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सभी भाषाओं में समान क्या होता है? - कैमरून मोरिन

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    भाषा अन्तहीन रूप में परिवर्तनीय है।
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    हर कोई अपनी मातृभाषा में
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    अनन्त वाक्य बना सकता है
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    और वह भी बहुत ही छोटी उम्र से--
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    लगभग जैसे ही
    वह वाक्यों में संवाद करने लगे।
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    यह कैसे सम्भव है?
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    1950 के दशक के आरम्भ में नोअम चॉम्स्की ने
    एक सिद्धान्त का प्रस्ताव रखा
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    जो इस पर्यवेक्षण पर आधारित था
    कि इस बहुविज्ञता का कारण
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    व्याकरण प्रतीत होती है:
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    एक अनजाने वाक्य की
    जानी पहचानी व्याकरण संरचना
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    हमें उसका अर्थ समझा देती है।
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    उन्होंने प्रस्तावित किया
    कि व्याकरण के नियम
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    सब भाषाओं के लिए लागू होते हैं
    और यह नियम अन्तर्जात होते हैं --
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    मनुष्य का मस्तिष्क इन नियमों के अनुसार
    भाषा को संसाधित करने के लिए यंत्रस्थ है।
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    उन्होंने इस आन्तरिक शक्ति को
    सार्वभौमिक व्याकरण का नाम दिया
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    और इससे ऐसे अनुसन्धानों की शुरुआत हुई
    जिनसे भाषा विज्ञान
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    और संज्ञानात्मक विज्ञान के
    उभरते हुए क्षेत्र
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    दोनों को आगे आने वाले
    कई दशकों के लिए आकार मिला।
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    चॉम्स्की और बाकी शोधकर्ताओं ने
    सार्वभौमिक व्याकरण के
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    दो मुख्य अंगों की जाँच आरम्भ की:
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    पहला, कि क्या वास्तव में
    व्याकरण के ऐसे नियम होते हैं
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    जो सभी भाषाओँ में समान हैं,
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    और दूसरा, कि क्या यह नियम
    हमारे मस्तिष्क में अन्तर्जात हैं।
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    व्याकरण के सार्वभौमिक नियमों को
    स्थापित करने के प्रयास में
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    चॉम्स्की ने एक विश्लेषणात्मक उपकरण
    विकसित किया
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    जिसे उत्पादक वाक्य-रचना कहते हैं
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    जो किसी वाक्य में शब्दों के क्रम का वर्णन
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    उन श्रेणीबद्ध वाक्य-रचना पेड़ों में
    करता है
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    जो यह दिखाते हैं
    कि कैसी संरचनाएँ सम्भव हैं।
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    इस पेड़ के आधार पर
    हम व्याकरण का यह नियम बता सकते थे
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    कि क्रिया वाक्यांश में
    क्रिया विशेषण होते हैं।
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    परन्तु ज़्यादा आधार-सामग्री से
    यह शीघ्र ही स्पष्ट हो जाता है
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    कि क्रिया विशेषण, क्रिया वाक्यांशों के
    बिना भी प्रयोग हो सकते हैं।
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    यह सहज उदाहरण
    एक बड़ी समस्या को दर्शाता है:
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    एक भाषा की व्याकरण के
    नियम स्थापित करने के लिए
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    उस भाषा से बहुत सारी
    आधार-सामग्री की आवश्यकता होती है
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    इससे पहले कि हम यह निर्धारित करने की
    शुरुआत तक कर सकें
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    कि वह कौन से नियम हैं
    जो सब भाषाओं में समान हो सकते हैं।
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    जब चॉम्स्की ने एक
    सार्वभौमिक व्याकरण का प्रस्ताव रखा
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    तब अधिकतर भाषाओं के
    अभिलिखित नमूनों की संख्या
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    उत्पादक वाक्य-रचना का प्रयोग कर
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    उनका विश्लेषण करने के लिए
    ज़रूरी संख्या से बहुत कम थी।
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    बहुत सारी आधार-सामग्री होने पर भी
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    किसी भाषा की संरचना का
    मानचित्र बनाना अत्यधिक जटिल है।
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    50 वर्षों के विश्लेषण के बाद
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    हम आज तक भी अंग्रेज़ी को
    पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं।
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    जैसे-जैसे ज़्यादा भाषाविद आधार-सामग्री को
    एकत्रित कर उसका विश्लेषण किया गया
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    यह साफ़ हो गया कि दुनिया भर की
    भाषाएँ बहुत भिन्न हैं,
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    जिसने इस सिद्धान्त को चुनौती दी
    कि व्याकरण के नियम सार्वभौमिक होते हैं।
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    1980 के दशक में, चॉम्स्की ने
    इस भिन्नता को समायोजित करने के प्रयास में
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    इस सिद्धान्त में संशोधन किया।
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    सिद्धान्तों और मापदण्डों की
    उनकी नई परिकल्पना के अनुसार
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    सभी भाषाओं में
    कुछ व्याकरण के सिद्धान्त समान थे
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    परन्तु वह अपने मापदण्डों में
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    या इन सिद्धान्तों के प्रयोग में
    भिन्न हो सकते थे।
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    उदाहरण के लिए, एक सिद्धान्त है
    "हर वाक्य का एक कर्ता होना चाहिए,"
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    पर उस कर्ता को स्पष्ट रूप से
    बताए जाने का मापदण्ड
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    अलग-अलग भाषाओं में भिन्न हो सकता था।
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    सिद्धान्तों और मापदण्डों की परिकल्पना ने
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    फिर भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया
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    कि कौनसे व्याकरण के नियम
    सार्वभौमिक होते हैं।
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    2000वीं सदी की शुरुआत में
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    चॉम्स्की ने सुझाव दिया
    कि केवल एक ही सिद्धान्त समान है
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    जिसे प्रत्यावर्तन कहते हैं
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    जिसका अर्थ है कि संरचनाएँ
    एक दूसरे के अन्दर समाई हो सकती हैं।
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    इस वाक्य को देखिए,
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    जो एक वाक्य को दूसरे,
    और दूसरे वाक्य को तीसरे में समाए हुए है।
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    या यह वाक्य,
    जो एक संज्ञा वाक्यांश को दूसरे,
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    और दूसरे को तीसरे में समाए हुए है।
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    प्रत्यावर्तन एक
    सार्वभौमिक व्याकरण नियम के लिए
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    अच्छा उम्मीदवार था
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    क्योंकि यह बहुत से रूप धारण कर सकता है।
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    परन्तु, 2005 में भाषविदों ने
    एक अमेजन की पिराहा नामक भाषा पर
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    निष्कर्ष प्रकाशित किए
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    जिसमें कोई प्रत्यावर्तन संरचनाएँ
    नहीं दीखती थीं।
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    तो चॉम्स्की के सिद्धान्त के
    दूसरे भाग का क्या
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    जो कहता था कि हमारी भाषा शक्ति
    अन्तर्जात है?
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    जब उन्होंने पहली बार
    सार्वभौमिक व्याकरण का सुझाव दिया था
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    तब भाषा अधिग्रहण का आनुवांशिक रूप से
    एक निर्धारित पहलू होने के विचार का
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    एक गहरा, क्रान्तिकारी प्रभाव हुआ था।
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    इसने उस प्रमुख प्रतिमान को चुनौती दी,
    जिसे व्यवहारवाद कहते हैं।
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    व्यवहारवादियों का तर्क था कि सभी जानवरों
    और मनुष्यों के व्यवहार, और उनकी भाषा भी,
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    उनका मस्तिष्क, जिसकी शुरुआत
    एक खाली तख़्ति के रूप में होती है,
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    बाहर से अधिग्रहण करता है।
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    आज, वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं
    कि व्यवहारवाद ग़लत था
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    और मानते हैं कि भाषा सीखने का
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    एक अंतर्निहित,
    आनुवंशिक रूप से सांकेतिक बना
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    जैविक तन्त्र होता है।
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    बहुत से लोग मानते हैं कि जो जीवविज्ञान
    भाषा के लिए उत्तरदायी है
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    वही अनुभूति के पहलूओं के लिए भी।
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    तो वह चॉम्स्की के विचारों से
    सहमत नहीं हैं
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    कि मस्तिष्क में एक विशिष्ट, पृथक,
    सहज भाषा शक्ति होती है।
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    सार्वभौमिक व्याकरण के सिद्धान्त के कारण
    ऐसी कई भाषाओं का प्रलेखन और अध्ययन हुआ
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    जिन पर पहले कभी शोध नहीं हुआ था।
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    इसके कारण एक पुराने विचार का
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    पुनर्मूल्यांकन कर
    उसे अंततः उखाड़ फेंका गया
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    जिससे हम मनुष्य के मस्तिष्क के बारे में
    अपनी समझ को बढ़ाने के योग्य बन पाए।
Title:
सभी भाषाओं में समान क्या होता है? - कैमरून मोरिन
Speaker:
कैमरून मोरिन
Description:

पूरा पाठ देखिए: https://ed.ted.com/lessons/what-do-all-languages-have-in-common-cameron-morin

भाषा अंतहीन रूप में परिवर्तनीय है। हर कोई अपनी मातृभाषा में अनन्त वाक्य बना सकता है, और वह भी बहुत ही छोटी उम्र से-- लगभग जैसे ही वह वाक्यों में संवाद करने लगे। यह कैसे सम्भव है? 1950 के दशक के आरम्भ में नोअम चॉम्स्की ने एक सिद्धान्त का प्रस्ताव रखा जिसके अनुसार इस बहुविज्ञता का कारण व्याकरण थी। कैमरून मोरिन, चॉम्स्की के सार्वभौमिक व्याकरण के सिद्धान्त को विस्तृत करते हैं।

पाठ कैमरून मोरिन द्वारा, इओइन डफ़ी द्वारा निर्देशित।

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TED-Ed
Duration:
05:02

Hindi subtitles

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