(अभी भी) उपनिवेशवाद को रूमानी पक्ष से क्यूँ देखा जाता है?
-
0:01 - 0:05मैं वादा करता हूँ कि मैं गाऊँगा नहीं।
मैं आप का इससे बचाव करूंगा । -
0:05 - 0:08मैं एक इतिहासकार हूँ,
-
0:09 - 0:12दर्शनशास्त्र में पृष्ठभूमि के साथ,
-
0:12 - 0:17और मेरे अनुसंधान का मुख्य क्षेत्र है
दक्षिण-पूर्व एशिया का इतिहास, -
0:17 - 0:21उन्नीसवी सदी औपनिवेशिक
दक्षिण-पूर्व एशिया को मध्य नज़र रखते हुए। -
0:21 - 0:22पिछले कुछ सालोंन से
-
0:22 - 0:29मैं उन विचारों के इतिहास को ढूँढ रहा हूँ,
-
0:29 - 0:32जो हमारे दृष्टिकोण को आकार देते हैं,
-
0:32 - 0:34जिस तरीक़े से हम दक्षिण-पूर्व एशिया में,
-
0:34 - 0:37अपने आप को देखते हैं,
अपने आप को समझते हैं। -
0:37 - 0:43अब एक ऐसी चीज़ है, जो मैं,
एक इतिहासकार कि तरह -
0:43 - 0:44समझ नहीं पाता,
-
0:44 - 0:48और यह एक ऐसी चीज़ है,
जो मुझे काफ़ी लम्बे समय से तंग कर रही है। -
0:48 - 0:55यह चीज़ है, की क्यूँ, और कैसे, कुछ विचार
-
0:55 - 0:58कभी ख़त्म नहीं होते।
-
0:59 - 1:00और मुझे नहीं पता क्यूँ,
-
1:01 - 1:02विशेष में,
-
1:02 - 1:08मैं समझना चाहता हुँ, कि
उत्तर औपनिवेशिक एशिया में क्यूँ कुछ लोग, -
1:08 - 1:14सब नहीं, पर क्यूँ कुछ लोग,
-
1:14 - 1:20अपने औपनिवेशिक भूतकाल को अच्छा मानते हैं,
-
1:20 - 1:23उसको गुलाबी नज़रों से देखते हैं
-
1:23 - 1:28जैसे की वह कोई अच्छा या सुहाना समय था,
-
1:28 - 1:34जबकि इतिहासकारों को
उस समय की हिंसा और क्रूरता -
1:34 - 1:35और अत्याचार
-
1:35 - 1:38और इस औपनिवेशिक अनुभव
कि गंदी सचाइयाँ पता हैं। -
1:38 - 1:42चलो ऐसे सोचते हैं। सोचो मैंने अपने लिए
काल यंत्र बनाया। -
1:42 - 1:43(बीप बूप)
-
1:43 - 1:46काल जहाज़ बनाया,
-
1:46 - 1:48अपने आप को मैं 1860 में भेजता हुँ,
-
1:48 - 1:50पैदा होने के एक शताब्दी पहले।
-
1:53 - 1:56अच्छा तो मैं अपने पैदा होने से
सौ साल पहले चला गया। -
1:56 - 2:01अब अगर मैं औपनिवेशिक
दक्षिण-पूर्व एशिया में चला जाऊँ, -
2:01 - 2:02उन्नीस्वी सदी में,
-
2:03 - 2:05मैं प्राध्यापक नहीं होता।
-
2:05 - 2:07इतिहासकारों को पता है ये।
-
2:08 - 2:10लेकिन, फ़िर भी,
-
2:11 - 2:15ऐसे कुछ लोग हैं जो
अभी भी इस विचार को मान्ना चाहते हैं -
2:15 - 2:18कि भूतकाल इतना गंदा नहीं था
-
2:19 - 2:22कि वहाँ एक रोमानी पक्ष था
-
2:22 - 2:24अब यहाँ, एक इतिहासकार की तरह,
-
2:24 - 2:27मैं इतिहास की सीमाओं का सामना करता हूँ।
-
2:27 - 2:29क्यूँकि मैं विचारों की निशानी
ढूँढ सकता हूँ। -
2:29 - 2:34मैं कुछ टकसाली का स्रोत ढूँढ सकता हूँ।
-
2:34 - 2:38मैं आपको बता सकता हूँ किसने सोचा,
कब और कहाँ सोचा, और किस किताब में लिखा। -
2:38 - 2:40पर एक काम है जो मैं नहीं कर सकता:
-
2:40 - 2:46मैं किसी के दिमाग में घुसके,
-
2:47 - 2:48उनका मन नहीं बदल सकता।
-
2:50 - 2:53मुझे लगता है, इस कारण, पिछले कुछ सालों से
-
2:53 - 2:57मेरी मनोविज्ञान जैसी चीज़ों की तरफ़
-
2:57 - 2:59दिलचस्पी बढ़ गयी है;
-
2:59 - 3:03क्यूँकि इन क्षेत्रों में,
विद्वान विचारों की दृढ़ता देखते हैं। -
3:03 - 3:06क्यूँ कुछ लोगों के दिमाग़ में
पूर्वधारणाएँ होती हैं? -
3:06 - 3:10क्यूँ होती है नफ़रत, क्यूँ लगता है डर?
-
3:10 - 3:15अफ़सोस की बात है कि
हम अभी भी ऐसी दुनिया में रहते हैं, -
3:15 - 3:18जो स्त्री के ख़िलाफ़ है।
जातिवाद अभी भी है, डर भी। -
3:18 - 3:21जैसे की, इस्लामोफोबिया
तो अब एक शब्द ही बन गया है। -
3:21 - 3:23और यह विचार
हमारे दिमाग में क्यूँ रह जाते हैं? -
3:24 - 3:28काफ़ी विद्वानों का मान्ना है,
कि जब हम दुनिया को देखते हैं, -
3:28 - 3:31हम बार-बार कुछ विशिष्ट
विचारों के सीमित तालाब -
3:31 - 3:32पर जाके गिर पड़ते हैं,
-
3:32 - 3:36ऐसे बुनियादी विचारों का तालाब,
जिनको कोई चुनौती नहीं देता। -
3:37 - 3:41अब अपने आप को देखो,
कैसे हम, दक्षिण-पूर्व एशिया वाले -
3:41 - 3:45अपने आप को
पूरी दुनिया के सामने दर्शाते हैं। -
3:45 - 3:46देखिए हम कितनी बार
-
3:46 - 3:50जब अपने आप के बारे में, अपने विचारों
एवं अपनी पहचान के बारे में बात करते हैं, -
3:50 - 3:54हम बार-बार उन्ही विचारों के समूह
-
3:54 - 3:56पर जाके गिर पड़ते हैं
-
3:56 - 4:00जो इतिहास से चलते आ रहे हैं।
-
4:00 - 4:03बहुत ही सरल उदाहरण:
-
4:03 - 4:04हम दक्षिण-पूर्व एशिया
-
4:04 - 4:07में रहते हैं, जो पूरी दुनिया
के पर्यटकों में काफ़ी मशहूर है। -
4:07 - 4:10वैसे मुझे नहीं लगता है कि यह गलत है।
-
4:10 - 4:13मुझे तो अच्छा लगता है कि पर्यटक
यहाँ दक्षिण-पूर्व एशिया आते हैं, -
4:13 - 4:16क्यूँकि यह अपना दुनिया का नज़रिया
बढ़ाने का और दुनिया भर की -
4:16 - 4:18संस्कृतियों से मिलने का एक तरीक़ा है।
-
4:18 - 4:23पर एक बार देखो कैसे हम अपने आप को
-
4:23 - 4:26पर्यटक अभियानों एवं पर्यटक विज्ञापनों
से दर्शाते हैं। -
4:26 - 4:30नारियल का पेड़, केले का पेड़
और एक बंदर तो अवश्य होंगे। -
4:30 - 4:31(हँसी)
-
4:31 - 4:33और बंदर को तो पैसे भी नहीं मिलते।
-
4:33 - 4:35(हँसी)
-
4:35 - 4:39देखो कैसे हम अपने आप को दर्शाते हैं।
कैसे प्रकृति को दर्शाते हैं। -
4:39 - 4:41कैसे ग्रामीण इलाक़ों को दर्शाते हैं।
-
4:41 - 4:45कैसे अपनी खेती-बाड़ी दर्शाते हैं।
-
4:45 - 4:47अपने टीवी शो देखिए।
-
4:47 - 4:50अपने नाटक देखिए।अपनी फ़िल्में देखिए।
-
4:50 - 4:53यह काफ़ी मामूली चीज़ है,
ख़ास तौर पर दक्षिण-पूर्व एशिया में, -
4:53 - 4:57कि जब आप ये शो देखेंगे,
-
4:57 - 5:00अगर कोई किसी ग्रामीण इलाक़े से हैं,
तो वह हमेशा बदसूरत होंगे, -
5:00 - 5:04अजीब होंगे, मूर्ख होंगे,
-
5:04 - 5:05बे पढ़े-लिखे होंगे।
-
5:06 - 5:10जैसे कि ग्रामीण इलाक़ों के पास
देने के लिए कुछ नहीं है। -
5:11 - 5:13हम प्रकृति को कैसे देखते हैं,
-
5:13 - 5:15जितनी की बात करलें,
-
5:15 - 5:21जितनी भी एशियाई दर्शन, मान एवं संस्कृति
की बात करलें, -
5:21 - 5:26जितना भी अपनी प्रकृति
से अच्छे संबंधों की बात करलें, -
5:26 - 5:30हम दक्षिण-पूर्व एशिया वाले
प्रकृति के प्रति कैसा व्यवहार दिखाते हैं? -
5:30 - 5:35हम प्रकृति को ऐसी चीज़ मानते हैं
जिसको बस इस्तेमाल करके हराना है। -
5:36 - 5:37और यही वास्तविकत्ता है।
-
5:38 - 5:39तो हम जिस तरीक़े से
-
5:40 - 5:42उत्तर औपनिवेशिक दक्षिण-पूर्व
-
5:42 - 5:44एशिया में रहते हैं,
वह मेरे लिए काफ़ी तरीक़ों से -
5:45 - 5:52ऐसे विचार, ऐसे टकसाली प्रकट करता है,
-
5:53 - 5:55जिनका अपना ख़ुदका इतिहास होता है।
-
5:55 - 5:59ग्रामीण इलाक़े
सिर्फ़ प्रयोग करने योग्य हैं, -
5:59 - 6:03एवं ग्रामीण लोग बे पढ़े-लिखे हैं,
यह ऐसे विचार हैं, -
6:03 - 6:05जिनकी बुनियाद मैं,
और मेरे जैसे बाकी इतिहासकार -
6:05 - 6:08ढूँढ सकते हैं।
-
6:08 - 6:11और यह ऐसे समय पर आए थे,
-
6:13 - 6:14जब दक्षिण-पूर्व एशिया का शासन
-
6:15 - 6:19औपनिवेशिक पूंजीवाद के माध्यम से होता था।
-
6:20 - 6:22और कितने तरीक़ों में हम अभी भी
-
6:23 - 6:24इन विचारों में मानते हैं।
-
6:24 - 6:26अब यह हमारे हिस्से बन गए हैं।
-
6:26 - 6:28लेकिन हम
-
6:28 - 6:31अपने से यह नहीं पूछते,
-
6:31 - 6:33मेरा दुनिया का नज़ारा ऐसा कैसे हुआ?
-
6:33 - 6:36मेरी प्रकृति के प्रति दृष्टि ऐसी कैसे हुई?
-
6:36 - 6:38मेरा ग्रामीण इलाकों
का नज़ारा ऐसा कैसे हुआ? -
6:38 - 6:42मैं एशिया को इतना विदेशी,
इतना अनोखा क्यूँ मानता हूँ? -
6:42 - 6:44और ख़ास तौर से हम दक्षिण-पूर्वी एशियाई को
-
6:44 - 6:48अपने आप को अनोखा दिखाने से प्यार करते हैं।
-
6:49 - 6:54हमने अपनी दक्षिण-पूर्वी एशियाई पहचान को
एक फ़ैन्सी ड्रेस बना के रख दिया है। -
6:54 - 6:58अब तो हम किसी भी दुकान जाके
-
6:58 - 7:02अपनी दक्षिण-पूर्वी एशियाई
फ़ैन्सी ड्रेस ख़रीद सकते हैं -
7:02 - 7:04और तो और, हम इस पहचान को बढ़ावा देते हैं,
-
7:05 - 7:07और अपने आप से यह नहीं पूछते,
की हमारी यह पहचान -
7:08 - 7:10कब और कैसे आई।
-
7:11 - 7:12इस पहचान का भी अपना इतिहास है।
-
7:13 - 7:15और अब मुझे लगने लगा है
-
7:16 - 7:20एक इतिहासकार कि तरह,
-
7:20 - 7:23मैं अकेले काम नहीं कर सकता,
-
7:24 - 7:26मैं अब बिलकुल भी अकेले काम नहीं कर सकता,
-
7:26 - 7:31मेरा संग्रह बनाने का,
-
7:31 - 7:36और इन सब विचारों की जड़ ढूँढने का,
इनकी निशानी खींचने का, -
7:36 - 7:37और फिर किसी किताब में छापने का
-
7:37 - 7:39कोई फ़ायदा नहीं है,
-
7:39 - 7:41जिसे बस कुछ तीन इतिहासकार पढ़ें।
-
7:41 - 7:43कोई भी फ़ायदा नहीं है।
-
7:43 - 7:48मेरी इसको इतना महत्वपूर्ण मानने की वजह है
कि मुझे लगता है कि दक्षिण-पूर्व एशिया में, -
7:48 - 7:52आने वाले सालों में,
-
7:52 - 7:56अपूर्व एवं विशाल बदलाव आएँगे,
-
7:56 - 7:58ग्लोबलाइज़ेशन,
-
7:58 - 8:02दुनिया भर की राजनीतियों, चौथी औद्योगिक
-
8:02 - 8:03क्रांति और टैकनोलोजी के असर
-
8:03 - 8:05की वजह से।
-
8:05 - 8:08हम जिस दुनिया को जानते हैं, वह बदल जाएगी।
-
8:09 - 8:11पर हमें, इस परिवर्तन को
अपने अनुकूल बनाने के लिए, -
8:11 - 8:13इसके लिए तैयार रहने के लिए,
-
8:13 - 8:16अपनी सोच अलग बनानी पड़ेगी,
-
8:16 - 8:19और हम बार बार उन्हीं थके-हारे टकसाली
-
8:19 - 8:26पर वापस जाके नहीं गिर सकते।
-
8:26 - 8:28क्यूँकि अब सबको अलग सोच बनानी है,
-
8:28 - 8:31इसलिए अब हम इतिहासकार
अकेले काम नहीं कर सकते। -
8:31 - 8:35मुझे मनोविज्ञानों, चिकित्सकों
-
8:35 - 8:37समाजशास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों एवं
-
8:37 - 8:41मनोविज्ञानियों के साथ
मिल जुलके काम करने की ज़रूरत है। -
8:41 - 8:44सबसे ज़्यादा कलाकारों
एवं संचार के माध्यम वालों -
8:44 - 8:46के साथ काम करने की ज़रूरत है,
-
8:46 - 8:49क्यूँकि इस ही मंच पर,
-
8:49 - 8:52विश्वविद्यालय के बाहर
-
8:52 - 8:56इन वाद-विवादों को लेने की ज़रूरत है।
-
8:57 - 8:59और इन वाद-विवादों को
अभी के अभी होना चाहिए, -
9:00 - 9:06क्यूँकि हमें समझने की ज़रूरत है
कि अभी जैसा हाल है, -
9:06 - 9:09यह कोई निश्चित लोहे की
-
9:10 - 9:12ऐतिहासिक रेल पटरी नहीं है,
-
9:12 - 9:15बल्कि ऐसे कई सारे इतिहास हैं,
विचार हैं, जोकि -
9:15 - 9:19कबके भूले जा चुके हैं।
-
9:20 - 9:24मेरे जैसे इतिहासकारों का काम ही
इन भूले जा चुके वालों की खोज करना है, -
9:24 - 9:28लेकिन अब हमें यह काम
मिल जुड़के करना पड़ेगा। -
9:29 - 9:34तो चलो उस काल यंत्र
के उदाहरण पर वापस चलते हैं। -
9:34 - 9:38तो उनीस्वी सदी है और समय औपनिवेशिक है,
-
9:38 - 9:40और कोई इंसान सोच रहा है कि,
-
9:40 - 9:42“क्या इस साम्राज्य का कभी अंत होगा?
-
9:42 - 9:43क्या इस सब का कभी अंत होगा?
-
9:43 - 9:45क्या हमें कभी स्वतंत्रता मिलेगी?”
-
9:46 - 9:48अब वही इंसान अपना काल यंत्र बनाता है —
-
9:48 - 9:49(बीप बूप)
-
9:50 - 9:51भविष्य में जाता है,
-
9:51 - 9:56और यहाँ उत्तर औपनिवेशिक
दक्षिण-पूर्व एशिया में आजाता है। -
9:58 - 10:00वह इंसान आगे-पीछे देखता है,
-
10:00 - 10:01और देखता है,
-
10:01 - 10:02की हाँ,
-
10:04 - 10:06शाही झंडे तो चले गये,
-
10:07 - 10:10शाही जहाज़ चले गये, औपनवैशिक सेना चली गयी।
-
10:10 - 10:13अब नए झंडे हैं, नए देश हैं।
-
10:13 - 10:15आख़िर कार दुनिया में स्वतंत्रता है?
-
10:15 - 10:17पर क्या सच में स्वतंत्रता है?
-
10:17 - 10:22फ़िर वह इंसान पर्यटक विज्ञापन,
केले का पेड़, -
10:23 - 10:27नारियल का पेड़ और बंदर देखता है।
-
10:27 - 10:29फ़िर वह टीवी पर देखता है कि कैसे
-
10:31 - 10:35दक्षिण-पूर्वी एशिआई, मतलब हम लोग, बार-बार
-
10:35 - 10:38दक्षिण-पूर्व एशिआई को
अजीब एवं अनोखा दिखाते हैं। -
10:38 - 10:42और फ़िर वह इंसान यही सोचेगा,
-
10:42 - 10:45कि उपनिवेशवाद तो ख़त्म हो गया,
-
10:47 - 10:48लेकिन, हम, अभी भी,
-
10:49 - 10:53कितने सारे तरीकों में,
-
10:54 - 10:58ऊनीस्वी सदी की परछाइयों में रह रहे हैं।
-
10:59 - 11:04और यही मेरा निजी लक्ष्य बन गया है।
-
11:04 - 11:07मेरी इतिहास को इतना महत्वपूर्ण की वजह
-
11:07 - 11:10है कि मुझे लगता है कि, हम सबको
-
11:10 - 11:12इतिहास के पीछे की कहानी जान्नी चाहिए,
-
11:12 - 11:17और फिरसे, सबको, अपनी पहचान,
हम कौन हैं, हम क्या हैं, इस सब पर -
11:17 - 11:19अच्छे से बात करनी चाहिए।
-
11:19 - 11:22हम बोलते हैं कि, “हाँ, तुम्हारा
अलग नज़रिया हैं, और मेरा अलग है।” -
11:22 - 11:23और यह एक हद तक सही भी हैं।
-
11:23 - 11:27लेकिन हमारा नज़रिया
कभी पूरी तरह से हमारा नहीं होता। -
11:27 - 11:30हम सब सामाजिक, ऐतिहासिक प्राणी हैं।
-
11:30 - 11:31आप, मैं, हम सब।
-
11:31 - 11:33हम सब में इतिहास के टुकड़े हैं।
-
11:33 - 11:36जो भाषा हम बोलते हैं,
जो कहानियाँ हम लिखते हैं, -
11:36 - 11:37जो फ़िल्में हम देखते हैं, हम जो छवियाँ
-
11:37 - 11:41देखते हैं, जब अपने बारे में सोचते हैं,
सब इतिहास के टुकड़े हैं। -
11:41 - 11:42हम ऐतिहासिक प्राणी हैं।
-
11:43 - 11:45हम अपने साथ इतिहास लेकर चलते हैं,
-
11:45 - 11:47और इतिहास हमें अपने साथ लेकर चलता है।
-
11:48 - 11:51पर, जबकि इतिहास
हमारी ज़िंदगी निर्धारित करता है, -
11:51 - 11:53मेरा मानना है
-
11:53 - 11:57इतिहास हमें फँसा नहीं सकता,
हमें रोक नहीं सकता, -
11:57 - 12:00और हम इतिहास के शिकार होने से बच सकते हैं।
-
12:01 - 12:02धन्यवाद।
-
12:02 - 12:04(तालियाँ)
- Title:
- (अभी भी) उपनिवेशवाद को रूमानी पक्ष से क्यूँ देखा जाता है?
- Speaker:
- फ़रीश अहमद-नूर
- Description:
-
फ़रीश अहमद-नूर जी कह रहे हैं कि उपनिवेशवाद वर्तमान में भी हमें हानि पहुँचा रहा है। जिन लोगों ने उसे बनाया उनको पीछे छोड़के अभी भी हमारी कथाओं एवं हमारी सोच में मिल-जुलकर हमें तंग कर रहा है। यह पूर्वधारणाऐं अभी भी क्यूँ रहती हैं, और कभी-कभी कामयाब क्यूँ होती हैं, इसकी जाँच करते हुए, फ़रीश जी कहते हैं कि हमें हर तरफ़ से इस सोच को त्यागना होगा जिससे लोग इसको अच्छा समझना बंद करें, और ऐसा कभी फ़िर ना हो।
- Video Language:
- English
- Team:
- closed TED
- Project:
- TEDTalks
- Duration:
- 12:18
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