इंसान सुई के अचानक चुभने,
पैर के उँगलियों के टकराने और
दांतों के दर्द को जानते हैं।
हम कई तरह के दर्द पहचानते हैं
और उनके इलाज के कई तरीकें हमारे पास हैं।
पर अन्य प्रजातियों का क्या?
हमारे चारों ओर मौजूद जानवर
दर्द को कैसे महसूस करते हैं?
यह ज़रूररी है की हम पता लगाएं।
हम जानवरों को घरों में पालते हैं,
वे हमारे पर्यावरण को समृद्ध करते हैं,
कई प्रजातियों को हम खाने के लिए पालते हैं
और उनपर वैज्ञानिक प्रयोग भी करते हैं
जानवर हमारे लिए आवश्यक हैं,
इसलिए ये भी उतना ही
आवश्यक है की हम उन्हें दर्द न दें।
वे जानवर जो हमारी तरह हैं,
जैसे के स्तनपायी,
यह अक्सर स्पष्ट होता है
जब उन्हें दर्द होता है।
लेकिन ऐसा बहुत कुछ है जो स्पष्ट नहीं है,
जैसे कि क्या हमारे दर्द निवारक
उनपर काम करते हैं
और कोई जानवर हमसे जितना अलग होता है,
उनके अनुभव को समझना उतना ही मुश्किल
आप कैसे बताएंगे कि कोई झींगा तकलीफ में है?
एक साँप
एक घोंघा
कशेरुकियों में, जिसमे इंसान भी शामिल है,
दर्द को दो भिन्न प्रक्रियाओं
में बांटा जा सकता है।
सबसे पहले, नसें और त्वचा
कुछ हानिकारक महसूस करते हैं,
और रीढ़ को उसकी जानकारी संचारित करती हैं।
वहाँ, प्रेरक तंत्रिकोशिका
गतिविधि को सक्रिय करती हैं
जो हमें तेजी से खतरे से दूर करती है।
इस खतरे की शारीरिक पहचान
को नोसिसेप्शन कहते हैं,
और लगभग सारे जानवर,
यहाँ तक की बहुत सरल तांत्रिक तंत्र वाले भी
इसका अनुभव करते हैं।
इस क्षमता के बिना, जानवर खतरे
से बचने में असमर्थ होंगे
और उनके उत्तरजीविता को खतरा होगा।
दूसरा भाग है खतरे की सचेत पहचान।
मनुष्यों में, यह तब होता है जब हमारी
त्वचा में संवेदीतंत्रिका कोशिकाऐं
रीढ़ के माध्यम से मस्तिष्क तक
दूसरे दौर के संबंध बनाते हैं।
वहाँ लाखों तन्त्रिका कोशिकाएं
दर्द की अनुभूति पैदा करती हैं।
हमारे लिए, यह डर, घबराहट
और तनाव जैसी भावनाओं
से जुड़ा एक बहुत ही
जटिल अनुभव है
जिसे हम दूसरों से संवाद कर सकते हैं।
पर यह जानना कठिन है कि जानवर
इस प्रक्रिया के हिस्से कैसे अनुभव करते हैं
क्योंकि ज्यादातर वे हमें नहीं दिखा सकते
कि वे क्या महसूस करते हैं।
परंतु जानवरों के बर्ताव से
कुछ संकेत मिलता है।
जंगली, घायल जानवरों अपने
घावों को उपचर्या करने,
अपने संकट को दिखाने के लिए शोर मचाने,
और प्रत्याहृत होने के लिए जाने जाते है।
लैब में, वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि
मुर्गियों और चूहों जैसे जानवर
अगर वे दर्द में हो तो दर्द कम
करने वाली दवाओं का स्व-प्रशासन करेंगे।
जानवर उन परिस्थितियों से भी बचते हैं
जहाँ उन्हें पहले चोट लगी हो,
जो खतरों की जागरूकता का सुझाव देता है।
हम इस स्तिथि पर पहुँच गए हैं कि
अनुसंधान ने हमें इतना सुनिश्चित कर दिया है
कि कशेरुकी दर्द को पहचानते हैं
कि कई देशों में इन जानवरों को
अनावश्यक रूप से हानि पहुँचाना अवैध है।
पर अन्य जानवरों जैसे अकशेरुकियों का क्या ?
ये जानवर कानूनी रूप से संरक्षित नहीं हैं,
अंशतःक्योंकि उनके बर्ताव को
समझना ज़्यादा मुश्किल है।
हम उनमें से कुछ के बारे में
अच्छे अनुमान लगा सकते हैं,
जैसे कि कस्तूरी,
कीड़े,
और जेलिफ़िश।
ये उन जानवरों के उदाहरण हैं
जिनमें या तो दिमाग की कमी है
या बहुत सरल है।
जब नींबू का रस निचोड़ा जाए तो एक
कस्तूरी पल्टा खाता है, उदाहरण के लिए,
'नोसिसेप्शन की वजह से।
लेकिन इस तरह के एक
सरल तंत्रिका तंत्र के साथ,
दर्द के सचेत हिस्से को
अनुभव करना असंभाव्य है।
हालाँकि बाकी अकशेरूकीय
जानवर ज़्यादा जटिल होते हैं,
जैसे कि ऑक्टोपस,
जिसके पास एक परिष्कृत दिमाग है
और सबसे बुद्धिमान अकशेरुकी
जानवरों में से एक माना जाता है।
फिर भी, कई देशों में, लोग ज़िंदा
ऑक्टोपस खाने की पद्धति जारी रखते हैं।
हम ज़िंदा क्रॉफ़िश, झींगा
और केकड़ों को भी उबालते हैं
भले ही हम सच में नहीं जानते
कि उनपर क्या प्रभाव पड़ता है।
यह एक नैतिक सवाल खड़ा करता है
क्योंकि हम शायद इन जानवरों
को बेवजह पीड़ित कर रहे हैं।
वैज्ञानिक प्रयोग, विविदास्पाद होने के
बावजूद, हमें कुछ संकेत देते हैं।
हर्मिट केकड़ों पर किये परीक्षणों
से पता लगता है कि वे
बिजली के प्रभाव पर
अवांछनीय खोल छोड़ देते हैं
पर अच्छे खोल हैं तो रहते हैं।
और ऑक्टोपस जोकि
घायल बाँह को मोड़ लेते हैं,
शिकार के लिए उसी बाँह
का इस्तेमाल कर सकते हैं।
यह बताता है कि ये जानवर बजाय
केवल अनिच्छा से नुक्सान पहुँचाने से
संवेदी निवेश के आसपास
मूल्य निर्णय लेते हैं।
इसी दौरान, केकड़ों में ये भी
पाया गया है कि बिजली का
झटके लगने पर वे शरीर
के उस भाग को लगातार सहलाते हैं।
और यहाँ तक कि समुद्री स्लग ठिठकते हैं
जब उन्हें मालूम होता है
कि वे पीड़ा उद्दीपन पाने वाले हैं।
इसका मतलब है कि उनके पास
शारीरिक संवेदनाओं की कुछ स्मृति है।
हमें अब भी जानवरों के दर्द
के बारे में काफ़ी कुछ जानना है।
जैसे-जैसे हमारा ज्ञान बढ़ेगा
एक दिन हम एक ऐसी दुनिया में रहेंगे
जहां हम बेवजह दर्द नहीं देंगे।