यदि आप चॉकलेट के बिना अपनी ज़िन्दगी की कल्पना नहीं कर सकते, तो आप भाग्यशाली हैं कि आपका जन्म सोलहवी शताब्दी से पहले नही हुआ। तब तक चॉकलेट केवल मेसोअमेरिका में पायी जाती थी, आज जिस रूप में जानते हैं उससे बहुत ही भिन्न रूप में। 1900 ईसा पूर्व तक उस क्षेत्र के लोगों ने देशी काकाओ की बीन्स को तैयार करना सीख लिया था। सबसे पुराने आलेखों के अनुसार बीन्स को पीस कर मक्की का आटे व लाल मिर्च के साथ मिलाया जाता था। एक पेय बनाने के लिए- गर्म कोको के एक कप के लिए नही, बल्कि एक कड़वा, सशक्त संयोजक बनाने के लिए जो फेन से भरा होता था। और अगर आपको लगता है कि आज हम चॉकलेट को कुछ ज़्यादा ही महत्व देते हैं तो असल में मेसोअमेरिकन लोगों ने हमें मात दी थी। उनका मानना था कि चाॅकलेट एक दिव्य खाद्य पदार्थ है जो मानवों को एक पंखों वाले सर्प देव ने भेंट किया, जिन्हे माया लोग कुकुलकन और एज़्टेक लोग क्वात्ज़लकोआटल के नाम से जानते थे। एजटेक लोग कोको बीन्स का इस्तेमाल मुद्रा के रूप में करते थे और शाही समारोहों में चॉकलेट पिया करते थे, युद्ध में सफलता के लिए पुरस्कार के रूप में सैनिकों को देते थे और रीति-रिवाजों में प्रयोग करते थे। 1519 में पहली बार ट्रान्साटलांटिक तौर पर चॉकलेट से परिचय हुआ जब हर्नान कोर्टेस ने मोक्टेज़ुमा की अदालत का दौरा किया जो टेनोच्टिट्लान में स्थित है। कोर्टेस के लेफ्टिनेंट ने दर्ज किया गया है, राजा ने चॉकलेट से भरी 50 सुराहियाँ मंगवायी और उसे सुनहरे प्यालों में परोसा गया। जब उपनिवेशवादी एक अनोखी बीन को जहाज़ों पर लाद कर लाए मिशनरी लोगों के देशी रिवाज़ों पर कामातुर रवैये के कारण एक कामोद्दीपक औषधि का नाम दिया । शुरूआत में, इसके कड़वे के कारण इसे दवा के रूप में उपयुक्त बनाया, जैसे पेट की बिमारियाँ, लेकिन शहद, चीनी, या वेनिला के साथ इसे मीठा बनाने से चॉकलेट स्पेनिश अदालत में जल्द ही एक लोकप्रिय व्यंजन बन गया। और जल्द ही, एक समर्पित चॉकलेट अब सब सभी कुलीन घरों में पाया जाना लगा। लेकिन इस पेय को बड़े पैमाने पर बनाना कठिन एवं बहुत ही समय लेने वाला कार्य था। इसमें कैरिबियन में और अफ्रीका के तट पर स्थित द्वीपों पर वृक्षारोपण और आयातित गुलाम श्रम का उपयोग शामिल था। चॉकलेट की दुनिया 1828 में हमेशा के लिए बदल गयी जब एम्स्टर्डम के कोएनराड वैन हौटेन ने कोको प्रेस का ईजाद किया। वैन हौटेन का यह आविष्कार कोको के प्राकृतिक वसा अथवा कोको मक्खन को अलग कर सकता था। इससे एक ऐसा पाउडर बना जिसे एक पेय में मिला कर पिया जा सकता था या फिर कोको मक्खन में पुनर्मिलित किया जा सकता था ठोस चॉकलेट बनाने के लिए कुछ समय बाद ही ऐक डैनियल पीटर नामित स्विस चॉकलेटर ने दूध के पाउडर को मिश्रण में मिलाया, और दूध की चॉकलेट का आविष्कार किया। 20वीं शताब्दी में चॉकलेट एक विशिष्ट विलास खाद्य सामग्री नहीं रही बल्कि आम लोगों कके लिए एक ज्योनार बन गया भारी मांग की वजह से कोको की अधिक खेती आवश्यक बन गयी जो केवल भूमध्य रेखा के पास ही विकसित हो सकता है अब, अफ्रीकी गुलामों को दक्षिण अमेरिकी कोको बागानों में भेजने के बजाय कोको का उत्पादन खुद पश्चिम अफ्रीका में स्थानांतरित हो गया 2015 तक दुनिया में कोको के उत्पादन का दो-पांचवां हिस्सा कोटे डी आइवर हीआपूर्त कर रहे थे फिर भी उद्योग के विकास के साथ मानव अधिकारों की भयानक उपेक्षा हुई है पश्चिम अफ्रीका के कई बाग़ान जो पश्चिमी कंपनियों को कोको सप्लाई करते हैं गुलामों और बाल मजदूरों को नियोजित करते हैं जिससे अनुमान के मुताबिक 2 लाख से अधिक बच्चे प्रभावित होते हैं यह एक जटिल समस्या बन गयी है प्रमुख चॉकलेट कंपनियों से अफ्रीकी देशों के साथ भागीदारी करने के प्रयासों के बावजूद बाल श्रम व आश्रित श्रम की प्रथाएँ आज भी क़ायम हैं। आज, चॉकलेट ने आधुनिक संस्कृति के अनुष्ठानों में खुद को स्थापित किया है देशी संस्कृतियों के साथ अपने औपनिवेशिक सहयोग के कारण, विज्ञापन की शक्ति के साथ चॉकलेट ने कामुक की छवि बरकरार रखी है, पतनो-मुख, एवं निषिद्ध। इसके आकर्षक और अक्सर क्रूर इतिहास के बारे में अधिक जानने पर और साथ ही इसका मौजूदा उत्पादन हमें इन संस्थाओं के प्रारंभ के बारे में पता चलता है और यह कि वह वे क्या छिपाते हैं तो जैसे ही आप अपनी चॉकलेट की अगली बार खोलें एक क्षण के लिय विचार करें कि चॉकलेट के बारे में सब कुछ मीठा नही है।