बचपन मे मैं गिनेस बूक ऑफ़ वर्ल्ड
रिकार्ड्स की बडी शौक़ीन थी
और मैं चाहती थी की मै खुद एक
वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाऊँ I
बस एक छोटी सी समस्या थी:
मुझमें कोई हुनर नहीं था I
तब मैने तय किया की मुझे उस चीज़
मे रिकॉर्ड बनानी है
जिसमे कोई हुनर या कौशल की ज़रुरत ना हो I
तब मैंने निश्चय किया की
मैं वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाऊंगी
'रेंगने' में I
(लोगों की हंसी)
रेंगने का रिकॉर्ड उस समय किसी ने बारह
मील की बनाई थी,
और इसे पढ़के मुझे यह लगा कि इस रिकॉर्ड को
मैं आसानी से तोड़ पाऊँगी I
(लोगों की हंसी)
मेरे साथ मेरी सहेली
ऐनी भी जुड़ गई,
और हमने सोच लिया कि इस काम के लिए
हमें प्रशीक्षण की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी I
(लोगों की हंसी)
जब हमारे रिकॉर्ड बनाने का दिन आया,
हमने अपने कपड़ो पे फर्नीचर के गद्दे बांधकर
रिकॉर्ड बनाने के लिए तैयार हो गए,
मगर शुरू करते ही, हम मुसीबत में फस गए,
क्योंकि जो कपडे हमने पहने हुए थे,
जीन्स के,
वह हमारे त्वचा को मसलने लगी,
जिस वजह से घुटनों में खरोंच आ गई I
कुछ ही घंटों के बाद,
बारिश होने लगी I
फिर, ऐनी ने मुझे अलविदा कह दिया I
और उसके बाद अँधेरा होने लगा I
तब तक मेरे घुटनों से खून निकलने लगा था,
ठंड, दर्द और नीरसता के वजह से,
मैं दृष्टिभ्रम हो रही थी I
मेरी दुविधा आपको भीषण तब लगेगी
जब आप यह जानेंगे कि,
मैदान का एक दायरा खत्म करने
के लिए मुझे दस मिनट लगे I
आखरी दायरा खत्म होते होते तीस मिनट लग गए I
और बारह घंटे होने के बाद
मैंने रेंगना रोक दिया,
मैं सादे आठ मील रेंग चुकी थी
पर चुनौती थी साढ़े बारह मील की I
सालों तक इस अनुभव को मैंने असफलता
की नज़र से देखा
पर आज मेरा नजरिया बदल गया हैं I
जब मैं वर्ल्ड रिकॉर्ड की
प्रयास में लगी थी,
एक साथ तीन चीज़े करने की
प्रयास में लगी हुई थी I
अपने सुविधा क्षेत्र से बाहर निकली थी,
मैं अपने आप को सख्त बना रही थी
मैं अपने आप पर,
और मेरे फैसलों पर भरोसा करने लगी थी I
तब मुझे एहसास नहीं हुआ था,
कि वह असफलता के गुण नहीं हैं बल्कि
बहादुरी के लक्षण थेI
सन्न उन्नीस सौ नवासी में जब
मैं छब्बीस साल की थी,
मैं सान फ्रांसिस्को शहर की फायर
फाइटर बन गई
डेढ़ हज़ार मर्दों के विभाग में मैं पंद्रहवी
महिला थी I
(लोगों की तालिया)
और जब मैं वहाँ पहुंची,
सब शंकित थे कि हम इस काम के
लिए काबिल थे या नहीं I
पाँच फुट दस इंच की थी, अड़सठ किलो की थी,
कॉलेज टीम की खिवैया थी,
और एक समय बारह घंटों तक
घुटनो की खरोच भी झेली थीI
(लोगों की हंसी)
इन सब के बावजूद मेरी ताकत का
इम्तिहान लिया गया I
एक दिन जब कही आग लगने की खबर आई I
जब हमारी फायर ब्रिगेड टोली घटना
स्थल पर पहुंची,
गली का एक मकान आग से धुआंदार
हो गया था I
मैं और मेरे टीम के साथी स्किप साथ जुड़ गए,
स्किप, पाइप के नौक पीछे और मैं उसके पीछे
आग की स्तिथि सहज के कुछ करीब थी,
धुआंदार और गरम,
पर अचानक,
एक विस्फोट हुआ,
जिसके वजह से स्किप और मैं
पीछे की ओर उड़ गए,
मेरा ऑक्सीजन मास्क चेहरे से हट गया,
और एक क्षण के लिए उलझन का माहौल छा गया I
अपने आप को संभालते हुए मैं खड़ी हो गई,
मैंने पाइप की नौक पकड़ ली,
और वह काम किया जो एक फायर फाइटर करता हैं:
निडर, मैं आगे बढ़ी,
पाइप से पानी का बहाव
शुरू किया,
और मैं अकेली उस आग का सामना करने लगी I
विस्फोट का कारण पानी का कोई हीटर था,
किसीको चोट ना लगने के कारण,
मामला गंभीर नहीं हुआ,
उसके बाद स्किप मेरी तरफ आये
और उन्होंने कहा,
"शाबाश कैरोलाइन",
और वह भी अचरज होकर
(लोगों की हंसी)
पर मैं उलझन में पड गई. आग बुझाना जब
मेरे लिए मुश्किल का काम नहीं लगा तो
स्किप मेरी तरफ ऐसे आश्चर्यचकित होकर
क्यों देख रहे थे?
और तब मुझे एहसास हुआ,
स्किप थे तो एक अच्छे आदमी और
एक बेहतरीन फायरमैन पर,
उनका यह मानना था कि महिलाये पुरुषों से
कम ताकतवर ही नहीं बल्कि
पुरुषों से कम बहादुर भी हैं I
और ऐसी सोच सिर्फ उनकी ही नहीं थी I
दोस्त, जान पहचानवाले, अजनबी,
आदमी या औरत, मेरे वृत्तिगत
जीवन के दौरान
सबने मुझसे हर बार यही सवाल किया
"कैरोलाइन, वह आग वह खतरा"
"क्या तुम्हे डर नहीं लगता?"
सच में, मैंने यह सवाल कभी भी कोई पुरुष
फायरमैन से पूछते हुए नहीं सुना।
और मुझे अजीब सा लगने लगा
लोग यह क्यों समझते हैं कि औरतों
में बहादुरी नहीं होती?
उस सवाल का जवाब मुझे तब मिला,
जब मेरी सहेली ने अपना दुखड़ा रोया
कि उसकी बेटी एक महान डरपोक हैं I
तब मेरे नज़र में यह आया कि
उसकी बेटी सच में चिंतित थी,
पर उससे ज़्यादा चिंतित उसके माँ और बाप थे I
जब भी वह बच्ची बाहर जाती थी तब उसके
माँ बाप उसे यही कहा करते कि
"संभलके जाना" या "यहाँ मत जाओ"
या"यह मत करो" I
मेरे दोस्त बुरे माँ बाप नहीं थे I
वह सिर्फ वही कर रहे थे जो अधिक
माँ बाप किया करते हैं,
अपने बेटों से ज़्यादा वह अपने बेटियों को
सावधान किया करते हैं I
खेल के मैदान में लगाए गए एक फायर के खम्बे
पर अध्ययन किया गया.
इसमें देखा गया की खम्बे से फिसलते वक़्त
लड़कियों को
उनके माता पिता खम्बे के जोखिम के बारे में
सावधान करते थे,
उसके बावजूद भी अगर लड़की उस खम्बे
के साथ खेलना चाहे तो,
माता या पिता उसकी सहायता करने
के लिए दौड़ते हैं I
पर लड़के?
खम्बे के साथ खेलने के लिए उनको
बढ़ावा दिया जाता हैं
उनमे घबराहट होने के बावजूद भी,
माता पिता खुद लड़कों को सिखाते हैं कि
खम्बे के साथ खेल कैसे जाता हैं I
यह करने से हम लड़कों और लड़कियों
को क्या संदेसा दे रहे हैं?
कि लड़कियां नाज़ुक हैं और उनको हर काम
में सहायता की ज़रुरत हैं,
और लड़के कोई भी मुश्किल काम आसानी
से करने में माहिर हैं?
लड़कियों को भयभीत होनी चाहिए?
और लड़के निडर?
जब बच्चे छोटे होते हैं तब,
लड़को और लड़कियों की ताकत एक
समान होती हैं I
लड़कियां अधिकतर तारुण्यागम तक शक्तिशाली
और ज़्यादा समझदार होती हैं I
पर हम बड़े, इसी वहम में रहते हैं कि
लड़कियां बहुत ही नाज़ुक हैं,
बिना मदद के वह कुछ कर नहीं सकती और
उनसे ज़्यादा कुछ हो नहीं पाता I
बचपन में इसी सोच को हमारे दिमाग
में भरा जाता हैं,
और बड़े होने के बाद भी इसी सोच को
सच मानने लगते हैं I
पुरुष एवं महिला, दोनों इस खयालात
को सच मानते हैं,
और तो और
हम अपने बच्चों को और वह
उनके बच्चों को यही सिखाते हैं,
और यह चलता रहता हैं I
तो लीजिये मुझे मेरा जवाब मिल गया
औरतों से खासकर फायर फाइटर औरतों से भी
यही अपेक्षा रहती हैं कि वह भयभीत रहे I
सिर्फ इसीलिए कई महिलाये भयभीत रहती हैं
कुछ लोग मेरी बात मानने के लिए
तैयार नहीं होंगे अगर मैं यह कहूँ कि
मैं डरने के खिलाफ नहीं हूँ I
क्योंकि डर एक महत्त्वपूर्ण भावना हैं
जो हमें सुरक्षित रखती हैं,
पर इस भावना को इतना भी आवश्यक ना
बनाये जिससे
लड़किया कोई भी नया काम करते वक़्त
अपने कदम झिझक झिझककर रखे I
कई साल मैं एक पैराग्लाइडर पायलट
भी रह चुकी हूँ
(लोगों की तालिया)
एक पैराग्लाइडर पंख वाले हवाई
छतरी की तरह होती हैं
और उड़ती भी बहुत खूब हैं
पर लोगों के लिए एक पैराग्लाइडर पायलट
तार लगे हुए
चादर की तरह नज़र आते हैं
(लोगों की हंसी)
और पहाड़ों के ऊपर इस चादर में हवा भरते
मैंने बहुत समय बिताए I
पहाड़ के ऊपर से भाग कर हवा में उड़ना
और आप यही सोच रहे हैं कि
' कैरोलाइन, इस मामले में थोड़ा
तो डरना ज़रूरी हैं '
और आप सही हैं I
सच मानिये मैं भी डरी,
पर उस परबत के ऊपर
हवा का इंतज़ार करते वक़्त
मुझमे कई उमंग उमड़ आते थे:
ज़िंदादिली, विश्वास I
मैं एक अच्छी पायलट हूँ
यह मुझे पता था
और यह भी पता था की परिस्तिथि अच्छे
न होते तो मैं वहा नहीं होती I
ज़मीन से हज़ारों फ़ीट ऊपर हवा में
उड़ने का मज़ा कुछ और ही था
और हाँ डर भी था
पर उस डर को मैं एक बार ग़ौर
से परिशीलन करती,
उसके महत्वपूर्णता को निर्धारित करती
और उसे ऐसी जगह पंहुचा देती,
जो ठीक मेरे
ज़िंदादिली, अपेक्षा और विश्वास
के पीछे होती थी, एक कदम
भी आगे नहीं
मैं डर के खिलाफ नहीं हूँ
मैं सिर्फ बहादुरी के राह
पर चलना चाहती हूँ
मैं यह नहीं कह रही हूँ कि हर लड़की
को फायर फाइटर
या पैराग्लाइडर बनना चाहिए I
मैं यह कह रही हूँ की हम अपनी लड़कियों
को बुज़दिल और मजबूर बना रहे हैं
उन्हें कठिन शारीरिक कार्यों
के लिए बढ़ावा नहीं दे रहे हैं I
यही डर और मजबूरी हमारे साथ बढ़ने लगती हैं
और हमेशा के लिए हमारे
साथ रह जाती हैं
इन सब का प्रभाव हमारे हर कदम
पर पड़ने लगती हैं:
जी खोलकर बोलने में हमारी झिझक,
हमारे अपनेपन को छुपा के रखना
ताकि लोग हमें पसंद करे,
और खुद के निर्णय लेने में संकोच I
तो फिर हम महिलाये बहादुर कैसे बने?
बात यह हैं कि,
बहादुरी सीखी जा सकती हैं,
और सीखने के साथ साथ हमें
बहादुरी को एक प्रथा बनानी चाहिए I
तो पहले,
हम सबको एक गहरी सांस लेनी चाहिए
और हमारी लड़कियों को बढ़ावा देना चाहिए
स्केटिंग करने के लिए, पेड़ पर चढ़ने के लिए
या खेल के मैदान में बेझिझक खेलने के लिए
मेरी माँ ने भी मेरे साथ वही किया था
उनको तब यह बात मालूम नहीं था
पर शोधकर्ताओं के अनुसार
यह जोखिम भरी परिस्तिथि कहलाता हैं
और अध्ययन यह दिखता हैं की अगर बच्चों के
खेल में कुछ हद तक कठोरता हो
तो वह खुद खतरों का अंदाजा
लगाना सीख लेते हैं
प्रतिफल का इंतज़ार करना सीखते हैं,
लौटाव सिखाती हैं
आत्मविश्वास से कदम रखना सीखते हैं I
दूसरी तरह से कहा जाए तो
जब बच्चे निडर होकर बाहर जाने लगते हैं,
तब ज़िन्दगी के कुछ अनमोल
सीख उन्हें मिलती हैं I
साथ साथ हमें अपनी लड़कियों में
खौफ भरना नहीं चाहिए I
अगली बार अपनी बच्ची से यह मत कहियेगा कि,
"संभलके, गिर मत जाना, चोट लग गई तो?"
"यह मत करना, इसमें खतरा हैं"
और कभी भी अपनी बेटियों से
यह मत कहियेगा कि
उसे ज़्यादा परिश्रम करना नहीं चाहिए,
वह इतनी भी समझदार नहीं हैं,
और उसे डर डर के जीना चाहिए I
और तो और
हम महिलाओं को खुद बहादुरी की
सीख लेनी चाहिए I
अगर हम नहीं सीखेंगे तो हमारी
बेटियों को कैसे सिखाएंगे?
तो यह रही एक और बात
डर और ज़िंदादिली
दोनों का एहसास एक जैसा हो सकता हैं
वह कांपते हाथ, दिल की तेज़ धड़कन
वह बेचैनी,
पर इतना ज़रूर कहूँगी कि,
पिछली बार वह शायद ज़िंदादिली थी
जिसको आप डर समझ बैठे थे,
और उसी वजह से आपने एक मौका खो दिया I
इसीलिए कोशिश जारी रखे I
लड़कियों को हर कदम निडर होकर रखना चाहिए
आज कल हम बड़े भी खेल कूद में या पेड़ चढ़ने
में दिलचस्पी नहीं रखते,
संकोच छोड़िये और लग जाइये वह
करने में जो आपका मन करे
घर हो या दफ्तर
या यही पे अगर आपको कोई पसंद आये
तो शर्माइये मत, उठिये और जाके उससे कहिये
अगर आपकी बेटी को आप साइकिल
चलाना सीखा रहे हैं,
और चोटी के ऊपर से नीचे आते वक़्त
उसके ज़ेहन में डर भर गया हो तो
उसका होंसला बढ़ाइए I
क्योंकि उस चोटी के ऊपर से वह साइकिल
चला पायेगी या नहीं,
इसका हिसाब वह खुद अपने दिलेरी से लगा लेगी
क्योंकि बात उस चोटी की नहीं हैं I
बात उसकी ज़िन्दगी की हैं
और उसके पास वह ताकत हैं जिससे
ज़िन्दगी में आने वाले हर मुश्किल
और चुनौती का
सामना कर सकती हैं,
बिना हमारी मदद के
और यह बात सिर्फ यहाँ की
लड़कियों के लिए ही नहीं
बल्कि दुनिया भर की लड़कियों के
भविष्य के लिए हैं I
वैसे
रेंगने का वर्ल्ड रिकॉर्ड आज
(लोगों की हंसी)
पैंतीस दशमलव अठारह की हैं,
मैं यही चाहती हूँ कि कोई लड़की इसे तोड़े I
(लोगो की तालिया)