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पैट्रीशिया कुह्ल: शिशुओं की भाषाई प्रतिभा

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    मैं चाहती हुँ आप इस शिशु को देखें
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    आप इसकी आखों की ओर आकर्शित होते हैं
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    और यह त्वचा जिसे आप छूना चाहेंगे
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    पर आज मैं आप से बात करूँगी एसी चीज़ के बारे में जो दिखाई नहीं देती,
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    कि उसके नन्हें दिमाग में क्या चल रहा है.
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    मस्तिष्क विज्ञान के आधुनिक उपकर्ण
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    यह प्रदर्शित कर रहे हैं कि वहाँ ऊपर क्या चल रहा है
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    यह रॉकेट विज्ञान से कम नहीं है.
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    और जो हम सीख रहे हैं
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    कुछ प्रकाश डालेगा
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    उसपर जिसे रोमाँटिक लेखक और कवि
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    "दिव्य खुलापन" के रूप में वर्णित करते हैं
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    बच्चे के दिमाग के बारे में
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    हम यहाँ देख रहे हैं
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    भारत में एक माँ,
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    और वो कोरो में बात कर रही है
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    जो कि एक नई खोजी गई भाषा है
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    और वह अपने शिशु से बात कर रही है.
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    जो बात यह माँ -
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    और दुनिया भर में वो ८०० लोग जो कोरो बोलते हैं -
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    समझते हैं कि, इस भाषा को बचाने के लिए,
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    उन्हें इसे शिशुओं से बोलने की ज़रुरत है.
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    और उसमें एक महत्वपूर्ण पहेली है
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    एसा क्यों है कि आप किसी भाषा का संरक्षण नहीं कर सकते
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    उसे व्यस्कों से - आपसे और हमसे बोलकर?
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    दरअसल इसका संबंध आपके दिमाग से है.
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    जो हम यहाँ देख रहे हैं
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    वो यह है कि भाषा को सीखने के लिए एक विषेश समय होता है.
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    इस स्लाइड को पढ़ने का तरीका है कि आप अपनी उम्र को क्षैतिज अक्ष पर देखें.
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    (ठहाके)
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    और ह्म ऊर्ध्वाधर पर देखेंगे
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    दूसरी भाषा सीखने का हुनर.
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    शिशु और बच्चे प्रतिभाशाली होते हैं
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    जब तक वे सात साल के नहीं हो जाते,
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    और फिर वहाँ एक व्यवस्थित गिरावट है.
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    यौवन के बाद, हम नक्शे से बाहर हो जाते हैं.
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    कोई वैज्ञानिक इस वक्र से विवाद नहीं करते
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    लेकिन दुनिया भर कि प्रयोगशालाएं
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    यह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि एसा क्यों होता है
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    मेरी प्रयोगशाला में काम केंद्रित है
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    विकास के पहले विशेष समय पर -
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    और ये वो समय है जिसमें
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    शिशु उन स्वरों में माहिरता हासिल करने की कोशिश करते हैं जो उनकी भाषा में प्रयोग होते हैं.
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    हमारे विचार में इस बात का अध्ययन करके कि स्वर कैसे सीखे जाते हैं,
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    हमारे पास बाकि भषा के लिए मापद्न्ड होगा.
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    और शायद बचपन के दौरान मह्त्वपूर्ण समय के लिए
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    सामाजिक, भावनात्मक
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    और संज्ञानात्मक विकास के लिए
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    तो हम उन शिशुओ का अध्ययन करते रहे हैं
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    दुनिया भर में एक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए
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    और सभी भाषाओं के स्वरों का।
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    बच्चा अपने माता पिता की गोदी में बैठता है,
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    और हम उन्हें प्रशिक्षित करते हैं अपनेसर घुमाने के लिए जब भी कोई स्वर बदलता है -
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    जैसे "आह" से "ई"
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    अगर वे ऐसा उचित समय पर करते हैं,
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    तो काले बक्से की बत्ती जल जाती है
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    और एक पांडा भालू एक ढ़ोल पीटता है
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    एक छह महीने के शिशु को यह काम बहुत भाता है.
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    हमने क्या सीखा?
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    कि दुनिया भर के बच्चे
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    हैं जो मैं कहना पसंद करती हूँ
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    विश्व के नागरिक;
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    और वो सभी भाषाओं के सभी स्वरों में भेद कर सकते हैं,
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    चाहे हम किसी भी देश में परीक्षण कर रहे हों और कोई भी भाषा इस्तेमाल कर रहे हों.
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    औरी यह असाधार्ण है क्योंकि आप और मैं ये नहीं कर सकते.
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    हमारे सुनने की शक्ति संस्कृति से जुड़ी है.
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    हम अपनी भाषा के स्वर पहचान सकते हैं,
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    लेकिन विदेशी भाषाओं के नहीं.
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    तो सवाल यह उठता है,
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    ये विश्व के नागरिक कब
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    हम जैसे भाषा से बंधे सुनने वाले बन जाते हैं?
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    और जवाब : उनके पहले जन्मदिन से पहले.
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    आप यहाँ जो देख रहे हैं वो है सर घूमने वाले कार्य पे प्रदर्शन
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    टोक्यो और अमरीका में परखे गए शिशुओं के लिए,
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    यहाँ सियाट्ल में,
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    जैसे वो "रा" और "ला" को सुनते हैं --
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    स्वर जो अँग्रेजीमें महत्वपूर्ण हैं, पर जापानी में नहीं.
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    तो छहसे आठ महीने तक बच्चे बिलकुल बराबरी पर हैं.
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    दो महीने बात एक विचित्र बात होती है.
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    अमरीका में बच्चे बेहतर होते जा रहे हैं,
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    और जापान में बदतर,
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    लेकिन शिशुओं के ये दोनों समूह
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    ठीक उसी भाषा की तैयारी कर रहे हैं जो वे सीखने जा रहे हैं.
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    तो सवाल यह है की क्या हो रहा है
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    इस दो महीने की विशेष अवधि में?
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    यह अवधि है स्वर विकास की,
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    लेकिन वहाँ ऊपर क्या हो रहा है?
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    तो दो चीज़ें हो रही हैं.
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    पहली यह की शिशु ध्यान से हमे सुन रहे हैं,
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    और हमें बात करते सुन कर गणनाकर रहे हैं --
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    वो गणना कर रहे हैं.
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    तो सुनिए दो माताओं को माओंकी विशेष भाषा में बात करते हुए --
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    वह सार्वलौकिक भाषा जो हम सब बच्चों से बात करते हुए इस्तेमाल करते हैं --
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    पहले अँग्रेजी में और फिर जापानी में.
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    (वीडियो) अँग्रेजी माँ : आह, मुझे तुम्हारी बड़ी नीली आँखें बहुत प्यारी लगती हैं --
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    कितनी सुंदर और अच्छी.
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    जापानी माँ : [जापानी]
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    पाइट्रिशिया कुहल : भाषा की उत्पत्ति में,
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    जबशिशु सुनते हैं,
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    तबदरअसल वो गणना कर रहे होते हैं
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    सुनाई देने वाली भाषा पर.
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    और ये वितरण बढ़ते रहते हैं.
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    और हमने यह सीखा है
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    कि बच्चे इन गाण्णा के बारे में संवेदनशील होते हैं,
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    और जापानी और अँग्रेजी के आंकड़े बहुत, बहुत अलग होते हैं.
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    अँग्रेजी में बहुत से र और ल होते हैं
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    वितरण यह दिखाता है.
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    और जापानी का वितरण बिलकुल अलग हैं,
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    जहां हम माध्यम स्वरों के झुंड देखते हैं,
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    जिसे जापानी र कहा जाता है.
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    तो बच्चे सोख लेते हैं
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    भाषा के आंकड़े
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    और यह उनके दिमाग को बदल देता है;
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    वह उन्हे विश्व के नागरिक से बदल देता है
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    हम जैसे संस्कृति से बंधे सुनने वालों में.
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    लेकिन व्यसको की तरह हम
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    अब उन आंकड़ों को सोख नहीं रहे.
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    हम अपनी यादों में उन अभ्यावेदन से बंधे हुए हैं
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    जो हमने प्रारम्भिक विकास में बनाए थे.
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    तो जो हम यहाँ देख रहे हैं
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    वह हमारे मॉडेल बदल रहा है इस बारे में कि महत्वपूर्ण अवधि क्या है.
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    हम गणित कि दृष्टि से इस बारे में बहस कर रहे हैं
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    कि भाषा सीखने कि प्रक्रिया धीरे हो जाती है
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    जब हमारा वितरण स्थिर हो जाता है.
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    यह द्विभाषिक लोगों के बारे में बहुत से प्रश्न खड़े कर रहा है.
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    द्विभाषीय लोगों को एक समय पर आंकड़ो के दो सेट दिमाग में रखने पड़ते हैं
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    और उनके बीच बदलते रहना पड़ता है, एक के बाद एक,
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    इस बात को देखते हुए कि वो किस से बात कर रहे हैं.
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    तो हमने अपने आप से पूछा,
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    क्या शिशु एक बिलकुल नयी भाषा के आंकड़े ले सकता है?
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    और हमने इसे परखा अमरीकी बच्चों को
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    जिन्हों ने कभी दूसरी भाषा नहीं सुनी थी
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    मंदारिन भाषा से परिचित कराया विशेष अवधि के दौरान.
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    हमे पता था कि जब एक भाषा बोलने वालों को परखा गया था
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    ताइपेई और सेयाट्ट्ल में मंदारिन भाषा के स्वरों पर,
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    तो उनहोने वही साँचा दिखाया.
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    6 - 8 महीने, वे बिलकुल बराबर होते हैं.
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    दो महीने बाद कुछ अजीब हो जाता है.
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    लेकिन ताईवानी बच्चे बेहतर हो रहे हैं, अमरीकी बच्चे नहीं
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    हमने इस दौरान अमरीकी बच्चों को इस दौरान अनुभव दिलाया
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    मंदारिन भाषा का
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    ये ऐसा था जैसे मदारिन रिश्तेदार एक महीने के लिए मिलने आए हों
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    और आप के घर में रहें
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    और 12 सेशन्स के लिए शिशुओं से बात करें.
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    और प्रयोगशाला में यह ऐसा दिखता है.
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    (विडियो) मंदारिन भाषी : [मंदारिन]
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    पी के : तो हमने इनके नन्हें दिमागों को क्या किया ?
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    (ठ्हाके)
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    हमें एक नियंत्रित समूह भी रखना पड़ा
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    यह यकीन करने के लिए की मात्र प्रयोगशाला में आने से
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    आपके मंदारिन के कौशल बेहतर नहीं हो जाते
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    तो शिशुओं का एक समूह आकर अँग्रेजी सुनतता था।
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    और हम रेखा चित्र से देख सकते हैं
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    की अँग्रेजी से संपर्क से उनकी मंदरीन भाषा सुधरी नहीं.
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    पर उन शिशुओं को देखिये क्या हुआ
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    जिनहे 12 सेशन के लिए मंदरीन से संपर्क कराया गया
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    वो ताइवान वाले शिशुओं जीतने अच्छे थे
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    जो इसे साढ़े दस महीने से सुन रहे थे.
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    इस बात नें यह दर्शाया
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    की शिशु नयी भाषा के आंकड़े लेते हैं.
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    आप जो भी उनके सामने रखें, वो उनपर आंकड़े लेंगे.
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    पर हम विचार कर रहे थे की क्या भूमिका होती है
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    इन्सानों की
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    इस सिखलाई की कवायद में.
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    तो हमने बच्चों के एक और समूह पर प्रयोग किया
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    जिसमे बच्चों को वही खुराक मिली, वही 12 सेशन,
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    लेकिन टीवी के ज़रिये
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    और एक और समूह जिनको सिर्फ आवाज़ सुनाई गयी
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    परदे पर टेडी बीयर देखते हुए.
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    और हमने उनके दिमाग के साथ क्या किया?
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    आप यहाँ देख रहें हैं परिणाम के स्वर -
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    बिलकुल कोई सिखलाई नहीं -
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    और वीडियो परिणाम -
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    कोई सिखलाई नहीं.
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    सिर्फ इन्सानों से ही
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    बच्चे अपने आंकड़े लेते हैं.
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    सामाजिक दिमाग नियंत्रण करता है
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    जब बच्चे अपने आंकड़े ले रहे होते हैं.
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    हम उनके दिमाग के अंदर घुस कर
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    यह होते हुए देखना चाहते हैं
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    जब बच्चे टीवी के सामने होते हैं,
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    बजाए इसके की इन्सानों के सामने.
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    शुक्र है हमारे पास एक नया यंत्र है,
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    मग्नेटोएंकेफलोग्राफी,
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    जो हमें यह करने देता है.
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    यह मंगल ग्रह से आया बाल सुखाने वाला यंत्र लगता है.
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    लेकिन यह बिलकुल सुरक्षित है,
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    बिलकुल शांत और गैर भेदी.
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    और हम मिलिमीटर शुद्धता की बात कर रहे हैं
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    स्पेसिय और
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    मिलीसेकंड शुद्धता के बारे में
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    306 स्कूइड्स का प्रयोग करते हुए -
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    ये सुपर क्ंड्क्टिंग
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    क्वांटम इंटरफ़ेस यंत्र होते हैं -
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    चुंबकीय संकेत पकड़ने के लिए
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    जो हमारे सोचते हुए बदल जाते हैं.
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    हमने विश्व में पहल करी है
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    शिशुओं को रिकार्ड करने में
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    एम ई जी यंत्र के द्वारा
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    जब वो सीख रहे होते हैं.
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    तो यह नन्ही एम्मा है.
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    ये छह महीने की है.
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    और ये अलग भाषाओं को सुन रही है
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    उसके कानों में लगे इयरफोन से.
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    आप देख सकते हैं, वो चल फिर सकती है.
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    हम उसके सिर पर नजर रख रहे हैं
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    एक टोपी के अंदर छोटे छोटे छर्रों की सहायता से,
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    तो वो स्वेछा से पूरी तरह से हिलने के काबिल है.
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    यह तकनीकी शक्ति का प्रदर्शन है.
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    हम क्या देख रहे हैं?
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    हम शिशु का दिमाग देख रहे हैं.
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    जैसे ही शिशु अपनी भाषा का स्वर सुनती है
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    तो स्वरों वाला हिस्से में प्रकाश हो जाता है,
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    और फिर उसके आस पास वाले हिस्सों में
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    जो हम सोचते हैं अनुकूलता से संबन्धित है,
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    दिमाग के अलग भागों को समन्वित करना,
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    और करणीय संबंध
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    दिमाग का एक हिस्सा दूसरे को सक्रिय करता है.
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    हम चल पड़े हैं
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    एक महान और स्वरणीय युग की ओर
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    ज्ञान और बच्चों के दिमाग के विकास के बारे में.
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    हम बच्चे के दिमाग को देख पाएंगे
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    जैसे वे किसी भावना का अनुभव कर रहे होंगे,
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    जब वो पढ़ना लिखना सीख रहे हों,
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    जैसे वो गणित का सवाल हल कर रहे हों,
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    जैसे उन्हे कोई विचार आए.
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    और हम दिमाग पे आधारित हस्तक्षेपों का आविष्कार कर सकेंगे
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    उन बच्चों के लिए जिनहे सीखने मे मुश्किल होती है.
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    जैसे कवियों और लेखकों ने वर्णन किया है,
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    मैं सोचता हूँ हम देख पाएंगे,
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    वह शानदार खुलापन
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    निरी और पूरी तरह खुलापन
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    बच्चे के दिमाग का.
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    बच्चों के दिमाग के बारे में छानबीन करते हुए,
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    हम गहरी सच्चाईयों को खोल पाएंगे
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    इस बारे में कि इंसान होने का मतलब क्या है,
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    और इस दौरान,
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    हो सकता है हम अपने दिमागोंको सीखने के लिए खुला रख पाएँ
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    अपनी पूरी ज़िंदगी.
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    धन्यवाद.
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    (तालियाँ)
Title:
पैट्रीशिया कुह्ल: शिशुओं की भाषाई प्रतिभा
Speaker:
Patricia Kuhl
Description:

टेडेक्स रेनियर में, पैट्रीशिया कुह्ल आश्चर्यजनक निष्कर्ष बताती हैं कि कैसे शिशु पहली के बाद दूसरी भाषा सीखते हैं - अपने चारों ऒर इ्न्सानों को सुन कर और जिन स्वरों को जानने की ज़रूरत है उनकी गणना कर के. प्रयोगशाला प्रयोगों (और मस्तिष्क स्कैन) दिखाते हैं कि कैसे 6 महीने की उम्र में बच्चों को परिष्कृत तर्क का प्रयोग कर अपने दुनिया को समझते हैं .

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
09:57
Rohit Agarwal added a translation

Hindi subtitles

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