक
मनुष्य को सहज से आगे सोचने पर मजबूर किया है।
(हँसी)
और अब मैं प्रमाण दूँगा कि असंभव को संभव किया जा सकता है
इस लोहे की तलवार को --- असली लोहे की तलवार को ---
ये स्वीडन आर्मी की तलवार है, १८५० से,
जब आखिरी बार हमने युद्ध किया था।
और ये खालिस लोहा -- सुनिये ध्यान से।
और मैं इस तलवार को लूँगा
अपने शरीर के अंदर, माँस और खून से भरे शरीर के अंदर,
और दिखा दूँगा कि असंभव को भी पाया जा सकता है।
क्या एक मिनट के लिये सन्नाटा कर सकते हैं?
(अभिवादन)