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अपनी मानसिकता को बदलकर अपना भविष्य चुने

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    मैंने कभी नहीं सोचा था कि
    मैं ऐसी जगह पर TED टॉक दूंगा।
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    हालाँकि, आधी दुनिया के जैसे मैंने भी
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    पिछले चार हफ्ते
    कोविद - 19, वैश्विक महामारी के कारण
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    लॉकडाउन में गुजारें है।
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    मैं अपने को किस्मत वाला समझता हूँ,
    कि ऐसे समय में
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    मैं दक्षिणी इंग्लैंड में अपने घर के
    करीब स्थित जंगल में आ सका।
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    इन जंगलों ने मुझे हमेशा प्रेरित किया है,
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    और जैसे कि मानवअब यह सोचते है
    कि हम अपनी क्रियाओं को नियंत्रित
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    करने की प्रेरणा कैसे ढूंढे
    ताकि मुश्किल बाधाएँ
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    हमारे रास्ते पर ना आएं
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    और उनको पार करने में हमे कठिनाई हो।
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    मैंने सोचा कि ये कि ये एक अच्छा
    स्थान है बात करने के लिए।
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    मैं अपनी कहानी शुरू करता हूँ -
    छह साल पहले की बात
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    मैं पहली बार
    यूनाइटेड नेशन में शामिल हुआ
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    मेरा दृढ़ विश्वास है UN अब विश्व में
    सहयोग और सहोद्योग को
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    बढ़ावा देने में अद्वितीय
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    महत्वता रखता है।
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    लेकिन जब आप इससे जुड़ते है
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    तो वह आपको यह
    नहीं बताते कि यह महत्वपूर्ण कार्य
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    मुख्यता अत्यन्त उबाऊ और
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    लम्बी बैठकों के रूप में कराया जाता है।
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    निःसंदेह, अब आपको यह लग सकता
    है कि आप भी लम्बी और उबाऊ बैठकों
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    में भाग ले चुके है।
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    पर UN की बैठके अलग स्तर की है,
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    और वहाँ पर कार्यरत लोग इनमें अलग स्तर
    की शांति के साथ शामिल होते हैं,
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    सामान्यतः जो ज़ेन मास्टर्स हासिल
    कर पाते है।
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    लेकिन मैं इसके लिए तैयार न था।
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    मैं ड्रामा, तनाव, व नवीन खोज की
    उम्मीद लेकर शामिल हुआ था।
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    मैं ऐसी गति से चलने को तैयार
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    नहीं था, जो कछुआ चाल
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    से भी धीमे थी।
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    ऐसी ही एक बैठक के बीच में मुझे
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    किसी ने एक पत्र पकड़ा दिया
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    और यह और कोई नहीं बल्कि मेरी एक दोस्त,
    साथी और सह-लेखिका थी,
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    जिसका नाम था क्रिस्टीना फ़िगरिस।
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    क्रिस्टीना UN के जलवायु विभाग की
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    एक कार्यकारी सचिव थी
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    और उसकी UN के प्रति
    जो जिम्मेदारियां थी, वह बढ़कर
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    पेरिस सहमति बन गयी।
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    मैं उस पर राजनीतिक रणनीति चला रहा था।
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    तो जब उन्होंने मुझे यह पत्र
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    दिया तो मैंने यह कल्पना की कि इसमें इस
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    समस्या जिसमे हम
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    बुरी तरह से फ़से हुए है,
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    मैंने पत्र लिया और उसको देखा,
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    उसमें लिखा था, "दुःखद !
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    लेकिन चलो प्यार से आगे बढ़ते है !
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    मुझे यह पत्र कई कारणों से पसंद आया
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    मुझे "दुःखद " शब्द से
    निकलती हुई लताएँ पसंद आयी ।
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    यह मेरी उस वक़्त कि मनःस्थिति को
    प्रकट करने का एक अच्छा तरीका था ।
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    लेकिन मुझे यह विशेष रूप से पसंद
    आया क्योंकि जब मैंने इसे देखा तब
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    मुझे यह आभास हुआ कि
    यह एक राजनैतिक अनुदेश है
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    और यह कि क्या हम
    सफल होंगे?
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    और हम सफलता इस तरीके से पा सकते है ।
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    मैं समझाने कि कोशिश करता हूँ,
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    मैं उन बैठकों में स्वयं को
    नियंत्रित महसूस करता था।
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    मैं ब्रूकलिन, न्यू यॉर्क को छोड़कर
    बोन, जर्मनी में जा बसा;
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    हालाँकि यह मेरी पत्नी की इच्छा
    के विपरीत था।
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    मेरे बच्चे अब उस स्कूल में थे
    जहां की भाषा भी वे बोल नहीं सकते थे,
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    और मैंने सोचा कि मेरे इस त्याग
    का फल यह होगा कि मैं आने
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    वाली स्थिति पर कुछ हद तक
    नियंत्रण पा लूँगा।
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    मैंने कई सालों तक यह सोचा कि
    जलवायु संकट हमारी पीढ़ी की
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    सबसे बड़ी चुनौती होगी
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    और इसके बचने के लिए मैं अपना योगदान देने
    को तैयार था ताकि मानवता को बचाया जा सके।
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    लेकिन कई अवसरों के मिलने
    पर भी मेरे तमाम प्रयासों
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    के बावजूद भी
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    बात नहीं बनी
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    मैंने यह एहसास किया की मैं सिर्फ रोज-मर्रा
    के काम ही कर सकता था।
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    "क्या मैं आज ऑफिस बाइक से जाऊं?"
    "आज मैं खाना कहाँ पर खाऊँ?"
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    जबकि चीज़ें जी हमारी सफलता
    को निर्धारित करती
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    वह कुछ ऐसी थीं -
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    "क्या रूस मोलभाव बंद कर देगा?"
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    "क्या चीन गैस उत्सर्जन
    की जिम्मेदारी लेगा ?"
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    "क्या यूनाइटेड स्टेट्स गरीब देशों की
    जलवायु बदलाव के वक़्त मदद करेगा?"
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    अंतर बहुत बड़ा था, शुरुवात में मैं
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    अपनी सोच और इन बातों
    का तालमेल नहीं बैठा सका।
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    मुझे बुरा लगा।
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    मैंने यह सोचना शुरू कर दिया कि मैंने गलती
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    कर दी है, मैं तनाव में आ गया।
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    लेकिन उस समय भी
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    मुझे यह अहसास हुआ कि मैं जो भी
    महसूस कर रहा था वह बिलकुल वैसा था
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    जैसा मैंने तब महसूस किया था जब मैंने
    जलवायु संकट के बारे में पहली बार सुना था।
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    मैंने अपने किशोरावस्था के कई
    रचनात्मक साल बौद्ध साधू
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    की तरह व्यतीत किये,
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    लेकिन मैंने मठवासी जीवन को छोड़ दिया
    क्योकि 20 साल पहले भी
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    मुझे यह लगने लगा था कि
    जलवायु संकट करीब है और
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    मुझे अपना योगदान देना है।
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    लेकिन जैसे ही मैंने अपने को संसार से
    दोबारा जोड़ा, मैंने यह सोचा कि
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    मैं क्या नियंत्रित कर सकता हूँ।
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    यह मेरा और मेरे परिवार द्वारा
    किये हुए उत्सर्जन का कुछ टन था,
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    किस राजनीतिक पार्टी को
    मैंने सालों तक वोट दिया,
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    मैं कितने जुलूसों में गया।
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    फिर मैंने मुद्दे को देखा जो
    परिणाम को निर्धारित करेगा
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    और वे थे बड़े राजनीतिक मोल-भाव,
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    बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे
    पर खर्च करने कि योजना
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    जैसा कि हर कोई करता है।
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    इसमें फिर से इतना अंतर था कि
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    मैं उसे किसी तरीके से ख़त्म
    नहीं कर सकता था।
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    मैंने प्रयास जारी रखा,
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    लेकिन कुछ हुआ नहीं।
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    मुझे बेहद दुःख हुआ।
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    हमें पता है कि बहुत से लोग
    इसे अनुभव कर सकते है।
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    शायद आपको भी यह अनुभव हुआ हो।
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    जब हमें एक बड़ी चुनौती
    का सामना करते है
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    तो हमें नहीं लगता कि हमारे
    पास कोई नियंत्रण है तब
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    हमारा मन रक्षा के लिए
    छोटी सी तरकीब कर सकता है
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    हमें यह बिल्कुल स्वीकार
    नहीं कि कठिन समय में हम
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    खुद पर नियंत्रड खो दे,
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    इसीलिए हमारा दिल ये बताएगा कि
    शायद ये इतना आसान नहीं है,
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    शायद यह उस तरह नहीं हो
    रहा जैसा लोग कहते है।
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    या फिर ये अपनी भूमिका फिर निभा रहा है
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    "तुम अकेले कुछ नहीं कर सकते,
    तो कोशिश ही क्यों करना ?"
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    लेकिन यहां पर कुछ गड़बड़ हो रहा है।
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    क्या यह वास्तव में सच है कि
    मनुष्य इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर
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    निरंतर काम करते रहेंगे जब उन्हें
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    यह महसूस होगा कि वे इसे काफी
    हद तक नियंत्रण करते रहेंगे।
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    इन तस्वीरों को देखिये।
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    ये लोग नर्स और देखभाल करने वाले है,
    जो मानवता को कोविद- १९,
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    जो पूरे विश्व में पैर पसर चुक है,
    से बचाने में मदद कर रहे है,
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    ये लोग पिछले कुछ महीनों से कार्यरत है।
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    क्या ये लोग बीमारी को फैलने से बचा पाए ?
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    नहीं।
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    क्या ये लोग संक्रमित लोगों
    को मरने से बचा पाए
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    कुछ लोग तो बच गए,
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    लेकिन कुछ लोग नियंत्रड में नहीं आ सके।
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    पर क्या यह उनके योगदान को व्यर्थ बनता है ?
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    दरअसल ऐसा कहना अपमानजनक होगा।
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    क्योंकि ऐसी आपदा में भी
    ये लोग मानवता को
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    बचाने का काम कर रहे है।
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    और यह कार्य बेहद प्रशंसनीय है,
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    आप इन तस्वीरों को देखिये
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    आपको यकीन हो जाएगा कि
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    ये लोग जो साहस और इंसानियत
    दिखा रहे है
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    वह उनके काम को और भी
    महत्वपूर्ण साबित करता है
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    फिर चाहे भले ही परिणाम
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    उम्मीदों पर खरा ना उतरे।
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    यह काफी रोचक है,
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    क्यूंकि यह ये दर्शाता है कि
    हम कोई भी कार्य
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    निष्ठा और लगन से कर सकते है
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    चाहे उसका परिणाम
    हमारी पहुँच से दूर हो।
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    लेकिन यह हमारे सामने एक
    दूसरी चुनौती खड़ी कर देता है।
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    हम जलवायु संकट से बचने
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    के लिए जो काम करते है
    वह इसके प्रभावों से हट के है।
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    जबकि इन तस्वीरों में नर्सेज विश्व को
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    बदलने का बुलंद लक्ष्य नहीं रखती है
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    बल्कि इनको जीवन का प्रेरणा
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    जरूरतमंदो कि मदद से मिलती है ।
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    जलवायु संकट से निपटना
    इससे काफी अलग है।
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    पहले मैं यह सोचा करता था कि
    हम उस संकट से काफी दूर है
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    और जलवायु संकट का प्रभाव
    भविष्य में काफी दूर है।
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    लेकिन हम अब उस भविष्य में आ चुके है।
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    सारे महाद्वीप अब संकट में है।
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    शहर जल में समाये जा रहे है।
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    कई देश डूबने कि कगार पर है।
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    आज लाखों लोग जलवायु संकट के कारण
    पलायन करने को मजबूर है।
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    चाहे भले ही यह संकट हमारे करीब हो,
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    फिर भी कुछ ऐसा है
    जो हमे इसे महसूस होने नहीं देता।
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    हमें लगता है कि
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    ये चीज़ें दूसरी जगह,
    दूसरे लोगों के साथ होती है
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    या फिर इस तरह से होती है जिससे
    हम अभी तक अभ्यस्त नहीं हुए है।
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    भले ही यह नर्सो जैसे
    मानव प्रकति के बारे में नही है,
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    उतना प्रत्यक्ष नहीं है
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    फिर भी हम जलवायु संकट से
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    निबटने का तरीका खोज निकालेंगे।
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    बल्कि ऐसा करने का एक तरीका है -
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    अगर हम सब एकजुट होकर,
    सामंजस्य बैठा कर,
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    सभी के सहयोग से इस
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    लक्ष्य को पाने की कोशिश करे,
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    तो हम अवश्य सफल होंगे।
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    इतिहास में यह एक प्रभावशाली
    तरीका रहा है।
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    मुझे एक ऐतिहासिक कहानी
    सुनाने का मौका दीजिये।
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    अभी मैं अपने घर के समीप
    दक्षिड़ी इंग्लैंड के जंगलों में हूँ।
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    ये लंदन से ज्यादा दूर नहीं है।
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    80 साल पहले यह शहर
    हमले के अंतर्गत आता था।
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    1930 के अंत में,
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    ब्रिटेन के लोग कुछ भी करने ओ तैयार थे
    युरोप मे हिटलर से बचाव करने
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    इज वास्तविकता का सामना नही करना चाहते थे
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    पहले विश्व-युद्ध कि यादें अभी ताज़ा थी,
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    वे नाज़ी के गुस्से से डरे सहमे हुए थे,
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    वे वास्तविकता से बचने के लिए
    कुछ भी करने को तैयार नहीं थे।
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    अंत में उन्हे सामना करना पडा ।
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    चर्चिल को कई चीज़ों के लिए याद किया
    जाता है, उसमे सारी चीज़ें पॉजिटिव नहीं है,
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    लेकिन युद्ध के शुरुआती दिनों
    में ही उन्होंने ब्रिटेन
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    के लोगों द्वारा सुनाई जाने वाली
    कहानी ही बदल दी,
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    जो "वो क्या कर रहे थे?"
    और "क्या आने वाला था?" पर निर्भर थी।
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    जहाँ पहले घबराहट और बेचैनी थी,
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    वहाँ अब शांति,
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    एक आइलैंड,
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    एक अच्छा समय,
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    एक बेहतर पीढ़ी,
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    एक देश जो तटों, पहाड़ियों
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    और गलियों में लड़ेगा
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    और हार नहीं मानेगा।
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    घबराहट और बेचैनी से वास्तविकता से
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    सामना करने तक का बदलाव जो कुछ भी था,
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    उसका युद्ध को जीतने का
    कोई ताल्लुक नहीं था।
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    वहाँ युद्ध जीतने जैसा कोई समाचार
    नहीं था,
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    यहाँ तक कि कोई मित्र सेना के
    सहयोग से जीतने की संभावना बढ़ गयी,
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    ऐसा भी कुछ नही था।
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    यह केवल एक वरीयता थी।
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    एक गहरा और अडिग आशावाद का उदय हुआ,
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    इसने घिरते अंधकार को नहीं दबाया
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    पर इससे भयभीत होना छोड़ दिया।
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    ये अडिग आशावाद बेहद शक्तिशाली है।
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    इसमें हम अपनी जीत के बारे
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    अथवा एक अच्छे भविष्य के बारे में
    नहीं सोचते हैं।
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    यह हमें उत्साहित कर
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    हमें प्रेरणा देता है।
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    हमे उस समय से पता है कि
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    खतरे और चुनौतियों के बावजूद भी
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    वह एक विचारपूर्ण समय था
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    और विभिन्न स्रोतों के अनुसार
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    सभी कामों को तबज़्ज़ो दी गयी थी
    चाहे वह युद्ध में लड़ने वाले
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    के पाइलट हो या आलू के
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    ठेले लगाने वाले विक्रेता हो।
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    उन्होंने एक समान लक्ष्य और समान परिणाम
    को पाने के लिए एकजुट होकर काम किया।
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    इस बात का इतिहास गवाह है।
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    यह गहरे और निर्धारित आशावाद
    का वक अनूठा जोड़ है
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    जब आशावादी सोच एक
    निर्धारित क्रिया को जन्म देती है
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    तब आत्मनिर्भरता बिना रुकावट के आती है।
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    बिना किसी काम की कोशिश किये
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    यह आशावादी सोच केवल एक मनोदृष्टि है।
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    पर ये दोनों साथ में कोई भी मुद्दे का
    निराकरण करके विश्व को बदल सकते है।
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    हमने यह कई बार देखा है।
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    हमने इसे देखा जब रोजा पार्क ने
    बस से उठने से मना कर दिया।
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    हमने यह गाँधी के डंडी-मार्च में देखा था,
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    जब स्फ़्रागेटिस ने कहा था
    "साहस हर जगह साहस को पुकारता है। "
  • 10:59 - 11:02
    और जब कनैडी ने कहा था कि
    दस साल के अंदर एक इंसान
  • 11:02 - 11:03
    को चाँद पर भेज देंगे।
    इन सब चीज़ों ने
  • 11:03 - 11:06
    युवा पीढ़ियों को उत्साहित
    किया उनको बुरी परिस्थितियों
  • 11:06 - 11:09
    का सामना करके एक समान लक्ष्य की
    ओर बढ़ने को प्रेरित किया
  • 11:09 - 11:12
    हालाँकि लोगो को इसको प्राप्त
    करने का तरीका नहीं पता था
  • 11:12 - 11:13
    इन सभी मामलों में,
  • 11:13 - 11:18
    एक वास्तविक व कड़वी लेकिन
    निर्धारित आशावादी सोच
  • 11:18 - 11:20
    सफलता का परिणाम नहीं थी
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    बल्कि सफलता का कारण थी।
  • 11:21 - 11:24
    ठीक उसी तरह जैसे पेरिस समझौते की
  • 11:24 - 11:26
    राह में इस सोच ने परिवर्तन ला दिया।
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    वो चुनौतीपूर्ण, जटिल,
    निराशावादी बैठकें आसान हो गयी
  • 11:31 - 11:35
    जब कई लोगों को यह अहसास हुआ कि
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    यह काम करने का सही पल है
    और हमें कोई गलती नहीं करनी है,
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    और हमें हर संभव परिणाम तक पहुँचना है।
  • 11:41 - 11:44
    ज्यादातर लोगों ने इस नजरिये से
    अपने आप को परिवर्तित किया
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    और काम पर जुट गए
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    और अंत में यह तरकीब काम आयी
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    और गति कि लहर में हमने
  • 11:50 - 11:53
    चुनौतीपूर्ण मुद्दों पर ऐसा काम
  • 11:53 - 11:55
    किया जैसा हमने कभी ना सोचा था।
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    आज कई सालों बाद, व्हाइट-हाउस
    के असहयोग के साथ,
  • 12:00 - 12:03
    जो भी हमने गतिमान किया था
    उसका अभी भी खुलासा नहीं हुआ है।
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    और हमारे पास आने वाले
    महीनों और सालों में जलवायु संकट
  • 12:07 - 12:08
    से लड़ने के लिए
    सब कुछ उपस्थित है।
  • 12:09 - 12:14
    इस समय हम लगभग सभी
    की ज़िन्दगी के
  • 12:14 - 12:16
    सबसे जटिल वक़्त से गुजर रहे है।
  • 12:16 - 12:18
    वैश्विक माहमारी भयावह है
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    चाहे भले ही इसमें हमने किसी अपने
    को न खोया हो
  • 12:22 - 12:26
    फिर भी इसने हमे यह अहसास करा दिया कि
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    हम किसी बड़े बदलाव के लिए
  • 12:28 - 12:30
    अभी भी शक्तिहीन है।
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    हम उस हद तक पहुँच गए जहाँ आधी मानवता
    ने असुरक्षित लोगों को बचाने
  • 12:35 - 12:36
    के लिए कड़े कदम उठाये।
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    यदि हम यह करने में सक्षम है,
  • 12:39 - 12:43
    तो शायद हमे इस बात का अंदाज़ा नहीं कि
    हम सब एक समान चुनौती से
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    बचने के लिए किस हद तक जा सकते है।
  • 12:46 - 12:50
    अब हमें इस "शक्तिहीन" की
    कहानियों से आगे बढ़ाना होगा
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    क्योंकि आने वाला जलवायु संकट
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    इस महामारी से कई गुना ज्यादा घातक साबित
    हो सकता है यदि हम अभी भी सतर्क न हुए।
  • 12:56 - 13:00
    हम इस संकट जो हमारी
    तरफ तेजी से आ रहा है,
  • 13:00 - 13:03
    इसको अभी भी टाल सकते है।
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    हम अब इस "शक्तिहीन" अहसास को
    अब और नहीं महसूस कर सकते है।
  • 13:08 - 13:10
    सच्चाई तो यह है कि आने वाली पीढ़ी
  • 13:10 - 13:12
    इस समय को मुड़कर विस्मयपूर्वक देखेगी
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    जहाँ हमारे सामे दो रास्ते है-
    पहला सुधरे हुए भविष्य का,
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    दूसरा जहाँ सब कुछ नष्ट हो गया।
  • 13:18 - 13:22
    और सचाई यह भी है कि इस बदलाव
    में बहुत कुछ अच्छे से निपट रहा है।
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    शुद्ध ऊर्जा की कीमत कम हो रही है।
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    भूमि का पुनर्जन्म किया जा रहा है।
  • 13:27 - 13:29
    लोग गलियों में निकल कर
    उत्साह व दृढ़ता से बदलाव
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    के लिएउस तरह गुहार लगा रहे है
  • 13:31 - 13:33
    जैसा हमने पीढ़ियों से नहीं देखा।
  • 13:33 - 13:36
    वास्तविक सफलता और असफलता
  • 13:36 - 13:39
    दोनों ही संभव है
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    इसीलिए ये हमारे जीवन का विशेष समय है।
  • 13:42 - 13:46
    हम इसी क्षण यह निर्णय ले सकते है कि
  • 13:46 - 13:50
    हम इस चुनौती को साहसिक, वास्तविक
    और दृढ आशावाद के साथ स्वीकार करेंगे
  • 13:50 - 13:54
    और हम हर संभव प्रयास के साथ
    इस महामारी से एक बेहतर भविष्य
  • 13:54 - 13:58
    की ओर बढ़ने के लिए नए रास्ते
    खोज निकालेंगे।
  • 13:58 - 14:01
    हम यह निश्चय करें कि हम मानवता
    के लिए आशा के प्रकाश बनेंगे फिर चाहे
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    आने वाले दिन कितने ही
    अंधकार से भरे हुए हों।
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    हम यह भी निश्चय करेंगे कि
    हम अपनी जिम्मेदारी स्वयं
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    लेंगे और 10 साल के अंदर उत्सर्जन
  • 14:09 - 14:10
    कम से कम 50 % घटा देंगे।
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    और हम सरकार और निगम की
    नीतियों में स्वयं को संलघ्न करके
  • 14:15 - 14:18
    ये निर्धारित करने में मदद करेंगे कि
    इस आपदा से निबट कर एक बेहतर कल
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    बनाने के लिए जरूरी कदम
    उठाये जा रहे है कि नहीं।
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    अभी ये सारी चीज़ें करना संभव है।
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    मैं उस बात पर लौटता हूँ
    जहाँ एक उबाऊ बैठक में मुझे
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    कृष्टीना ने मुझे एक पत्र दिया था
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    जिसे देखने के बाद मुझे मेरे जीवन के
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    सबसे महत्वपूर्ण अनुभव याद आये थे।
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    सब चीज़ों में एक चीज़ जो
    मैंने सन्यासी जीवन से सीखी
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    वह यह है कि उज्ज्वल मष्तिष्क और
    हर्षित ह्रदय जीवन का मूल और लक्ष्य है।
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    यह दृढ आशावाद, प्यार का ही एक रूप है।
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    यह दोनों ही है - एक ऐसा संसार जो
    हम बनाना चाहते है
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    और तरीके जिनसे हम उसे बनाते है।
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    यह हम सब के लिए एक विकल्प है
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    इस मुश्किल घड़ी का सामना
    यदि हम एक आशावादी सोच
  • 15:04 - 15:07
    के साथ करें तो यह हमारी ज़िन्दगी
    को सार्थक और लक्ष्य से भर सकती है।
  • 15:07 - 15:11
    इस तरह से हम इतिहास
    का चक्र पर हाथ रख कर
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    उसे मनचाहे भविष्य कि तरफ मोड़ सकते है।
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    यह हकीकत है कि जीवन
    अब नियंत्रण से परे महसूस होता है,
  • 15:18 - 15:21
    यह डरावना और भयावह प्रतीत होता है।
  • 15:22 - 15:25
    लेकिन हमे आने वाली इन
    मुश्किल परिस्थितियों
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    में लड़खड़ाना नहीं है।
  • 15:28 - 15:31
    हमें इनका एक दृढ आशावाद
    के साथ सामना करना है।
  • 15:32 - 15:35
    हाँ, इस समय में वैशविल स्तर पर
  • 15:35 - 15:36
    बदलाव देखना दुखःद है
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    लेकिन हमे प्यार से आगे बढ़ना है।
  • 15:39 - 15:40
    धन्यवाद।
Title:
अपनी मानसिकता को बदलकर अपना भविष्य चुने
Speaker:
टॉम रिवेट-करनैक
Description:

जिंदगी की कठिन परिस्थितियों में हम प्रायः ऐसे रास्ते पर खड़े होते हैं जहाँ या तो हम यह यकीन कर लेते हैं कि हम एक बड़े बदलाव के सामने शक्तिहीन हैं या फिर हम चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो जाते है। एक तत्काल कार्यवाही हेतु, राजनितिक रणनीतिकार टॉम रिवेट- करनैक जलवायु बदलाव या हमारे रास्ते में आयी किसी भी बाधा से सामना करने के लिए एक 'दृढ आशावाद' को अपनाकर एक बेहतर भविष्य बनाने के लिए प्रेरित करते है। उनका कहना है "दृढ आशावाद हमारे जीवन को सार्थक बनाकर इसे उद्देश्य प्रदान करता है।"

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
15:54

Hindi subtitles

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