1963 में, स्टीवन हॉकिंग नाम के
एक 21 वर्षीय भौतिकशास्री को
पेशीशोषी पार्श्व काठिन्य,
या ए.एल.एस नामक
एक दुर्लभ तन्त्रिकापेशी विकार से
पीड़ित पाया गया।
धीरे-धीरे वह चलने-फिरने,
अपने हाथों का प्रयोग करने,
अपना चेहरा हिलाने,
और यहाँ तक कि निगलने की क्षमता भी खो बैठे।
परन्तु इस सब के बीच, उन्होंने अपनी
अविश्वसनीय बुद्धिमत्ता को कायम रखा,
और आने वाले 50 से भी ज़्यादा वर्षों में
हॉकिंग इतिहास के सबसे निपुण और प्रसिद्ध
भौतिकशास्त्रियों में से एक बने।
परन्तु, उनकी बीमारी का इलाज नहीं हो पाया
और वह 2018 में
76 वर्ष की उम्र में चल बसे।
उनका रोग पहचाने जाने के
दशकों बाद भी
मानवजाति को प्रभावित करने वाले रोगों में
ए.एल.एस सबसे ज़्यादा जटिल,
रहस्यपूर्ण,
और सर्वनाशक रोगों में से एक है।
गतिजनक तन्त्रिका रोग और
लाउ गेहरिग रोग के नाम से भी जाना जाने वाला
ए.एल.एस रोग, दुनिया भर के प्रति
1,00,000 में 2 लोगों को प्रभावित करता है।
जब किसी व्यक्ति को ए.एल.एस होता है,
उनकी गतिजनक तन्त्रिकाएँ,
वह कोशिकाएँ जो शरीर के सारे
स्वैच्छिक मांसपेशी नियन्त्रण के लिए
जिम्मेदार होती हैं
अपना उद्देश्य खो कर मर जाती हैं।
कोई नहीं जानता कि आख़िर यह कोशिकाएँ
क्यों या कैसे मरती हैं
और यह एक कारण है जिसकी वजह से
ए.एल.एस का इलाज करना इतना मुश्किल है।
करीब 90% मामलों में
यह रोग बिना किसी स्पष्ट कारण के
आकस्मात हो जाता है।
बाकी बचे 10% मामले वंशागत होते हैं,
जहाँ ए.एल.एस पीड़ित
किसी माता या पिता के ज़रिये
उनके बच्चे में एक उत्परिवर्तित जीन आया हो।
इसके लक्षण आम तौर पर
40 वर्ष की उम्र के बाद
पहली बार नज़र आते हैं।
परन्तु कुछ दुर्लभ मामलों में,
जैसे हॉकिंग के,
ए.एल.एस जीवन में जल्दी शुरू हो जाता है।
हॉकिंग का मामला उनके ए.एल.एस के साथ
इतना लम्बा जीने के कारण
एक चिकित्सक चमत्कार भी था।
इस रोग के पहचाने जाने के बाद
ज़यादातर पीड़ित लोग
2 से 5 वर्ष ही जी पाते हैं
इससे पहले कि ए.एल.एस से
वह श्वास - प्रणाली की समस्याएँ उत्पन्न हों
जो ज़्यादातर मृत्यु का कारण बनती हैं।
हॉकिंग के मामले में
जो असामान्य बात नहीं थी
वह थी कि उनकी अपनी इन्द्रियों से सीखने,
सोचने,
और समझने की क्षमता, अक्षत रही।
ए.एल.एस से पीड़ित ज़्यादातर लोगों की
अनुभूति को हानि नहीं पहुँचती।
हर वर्ष ए.एल.एस से पीड़ित पाए जाने वाले
1,20,000 लोगों के लिए
इतना कुछ दाँव पर लगा है
कि इस रोग का उपचार ढूँढना
हमारी सबसे ज़रूरी वैज्ञानिक
और चिकित्सक चुनौतियों में से
एक बन चुका है।
इतना कुछ अज्ञात होते हुए भी
हमें इस बारे में कुछ अन्तर्दृष्टि है
कि ए.एल.एस तन्त्रिकापेशी प्रणाली को
कैसे प्रभावित करता है।
ए.एल.एस, ऊपरी और निचली
गतिजनक तन्त्रिका कहलाने वाली
दो तरह की तन्त्रिका कोशिकाओं को
प्रभावित करता है।
एक स्वस्थ शरीर में,
ऊपरी गतिजनक तन्त्रिकाएँ,
जो मस्तिष्क के प्रांतस्था में होती हैं,
मस्तिष्क से उन निचली गतिजनक तन्त्रिकाओं तक
सूचना पहुँचाती हैं
जो मेरुदण्ड में स्थित होती हैं।
यह तान्त्रिकाएँ फिर मांसपेशी तंतुओं में
सूचना पहुँचाती हैं
जो प्रतिक्रिया में
सिकुड़ते या विस्तृत होते हैं
जिससे संचलन होता है।
हम स्वेछा से जो भी संचालन करते हैं
वह इस रास्ते हुए सूचनाओं के
आदान प्रदान के कारण होता हैं।
परन्तु जब गतिजनक तन्त्रिकाएँ
ए.एल.एस के दौरान हीन हो जाती हैं
तो उनकी सूचनाओं के आदान-प्रदान की क्षमता
बाधित हो जाती है
और वह महत्वपूर्ण संकेतन प्रणाली
अराजकता की ओर धकेल दी जाती है।
अपने नियमित संकेतों के अभाव में
मांसपेशियाँ बेकार होती रहती हैं।
गतिजनक तन्त्रिकाओं को
आख़िर क्या हीन कर देता है
यह ए.एल.एस का विद्यमान रहस्य है।
वंशागत मामलों में,
माता-पिता के ज़रिये उनके बच्चों में
आनुवंशिक उत्परिवर्तन आता है।
ऐसा होने पर भी,
ए.एल.एस में कई जीन शामिल हैं,
जो गतिजनक तन्त्रिकाओं पर
विभिन्न सम्भावित प्रभाव कर सकते हैं,
जिसकी वजह से सही कारण पर
ऊँगली रखना मुश्किल हो जाता है।
जब ए.एल.एस कहीं-कहीं पैदा होता है,
तो सम्भावित कारणों की सूची बढ़ जाती है:
विषाक्त पदार्थ,
विषाक्त संक्रामक पदार्थ,
जीवन शैली,
और बाकी पर्यावरणीय कारक,
सभी का हाथ हो सकता है।
और क्योंकि इतने सारे तत्त्व
शामिल होते हैं,
अभी तक ऐसा कोई
एकमात्र जाँच करने का तरीका नहीं बना
जो यह निर्धारित कर सके
कि किसी को ए.एल.एस है।
फिर भी,
कारणों के बारे में हमारी परिकल्पनाएँ
विकसित हो रही हैं।
एक विद्यमान सोच यह है कि
गतिजनक तन्त्रिकाओं के अन्दर के कुछ प्रोटीन
ठीक तरह से मुड़ नहीं रहे हैं,
और इसकी बजाय गुच्छे बना रहे हैं।
यह गलत तरह से मुड़े प्रोटीन और गुच्छे
एक कोशिका से दूसरी में फैल सकते हैं।
हो सकता है यह कोशिकाओं की उन
साधारण प्रक्रियाओं को अवरुद्ध कर रहा हो,
जैसे ऊर्जा और प्रोटीन का निर्माण,
जो कोशिकाओं को ज़िन्दा रखती हैं।
हमने यह भी जाना है कि गतिजनक तन्त्रिकाओं
और मांसपेशी तन्तुओं के साथ-साथ
ए.एल.एस में कुछ और तरह की कोशिकाएँ भी
शामिल हो सकती हैं।
ए.एल.एस रोगियों के मस्तिष्क और
मेरुदण्ड में, आम तौर पर सूजन होती है।
गतिजनक तन्त्रिकाओं को मारने में
दोषपूर्ण प्रतिरक्षा कोशिकाओं का भी
हाथ हो सकता है।
और ऐसा प्रतीत होता है कि ए.एल.एस
तंत्रिकाकोशिकाों को
समर्थन प्रदान करने वाली
विशिष्ट कोशिकाओं के
व्यवहार को बदल देता है।
यह सारे कारक इस रोग की
जटिलता को उभारते हैं,
परन्तु शायद यह हमें इसके कार्य करने का
तरीका भी पूरी समझा पाएँ,
जिससे इलाज करने के नए द्वार खुल सकें।
और जबकि यह शायद धीरे-धीरे हो,
तब भी हम हर वक्त विकास कर रहे हैं।
वर्तमान में हम नई औषधियाँ बना रहे हैं,
नई स्टेम कोशिका चिकित्सा
क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत के लिए,
और नई जीन चिकित्साएँ भी
रोग की बढ़ोत्तरी को धीमा करने के लिए।
हमारे बढ़ते हुए ज्ञान के शस्त्रागार के साथ
हम उन आविष्कारों की अपेक्षा करते हैं
जो ए.एल.एस के साथ जीते हुए लोगों का
भविष्य बदल सकें।