Return to Video

ए.एल.एस (पेशीशोषी पार्श्व काठिन्य) का इलाज करना इतना कठिन क्यों है? - फर्नैन्डो वियेरा

  • 0:07 - 0:12
    1963 में, स्टीवन हॉकिंग नाम के
    एक 21 वर्षीय भौतिकशास्री को
  • 0:12 - 0:15
    पेशीशोषी पार्श्व काठिन्य,
    या ए.एल.एस नामक
  • 0:15 - 0:20
    एक दुर्लभ तन्त्रिकापेशी विकार से
    पीड़ित पाया गया।
  • 0:20 - 0:22
    धीरे-धीरे वह चलने-फिरने,
  • 0:22 - 0:23
    अपने हाथों का प्रयोग करने,
  • 0:23 - 0:25
    अपना चेहरा हिलाने,
  • 0:25 - 0:27
    और यहाँ तक कि निगलने की क्षमता भी खो बैठे।
  • 0:27 - 0:30
    परन्तु इस सब के बीच, उन्होंने अपनी
    अविश्वसनीय बुद्धिमत्ता को कायम रखा,
  • 0:30 - 0:32
    और आने वाले 50 से भी ज़्यादा वर्षों में
  • 0:32 - 0:37
    हॉकिंग इतिहास के सबसे निपुण और प्रसिद्ध
    भौतिकशास्त्रियों में से एक बने।
  • 0:37 - 0:39
    परन्तु, उनकी बीमारी का इलाज नहीं हो पाया
  • 0:39 - 0:44
    और वह 2018 में
    76 वर्ष की उम्र में चल बसे।
  • 0:44 - 0:46
    उनका रोग पहचाने जाने के
    दशकों बाद भी
  • 0:46 - 0:49
    मानवजाति को प्रभावित करने वाले रोगों में
    ए.एल.एस सबसे ज़्यादा जटिल,
  • 0:49 - 0:50
    रहस्यपूर्ण,
  • 0:50 - 0:54
    और सर्वनाशक रोगों में से एक है।
  • 0:54 - 0:58
    गतिजनक तन्त्रिका रोग और
    लाउ गेहरिग रोग के नाम से भी जाना जाने वाला
  • 0:58 - 1:03
    ए.एल.एस रोग, दुनिया भर के प्रति
    1,00,000 में 2 लोगों को प्रभावित करता है।
  • 1:03 - 1:05
    जब किसी व्यक्ति को ए.एल.एस होता है,
  • 1:05 - 1:07
    उनकी गतिजनक तन्त्रिकाएँ,
  • 1:07 - 1:10
    वह कोशिकाएँ जो शरीर के सारे
    स्वैच्छिक मांसपेशी नियन्त्रण के लिए
  • 1:10 - 1:11
    जिम्मेदार होती हैं
  • 1:11 - 1:13
    अपना उद्देश्य खो कर मर जाती हैं।
  • 1:13 - 1:17
    कोई नहीं जानता कि आख़िर यह कोशिकाएँ
    क्यों या कैसे मरती हैं
  • 1:17 - 1:20
    और यह एक कारण है जिसकी वजह से
    ए.एल.एस का इलाज करना इतना मुश्किल है।
  • 1:20 - 1:22
    करीब 90% मामलों में
  • 1:22 - 1:27
    यह रोग बिना किसी स्पष्ट कारण के
    आकस्मात हो जाता है।
  • 1:27 - 1:29
    बाकी बचे 10% मामले वंशागत होते हैं,
  • 1:29 - 1:32
    जहाँ ए.एल.एस पीड़ित
    किसी माता या पिता के ज़रिये
  • 1:32 - 1:35
    उनके बच्चे में एक उत्परिवर्तित जीन आया हो।
  • 1:35 - 1:37
    इसके लक्षण आम तौर पर
    40 वर्ष की उम्र के बाद
  • 1:37 - 1:39
    पहली बार नज़र आते हैं।
  • 1:39 - 1:41
    परन्तु कुछ दुर्लभ मामलों में,
    जैसे हॉकिंग के,
  • 1:41 - 1:44
    ए.एल.एस जीवन में जल्दी शुरू हो जाता है।
  • 1:44 - 1:47
    हॉकिंग का मामला उनके ए.एल.एस के साथ
  • 1:47 - 1:50
    इतना लम्बा जीने के कारण
    एक चिकित्सक चमत्कार भी था।
  • 1:50 - 1:53
    इस रोग के पहचाने जाने के बाद
    ज़यादातर पीड़ित लोग
  • 1:53 - 1:55
    2 से 5 वर्ष ही जी पाते हैं
  • 1:55 - 1:58
    इससे पहले कि ए.एल.एस से
    वह श्वास - प्रणाली की समस्याएँ उत्पन्न हों
  • 1:58 - 2:00
    जो ज़्यादातर मृत्यु का कारण बनती हैं।
  • 2:00 - 2:02
    हॉकिंग के मामले में
    जो असामान्य बात नहीं थी
  • 2:02 - 2:04
    वह थी कि उनकी अपनी इन्द्रियों से सीखने,
  • 2:04 - 2:05
    सोचने,
  • 2:05 - 2:08
    और समझने की क्षमता, अक्षत रही।
  • 2:08 - 2:12
    ए.एल.एस से पीड़ित ज़्यादातर लोगों की
    अनुभूति को हानि नहीं पहुँचती।
  • 2:12 - 2:16
    हर वर्ष ए.एल.एस से पीड़ित पाए जाने वाले
    1,20,000 लोगों के लिए
  • 2:16 - 2:18
    इतना कुछ दाँव पर लगा है
  • 2:18 - 2:22
    कि इस रोग का उपचार ढूँढना
    हमारी सबसे ज़रूरी वैज्ञानिक
  • 2:22 - 2:24
    और चिकित्सक चुनौतियों में से
    एक बन चुका है।
  • 2:24 - 2:26
    इतना कुछ अज्ञात होते हुए भी
  • 2:26 - 2:28
    हमें इस बारे में कुछ अन्तर्दृष्टि है
  • 2:28 - 2:31
    कि ए.एल.एस तन्त्रिकापेशी प्रणाली को
    कैसे प्रभावित करता है।
  • 2:31 - 2:34
    ए.एल.एस, ऊपरी और निचली
    गतिजनक तन्त्रिका कहलाने वाली
  • 2:34 - 2:36
    दो तरह की तन्त्रिका कोशिकाओं को
    प्रभावित करता है।
  • 2:36 - 2:39
    एक स्वस्थ शरीर में,
    ऊपरी गतिजनक तन्त्रिकाएँ,
  • 2:39 - 2:41
    जो मस्तिष्क के प्रांतस्था में होती हैं,
  • 2:41 - 2:44
    मस्तिष्क से उन निचली गतिजनक तन्त्रिकाओं तक
    सूचना पहुँचाती हैं
  • 2:44 - 2:46
    जो मेरुदण्ड में स्थित होती हैं।
  • 2:46 - 2:50
    यह तान्त्रिकाएँ फिर मांसपेशी तंतुओं में
    सूचना पहुँचाती हैं
  • 2:50 - 2:53
    जो प्रतिक्रिया में
    सिकुड़ते या विस्तृत होते हैं
  • 2:53 - 2:55
    जिससे संचलन होता है।
  • 2:55 - 2:57
    हम स्वेछा से जो भी संचालन करते हैं
  • 2:57 - 3:01
    वह इस रास्ते हुए सूचनाओं के
    आदान प्रदान के कारण होता हैं।
  • 3:01 - 3:04
    परन्तु जब गतिजनक तन्त्रिकाएँ
    ए.एल.एस के दौरान हीन हो जाती हैं
  • 3:04 - 3:07
    तो उनकी सूचनाओं के आदान-प्रदान की क्षमता
    बाधित हो जाती है
  • 3:07 - 3:11
    और वह महत्वपूर्ण संकेतन प्रणाली
    अराजकता की ओर धकेल दी जाती है।
  • 3:11 - 3:14
    अपने नियमित संकेतों के अभाव में
    मांसपेशियाँ बेकार होती रहती हैं।
  • 3:14 - 3:17
    गतिजनक तन्त्रिकाओं को
    आख़िर क्या हीन कर देता है
  • 3:17 - 3:20
    यह ए.एल.एस का विद्यमान रहस्य है।
  • 3:20 - 3:21
    वंशागत मामलों में,
  • 3:21 - 3:25
    माता-पिता के ज़रिये उनके बच्चों में
    आनुवंशिक उत्परिवर्तन आता है।
  • 3:25 - 3:28
    ऐसा होने पर भी,
    ए.एल.एस में कई जीन शामिल हैं,
  • 3:28 - 3:31
    जो गतिजनक तन्त्रिकाओं पर
    विभिन्न सम्भावित प्रभाव कर सकते हैं,
  • 3:31 - 3:34
    जिसकी वजह से सही कारण पर
    ऊँगली रखना मुश्किल हो जाता है।
  • 3:34 - 3:39
    जब ए.एल.एस कहीं-कहीं पैदा होता है,
    तो सम्भावित कारणों की सूची बढ़ जाती है:
  • 3:39 - 3:40
    विषाक्त पदार्थ,
  • 3:40 - 3:41
    विषाक्त संक्रामक पदार्थ,
  • 3:41 - 3:41
    जीवन शैली,
  • 3:41 - 3:45
    और बाकी पर्यावरणीय कारक,
    सभी का हाथ हो सकता है।
  • 3:45 - 3:48
    और क्योंकि इतने सारे तत्त्व
    शामिल होते हैं,
  • 3:48 - 3:50
    अभी तक ऐसा कोई
    एकमात्र जाँच करने का तरीका नहीं बना
  • 3:50 - 3:53
    जो यह निर्धारित कर सके
    कि किसी को ए.एल.एस है।
  • 3:53 - 3:54
    फिर भी,
  • 3:54 - 3:57
    कारणों के बारे में हमारी परिकल्पनाएँ
    विकसित हो रही हैं।
  • 3:57 - 4:02
    एक विद्यमान सोच यह है कि
    गतिजनक तन्त्रिकाओं के अन्दर के कुछ प्रोटीन
  • 4:02 - 4:04
    ठीक तरह से मुड़ नहीं रहे हैं,
  • 4:04 - 4:06
    और इसकी बजाय गुच्छे बना रहे हैं।
  • 4:06 - 4:10
    यह गलत तरह से मुड़े प्रोटीन और गुच्छे
    एक कोशिका से दूसरी में फैल सकते हैं।
  • 4:10 - 4:13
    हो सकता है यह कोशिकाओं की उन
    साधारण प्रक्रियाओं को अवरुद्ध कर रहा हो,
  • 4:13 - 4:18
    जैसे ऊर्जा और प्रोटीन का निर्माण,
    जो कोशिकाओं को ज़िन्दा रखती हैं।
  • 4:18 - 4:21
    हमने यह भी जाना है कि गतिजनक तन्त्रिकाओं
    और मांसपेशी तन्तुओं के साथ-साथ
  • 4:21 - 4:24
    ए.एल.एस में कुछ और तरह की कोशिकाएँ भी
    शामिल हो सकती हैं।
  • 4:24 - 4:29
    ए.एल.एस रोगियों के मस्तिष्क और
    मेरुदण्ड में, आम तौर पर सूजन होती है।
  • 4:29 - 4:31
    गतिजनक तन्त्रिकाओं को मारने में
  • 4:31 - 4:34
    दोषपूर्ण प्रतिरक्षा कोशिकाओं का भी
    हाथ हो सकता है।
  • 4:34 - 4:36
    और ऐसा प्रतीत होता है कि ए.एल.एस
  • 4:36 - 4:38
    तंत्रिकाकोशिकाों को
    समर्थन प्रदान करने वाली
  • 4:38 - 4:41
    विशिष्ट कोशिकाओं के
    व्यवहार को बदल देता है।
  • 4:41 - 4:44
    यह सारे कारक इस रोग की
    जटिलता को उभारते हैं,
  • 4:44 - 4:48
    परन्तु शायद यह हमें इसके कार्य करने का
    तरीका भी पूरी समझा पाएँ,
  • 4:48 - 4:50
    जिससे इलाज करने के नए द्वार खुल सकें।
  • 4:50 - 4:54
    और जबकि यह शायद धीरे-धीरे हो,
    तब भी हम हर वक्त विकास कर रहे हैं।
  • 4:54 - 4:56
    वर्तमान में हम नई औषधियाँ बना रहे हैं,
  • 4:56 - 4:59
    नई स्टेम कोशिका चिकित्सा
    क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत के लिए,
  • 4:59 - 5:04
    और नई जीन चिकित्साएँ भी
    रोग की बढ़ोत्तरी को धीमा करने के लिए।
  • 5:04 - 5:06
    हमारे बढ़ते हुए ज्ञान के शस्त्रागार के साथ
  • 5:06 - 5:09
    हम उन आविष्कारों की अपेक्षा करते हैं
    जो ए.एल.एस के साथ जीते हुए लोगों का
  • 5:09 - 5:11
    भविष्य बदल सकें।
Title:
ए.एल.एस (पेशीशोषी पार्श्व काठिन्य) का इलाज करना इतना कठिन क्यों है? - फर्नैन्डो वियेरा
Description:

पूरा पाठ पढ़ें: https://ed.ted.com/lessons/why-is-it-so-hard-to-cure-als-fernando-vieira

गतिजनक तन्त्रिका रोग और लाउ गेहरिग रोग के नाम से भी जाना जाने वाला पेशीशोषी पार्श्व काठिन्य (ए.एल.एस), दुनिया भर में प्रति 1,00,000 में, 2 लोगों को प्रभावित करता है। जब किसी व्यक्ति को ए.एल.एस होता है, उनकी गतिजनक तन्त्रिकाएँ, वह कोशिकाएँ जो शरीर के सारे स्वैच्छिक मांसपेशी नियन्त्रण के लिए जिम्मेदार होती हैं - अपना उद्देश्य खो कर मर जाती हैं। फर्नैन्डो ज. वियेरा वह बताते हैं जो हम ए.एल.एस के बारे में जानते (और नहीं जानते) हैं।

पाठ फर्नैन्डो ज. वियेरा द्वारा, जीव-संचारण आर्टरेक स्टूडियो द्वारा।

more » « less
Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TED-Ed
Duration:
05:22

Hindi subtitles

Revisions