विलियम ऊरी: 'ना' से 'हाँ' का सफ़र
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0:00 - 0:03ह्म्म, कठिन मध्यस्थता का मसला
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0:03 - 0:05मुझे मेरी एक पसंदीदा कहानी की याद दिलाता है,
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0:05 - 0:07मध्यपूर्वी दुनिया से,
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0:07 - 0:10एक ऐसे आदमी की जो अपने तीन बेटों के लिये १७ ऊँटों की विरासत छोड गया था।
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0:10 - 0:13पहले बेटे के लिये उसने आधे ऊँट मुकर्रर किये थे;
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0:13 - 0:15दूसरे के लिये, एक तिहाई;
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0:15 - 0:17और सबसे छोटे बेटे के लिये, ऊँटों का नवाँ हिस्सा।
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0:17 - 0:19तीनों बेटे ऊँटों का फ़ैसला करने बैठे।
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0:19 - 0:21१७ न तो दो से भाग खाता है।
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0:21 - 0:23न ही उसे तीन भागों में बाँटा जा सकता है।
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0:23 - 0:25और ९ से भी उसे भाग नहीं दिया जा सकता।
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0:25 - 0:27अब भाइयों में अन-बन शुरु हो गयी।
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0:27 - 0:29और अंत में, मरता क्या न करता,
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0:29 - 0:32वो एक बुद्धिमान बुढिया के पास सलाह के लिये पहुँचे।
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0:32 - 0:34बुद्धिमान बुढिया ने उनकी समस्या पर देर तक विचार किया,
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0:34 - 0:36और फ़िर उसने वापस आ कर कहा,
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0:36 - 0:38"देखो, मुझे नहीं पता कि मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ या नहीं,
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0:38 - 0:40लेकिन अगर तुम्हें चाहिये, तो तुम मेरा ऊँट ले जा सकते हो।"
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0:40 - 0:42तो अब उनके पास १८ ऊँट हो गये।
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0:42 - 0:45पहले बेटे ने अपना आधा हिस्सा ले लिया - १८ का आधा ९ होता है।
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0:45 - 0:48मंझले बेटे ने एक-तिहाई ले लिया - १८ का तिहाई ६ होता है।
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0:48 - 0:50और सबसे छोटे बेटे ने नवाँ हिस्सा लिया --
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0:50 - 0:52१८ का नवाँ हिस्सा दो होता है।
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0:52 - 0:54९, ६, और २ मिला कर कुल १७ होते हैं।
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0:54 - 0:56तो उनके पास एक ऊँट बच गया।
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0:56 - 0:58और उसे उन्होंने उस बुढिया को वापस कर दिया।
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0:58 - 1:00(हँसी)
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1:00 - 1:02अब अगर आप इस कहानी पर गौर करें,
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1:02 - 1:04तो ये काफ़ी करीब है
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1:04 - 1:07उन स्थितियों के, जो हमें समझौते करते समय झेलनी होती हैं।
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1:07 - 1:09वो इसी १७ ऊँटों वाली स्थिति से शुरु होती है - जिनका निपटान असंभव लगता है।
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1:09 - 1:11कैसे भी हो, हमें करना ये होता है कि
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1:11 - 1:14हम उन स्थितियों से बाहर निकल कर देखें, बिलकुल उस बुद्धिमान बुढिया की तरह,
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1:14 - 1:16और एक नये नज़रिये से स्थितियों पर गौर करें
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1:16 - 1:19और कहीं से उस अट्ठारहवें ऊँट को प्रकट करें।
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1:20 - 1:22दुनिया के कठिन मसलों में इस अट्ठारहवें ऊँट की खोज़ ही
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1:22 - 1:25मेरे जीवन की साधना रही है।
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1:25 - 1:28मुझे मानव-जाति इन तीन भाइयों जैसी ही लगती है;
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1:28 - 1:30हम सब एक परिवार हैं।
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1:30 - 1:32और ये तो वैज्ञानिक तौर पर भी साबित हो चुका है,
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1:32 - 1:34और सूचना क्रान्ति के चलते,
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1:34 - 1:37इस ग्रह के सारे कबीले, लगभग १५,००० कबीले,
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1:37 - 1:40एक दूसरे से संपर्क में आ गये हैं।
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1:40 - 1:42और ये बहुत बडा पारिवारिक सम्मेलन है।
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1:42 - 1:44और बिलकुल पारिवारिक सम्मेलनों की तरह,
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1:44 - 1:46इसमें सब कुछ केवल शांति से, मज़े से नहीं होता है।
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1:46 - 1:48बहुत विवाद भी उत्पन्न होते हैं।
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1:48 - 1:50और असली प्रश्न तो ये है, कि
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1:50 - 1:52हम इन विवादों से कैसे निपतें?
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1:52 - 1:54हम अपने गहरे पैठे हुए मतभेदों से कैसे निपटें,
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1:54 - 1:56जब कि हम लोग हरदम लडने को तैयार रहते हैं
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1:56 - 1:58और मानव महान ज्ञाता हो गया है
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1:58 - 2:01हाहाकार मचा सकने वाले हथियारों का।
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2:01 - 2:03प्रश्न असल में ये है।
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2:03 - 2:06जैसा कि मैने लगभग पिछले तीस साल --
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2:06 - 2:08या शायद चालीस --
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2:08 - 2:10दुनिया भर में सफ़र करते हुए बिताये हैं,
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2:10 - 2:13अपना काम करते हुए, विवादों का हिस्सा बनते हुए
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2:13 - 2:16युगोस्लाविया से ले कर मध्य-पूर्व तक,
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2:16 - 2:18चेचेन्या से ले कर वेनेज़ुअला तक,
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2:18 - 2:21हमारी दुनिया के कुछ सबसे बडे और कठिन विवादों के दरम्यान,
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2:21 - 2:23और मै स्वयं से हमेशा यही प्रश्न पूछता आया हूँ।
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2:23 - 2:25और शायद कुछ हद तक मुझे ये पता लग गया है,
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2:25 - 2:27कि शान्ति का राज़ क्या है।
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2:27 - 2:30ये असल में आशचर्यजनिक रूप से साधारण है।
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2:30 - 2:33आसान नहीं है, मगर साधारण है।
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2:33 - 2:35और तो और, ये नया भी नहीं है।
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2:35 - 2:37हो सकता है कि ये हमारी प्राचीन मानव-संस्कृति का अहम हिस्सा रहा हो।
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2:37 - 2:40और शान्ति का राज हम खुद हैं।
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2:40 - 2:42ये हम सब ही हैं
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2:42 - 2:44जो कि समाज के रूप में
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2:44 - 2:46विवादों के आसपास मौजूद हो कर
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2:46 - 2:48एक सकारात्मक भागीदारी निभा सकते हैं।
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2:48 - 2:51मैं उदाहरण के रूप में एक किस्सा सुनाता हूँ।
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2:52 - 2:54करीब २० साल पहले, मैं दक्षिणी अफ़्रीका में था,
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2:54 - 2:56वहाँ के विवाद में शामिल गुटों के साथ काम करते हुए,
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2:56 - 2:58और मेरे पास एक महीन का अतिरिक्त समय था,
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2:58 - 3:00तो मैने वो समय
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3:00 - 3:02सैन बुश्मैन आदिवासियों के साथ बिताया।
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3:02 - 3:05मैं उनके बारे में जानने में उत्सुक था, खासकर कि वो अपने विवाद कैसे हल करते हैं।
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3:06 - 3:08क्योंकि, जितना मुझे पता था,
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3:08 - 3:10वो सब शिकारी या संग्रहजीवी थे,
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3:10 - 3:12काफ़ी हद तक आदिमानवों सरीका जीवन व्यतीत करने वाले,
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3:12 - 3:15जैसा कि मानवों ने अपने ९९ प्रतिशत इतिहास में बिताया है।
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3:15 - 3:18और इनके पास जहर-बुझे तीर होते हैं जिन्हें ये शिकार के लिये इस्तेमाल करते हैं--
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3:18 - 3:20एकदम मारक तीर।
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3:20 - 3:22तो ये कैसे अपने विवादों का हल ढूँढते हैं?
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3:22 - 3:24और पता है, मैनें क्या पाया --
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3:24 - 3:27कि जब भी उनके दलों में लोगों को गुस्सा आता है,
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3:27 - 3:30कोई जाकर पहले वो ज़हर-बुझे तीर झाडियों में छुपा देता है,
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3:30 - 3:34फ़िर सब लोग एक गोला बना कर ऐसे बैठ जाते हैं,
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3:34 - 3:37और फ़िर वो बातचीत करते जाते है, करते जाते हैं, करते जाते हैं।
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3:37 - 3:39इसमें उन्हें दो दिन, तीन, या फ़िर चार दिन भी लग सकते हैं,
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3:39 - 3:41मगर वो तब तक नहीं रुकते
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3:41 - 3:43जब तक कि उन्हें कोई हल न मिल जाये,
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3:43 - 3:45या फ़िर, विवाद करने वाले सुलह न कर लें।
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3:45 - 3:47और यदि तब भी गुस्सा शांत न हो,
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3:47 - 3:49तो वो किसी को अपने रिश्तेदारों से मिलने भेज देते हैं
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3:49 - 3:51शांत होने के लिये।
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3:51 - 3:53और मेरे ख्याल से इसी व्यवस्था
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3:53 - 3:56के चलते, हम सब आज तक जीवित बचे है,
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3:56 - 3:58हमारी लडाकू पॄवत्तियों के मद्देनज़र।
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3:58 - 4:01इस व्यवस्था को मैं तीसरा-पक्ष कहता हूँ।
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4:01 - 4:03क्योंकि यदि आप ध्यान दें,
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4:03 - 4:06अक्सर जब भी हम विवाद के बारे में सोचते हैं, या बताते हैं,
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4:06 - 4:08तो उस में हमेशा दो पक्ष निहित होते हैं।
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4:08 - 4:10अरब बनाम इस्राइली, मज़दूर बनाम प्रबंधन,
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4:10 - 4:13पति बनाम पत्नी, रिपब्लिकन बनाम डेमोक्रेट,
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4:13 - 4:15मगर अक्सर जो हम नज़रअंदाज़ कर देते हैं,
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4:15 - 4:17वो ये है कि हमेशा एक तीसरा पक्ष होता है।
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4:17 - 4:19और वो तीसरा पक्ष है आप और मैं,
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4:19 - 4:21आसपास का समाज,
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4:21 - 4:23दोस्त, और सहयोगी,
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4:23 - 4:25परिवार के सदस्य, पडोसी।
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4:25 - 4:28और हम सब उसमें अभूतपूर्व सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं।
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4:28 - 4:30शायद सबसे मौलिक तरीका
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4:30 - 4:33जिस से कि तीसरा पक्ष मदद कर सकता है,
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4:33 - 4:36ये है कि विवादी जुटों को बतायें कि दाँव पर क्या लगा है।
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4:36 - 4:38बच्चों के लिये, परिवार के लिये,
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4:38 - 4:41समाज के लिये, और भविष्य के लिये,
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4:41 - 4:44हमें लडना छोड कर, बातचीत शुरु करनी होगी।
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4:44 - 4:46क्योंकि, मुद्दा ये है,
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4:46 - 4:48कि जब हम लडाई का हिस्सा होते हैं,
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4:48 - 4:50तो अपना आपा खोना बहुत आसान होता है।
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4:50 - 4:52तुरंत भडक उठना भी बहुत आसान होता है।
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4:52 - 4:55और मानव-जाति तो जैसे प्रतिक्रिया की मशीन है।
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4:55 - 4:57जैसा कि कहा जाता है,
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4:57 - 4:59जब आप गुस्सा हैं, तो आप वो बहतरीन भाषण देंगे
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4:59 - 5:02जिसका आपको हमेशा पछतावा रहेगा।
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5:02 - 5:05और इसलिये तीसरा पक्ष हमेशा हमें ये याद दिलाता रह सकता है।
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5:05 - 5:07ये तीसरा पक्ष हमें बालकनी में जाने में मदद करता है,
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5:07 - 5:10जो कि सोच-विचार की जगह का रूपक है
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5:10 - 5:13जहाँ हम सोच सकें कि हमें असल में चाहिये क्या।
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5:13 - 5:16मैं आपको अपने खुद के मध्यस्तता के अनुभव से एक किस्सा सुनाता हूँ।
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5:16 - 5:19कुछ साल पहले, मैं एक मध्यस्त के रूप में
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5:19 - 5:21एक बहुत कठिन वार्ता में शामिल था
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5:21 - 5:23रूस के नेताओं
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5:23 - 5:25और चेचेन्या के नेताओं के बीच।
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5:25 - 5:27और जैसा कि आपको पता ही है, उस समय एक युद्ध चल रहा था।
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5:27 - 5:29और हम हेग्य में मिले,
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5:29 - 5:31शांति महल में (पीस पैलेस),
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5:31 - 5:34उसी कमरे में जहाँ युगोस्लावी युद्ध अपराधों की कचहरी
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5:34 - 5:36चल रही थी।
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5:36 - 5:38और हमारी बातचीत शुरुवात में ही हिचकोले खाने लगी
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5:38 - 5:40जब चेचेन्या के उप-राष्ट्रपति ने
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5:40 - 5:43रूसियों की तरफ़ उँगली उठा कर कहा,
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5:43 - 5:45"आपको यहीं बैठे रहना चाहिये,
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5:45 - 5:47क्योंकि हो सकता है आप पर भी युद्ध-अपराधों का मुकदमा चले।"
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5:47 - 5:49और फ़िर वो मेरी ओर मुखातिब हो कर बोले,
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5:49 - 5:51"तुम तो अमरीकी हो।
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5:51 - 5:54देखो तुम अमरीकियों ने प्यूर्टो रिको में क्या किया है।"
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5:54 - 5:57और मेरे दिमाग ने तुरंत सोचना शुरु किया, "प्यूर्टो रिको? इसकी बात का मैं क्या जवाब दूँ?"
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5:57 - 5:59मैने प्रतिक्रिया करनी शुरु कर दी थी,
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5:59 - 6:02मगर तभी मुझे बालकनी मे जाने वाली बात याद आ गयी।
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6:02 - 6:04और जब उन्होंने बोलना बंद किया,
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6:04 - 6:06और सभी ने मेरी ओर जवाबी प्रतिक्रिया के लिये देखा,
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6:06 - 6:09बालकनी वाली सोच के चलते, मैं उनक उल्टा धन्यवाद देने में सक्षम हो सका,
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6:09 - 6:12और मैने कहा, "मैं अपने देश के प्रति आपकी आलोचना का सम्मान करता हूँ,
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6:12 - 6:14और इसे मित्रवत व्यवहार का लक्षण मानता हूँ कि
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6:14 - 6:17कम से कम हम खुल कर मन की बात बोल तो रहे हैं।
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6:17 - 6:20और आज हम यहाँ प्यूर्टो रिको या किसी और बात के लिये नहीं मिल रहे हैं।
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6:20 - 6:23हम यहाँ इसलिये हैं कि हम एक हल ढूँढ सकें जिस से कि
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6:23 - 6:26चेचेन्या में हो रह दुख और खून-खराबा बंद हो सके।"
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6:26 - 6:29बातचीत फ़िर से राह पर आ गयी।
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6:29 - 6:31तीसरे पक्ष का यही काम होता है,
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6:31 - 6:33कि वो विवाद में फ़ंसे पक्षों को बालकनी तक जाने में मदद करें।
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6:33 - 6:36चलिये मैं आपको ले चलता हूँ
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6:36 - 6:38विश्व के सबसे कठिन माने जाने वाली बहस के,
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6:38 - 6:40या शायद वास्तव में सबसे कठिन बहस के, ठीक बीच
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6:40 - 6:42मध्य-पूर्व में।
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6:42 - 6:45प्रश्न है: यहाँ तीसरा पक्ष कहाँ है?
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6:45 - 6:47यहाँ हम बालकनी में जाने की बात कैसे सोच सकेंगे?
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6:47 - 6:49अब मैं ये नाटक नहीं करूँगा कि
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6:49 - 6:51मेरे पास मध्य-पूर्व समस्या का समाधान है,
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6:51 - 6:53पर मेरे ख्याल से मेरे पास समाधान की ओर जाने का पहला कदम है,
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6:53 - 6:55वस्तुतः पहला कदम,
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6:55 - 6:58ऐसा कुछ जो हम सब तीसरे पक्ष के रूप में कर सकते हैं।
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6:58 - 7:00चलिये आप से पहले एक प्रश्न पूछता हूँ।
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7:00 - 7:02आप में कितनों ने
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7:02 - 7:04पिछले सालों में
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7:04 - 7:07स्वयं को पाया है मध्य-पूर्व की चिंता करते और
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7:07 - 7:09ये सोचते कि कोई क्या कर सकता है?
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7:09 - 7:11उत्सुक्तावश, कितने आप में से?
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7:11 - 7:14ठीक, तो हम में ज्यादातर लोगों ने।
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7:14 - 7:16और ये हम से इतना दूर है।
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7:16 - 7:19हम आखिर इस विवाद पर इतना ध्यान क्यों देते हैं?
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7:19 - 7:21क्या ये अत्यधिक लोगों की मृत्यु के चलते है?
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7:21 - 7:23इस के कई सौ गुना लोग मरते हैं
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7:23 - 7:25अफ़्रीका के विवादों में।
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7:25 - 7:27नहीं, ये इस से जुडी कहानी की वजह से है,
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7:27 - 7:29कि हम सब व्यक्तिगत तौर पर जुडे महसूस करते हैं
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7:29 - 7:31इस कहानी से।
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7:31 - 7:33चाहे हम ईसाई हों, मुसलमान हों, या फ़िर यहूदी,
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7:33 - 7:35और आस्तिक हों या नास्तिक,
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7:35 - 7:37हमें लगता है कि हमारा कुछ हिस्सा इसमें शामिल है।
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7:37 - 7:40कहानियों की अपनी महत्ता होती है। एक मानव-विज्ञानी होने के नाते मैं जानता हूँ।
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7:40 - 7:43हम कहानियों के ज़रिये अपने ज्ञान को आगे देते हैं।
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7:43 - 7:45उनसे हमारे जीवन को अर्थ मिलता है।
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7:45 - 7:47इसलिये ही हम सब यहाँ टेड में हैं, कहानियाँ सुनाने।
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7:47 - 7:49कहानियाँ सबसे महत्वपूर्ण हैं।
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7:49 - 7:52और मेरा प्रश्न है,
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7:52 - 7:54हाँ, चलिये कोशिश करके सुलझाते हैं राजनीतिक उलझन
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7:54 - 7:56जो मध्य-पूर्व में है,
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7:56 - 7:59लेकिन एक नज़र उस कहानी पर भी डालते हैं।
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7:59 - 8:01चलिये मसले की जड तक पहुँचने की कोशिश करते हैं।
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8:01 - 8:03चलिये देखते हैं कि क्या इस पर तीसरा पक्ष लागू होगा।
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8:03 - 8:06इसका क्या मतलब हुआ? यहाँ कहानी क्या है?
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8:06 - 8:08मानव विज्ञानी होने के नाते, हमें पता है कि
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8:08 - 8:11हर संस्कृति के उद्गम की एक कहानी होती है।
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8:11 - 8:13मध्य-पूर्व के उद्गम की कहानी क्या है?
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8:13 - 8:15सीधे सीधे, कहानी ये है:
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8:15 - 8:18४००० साल पहले, एक आदमी और उसके परिवार
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8:18 - 8:20ने मध्य-पूर्व के आरपार पद-यात्रा की
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8:20 - 8:23और दुनिया हमेशा हमेशा के बदल गयी।
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8:23 - 8:25और वो आदमी, जैसा कि सर्वविदित है,
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8:25 - 8:27अब्राहम था।
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8:27 - 8:29और वो एकता का पुजारी थी,
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8:29 - 8:31उसके परिवार की एकता।
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8:31 - 8:33वो हम सब का पिता था।
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8:33 - 8:35मगर मसला सिर्फ़ ये नहीं कि वो क्या पूजता था, बल्कि ये कि उसका संदेश क्या था।
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8:35 - 8:38उसका मूल संदेश भी एकता का ही था,
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8:38 - 8:41सबके आपस में जुडे होने का, और सबके बीच एकता का।
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8:41 - 8:44और उसका मौलिक मूल्य था सम्मान,
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8:44 - 8:46और अन्जान लोगों के प्रति दया का भाव।
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8:46 - 8:49वो इसिलिये जाना जाता है, अपनी सत्कार भावना के लिये।
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8:49 - 8:51तो इस लिहाज से,
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8:51 - 8:53वो तीसरे पक्ष का प्रतीक है
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8:53 - 8:55मध्य-पूर्व के लिये।
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8:55 - 8:58वो हमें ये याद दिलाता है कि
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8:58 - 9:00हम सब एक बडी परिकल्पना के हिस्से मात्र हैं।
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9:00 - 9:02तो आप कैसे --
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9:02 - 9:04थोडा रुक कर सोचिये।
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9:04 - 9:07आज हम आतंकवाद का बोझा ढो रहे हैं।
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9:07 - 9:09आतंकवाद आखिर है क्या?
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9:09 - 9:12आतंकवाद है कि एक मासूम अजनबी को पकडिये,
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9:12 - 9:15और उसे उस दुश्मन के माफ़िक मानिये जिसे आप मार देंगे
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9:15 - 9:17डर पैदा करने के लिये।
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9:17 - 9:19और आतंकवाद का विपरीत क्या है?
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9:19 - 9:21ये कि आप एक मासूम अजनबी से मिले,
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9:21 - 9:23और उससे उस दोस्त के माफ़िक बर्ताव किया,
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9:23 - 9:26जिसे आप अपने घर बुलायेंगे
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9:26 - 9:28उस के साथ दख-सुख बाँटेंगे, और समझ बढायेंगे,
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9:28 - 9:31सम्मान देंगे, प्यार देंगे।
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9:31 - 9:33तो अगर ऐसा हो कि
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9:33 - 9:36आप अब्राहम की कहानी उठायें,
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9:36 - 9:38जो कि तीसरे पक्ष की कहानी है,
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9:38 - 9:40और अगर उसे ऐसा कर दें --
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9:40 - 9:43क्योंकि अब्राहम सत्कार भावना का प्रतीक है --
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9:43 - 9:46क्या हो अगर ये आतंकवाद के खिलाफ़ एक दवाई हो जाये?
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9:46 - 9:48क्या हो अगर ये कहानी टीका बन जाये
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9:48 - 9:50मजहबी असहिष्णुता के खिलाफ़?
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9:50 - 9:53आप उस कहानी में जीवन कैसे फ़ूँक सकेंगे?
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9:53 - 9:55देखिये सिर्फ़ कहानी सुना भर देना काफ़ी नहीं है --
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9:55 - 9:57वो काफ़ी शक्तिशाली है --
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9:57 - 9:59मगर लोगों को कहानी को अनुभव कर पाना ज़रूरी है।
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9:59 - 10:02उन्हें उस कहानी को जी पाना ज़रूरी है। वो आप कैसे करेंगे?
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10:02 - 10:05और ये मेरी सोच थी कि ऐसा कैसे होगा।
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10:05 - 10:07और यहीं से पहले कदम की शुरुवात है।
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10:07 - 10:09क्योंकि एक साधारण तरीका ये कर पाने का है कि
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10:09 - 10:12आप पद-यात्रा के लिये निकल पडें।
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10:12 - 10:15आप अब्राहम के पदचापों का अनुसरण करते हुये पदयात्रा पर निकलें
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10:15 - 10:18आप अब्राहम के रास्ते चलें।
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10:18 - 10:21क्योंकि पदयात्रा में बडी ताकत होती है।
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10:21 - 10:24मैं, एक मानव-विज्ञानी होने के नाते, जानता हूँ कि पद-यात्राओं ने ही हमें मनुष्य बनाया है।
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10:24 - 10:26ये गजब है कि जब आप चलते हैं,
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10:26 - 10:28तो आप अगल-बगल चलते हैं
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10:28 - 10:31एक ही दिशा में।
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10:31 - 10:33और अगर मै आपके सामने से आऊँ
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10:33 - 10:36और इतना करीब आ जाऊँ,
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10:36 - 10:39तो आपको भय महसूस होगा।
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10:39 - 10:41लेकिन अगर मैं आपके कंधे से कंधा मिला कर चलूँ,
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10:41 - 10:43चाहे आपको बिल्कुल छूते हुये भी,
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10:43 - 10:45तो कोई समस्या नहीं है।
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10:45 - 10:47अगल बगल चलते समय आखिर कौन लडता है?
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10:47 - 10:50इसिलिये, जब मसले हल करते समय, स्थिति कठिन हो जाती है,
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10:50 - 10:52लोग जंगलों में पद-यात्रा के लिये निकल जाते हैं।
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10:52 - 10:54तो मुझे ये विचार आया कि
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10:54 - 10:56क्यों न मैं प्रेरित करूँ
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10:56 - 10:58ऐसा रास्ता --
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10:58 - 11:01सिल्क रूट जैसा, या अप्लेशियन रास्ते के जैसा --
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11:01 - 11:03जो कि ठीक वो ही हो
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11:03 - 11:05जो अब्राहम ने लिया था।
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11:05 - 11:07लोगों ने कहा, "ये पागलपन है। नहीं हो सकता।
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11:07 - 11:10तुम अब्राहम के रास्ते पर नहीं चल सकते। ये बहुत खतरनाक है।
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11:10 - 11:12आपको तमाम सारी सीमाओं को पार करना होगा।
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11:12 - 11:14ये मध्य-पूर्व के करीब दस अलग अलग देशों से गुज़रता है,
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11:14 - 11:16क्योंकि ये उन सब को जोडता है।"
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11:16 - 11:18तो हमने हार्वार्ड में इस विचार पर अध्ययन किया।
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11:18 - 11:20बारीकी से इसे समझा।
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11:20 - 11:22और फ़िर कुछ साल पहले, हम ने एक दल बना कर,
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11:22 - 11:24करीब १० देशों के २५ लोगों का,
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11:24 - 11:26ये देखने का फ़ैसला किया कि क्या हम अब्राहम के रास्ते पर चल पायेंगे,
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11:26 - 11:29उनके जन्मस्थान उर्फ़ा शहर से शुरु कर,
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11:29 - 11:32जो दक्षिणी तुर्की, उत्तरी मेसोपोटामिया में है।
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11:32 - 11:35तो हमने एक बस ली और थोडी पैदल यात्रा के उपरांत
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11:35 - 11:37हम हर्रान पहुँचे,
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11:37 - 11:40जहाँ से, बाइबिल के अनुसार, उन्होंने अपनी यात्रा शुरु की थी।
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11:40 - 11:42फ़िर हमने सीमा पार की और सीरिया गये, फ़िर अलेप्पो,
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11:42 - 11:44जिसका नाम अब्राहम पर ही पडा है।
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11:44 - 11:46हम दमसकस गये,
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11:46 - 11:48जिसका इतिहास अब्राहम से जुडा है।
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11:48 - 11:51फ़िर हम उत्तरी जोर्डन गये,
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11:51 - 11:53येरुसलम गये,
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11:53 - 11:56जो कि पूरी तरह से अब्राहम से बारे में है, फ़िर बेतलेहम,
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11:56 - 11:58और फ़िर आखिर में वहाँ जहाँ वो दफ़न हैं,
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11:58 - 12:00हब्रोन में।
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12:00 - 12:02तो हम लगभग गर्भाशय से कब्र तक गये।
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12:02 - 12:05हमने ये दिखाया कि ऐसा हो सकता है। ये बहुत ही गजब की यात्रा थी।
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12:05 - 12:07आपसे एक प्रश्न पूछता हूँ।
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12:07 - 12:09आप में से कितनों को ऐसा अनुभव हुआ है
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12:09 - 12:11कि किसी अजनबी जगह में,
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12:11 - 12:13या अजनबी देश में,
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12:13 - 12:16पूरी तरह से, सौ प्रतिशत अनजान व्यक्ति,
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12:16 - 12:19आप तक आये और आपसे प्यार की दो बात करे,
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12:19 - 12:21आपको अपने घर बुलाये, कुछ खातिरदारी करे,
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12:21 - 12:23कॉफ़ी पिलाये, या फ़िर खाने का निमंत्रण दे?
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12:23 - 12:25आप में से कितनों के साथ ऐसा हुआ है?
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12:25 - 12:27देखिये यही है मुद्दे की बात,
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12:27 - 12:29जो अब्राहम-पथ में निहित है।
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12:29 - 12:31क्योंकि आप यही होता पाते है, जब आप मध्य-पूर्व के इन गाँवों मे जाते हैं
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12:31 - 12:33जहाँ आप बुरे बर्ताव की आशा रखते हैं,
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12:33 - 12:35और आपको आश्चर्यजनक स्वागत मिलता है,
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12:35 - 12:37और सब अब्राहम से जुडे होने से।
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12:37 - 12:39अब्राहम के नाम पर,
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12:39 - 12:41"आइये मैं आपको कुछ खाने को देता हूँ।"
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12:41 - 12:43तो हमें ये पता लगा कि
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12:43 - 12:46अब्राहम महज एक किताबी किरदार नहीं है इन लोगों के लिये,
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12:46 - 12:49वो जीवित है, उनके बीच रोज़ाना।
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12:49 - 12:51और संक्षेप में कहूँ,
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12:51 - 12:53तो पिछले कुछ सालों में,
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12:53 - 12:55हज़ारों लोगों ने
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12:55 - 12:57अब्राहम-पथ के कुछ भागों पर
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12:57 - 12:59मध्य-पूर्व में चलना शुरु कर दिया है,
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12:59 - 13:02वहाँ के लोगों का स्वागत-सत्कार स्वीकार करते हुए।
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13:02 - 13:04उन्होने चलना शुरु किया है
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13:04 - 13:06इज़रायल और फ़िलिस्तीन में,
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13:06 - 13:08जोर्डन में, तुर्की में, सीरिया में।
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13:08 - 13:10ये बेहद अलग अनुभव है।
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13:10 - 13:12आदमी, औरत, युवा, वृद्ध --
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13:12 - 13:15आदमियों से ज्यादा औरतें, सच में।
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13:15 - 13:17और जो चल नहीं सकते,
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13:17 - 13:19जो वहाँ अभी तक नहीं जा सकते,
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13:19 - 13:21उन लोगों ने पद-यात्राएँ आयोजित करना शुरु कर दिया है
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13:21 - 13:23अपने शहरों, और अपने ही देशों मे।
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13:23 - 13:25सिनसिनाती में, उदाहरण के लिये, एक पद-यात्रा आयोजित होती है
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13:25 - 13:27एक चर्च से एक मस्जिद से होते हुए, एक यहूदी मंदिर तक
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13:27 - 13:29और फ़िर सब साथ में अब्राहम-भोज करते है।
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13:29 - 13:31उसे अब्राहम पथ दिवस कहा जाता है।
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13:31 - 13:33साओ पालो, ब्राज़ील में तो ये वार्षिक उत्सव बन चुका है,
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13:33 - 13:35हज़ारों लोगों के दौडने के लिये,
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13:35 - 13:37एक कल्पित अब्राहम पथ पर,
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13:37 - 13:39अलग अलग समुदायों को जोडने के लिये।
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13:39 - 13:42मीडिया भी इस पर खूब लिखती है, उन्हें ये बेहद पसंद है।
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13:42 - 13:44वो अपना ध्यान इस पर लुटाते है
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13:44 - 13:46क्योंकि ये देखने में बेहतरीन है,
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13:46 - 13:48और इस विचार को आगे बढाता है,
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13:48 - 13:50कि अब्राहम की तरह ही स्वागत
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13:50 - 13:52और दया की भावना अजनबियों के प्रति रखी जाये।
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13:52 - 13:54और अभी कुछ हफ़्ते पहले ही,
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13:54 - 13:56एन.पी.आर ने इस पर कहानी लिखी थी।
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13:56 - 13:58पिछले महीने,
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13:58 - 14:00इस पर गार्डियन अखबार ने लिखा था,
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14:00 - 14:03मैनचेस्टर से निकलने वाले गार्डियन ने --
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14:03 - 14:06पूरे दो पन्नों की रपट।
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14:06 - 14:09और उन्होंने एक ग्रामीण का संदेश भी शामिल किया था
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14:09 - 14:12जिसने कहा, "ये पद-यात्रा हमें दुनिया से जोडती है।"
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14:12 - 14:15उसने कहा कि ये एक रोशनी की तरह है जो हमारे जीवन में उजाला करती है
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14:15 - 14:17हमें आशा दे कर।
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14:17 - 14:19और देखिये इसी सब पर ये आधारित है।
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14:19 - 14:22मगर ये सिर्फ़ मनोवैज्ञानिक नहीं है,
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14:22 - 14:24ये आर्थिक भी है,
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14:24 - 14:26क्योंकि जब लोग चलते है, तो वो पैसे भी खर्च करते हैं।
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14:26 - 14:29और उम अहमद नाम की इस महिला,
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14:29 - 14:32जो कि उत्तरी जोर्डन में इस रास्ते पर ही रहती है।
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14:32 - 14:34ये बेहद गरीब है।
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14:34 - 14:37काफ़ी हद तक दृष्टि-विहीन है, उसका पति काम नहीं कर सकता है,
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14:37 - 14:40और उस के सात बच्चे हैं।
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14:40 - 14:42मगर वो एक काम कर सकती है - खाना पकाना।
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14:42 - 14:45तो उसने पद-यात्रियों के दलों के लिये खाना पकाना शुरु कर दिया है,
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14:45 - 14:48जो उसके गाँव से निकलते है, और उसके घर में खाना खाते हैं।
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14:48 - 14:50वो ज़मीन पर बैठते है।
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14:50 - 14:52उस के पास मेज़ ढकने का कपडा तक नहीं है।
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14:52 - 14:54और वो बहुत ही स्वादिष्ट खाना पकाती है
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14:54 - 14:57जो कि आसपास के खेतों में उगने वाले मसालों से बना होता है।
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14:57 - 14:59और इस वजह से और भी पद-यात्री वहाँ आते हैं।
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14:59 - 15:01और अब तो उसने पैसे कमाने भी शुरु कर दिये है,
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15:01 - 15:03अपने परिवार के सहारे के लिये।
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15:03 - 15:06और उसने वहाँ हमारी टीम को बताया,
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15:06 - 15:09"आपने मुझे उस गाँव में इज़्ज़्त दिलायी है
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15:09 - 15:11जहाँ एक समय पर लोग
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15:11 - 15:13मेरी तरफ़ देखने में भी झिझकते थे।"
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15:13 - 15:16ये है अब्राहम-पथ की शक्ति।
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15:16 - 15:18और ऐसे कई सौ समुदाय है
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15:18 - 15:21पूरे मध्य-पूर्व में , इस रास्ते के आसपास।
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15:22 - 15:25देखिये इसमें संभावना है पूरा मुद्दा बदल देने की
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15:25 - 15:27और मुद्दा बदलने के लिये आपको माहौल बदलना होगा,
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15:27 - 15:29जिस तरह हम देखते हैं--
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15:29 - 15:31माहौल बदलना होगा
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15:31 - 15:34दुश्मनी से दोस्ती में
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15:34 - 15:37आतंकवाद से पर्यटन में।
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15:37 - 15:39और उस हिसाब से, अब्राहम पथ
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15:39 - 15:41मुद्दा बदलने की संभावना से ओत-प्रोत है।
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15:41 - 15:43चलिये मैं आपको कुछ दिखाता हूँ।
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15:43 - 15:45मेरे पास एक छोटा सा बाँजफ़ल है
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15:45 - 15:47जो मैनें ऐसे ही रास्ते पर चलते हुए उठा लिया था
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15:47 - 15:49इस साल की शुरुवात में।
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15:49 - 15:51अब ये फ़ल बलूत के पेड से जुडा है, बिलकुल --
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15:51 - 15:53क्योंके ये उस पर उगता है,
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15:53 - 15:55जो कि अब्राहम से जुडा है।
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15:55 - 15:57ये पथ आज इस फ़ल की तरह है;
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15:57 - 15:59अपने शुरुवाती दौर में।
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15:59 - 16:01और बलूत का पूरा पेड कैसा दिखेगा?
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16:01 - 16:03जब मैं अपने बचपन के बारे में सोचता हूँ,
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16:03 - 16:05जिसका काफ़ी बडा हिस्सा मैने, शिकागो में पैदा होने के बावजूद,
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16:05 - 16:07यूरोप में गुज़ारा।
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16:07 - 16:09अगर आप
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16:09 - 16:11मान लीजिये, कि लंदन के खंडहरों
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16:11 - 16:14में १९४५ मे, या फ़िर बर्लिन मे, गये होते,
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16:14 - 16:16तो आपने कहा होता,
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16:16 - 16:18आज से साठ साल बाद,
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16:18 - 16:20ये धरती का सबसे शांत, सबसे धनी इलाका होगा,"
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16:20 - 16:22तो लोग सोचते कि
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16:22 - 16:24आप निश्चय ही पागल हैं।
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16:24 - 16:28मगर ऐसा हुआ - यूरोप की एक साझी पहचान के चलते,
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16:28 - 16:30और एक साझी अर्थव्यवस्था के चलते।
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16:30 - 16:33तो मेरा प्रश्न है, कि यदि ये यूरोप में किया जा सकता है,
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16:33 - 16:35तो मध्य-पूर्व में क्यों नहीं?
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16:35 - 16:37क्यों नहीं, जबकि वहाँ भी एक साझी पहचान है --
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16:37 - 16:39जो कि अब्राहम की कहानी से आती है --
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16:39 - 16:41और ऐसी साझी अर्थव्यवस्था से
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16:41 - 16:44जो कि पर्यटन पर टिकी हो?
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16:45 - 16:47मैं अंत में यही कहूँगा कि
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16:47 - 16:50पिछले ३५ सालों में,
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16:50 - 16:52मैने काम किया है
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16:52 - 16:54कुछ बहुत ही खतरनाक, कठिन और उलझे हुए विवादों
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16:54 - 16:56- पूरे विश्व में,
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16:56 - 16:59और आज तक मैं ऐसे विवाद को नहीं देख सका
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16:59 - 17:02जिसे देख कर मुझे लगा हो कि ये हल नहीं हो पायेगा।
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17:02 - 17:04बिलकुल, ये आसान नहीं है,
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17:04 - 17:06लेकिन ये संभव है।
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17:06 - 17:08ऐसा दक्षिणी अफ़्रीका में किया गया है।
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17:08 - 17:10उत्तरी आयरलैण्ड में भी किया गया है।
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17:10 - 17:12और ऐसा कहीं भी किया जा सकता है।
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17:12 - 17:14सब कुछ हम पर ही निर्भर करता है।
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17:14 - 17:17हमारा ही कर्तव्य है कि हम तीसरा पक्ष बनें।
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17:17 - 17:19तो मैं आप को आमंत्रित करता हूँ कि
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17:19 - 17:21तीसरे पक्ष की भूमिका निभाने को
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17:21 - 17:23एक छोटी शुरुवात के रूप में देखें।
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17:23 - 17:25थोडी ही देर में हम एक छोटा सा मध्यांतर लेंगे।
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17:25 - 17:27उस में किसी ऐसे से मिलिये
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17:27 - 17:30जो दूसरी संस्कृति, दूसरे देश से हो,
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17:30 - 17:32अलग जाति से हो, कुछ अलग हो,
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17:32 - 17:35और उनके साथ बातचीत कीजिये; उन्हें ध्यान से सुनिये।
-
17:35 - 17:37यही तीसरे पक्ष का कार्य है।
-
17:37 - 17:39यही अब्राहम के नक्श-ए-कदम पर चलना है।
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17:39 - 17:41टेडवार्ता की बाद,
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17:41 - 17:43क्यों न एक टेडयात्रा भी करें?
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17:43 - 17:45जाते जाते मैं आपको
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17:45 - 17:47तीन संदेश दे कर जाऊँगा।
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17:47 - 17:50एक, ये कि शांति का राज़ है
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17:50 - 17:53तीसरा पक्ष।
-
17:53 - 17:55और तीसरा पक्ष मै आप,
-
17:55 - 17:57हम में हर एक है,
-
17:57 - 17:59और एक छोटे से कदम से ही,
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17:59 - 18:02हम दुनिया को बदल सकते है, उसे
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18:02 - 18:05शांति के और करीब ला सकते हैं।
-
18:05 - 18:07एक पुरानी अफ़्रीकन कहावत है:
-
18:07 - 18:09"अगर मकडियों के जाले एकजुट हो जायें,
-
18:09 - 18:12तो वो शेर को भी रोक सकते हैं।"
-
18:12 - 18:14अगर हम सब एकत्र कर सकें,
-
18:14 - 18:16अपने तीसरे पक्ष के जाले,
-
18:16 - 18:19तो हम युद्ध के शेर को भी रोक सकते हैं।
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18:19 - 18:21बहुत बहुत धन्यवाद।
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18:21 - 18:23(तालियाँ अभिवादन)
- Title:
- विलियम ऊरी: 'ना' से 'हाँ' का सफ़र
- Speaker:
- William Ury
- Description:
-
'गेटिंग टू येस' के लेखक विलियम ऊरी एक सहज और साधारण (पर आसान नहीं) सुझाव देते हैं कठिन से कठिन समय में भी मिलझुल कर सहमति बनाने का - चाहे पारिवारिक कलह हो, या फ़िर मध्य-पूर्व देशों की बडी समस्या।
- Video Language:
- English
- Team:
- closed TED
- Project:
- TEDTalks
- Duration:
- 18:24