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इकलौती कहानी के ख़तरे

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    मैं एक कथावाचक हूं.
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    और मैं आपको कुछ निजी कहानियां
    सुनाना चाहती हूं
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    जिन्हें मैं "इकलौती कहानी के खतरे"
    कहती हूं.
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    मैं पूर्वी नाइजीरिया के
    एक यूनीवर्सिटी कैंपस में बड़ी हुई.
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    मेरी मां बताती हैं कि मैंने दो साल की
    अवस्था में पढ़ना शुरु कर दिया था,
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    पर मुझे लगता है कि यह चार साल के आसपास हुआ होगा.
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    इस तरह मैंने जल्दी पढ़ना शुरु कर दिया.
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    और मैं ब्रिटिश व अमेरिकी बाल साहित्य पढ़ती थी.
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    मैंने लिखना भी जल्दी शुरु कर दिया.
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    जब मैं लगभग सात साल की थी तभी से मैं
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    पेंसिल और क्रेयॉन से चित्रित करके कहानियां लिखने लगी
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    जिन्हें मेरी बेचारी मां को ही पढ़ना पड़ता था.
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    मैं वैसी ही कहानियां लिख रही थी जैसी मैं उस समय पढ़ रही थी.
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    मेरी कहानियों के सारे चरित्र गोरे थे और उनकी आंखें नीली होती थीं.
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    वे बर्फ़ में खेलते थे.
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    वे सेब खाते थे.
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    (हंसी)
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    और वे मौसम के बारे में बहुत बातें करते थे,
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    जैसे सूरज निकलने पर कितना अच्छा लग रहा होता है.
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    (हंसी)
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    हांलाकि, मैं प्रारंभ से ही नाइजीरिया में ही रहती आई थी,
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    और वहां से बाहर कभी नहीं गई थी.
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    हमने बर्फ़ कभी नहीं देखी. हम आम खाते थे.
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    और हम मौसम के बारे में कभी बात नहीं करते थे,
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    क्योंकि उसकी कोई ज़रूरत नहीं थी.
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    मेरी कहानियों के चरित्र जिंजर बीयर बहुत पीते थे,
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    क्योंकि जो ब्रिटिश कहानियां मैं पढ़ती थी उनके चरित्र भी
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    जिंजर बीयर पीते थे.
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    जबकि मुझे पता भी नहीं था कि जिंजर बीयर क्या चीज थी.
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    (हंसी)
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    और आगे कई सालों तक मेरे भीतर जिंजर बीयर चखने की
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    बहुत गहरी इच्छा बनी रही.
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    पर वह दूसरी कहानी है.
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    मैं सोचती हूं कि इस सब से यह दिखाता है कि
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    कहानियाँ कैसे हम पर छाप छोड़ जाती हैं,
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    खासकर तब,
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    जब हम बच्चे हों.
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    चूंकि मैं वही पुस्तकें पढ़ा करती थी
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    जिनके चरित्र विदेशी थे,
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    इसलिए मैं आश्वस्त हो गई थी कि
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    पुस्तकों का मूल स्वभाव ही है कि उनमें विदेशी हों,
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    और ऎसे तत्व भी
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    जिनसे मैं खुद तादात्म्य का अनुभव नहीं करती थी.
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    लेकिन जब मैंने अफ़्रीकी पुस्तकें पढ़ना शुरु किया तो चीजें बदल गईं.
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    उस समय ये पुस्तकें बहुत कम उपलब्ध थीं. और जो थीं
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    वे भी विदेशी पुस्तकों जितनी आसानी से नहीं मिलतीं थीं.
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    लेकिन चिनुआ अचेबे और कमारा लाए जैसे लेखकों को पढ़ने पर
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    मेरे साहित्यबोध में सहसा बहुत बड़ा
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    परिवर्तन आया.
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    मुझे लगा कि मेरे जैसे लोग,
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    चाकलेटी कांति वाली लड़कियां
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    जिनके घुंघराले बालों से पोनीटेल नहीं बनती,
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    वे भी साहित्य का अंग हो सकते हैं.
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    मैंने उन चीजों के बारे में लिखना शुरु किया जिन्हें मैं पहचानती थी.
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    वैसे, मुझे अमेरिकी और ब्रिटिश पुस्तकों से प्रेम था.
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    उन्होंने मुझे कल्पनाशील बनाया. मेरे लिए नई दुनिया का द्वार खोला.
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    लेकिन इसका अनभिप्रेत परिणाम यह हुआ
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    कि मुझे इस बात का ज्ञान नहीं हो सका
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    कि मेरे जैसे लोगो का भी साहित्य में कोई स्थान है.
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    इस प्रकार मुझे अफ़्रीकी लेखकों की जानकारी मिलने से यह हुआ कि
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    इसने मुझे केवल एक ही तरह की पुस्तकें होती है -
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    वाली राय से बचा लिया.
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    मेरा जन्म एक पारंपरिक मध्यवर्गीय नाइजीरियाई परिवार में हुआ था.
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    मेरे पिता प्रोफ़ेसर थे.
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    मेरी मां प्रशासक के पद पर थीं.
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    और इस प्रकार, जैसा वहां चलन था,
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    हमारे घर में नौकर-चाकर थे जो पास के गांव-देहात से आते थे.
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    जब मैं आठ साल की हुई, हमारे घर में काम करने एक लड़का आया.
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    उसका नाम फ़ीडे था.
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    मेरी मां ने उसके बारे में यही बताया
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    कि उसका परिवार बहुत गरीब था.
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    मेरी मां ने उसके घर जिमीकंद, चावल,
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    और हम लोगों के पुराने कपड़े भेजे.
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    और जब कभी मैं अपना खाना छोड़ देती, तो मेरी मां कहतीं,
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    "खाना मत छोड़ो, तुम जानती हो, फ़ीडे जैसे लोगों के पास खाने को भी नहीं है".
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    तब मुझे फ़ीडे के परिवार पर बहुत दया आती थी.
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    फिर एक शनिवार को मैं उसके गांव तक गई.
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    और उसकी मां ने मुझे खूबसूरत बुनाईवाली बास्केट दिखाई,
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    जो उसके भाई ने ताड़ के रंगे हुए पत्तों से बनाई थी.
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    वह देखकर मैं हैरान रह गई.
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    मैं सोच भी नहीं सकती थी कि उसके परिवार में वास्तव में
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    कोई कुछ बना सकता था.
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    मैं सिर्फ यही सुनती आई थी कि वे बहुत गरीब थे,
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    और इस तरह मैं उनके बारे में कुछ और नहीं जान सकी थी
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    इसके सिवाय कि वे बहुत गरीब थे.
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    मेरे पास एकमात्र कहानी उनकी गरीबी की थी.
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    सालों बाद, मैंने इस बारे में सोचा जब मैं नाइजीरिया छोड़कर
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    यूनाइटेड स्टेट्स के विश्वविद्यालय में पढ़ने गई.
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    उस समय मैं 19 साल की थी.
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    मेरी अमेरिकी रूम-मेट मुझसे मिलकर बहुत अचंभित हुई.
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    उसने मुझसे पूछा कि मैंने इतनी अच्छी अंग्रेजी कहां सीखी,
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    और मुझसे यह सुनकर वह चकरा गई
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    कि अंग्रेजी नाइजीरिया की राजकीय भाषा है.
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    उसने मुझसे कहा कि वह "मेरा आदिवासी संगीत" सुनना चाहती है,
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    और उसे तब और भी निराशा हुई
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    जब मैंने उसे मेरे मराइया कैरी के टेप दिखाए.
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    (हंसी)
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    उसे यह लगता था कि मुझे स्टोव इस्तेमाल करना
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    नहीं आता होगा.
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    और मुझे उससे मिलकर ऐसा लगा जैसे मुझसे मिलने के पहले ही
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    उसे मुझपर तरस आने लगा था.
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    मेरे अफ़्रीकी होने ने उसमें मेरे प्रति
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    कृ्पा, सदाशयता, और करूणा जगा दी थी.
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    मेरी रूम-मेट के पास अफ़्रीका की एक ही कहानी थी.
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    घोर दुर्गति की कहानी.
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    इस इकलौती कहानी में कोई संभावना नहीं थी कि
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    उसमें अफ़्रीकावासी किसी तरह भी उसके समान हों.
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    उसमें दयाभाव से इतर अनुभूति की कोई संभावना नहीं थी.
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    समानता के संबंध की कोई गुंजाईश नहीं थी.
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    मैं यहाँ ये कहना कहूंगी कि अमेरिका जाने के पहले मैं खुद को
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    सचेतन रूप से एक अफ़्रीकी के रूप में नहीं देखती थी.
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    लेकिन अमेरिका में जब अफ़्रीका का ज़िक्र चलता तो सारी आंखें मुझपर टिक जातीं थीं.
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    इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि मैं नामिबिया जैसी जगहों के बारे में कुछ नहीं जानती थी.
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    लेकिन मैं अपनी इस नई पहचान से बहुत अच्छे से जुड़ गई.
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    और अब कई अर्थों में मैं स्वयं को अफ़्रीकी ही मानती हूं.
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    हांलांकि मुझे तब बहुत खीझ होती है जब
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    अफ़्रीका को एक बड़े देश के रूप में देखा जाता है.
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    इसका ताजा उदाहरण ये है कि मेरी लगभग शानदार यात्रा में
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    लागोस से दो दिन पहलेवाली उड़ान में
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    वर्जिन एयरवेज़ के विमान में उन्होंने
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    "भारत, अफ़्रीका, व अन्य देशों में" जारी परोपकारी कार्यों की जानकारी दी.
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    (हंसी)
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    एक अफ़्रीकी के रूप में अमेरिका में कुछ साल बिताने के बाद
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    मैं मेरे प्रति मेरी रूम-मेट की प्रतिक्रियाओं को समझने लगी.
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    यदि मैं नाइजीरिया में पलती-बढ़ती नहीं तो मेरे मन में भी अफ़्रीका की
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    प्रचलित छवियां ही रहतीं,
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    मुझे भी यही लगता कि अफ़्रीका एक स्थान है,
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    जहां रमणीय परिदृश्य, सुंदर जानवर,
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    और अबूझ लोग रहते हैं,
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    जो फ़िजूल में लड़ते रहते हैं, गरीबी और एड्स से मरते हैं,
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    जो अपने अधिकारों के लिए कुछ नहीं कर पाते,
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    और इस इंतजार में रहते हैं कि उन्हें
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    कोई दयालु गोरा विदेशी आकर बचाएंगे.
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    मैं अफ़्रीका को उसी प्रकार से देखती जिस तरह से मैंने
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    बचपन में फ़ीडे के परिवार को देखा था.
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    मेरे विचार से, अफ़्रीका की बेचारगी की यह इकलौती कहानी पश्चिमी साहित्य से आती है.
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    मेरे पास यहां एक उद्धरण है
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    लंदन के व्यापारी जॉन लोक ने क लिखा,
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    जो 1561 मे पश्चिमी अफ़्रीका आया,
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    और उसने अपनी यात्रा के रोचक विवरण लिखे.
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    अश्वेत अफ़्रीकावासियों के लिए वह लिखता है
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    "जंगली जानवर जो घरों में नहीं रहते",
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    वह लिखता है, "यहां ऐसे लोग भी हैं जिनके सिर नहीं हैं,
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    और जिनके मुंह और आंखें उनके वक्षस्थल में हैं".
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    इसे पढ़ते समय मैं हर बार हंस पड़ती हूं.
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    जॉन लॉक की कल्पनाशक्ति की तो दाद देनी होगी.
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    लेकिन उसकी कहानी की खास बात यह है कि
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    यह पश्चिम को अफ़्रीका की कहानियाँ बताने की
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    परंपरा की शुरुवात का निरूपण करती है.
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    ऎसी परंपरा, जो अधो-सहारा अफ़्रीका को नकारात्मक बातों से भरी,
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    असमानताओं की, अंधेकार की,
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    और इसके निवासियों को शानदार कवि
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    रुडयार्ड किपलिंग के शब्दों में
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    "आधे दैत्य, आधे शिशु" कहने की रही है.
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    और तब मुझे यह समझ में आने लगा कि कि मेरी अमेरिकी रूम-मेट ने
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    उसके पूरे जीवनकाल में
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    ऐसी ही एकतरफा कहानी के विभिन्न
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    रूप देखे-सुने होंगे,
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    जिस प्रकार मेरे एक प्रोफेसर ने
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    एक बार मुझसे कहा था कि मेरे उपन्यास "प्रामाणिक रूप से अफ़्रीकी" नही लगते थे.
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    देखिए, मैं यह स्वीकार कर लेती हूं कि मेरे उपन्यास में कुछ
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    गड़बड़ियां रही होंगी,
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    और कुछ स्थानों पर मैंने गलतियां भी की थीं.
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    लेकिन मैं यह नहीं मान सकती कि मैं
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    अफ़्रीकी प्रामाणिकता को प्राप्त करने में असफल रही थी.
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    असल में मैं यह जानती ही नहीं थी
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    कि अफ़्रीकी प्रामाणिकता का अर्थ क्या है.
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    मेरे प्रोफेसर ने मुझे बताया कि मेरे चरित्र
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    बहुत हद तक उनकी ही तरह पढ़े-लिखे
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    और मिडिल-क्लास से संबंधित थे.
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    मेरे चरित्र कार चलाते थे.
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    वे भूखे नहीं मर रहे थे.
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    इसलिए उन्हें प्रामाणिक तौर पर अफ़्रीकी नहीं कहा जा सकता था.
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    लेकिन मुझे यह भी जल्द स्वीकार कर लेना चाहिए कि मैं भी
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    ऐसी ही एक एकतरफा कहानी को मानने की दोषी हूं.
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    कुछ सालों पहले मैं अमेरिका से मैक्सिको की यात्रा पर गई थी.
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    उन दिनों अमेरिका में राजनीतिक वातावरण तनावपूर्ण था.
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    और आप्रवासन पर बहुत वाद-विवाद हो रहा था.
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    और जैसे कि अमेरिका में अक्सर होता है,
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    आप्रवासन के विषय को मैक्सिकोवासियों से जोड़ दिया गया.
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    वहां मैक्सिकोवासियों के बारे में बहुतेरी कहानियां कही जा रही थीं
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    जैसे कि ये लोग
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    स्वास्थ्य सुविधाओं को चौपट कर रहे थे,
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    सीमाओं पर सेंध लगा रहे थे,
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    उनकी गिरफ़्तारियां हो रहीं थी, ऐसी ही बातें.
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    मुझे गुआडालाहारा में पहले दिन पैदल घूमना याद है,
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    जब मैंने लोगों को काम पर जाते,
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    बाजार में टॉर्टिला बनाते, सिगरेट पीते,
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    हंसते हुए देखा.
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    यह सब देखकर मुझे हुआ आश्चर्य मुझे याद आ रहा है.
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    और फिर मैंने बहुत शर्मिंदगी भी महसूस की.
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    मुझे लगने लगा कि मैं भी मीडियावालों द्वारा
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    मैक्सिकोवासियों की रची गई छवि को सच मान बैठी थी,
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    और यह कि मैं भी मन-ही-मन उन्हें अधम आप्रवासी
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    मान चुकी थी.
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    मैंने अपने भीतर मैक्सिकोवासियों की एकतरफा कहानी घर कर ली थी
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    और ऐसा करने पर मैं बहुत लज्जित अनुभव कर रही थी.
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    तो ऐसे ही एकतरफा कहानियां बनती रहतीं हैं,
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    जो व्यक्तियों को वस्तु की तरह दिखाती हैं,
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    केवल एक वस्तु की तरह
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    बार-बार दिखातीं हैं,
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    और वही वे अंततः बन जाते हैं.
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    शक्ति की चर्चा किए बिना एकतरफा कहानी की बात करना
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    नामुमकिन है.
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    इग्बो (पश्चिमी अफ़्रीकी भाषा) में एक शब्द है,
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    और जब भी मैं शक्ति के स्वरूप के बारे में सोचती हूं,
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    तब यह शब्द "नकाली" मुझे ध्यान में आता है.
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    ये संज्ञा शब्द है जिसका कुछ-कुछ अनुवाद है
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    "दूसरों से अधिक बड़ा या महत्वपूर्ण होना".
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    हमारे आर्थिक व राजनीतिक जगत के सदृश
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    कहानियों की व्याख्या भी
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    नकाली के सिद्धांत द्वारा की जाती है.
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    वे कैसे कही जाती हैं, उन्हें कौन कहता है,
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    और जब वे कही जातीं हैं तो कितनी कही जाती हैं,
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    इस सबका निर्धारण शक्ति द्वारा ही होता है.
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    शक्ति संपन्न होना केवल किसी व्यक्ति की कहानी कहने की क्षमता तक सीमित नहीं है,
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    बल्कि उसे उस व्यक्ति की निर्णायक कहानी बनाना भी है.
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    फ़िलिस्तीनी कवि मौरीद बरघूती ने लिखा है
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    कि यदि तुम किन्ही व्यक्तियों का स्वत्व हरना चाहते हो तो
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    इसका सबसे आसान तरीका है उनकी कहानी कहो,
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    और इसे "दूसरी तरफ" कहकर शुरु करो.
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    अमेरिकी मूल निवासियों के तीरों की बात से कहानी शुरु करो,
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    ब्रिटिश दस्तों के आगमन से नहीं,
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    और तुम्हारे पास एक बिल्कुल अलग कहानी होगी.
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    कहानी की शुरुआत करो
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    अफ़्रीकी राज्यों की विफलताओं से,
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    और अफ़्रीकी राज्यों के औपनिवेशीकरण को दरकिनार कर दो
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    और तुम्हारे पास एक बिल्कुल अलग कहानी होगी.
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    मैंने हाल में ही एक विश्वविद्यालय में व्याख्यान दिया
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    जहां एक विद्यार्थी ने मुझसे कहा
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    कि यह बहुत शर्म की बात है कि
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    नाइजीरियाई पुरुष स्त्रियों का उसी प्रकार शारीरिक शोषण करते हैं
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    जिस तरह मेरे एक उपन्यास में एक पिता का चित्रण है.
  • 10:52 - 10:54
    मैंने उसे कहा कि हाल में ही मैंने एक उपन्यास पढ़ा है
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    जिसका नाम है "अमेरिकन साइको" --
  • 10:56 - 10:58
    (हंसी)
  • 10:58 - 11:00
    -- और यह बड़े शर्म की बात है कि
  • 11:00 - 11:03
    युवा अमेरिकी क्रमिक हत्यारे होते हैं.
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    (हंसी)
  • 11:07 - 11:13
    (तालियां)
  • 11:13 - 11:16
    देखिए, मैंने यह थोड़ा चिढ़कर कहा था.
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    (हंसी)
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    मैं इस तरह की बात नहीं सोच सकती थी
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    कि चुंकि मैंने ऎसा उपन्यास पढ़ा जिसका
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    एक पात्र क्रमिक हत्यारा है,
  • 11:24 - 11:26
    वह किसी भी तरह सारे अमेरिकियों का
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    चित्रण हो सकता है.
  • 11:28 - 11:31
    और ऐसा इसलिए नहीं है कि मैं उस विद्यार्थी से बेहतर व्यक्ति हूं,
  • 11:31 - 11:34
    बल्कि इसलिए कि मैं अमेरिका की सांस्कृतिक और आर्थिक शक्ति की
  • 11:34 - 11:36
    बहुत सारी कहानियां सुन चुकी थी.
  • 11:36 - 11:40
    मैं टाइलर, अपडाइक, स्टाइनबैक, और गैट्सकिल को पढ़ चुकी थी.
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    मेरे पास अमेरिका की बस एक ही कहानी नहीं थी.
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    सालों पहले जब मैंने यह सुना कि लोग यह सोचते थे कि
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    सफल लेखक वे होते हैं जिनका बचपन
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    बहुत बुरा बीता हो,
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    तो मैं सोचने लगी कि मैं किस तरह उन बुरी बातों की
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    खोज करूं जो मेरे माता-पिता ने मेरे साथ की हों.
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    (हंसी)
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    लेकिन सच्चाई यह है कि मेरा बचपन बहुत सुखद था,
  • 12:02 - 12:05
    हमारा परिवार बहुत प्रेम और आनंद के साथ एकजुट रहता था.
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    लेकिन मेरे पितामह आदि भी थे जिनकी मृत्यु शरणार्थी कैंप में हुई थी.
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    मेरा कज़िन पोल मर गया क्योंकि उसे समुचित स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलीं.
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    मेरी बहुत करीबी दोस्त ओकोलोमा विमान दुर्घटना में जलकर मर गई
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    क्योंकि हमारी अग्निशमन गाड़ियों में पानी नहीं था.
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    मैं दमनकारी सैनिक शासन के बीच बड़ी हुई
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    जिसने शिक्षा का अवमूल्यन कर दिया,
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    जिसके कारण कभी-कभी मेरे माता-पिता को वेतन नहीं मिलता था.
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    फिर मैंने बचपन में अपने नाश्ते की टेबल से जैम की बोतल गायब होते देखी,
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    उसके बाद मारजारिन भी गायब हो गया,
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    फिर ब्रैड बहुत महंगी हो गई,
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    और दूध राशन से मिलने लगा.
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    और इससे भी अधिक, एक सामान्यीकृत राजनीतिक भय ने
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    हमारे जीवन को घेर लिया.
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    इन सभी कहानियों ने ही मुझे वह बनाया है जो मैं आज हूं.
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    लेकिन इन नकारात्मक कहानियों को ही महत्व देना
  • 12:52 - 12:55
    मेरे अनुभवों को कम करके आंकना होगा
  • 12:55 - 12:57
    और इससे वे दूसरी कहानियां अनदेखी रह जाएंगीं
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    जिन्होंने मुझे आकार दिया है.
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    इकलौती कहानी रूढ़ियों का निर्माण करती है.
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    और रूढ़ियों के साथ समस्या यह नहीं है कि
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    वे सत्य नहीं होतीं, बल्कि यह है
  • 13:07 - 13:09
    कि वे अपूर्ण होतीं हैं.
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    वे एक कहानी को एकमात्र कहानी बना देतीं हैं.
  • 13:13 - 13:15
    बेशक, अफ़्रीका दुःख और दुर्गति की महागाथा है.
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    कुछ अत्यंत भयंकर हैं, जैसे कांगो के विभत्स बलात्कार.
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    और कुछ अवसादपूर्ण हैं, जैसे नाइजीरिया में
  • 13:21 - 13:26
    एक भर्ती के लिए 5,000 लोग आवेदन करते हैं.
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    लेकिन वहां कुछ ऐसी कहानियां भी हैं जो दर्दनाक नहीं हैं,
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    और यह कहना ज़रूरी है कि वे भी इतनी महत्वपूर्ण हैं कि उनकी चर्चा हो.
  • 13:33 - 13:35
    मैं हमेशा से यह मानती आई हूं कि
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    किसी परिवेश या व्यक्ति से भली-भांति जुड़े बिना
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    उस स्थान या व्यक्ति की सभी कहानियों से संबद्ध हो पाना संभव नहीं है.
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    इकलौती बयान की कहानी की परिणति यह होती है
  • 13:45 - 13:48
    कि यह मनुष्य को उसकी गरिमा से वंचित कर देती है.
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    यह हमारी इन्सानों में समानता की पहचान को कठिन बना देती है.
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    यह दर्शाने की जगह कि हम कितने समान हैं,
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    वो ये दिखाती है कि हम कैसे अलग हैं.
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    क्या होता अगर मैक्सिको जाने से पहले
  • 13:59 - 14:03
    मैंने आप्रवासन पर हुए वाद-विवादों में सं. रा. अमेरिका और मैक्सिको
  • 14:03 - 14:05
    दोनों ही पक्षों को सुना होता?
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    क्या होता अगर मेरी मां ने मुझे बताया होता कि फ़ीडे का परिवार बहुत गरीब
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    पर मेहनती है?
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    और क्या होता यदि हमारे पास अफ़्रीकी टीवी नेटवर्क होता
  • 14:13 - 14:17
    जो विविध अफ़्रीकी कहानियों को दुनिया भर में प्रसारित करता?
  • 14:17 - 14:19
    यह वही होता जिसे नाइजीरियाई लेखक चिनुआ अचेबे ने
  • 14:19 - 14:22
    "कहानियों का संतुलन" कहा है.
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    क्या होता यदि मेरी रूम-मेट को नाइजीरियाई प्रकाशक
  • 14:25 - 14:27
    मुक्ता बकारे के बारे में पता होता,
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    एक असाधारण आदमी जिसने बैंक की नौकरी छोड़कर
  • 14:29 - 14:32
    अपने सपनों की राह पर चलकर प्रकाशनगृह की स्थापना की?
  • 14:32 - 14:36
    लेकिन आम धारणा तो यह थी कि नाइजीरियाइ लोग साहित्य नहीं पढ़ते.
  • 14:36 - 14:38
    उन्होने इसका विरोध किया. उन्हे लगा
  • 14:38 - 14:40
    कि जो लोग पढ़ना जानते हैं, वे ज़रूर पढ़ेंगे
  • 14:40 - 14:44
    यदि हम खरीद पाने लायक मूल्य में उन्हें साहित्य उपलब्ध कराएं.
  • 14:44 - 14:47
    जब उन्होने मेरा पहला उपन्यास छापा उसके कुछ ही समय बाद
  • 14:47 - 14:50
    मैं लागोस में एक टीवी स्टेशन में साक्षात्कार देने गई.
  • 14:50 - 14:53
    और वहां मैसेंजर का काम करनेवाली एक महिला मेरे पास आई और मुझसे बोली,
  • 14:53 - 14:56
    "मुझे आपका उपन्यास अच्छा लगा, पर मुझे उसका अंत पसंद नहीं आया.
  • 14:56 - 14:59
    अब आप उसका सिक्वेल ज़रूर लिखें, और उसमें ऐसा होना चाहिए कि..."
  • 14:59 - 15:02
    (हंसी)
  • 15:02 - 15:05
    और वह मुझे बताने लगी कि सिक्वेल में क्या लिखना चाहिए.
  • 15:05 - 15:08
    उसकी बातों ने मुझे न सिर्फ़ मोहित किया बल्कि भीतर तक छू दिया.
  • 15:08 - 15:11
    वह तो एक साधारण औरत थी, नाइजीरियाई जनता का एक अंशमात्र
  • 15:11 - 15:14
    जिसे हम अपने पाठकवर्ग में नहीं गिनते थे.
  • 15:14 - 15:16
    उसने न सिर्फ़ वह पुस्तक पढ़ी, बल्कि उसे वह उसकी पुस्तक जैसी लगी
  • 15:16 - 15:19
    और मुझे यह बताना उसे तर्कसंगत लगा
  • 15:19 - 15:21
    कि मुझे पुस्तक का सिक्वेल लिखना चाहिए.
  • 15:21 - 15:25
    क्या होता यदि मेरी रूम-मेट को मेरी निडर मित्र फूमी ओंडा के बारे में पता होता,
  • 15:25 - 15:28
    जो लागोस में एक टीवी कार्यक्रम में मेजबान है,
  • 15:28 - 15:31
    और उन कहानियों को सामने लाना चाहती है जिन्हें हम भूलना ठीक समझते हैं?
  • 15:31 - 15:35
    क्या होता यदि मेरी रूम-मेट को हृदय के उस ऑपरेशन के बारे में पता होता
  • 15:35 - 15:38
    जिसे लागोस के अस्पताल में पिछले सप्ताह अंजाम दिया गया?
  • 15:38 - 15:42
    क्या होता यदि मेरी रूम-मेट को समकालीन नाइजीरियन संगीत के बारे में पता होता?
  • 15:42 - 15:45
    जिसमें प्रतिभाशाली गायक अंग्रेजी और पिजिन में,
  • 15:45 - 15:47
    इग्बो में, योरूबा में, और इजो में,
  • 15:47 - 15:51
    जे-ज़ी से लेकर फ़ेला, और बॉब मार्ली से लेकर
  • 15:51 - 15:54
    अपने पितामहों के सुमेलित प्रभाव में गाते हैं.
  • 15:54 - 15:56
    क्या होता यदि मेरी रूम-मेट को उन महिला वकीलों के बारे में पता होता
  • 15:56 - 15:58
    जो हाल में ही नाइजीरिया की अदालत में
  • 15:58 - 16:00
    एक हास्यास्पद कानून को चुनौती देने गईं
  • 16:00 - 16:03
    जिसके अनुसार किसी स्त्री को अपने पासपोर्ट के नवीनीकरण के लिए
  • 16:03 - 16:06
    अपने पति की स्वीकृति लेना आवश्यक किया गया था?
  • 16:06 - 16:09
    क्या होता यदि मेरी रूम-मेट को नॉलीवुड के बारे में पता होता,
  • 16:09 - 16:13
    जहां विशाल तकनीकी कठिनाइयों के बाद भी मौलिकता से तर लोग फ़िल्म बना रहे हैं?
  • 16:13 - 16:15
    इतनी चलने वाली फ़िल्में
  • 16:15 - 16:17
    जो इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है
  • 16:17 - 16:20
    कि नाइजीरियाई लोग अपने ज़रूरत के मुताबिक चीज़ें बना सकते हैं.
  • 16:20 - 16:23
    क्या होता यदि मेरी रूम-मेट को मेरी चोटी बनानेवाली उस ज़बर्दस्त महत्वाकांक्षी लड़की के बारे में पता होता,
  • 16:23 - 16:27
    जिसने हाल में ही बालों के एक्सटेन्शन का व्यापार शुरु किया है?
  • 16:27 - 16:29
    या उन लाखों नाइजीरियाई लोगों के बारे में
  • 16:29 - 16:31
    जो कामधंधा शुरु करते हैं पर कभी-कभी असफल हो जाते हैं,
  • 16:31 - 16:35
    लेकिन अपनी महत्वाकांक्षाओं का पोषण करते रहते हैं?
  • 16:35 - 16:37
    हर बार जब मैं घर जाती हूं तो मेरा सामना होता है
  • 16:37 - 16:40
    नाइजीरियाई लोगों की आम शिकायतों से, जैसेः
  • 16:40 - 16:43
    हमारा बुनियादी ढांचा खराब है, हमारी सरकार नाकारा है.
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    लेकिन मैं उनके अविश्वसनीय जुझारूपन को भी देखती हूं
  • 16:46 - 16:49
    जो शासन व्यवस्था के साए में नहीं
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    बल्कि उसके अभाव में पनपते हैं.
  • 16:51 - 16:54
    मैं हर गरमियों में लागोस में लेखन कार्यशाला में पढ़ाती हूं.
  • 16:54 - 16:57
    और यह देखकर हैरत होती है कि कितने लोग आवेदन करते हैं,
  • 16:57 - 17:00
    कितने सारे लोग लिखने के लिए व्यग्र हैं,
  • 17:00 - 17:02
    अपनी कहानियां कहना चाहते हैं.
  • 17:02 - 17:05
    मैंने अपने नाइजीरियाई प्रकाशक के साथ हाल में ही एक नॉन-प्रॉफ़िट ट्रस्ट बनाया है
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    जिसका नाम फ़ाराफ़िना ट्रस्ट है.
  • 17:07 - 17:10
    और हमारा बड़ा सपना यह है कि हम पुस्तकालय बनाएं
  • 17:10 - 17:12
    और पुराने पुस्तकालयों का नवीनीकरण करें,
  • 17:12 - 17:15
    और उन शासकीय विद्यालयों को पुस्तकें उपलब्ध कराएं
  • 17:15 - 17:17
    जिनके पुस्तकालयों में कुछ भी नहीं है,
  • 17:17 - 17:19
    और पठन-पाठन से संबंधित अनेकानेक
  • 17:19 - 17:21
    कार्यशालाओं का आयोजन करें,
  • 17:21 - 17:24
    ताकि अपनी कहानियां कहना चाहनेवाले व्यक्तियों को अवसर मिलें.
  • 17:24 - 17:26
    कहानियां महत्वपूर्ण हैं.
  • 17:26 - 17:28
    कहानियों के ज़्यादा होने का महत्व है.
  • 17:28 - 17:32
    कहानियों का उपयोग वंचित करने व मलिन करने के लिए होता आया है.
  • 17:32 - 17:36
    लेकिन कहानियां सामर्थ्यवान बनातीं हैं, और मानवीकरण करतीं हैं.
  • 17:36 - 17:39
    कहानियां लोगों की गरिमा को भंग कर सकतीं हैं.
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    पर वे उनकी खंडित गरिमा का उपचार भी कर सकतीं हैं.
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    अमेरिकी लेखिका ऐलिस वॉकर ने उनके
  • 17:46 - 17:48
    दक्षिणी संबंधियों के बारे में लिखा है
  • 17:48 - 17:50
    जो उत्तर में जाकर बस गए थे.
  • 17:50 - 17:52
    उन्होंने अपने संबंधियों को एक पुस्तक सुझाई
  • 17:52 - 17:55
    जिसमें पीछे छूट गए उनके दक्षिणी जीवन का वर्णन था.
  • 17:55 - 17:59
    "वे मेरे इर्द-गिर्द बैठे, खुद उस पुस्तक को पढ़ते हुए,
  • 17:59 - 18:05
    और मुझसे उस पुस्तक को सुनते समय, लगा जैसे स्वर्ग की पुनःप्राप्ति हो गई".
  • 18:05 - 18:08
    मैं इस विचार के साथ समापन करना चाहूंगीः
  • 18:08 - 18:11
    कि जब हम किसी एकलौती कहानी को ठुकरा देते हैं,
  • 18:11 - 18:14
    और जब हम यह जान जाते हैं कि किसी स्थानविशेष की
  • 18:14 - 18:16
    कभी कोई एकलौती कहानी नही होती,
  • 18:16 - 18:18
    तो हम भी अपने स्वर्ग की पुनःप्राप्ति कर लेते हैं.
  • 18:18 - 18:20
    धन्यवाद.
  • 18:20 - 18:28
    (तालियां)
Title:
इकलौती कहानी के ख़तरे
Speaker:
चिमामांडा नगोज़ी अडीची
Description:

हमारा जीवन और हमारी संस्कृतियां एक-दूसरे में घुलती-मिलती कहानियों से बने हैं. उपन्यासकार चिमामांडा अडीची बता रहीं हैं कि उन्हें अपनी संस्कृ्ति का सच्चा पक्ष कैसे मिला -- वे हमें यह चेतावनी भी देतीं हैं कि यदि हम किसी व्यक्ति या देश के बारे में मात्र एक तरह की कहानी ही सुनते रहेंगे तो हमारी आलोचनात्मक दृष्टि धूमिल पड़ जाएगी.

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
18:29
Abhinav Garule edited Hindi subtitles for The danger of a single story
Nishant Mishra added a translation

Hindi subtitles

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