WEBVTT 00:00:00.000 --> 00:00:13.000 (संगीत) 00:00:18.000 --> 00:00:20.000 जब कभी मैं लम्बी हवाई यात्रा पर होता हूँ, 00:00:20.000 --> 00:00:23.000 तब बाहर पहाड़ों और रेगिस्तान को देखकर 00:00:23.000 --> 00:00:26.000 यह सोचने लगता हूँ कि हमारी पृथ्वी कितनी विशाल है | 00:00:26.585 --> 00:00:29.000 फिर मुझे ख्याल आया कि, एक चीज़ ऐसी भी है जिसे हम प्रतिदिन देखते हैं 00:00:29.000 --> 00:00:32.692 जो कि अपने भीतर दस लाख पृथ्वियों को समाहित कर सकती है | 00:00:32.815 --> 00:00:35.000 सूर्य बहुत ही वृहत लगता है परन्तु, 00:00:35.000 --> 00:00:39.077 विशाल संरचनाओं के समक्ष, वह एक सुई की नोक के समान है, 00:00:39.077 --> 00:00:43.000 जैसे कि आकाशगंगा तारासमूह में ४०० अरब तारों का समूह 00:00:43.000 --> 00:00:47.000 जिसे हम रात्रि में स्वच्छ आकाश में धुंधले, सफ़ेद कोहरे के रूप में फैले हुए देख सकते हैं | 00:00:48.123 --> 00:00:49.023 और ये और घना होता जाता है | 00:00:49.023 --> 00:00:52.985 अभी तक दूरदर्शी से लगभग १०० अरब तारासमूह का पता लगाया जा सका है, 00:00:53.723 --> 00:00:58.000 तो अगर प्रत्येक तारे का आकार रेत के एक कण के बराबर माने, 00:00:58.000 --> 00:01:01.000 तो एक आकाशगंगा में इतने तारे होंगे जो कि 00:01:01.000 --> 00:01:05.000 एक ३० X ३० फुट एवं ३० फुट गहरे समुद्रतट को रेत से भर देंगे | 00:01:05.877 --> 00:01:08.615 एवं समस्त पृथ्वी पर इतने समुद्रतट ही नहीं हैं 00:01:08.615 --> 00:01:11.000 जो पुरे ब्रम्हांड के तारासमूह को प्रदर्शित कर सकें | 00:01:11.000 --> 00:01:15.000 ऐसे समुद्रतट का विस्तार वास्तव में सैकडों लाखों मीलों तक होगा | 00:01:15.600 --> 00:01:19.000 ये तो बहुत सारे तारे हो जायेंगे | 00:01:19.862 --> 00:01:22.000 किन्तु स्टेफ़न हव्किन्स एवं अन्य भौतिक शास्त्रियों का मानना है कि 00:01:22.000 --> 00:01:25.000 सत्य इससे भी ज्यादा विस्तृत अकल्पनीय होगा | 00:01:26.138 --> 00:01:29.000 मतलब ये है कि, पहले तो,हमारे दूरदर्शियों की सीमा में १०० खरब तारासमूह 00:01:29.000 --> 00:01:32.000 संपूर्ण का बहुत सूक्ष्म खंड है | 00:01:32.000 --> 00:01:35.000 अन्तरिक्ष स्वयं में त्वरण शील गति से 00:01:35.000 --> 00:01:38.000 विस्तार् शील है | अधिकांश तारासमूह 00:01:38.000 --> 00:01:41.000 हमसे इतनो तेज़ी से पृथक हो रही है 00:01:41.000 --> 00:01:43.000 कि उनकी रौशनी हम तक शायद कभी न पहुँचे | 00:01:43.000 --> 00:01:46.000 फिर भी यहाँ पृथ्वी पर हमारा भौतिक सत्य 00:01:46.000 --> 00:01:49.400 उन दूरस्थ, अदृश्य तारासमूहों से गहराई से जुड़ा हुआ है | 00:01:49.908 --> 00:01:52.000 इन्हें हम अपने ब्रह्माण्ड का हिस्सा भी मान सकते हैं | 00:01:52.846 --> 00:01:55.000 ये सभी मिलकर एक विशाल भवन बनाते हैं, 00:01:55.000 --> 00:01:58.000 उन्हीं भौतिक नियमों का पालन करते हुए एवं उसी तरह के परमाणुओं, इलेक्ट्रान, 00:01:58.000 --> 00:02:02.000 प्रोटोन, क्वार्, न्यूट्रान से जिनसे हम और आप बने हैं | 00:02:02.000 --> 00:02:05.000 हाँलाकि,भौतिकशास्त्र की हाल ही के सिद्धांतों 00:02:05.000 --> 00:02:07.000 जिनमे से एक स्ट्रिंग सिद्धांत है, 00:02:07.000 --> 00:02:10.000 के अनुसार अनगिनत और भी ब्रह्माण्ड हो सकते हैं, 00:02:10.000 --> 00:02:12.000 भिन्न - भिन्न कणों से निर्मित, 00:02:12.000 --> 00:02:14.000 भिन्न प्रकृति के साथ, भिन्न नियमों का पालन करने वाले | 00:02:14.831 --> 00:02:17.000 इन में से अधिकांश ब्रह्माण्ड शायद कभी भी जीवन की उत्पत्ति में सहायक न हो 00:02:17.000 --> 00:02:20.000 एवं द्रुतगति से एक नैनो सेकेंड में अस्तित्व में आये और जाएँ, 00:02:20.000 --> 00:02:22.446 तब भी, संयुक्त रूप से 00:02:22.446 --> 00:02:26.000 ये मिलकर समस्त ब्रह्मांडों का एक वृहत विविध ब्रह्माण्ड बनाते हैं 00:02:26.000 --> 00:02:31.000 जो की ११ विस्तार वाली, हमारी कल्पना से परे अचंभित करने वाली आकृति बनाते हैं | 00:02:31.000 --> 00:02:33.000 और स्ट्रिंग सिद्धांत के अग्रणी प्रारूप के अनुसार 00:02:33.000 --> 00:02:36.000 एक विविध ब्रह्माण्ड १० से ५०० ब्रह्मांडों से मिलकर बना हो सकता है | 00:02:37.031 --> 00:02:40.000 यानि कि १ और उसके आगे ५०० शून्य, 00:02:40.000 --> 00:02:44.000 एक इसी वृहत संख्या कि अगर हमारे सुस्पष्ट ब्रह्माण्ड के प्रत्येक परमाणु 00:02:44.000 --> 00:02:46.000 का स्वयं का ब्रह्माण्ड हो 00:02:46.985 --> 00:02:49.000 और उन सभी ब्रह्मांडो के सभी परमाणुओं 00:02:49.000 --> 00:02:51.000 का अपना ब्रह्माण्ड हो, 00:02:52.000 --> 00:02:54.000 और इसे अगर हम और दो बार दोहरायें, 00:02:54.000 --> 00:02:57.000 तभी भी हमें संपूर्ण नन्हा सा खंड प्राप्त होगा --- 00:02:57.000 --> 00:03:05.985 जैसे कि एक करोड़ खरब खरब खरब खरब खरब खरब खरब खरब खरब खरब खरब खरब खरब खरब खरब वां हिस्सा | 00:03:07.585 --> 00:03:10.000 किन्तु यह संख्या भी बहुत सूक्ष्म है 00:03:10.000 --> 00:03:13.000 अनंत की तुलना में | 00:03:14.415 --> 00:03:16.000 कुछ भौतिक शास्त्रियों के अनुसार स्पेस टाइम सातत्य वास्तव में 00:03:16.000 --> 00:03:19.000 अनंत है एवं इसमें अनंत संख्या में 00:03:19.431 --> 00:03:22.000 तथा कथित विभिन्न गुणों वाले खंड ब्रह्माण्ड निहित हैं | 00:03:22.231 --> 00:03:24.000 आपका मस्तिष्क कैसा कार्य कर रहा है ? 00:03:24.862 --> 00:03:27.000 परन्तु प्रमात्रा सिद्धांत एक और सुझाव देता है | 00:03:27.000 --> 00:03:29.000 मतलब यह कि, सभी आशंकाओं के बाद भी यह सिद्धांत सत्य सिद्ध हुआ है 00:03:29.000 --> 00:03:31.000 किन्तु व्याख्या करना उलझाने वाला है| 00:03:31.000 --> 00:03:34.000 और कुछ भौतिक शास्त्री मानते है कि आप इसे तभी सुलझा सकते हैं 00:03:34.000 --> 00:03:37.000 जब यह कल्पना की जाये कि भारी मात्रा में समान्तर ब्रह्माण्ड 00:03:37.000 --> 00:03:39.000 प्रतिपल पैदा होते हैं, 00:03:39.000 --> 00:03:43.000 एवं इनमे से कई ब्रह्माण्ड वास्तव में वैसे ही होंगे जैसे कि हमारी दुनिया है 00:03:43.000 --> 00:03:46.000 और उनमे हमारे ही जैसे कई हैं | 00:03:46.000 --> 00:03:50.000 ऐसे ही किसी ब्रह्माण्ड में, हम उपाधि के साथ स्नातक होंगे एवं अपने स्वपन पुरुष या स्वप्न सुंदरी के साथ विवाह करेंगे | 00:03:50.000 --> 00:03:53.000 दूसरें में, इतना कुछ नहीं | 00:03:53.000 --> 00:03:55.000 अभी भी कुछ भौतिक शास्त्री हैं जो इसे बेकार कहेंगे | 00:03:55.000 --> 00:03:59.000 कितने ब्रह्माण्ड हैं इसका एक मात्र सार्थक उत्तर है, 00:03:59.000 --> 00:04:02.000 मात्र एक ब्रह्माण्ड | 00:04:02.538 --> 00:04:05.000 और कुछ दार्शनिक एवं रहस्यवादी ये 00:04:05.000 --> 00:04:08.000 तर्क दे सकते हैं कि हमारा स्वयं का ब्रह्माण्ड एक मरीचिका है | 00:04:08.000 --> 00:04:10.000 तो, जैसा कि आप देख सकते हैं, 00:04:10.000 --> 00:04:13.000 अभी तक इस प्रश्न पर कोई सम्मति नहीं बनी है, 00:04:13.000 --> 00:04:14.000 थोड़ी सी भी नहीं | 00:04:14.000 --> 00:04:18.000 हमें यही ज्ञात है कि, इसका उत्तर शून्य और अनंत के मध्य कहीं है | 00:04:18.769 --> 00:04:21.000 खैर, मेरे ख्याल से हमे एक और चीज़ ज्ञात है : 00:04:21.000 --> 00:04:24.000 यह एक बहुत अच्छा समय है भौतिकी पढ़ने का | 00:04:25.200 --> 00:04:27.000 हम शायद सबसे बड़े परिप्रेक्ष्य परिवर्तन का 00:04:27.000 --> 00:04:31.000 अनुभव करेंगे जैसा शायद ही मानव जाति ने देखा हो |