पार्किंसंस पीड़ितों के लिए आसान नुस्खे
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0:01 - 0:04भारत में, परिवार बहुत बडे होते हैं।
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0:04 - 0:06आप सब ने इसके बारे में सुना ही होगा।
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0:06 - 0:09जिसका मतलब है कि बहुत सारे
पारिवारिक समारोह होते हैं। -
0:10 - 0:14तो बचपन में, मेरे माँ-बाप
मुझे इन समारोहों में ले जाते थे -
0:14 - 0:17लेकिन एक चीज़ जिसके लिए
मैं हमेशा उतावली रहती थी, -
0:17 - 0:19वह थी मेरे भाई-बहनों के साथ खेलना
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0:20 - 0:22और एक चाचा है
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0:22 - 0:24जो हमेशा होते है।
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0:24 - 0:26हमेशा तैयार, हमारे साथ उछल-कूद करते
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0:26 - 0:27हमारे साथ खेल खेलते,
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0:27 - 0:30हम बच्चों के साथ बहुत मौज-मस्ती करते
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0:31 - 0:33यह आदमी बहुत कामयाब था :
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0:33 - 0:35वे दबंग और ताकतवर थे।
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0:36 - 0:40पर फिर मैंने इस चुस्त और तंदुरुस्त आदमी
की सेहत को बिगड़ते देखा। -
0:41 - 0:44उन्हे पार्किंसंस रोग हो गया था।
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0:45 - 0:49पार्किंसंस रोग में तंत्रिका तंत्र की
अधोगति होती है। -
0:49 - 0:52मतलब कि जो इंसान पहले
आत्मनिर्भर हुआ करता था, -
0:52 - 0:57अब अचानक उसे सरल कार्य, जैसे कॉफी पीना,
झटकों के कारण, मुश्किल लग रहे हैं -
0:58 - 1:00मेरे चाचा ने चलने के लिए
वॉकर का प्रयोग करना शुरू किया -
1:00 - 1:02और मुड़ने के लिए
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1:02 - 1:06उन्हें सचमुच एक बार में
एक कदम लेना पड़ता, ऐसे, -
1:06 - 1:07और इसमें अर्सा बीत जाता।
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1:08 - 1:11तो यह इंसान, जो सबके
ध्यान का केंद्र का हुआ करते, -
1:11 - 1:13पारिवारिक समारोहों में,
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1:14 - 1:16अब लोगों के पीछे छिपने लगा।
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1:16 - 1:20वे लोगों की आँखों में दिख रही
दया से छिप रहे थे। -
1:20 - 1:23और यह ऐसे इकलौते नही हैं दुनिया में
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1:23 - 1:29हर साल, 60,000 लोगों को पार्किंसंस रोग
हो जाने की सूचना दी जाती है। -
1:29 - 1:31और यह संख्या सिर्फ बढ़ती जा रही है।
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1:32 - 1:38डिज़ाइनर होने के नाते, हम यह ख्वाब देखते
हैं कि हम इन बहुमुखी समस्याओं को सुल्झाएँ -
1:38 - 1:41एक उपाय जो सब कुछ सुलझा दे,
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1:41 - 1:43लेकिन हर बार ऐसा होना ज़रूरी नही
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1:44 - 1:46आप आसान समस्याओं को निशाना बना सकते हो।
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1:47 - 1:50और उनके लिए छोटे उपाय निकाल सकते हो,
जिसका अंततः कोई बड़ा प्रभाव पड़े। -
1:51 - 1:54तो मेरा मकसद पार्किंसंस रोग
का इलाज करना नही था, -
1:55 - 1:58बल्कि उनके दैनिक कार्य सरल करना था,
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1:58 - 1:59और फिर उनके जीवन पर असर करना
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2:00 - 2:04तो फिर, सबसे पहली समस्या जिसे
निशाना बनाया जाए वह है झटक, है न ? -
2:04 - 2:09मेरे चाचा ने बताया कि उन्होने बाहर जाकर
चाय-काॅफी पीना बंद कर दिया -
2:09 - 2:10सिर्फ शर्मिंदगी के मारे
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2:11 - 2:14तो फिर क्या, मैंने एक ऐसा कप बनाया
जिससे कुछ न गिरे -
2:15 - 2:18यह सिर्फ अपने आकार के बल पर काम करता है
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2:18 - 2:23जब भी उनको झटके आते है, तब ऊपर का वक्र
पेय को अंदर ही धकेल देता है -
2:23 - 2:26साधारण कप की तुलना में, इसमें पेय
कप के भीतर ही रहता है -
2:27 - 2:32पर अहम बात यह है कि यह चीज़ खास तौर पर
पार्किंसंस के मरीज़ के लिए नही है -
2:32 - 2:36यह तो किसी ऐसे कप की तरह दिखता है जो आप,
मैं या कोई भी अनाड़ी इस्तेमाल कर सकता है -
2:36 - 2:40और यह उन्हें इसका उपयोग करने के लिए तसल्ली
देती है और वे लोगों में घुल-मिल सकते है -
2:42 - 2:45तो खैर, एक मुसीबत सुलझ गई
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2:45 - 2:46और कई बाकी है।
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2:47 - 2:49इतना वक्त जब मैं उनका इंटरव्यू ले रही थी,
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2:49 - 2:51उनसे सवाल कर रही थी
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2:51 - 2:54तब मुझे ज्ञात हुआ कि मुझे बस
ऊपर-ऊपर की जानकारी मिल रही थी -
2:54 - 2:57या सिर्फ मेरे सवालों के जवाब मिल रहे थे
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2:57 - 3:00पर नया नज़रिया पाने के लिए
मुझे और गहराई में जाना होगा -
3:01 - 3:05तो फिर मैंने सोचा, चलो, उनके रोज़ के
कामों को ज़रा ग़ौर से देखते है -
3:05 - 3:07जब वह खा रहे है, दूरदर्शन देख रहे है
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3:08 - 3:12और जब मैं उन्हे खाने के मेज
की ओर चलते देख रही थी। -
3:12 - 3:17तब मुझे यह खयाल आया कि यह आदमी, जिसके लिए
समतल ज़मीन पर चलना इतना मुश्किल है, -
3:17 - 3:19वह सीड़ियाँ कैसे चढ़ता होगा ?
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3:19 - 3:23क्योंकि भारत में खास कटघरे नहीं होते
आपको सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए -
3:23 - 3:25जैसे विकसित देशों में होते हैं
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3:25 - 3:27बंदे को असल में सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है।
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3:28 - 3:29तो उन्होने मुझे बताया।
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3:29 - 3:31"अच्छा, मैं तुम्हें दिखाता हूँ
कैसे करते है" -
3:32 - 3:34देखते हैं कि मैंने क्या देखा
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3:37 - 3:40तो उन्हे यहाँ पहुँचने में बहुत वक्त लगा।
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3:40 - 3:41और इस दौरान मैं सोच रही हूँ
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3:41 - 3:43"हे भगवान, क्या ये सच में यह करनेवाले है?
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3:43 - 3:46क्या ये वाकई, सच में, बिना अपने
वाॅकर के यह करनेवाले है?" -
3:46 - 3:48और फिर...
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3:50 - 3:53(हँसी)
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3:57 - 3:59और मोड़, कितनी आसानी से ले लिए उन्होंने
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4:01 - 4:02तो --- चौंक गए?
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4:03 - 4:04खैर, मैं भी चौकी थी।
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4:07 - 4:10तो यह इंसान, जो समतल ज़मीन पर
चल नहीं पा रहा था, -
4:10 - 4:12अचानक वह सीढ़ियाँ चढ़ने में माहिर था
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4:14 - 4:18इस पर अनुसंधान करने पर मुझे पता चला कि
यह निरंतर गतिवान के कारण है -
4:18 - 4:22एक और आदमी है जिसके लक्षण भी यही थे,
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4:22 - 4:23और वह वॉकर का उपयोग करता है
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4:23 - 4:25पर उसे साइकिल पर रखते ही
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4:25 - 4:27उसके सारे लक्षण गायब हो जाते हैं
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4:27 - 4:29क्योंकि यह निरंतर गतिवान है
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4:30 - 4:34तो मेरे लिए अहम बात थी
सीढ़ियाँ चढ़ने के इस एहसास का अनुवाद करना -
4:34 - 4:35समतल ज़मीन पर चलने में
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4:36 - 4:39और उन पर बहुत सारी तरकीबें
आज़माई और जाँची गई -
4:39 - 4:42पर आखिरकार जो काम आई
वह यह थी । चलिए देखते हैं -
4:45 - 4:48(हँसी)
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4:49 - 4:53(तालियाँ)
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4:53 - 4:54वह और तेज़ चले, है न?
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4:54 - 4:58(तालियाँ)
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4:59 - 5:02मैं इसे सीढ़ियों की माया कहती हूँ
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5:02 - 5:07और सचमुच जब यह सीढ़ियों की माया
अचानक खत्म हुई, तब वह तुरंत रुक गए -
5:07 - 5:09और इसे कहते है चाल का जमना
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5:09 - 5:10तो यह बहुत बार होता है,
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5:10 - 5:14तो क्यों न सीढ़ियों की
यह माया हर कमरे में हो -
5:14 - 5:16ताकि वे और भी आश्वस्त हो?
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5:17 - 5:20जानते हैं, टैकनोलजी हर बात का जवाब नहीं है
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5:20 - 5:23जिसकी हमे ज़रूरत है वे हैं
मनुष्य-केंद्रित उपाय -
5:23 - 5:25बड़ी आसानी मैं इसे फलाव बना सकती थी,
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5:25 - 5:27या फिर गूगल ग्लास, या वैसा कुछ
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5:28 - 5:30लेकिन मैं आसान फर्श पर छापने पर अड़ी रही
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5:30 - 5:33यह छपाई अस्पतालों में ले जाई जा सकती है
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5:33 - 5:36ताकि वे निश्चिंत रहें।
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5:37 - 5:40मैं चाहती हूँ कि पार्किंसंस रोग
का हर मरीज़ वैसा महसूस करे, -
5:40 - 5:42जैसा मेरे चाचा ने उस दिन किया
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5:42 - 5:46उन्होंने मुझे बताया कि
मैंने उन्हे पहले जैसा महसूस कराया -
5:47 - 5:51आज की दुनिया में, " स्मार्ट " और हैटेक
पर्यायवाची बन चुके हैं, -
5:52 - 5:55और दुनिया दिन प्रतिदिन
और भी स्मार्ट होती जा रही है -
5:56 - 5:59किंतु स्मार्ट कुछ आसान,
फिर भी प्रभावशाली क्यों नही हो सकता? -
6:00 - 6:04हमें बस थोड़ी सी हमदर्दी,
और थोड़ी सी जिज्ञासा की ज़रूरत है -
6:04 - 6:07वहाँ पहुँचने के लिए, ग़ौर से देखने के लिए
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6:07 - 6:08पर वहाँ रुकना नहीं हैं
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6:09 - 6:12चलिए, हम सब इन जटिल मसलों को ढूँढ़ते हैं
इनसे डरिए मत -
6:12 - 6:16उन्हें छोटी-छोटी समस्याओं में तोड़ दीजिए
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6:16 - 6:18और उनके लिए सरल उपाय ढूँढिए
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6:18 - 6:21उन उपायों को परखना, ज़रूरत पड़े तो
नाकामयाब ही क्यों न हो जाना -
6:21 - 6:24पर नए नज़रिए के साथ, उसे बेहतर करने के लिए
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6:24 - 6:28ज़रा सोचिए, अगर हम सब आसान उपाय ढूँढ लाए,
तो हम क्या-क्या कर सकते हैं -
6:29 - 6:32कैसी होती यह दुनिया अगर हम अपने
सारे आसान उपायों को इकट्ठा करते ? -
6:33 - 6:36चलिए, एक और भी स्मार्ट दुनिया बनाते हैं,
मगर सादगी के साथ -
6:36 - 6:37धन्यवाद।
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6:37 - 6:40(तालियाँ)
- Title:
- पार्किंसंस पीड़ितों के लिए आसान नुस्खे
- Speaker:
- मिलेहा सोनेजी
- Description:
-
अक्सर आसान उपाय सबसे बेहतर होते हैं, तब भी जब हमारा पाला पार्किंसंस रोग जैसी जटिल चीज़ों के साथ पड़ा हो। इस प्रेरणादायक भाषण में, मिलेहा सोनेजी पार्किंसंस पीड़ितों की रोज़ी ज़िंदगी आसान करने वाले प्राप्य डिज़ाइन हमारे साथ बाँटती है। " टैकनोलजी हर बात का जवाब नहीं है ", वह कहती है, " जिसकी हमे ज़रूरत है वे हैं मनुष्य-केंद्रित उपाय।"
- Video Language:
- English
- Team:
- closed TED
- Project:
- TEDTalks
- Duration:
- 06:57
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