कैसे किसी को खोना एक आर्टिस्ट को ख़ूबसूरती की खोज पर ले गया।
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0:01 - 0:02मैं एक पेंटर हूँ।
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0:02 - 0:05मैं बड़े साइज़ में
फ़िगरेटिव पेंटिंग करती हूँ, -
0:05 - 0:06लोगों की तस्वीरें बनाना
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0:07 - 0:08कुछ इस तरह की।
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0:09 - 0:12पर आज मैं आपके साथ
कुछ पर्सनल बातें साझा करूँगी -
0:12 - 0:14जिन्होंने मेरे काम और
दृष्टिकोण को बदल दिया। -
0:16 - 0:17ये ऐसा कुछ है जो हम
सब झेलते है -
0:17 - 0:21और मेरी आशा है की मेरे अनुभव
किसी के काम आ सकेंगे। -
0:23 - 0:26मैं अपने बारे में कुछ बताती हूँ,
मैं आठ बहन भाइयों में सबसे छोटी हूँ। -
0:26 - 0:28जी हाँ, मेरे परिवार में
आठ बच्चे थे। -
0:28 - 0:31छः बड़े भाई और एक बहन।
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0:31 - 0:33और बस यूँ समझ लीजिए कि
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0:34 - 0:36जब हम छुट्टी में जाते थे,
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0:36 - 0:37तो बस लेनी पड़ती थी।
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0:37 - 0:39(ठहाका)
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0:41 - 0:44मेरी सुपर मम्मी हमें शहर भर में
हमारी ड्राइवरी करती थीं। -
0:44 - 0:46स्कूल के बाद के तमाम
कोर्स वग़ैरह के लिए -
0:46 - 0:48, बस में नहीं।
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0:49 - 0:51हमारी एक नोर्मल कार भी थी।
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0:52 - 0:54वो मुझे आर्ट क्लास ले जाती थी,
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0:54 - 0:55और सिर्फ़ एक और दो क्लास नहीं।
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0:55 - 1:01जितनी भी आर्ट क्लासें थीं , सब जगह,
मेरे 8 से 16 साल तक की उम्र में, -
1:01 - 1:02क्योंकि मैं बस आर्ट ही करती थी।
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1:03 - 1:05माँ ने न्यू यॉर्क की एक क्लास
मेरे साथ ज्वाइन कर ली थी। -
1:06 - 1:10और आठ में सबसे छोटा होने का मतलब
मुझे कुछ हथकंडे सीखने पड़े। -
1:10 - 1:11पहला रूल:
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1:11 - 1:14कभी बड़े भाई को अपनी
बेवक़ूफ़ी पकड़ने मत दो। -
1:16 - 1:18तो मैंने चुप और साफ़ रहना सीख लिया
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1:18 - 1:21और नियम के हिसाब से चलना
और गड़बड़ नहीं करना। -
1:22 - 1:25मगर जब पेंटिंग की बात आती,
तो अपने रूल मैं ख़ुद बनाती थी। -
1:25 - 1:26वो मेरी अपनी निजी दुनिया थी।
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1:28 - 1:3014 की उम्र तक मुझे पता लग गया था कि
मुझे आर्टिस्ट बनना है। -
1:32 - 1:35मैं सोचती थी की वेटर बन कर कमा लूँगी
और पेंटिंग करूँगी -
1:36 - 1:38तो मैं अपनी पेनिंग पर काम करती रही।
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1:38 - 1:40मैंने एम एफ ए की डिग्री ले ली,
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1:40 - 1:44और मेरे पहले सोलो शो में,
मेरे भाई ने पूछा, -
1:44 - 1:47"ये पेंटिंग के बग़ल में लाल लाल
बिंदियाँ क्या हैं?" -
1:47 - 1:49और मैं सबसे ज़्यादा हैरान थी।
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1:50 - 1:52लाल बिंदु का मतलब था कि
पेंटिंग बिक गयी थी -
1:52 - 1:54और मैं अपना ख़र्चा चला सकती थी
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1:54 - 1:55पेनिंग कर के।
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1:56 - 1:59मेरे फ़्लैट में बिजली के चार प्लग थे,
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1:59 - 2:03और मैं अपना माइक्रोवेव और टोस्टर
एक साथ नहीं लगा सकती थी, -
2:03 - 2:05मगर फिर भी, मैं किराया
देने जितना कमा रही थी। -
2:05 - 2:07तो मैं काफ़ी ख़ुश थी।
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2:08 - 2:10ये एक पेंटिंग है जो मैंने उस समय बनाई थी।
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2:11 - 2:14मैं इसे बिलकुल असली बनाना चाहती थी।
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2:14 - 2:16एकदम सटीक और जीवंत।
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2:17 - 2:22ये काम मुझे एकांत देता था और
पूरी तरह मेरे वश में था। -
2:24 - 2:27तब से, लोगों की पानी में तस्वीरें
बनाने को मैंने अपना करियर बना लिया। -
2:27 - 2:31बाथटब और फ़व्वारे बिलकुल परिभाषित
माहौल देते हैं। -
2:31 - 2:33एकांत और निजी,
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2:33 - 2:37और पानी पेंट करना ऐसी जटिल चुनौती
थी जिस में मैं एक दशक डूबी रही। -
2:37 - 2:40मैंने क़रीब दो सौ ऐसी पेंटिंग बनाईं,
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2:40 - 2:42कुछ तो 6 से 8 फ़ीट लम्बी,
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2:42 - 2:44जैसे की ये।
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2:44 - 2:49इस पेंटिंग के लिए मैंने पानी में आटा
घोल कर उसे धुँधला बनाया -
2:49 - 2:52और फिर इस के सतह पर तेल मल कर
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2:52 - 2:53उस में इस लड़की को लगा दिया,
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2:53 - 2:55और जब मैंने उस पर रोशनी डाली,
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2:55 - 2:58तो वो इतना ख़ूबसूरत था की
उसे पेंट किए बिना रहा नहीं गया। -
2:58 - 3:02मैं इस तरह की बेचैन सी
जिज्ञासा से भारी थी, -
3:03 - 3:04हमेशा कुछ नया जोड़ने की कोशिश करती हुई:
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3:05 - 3:06विनाइल, भाप, शीशा।
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3:07 - 3:11एक बार मैंने अपने पूरे सर और
बालों में वैसलीन लगा ली -
3:11 - 3:13बस जानने के लिए की कैसा दिखेगा।
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3:13 - 3:14आप मत करिएगा।
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3:14 - 3:16(ठहाका)
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3:18 - 3:20तो सब सही चल रहा था।
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3:20 - 3:21मैं अपने रास्ते खोज रही थे।
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3:22 - 3:24मैं उत्सुक थी, उत्साहित थी।
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3:24 - 3:25और आर्टिस्ट लोगों से घिरी हुई थी,
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3:26 - 3:28हमेशा नए इवेंट और ओपनिंग में मौजूद।
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3:28 - 3:31थोड़ी सफलता और शोहरत भी मिलने लगी थी।
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3:31 - 3:35और मेरे नए घर में चार से ज़्यादा
बिजली के प्लग भी थे। -
3:36 - 3:38मेरी माँ और में देर रात तक जाग कर
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3:38 - 3:41अपने नए प्रयोगों पर एक दूसरे
को बढ़ावा देते रहते थे। -
3:41 - 3:43वो मिट्टी के बर्तन बनाती थीं ।
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3:45 - 3:47मेरे दोस्त बो ने ये पेंटिंग बनायी थी
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3:47 - 3:50अपनी पत्नी और मेरे समंदर किनारे नाचते हुए,
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3:50 - 3:52और वो इसे कहता था "द लाइट इयर्स"।
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3:52 - 3:55मैंने पूछा की इस का क्या अर्थ हुआ,
और उस ने कहा, -
3:55 - 3:58"देखो, जब हम बड़े होते हैं,
तो बचपन पीछे छूट जाता है, -
3:59 - 4:02मगर तुम ने अपनी ज़िम्मेदारियों
के बीच भी उसे जीवित रखा है।" -
4:03 - 4:05बस, यही मतलब था द लाइट इयर्स का।
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4:07 - 4:098 अक्टूबर 2011 को,
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4:09 - 4:11द लाइट इयर्स का अंत हो गया।
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4:11 - 4:13मेरे माँ को फेफड़े का कैंसर निकला।
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4:15 - 4:18वो उनकी हड्डियों और दिमाग़ तक फैल चुका था।
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4:19 - 4:21जब उन्होंने मुझे बताया,
तो मैं गिर गयी। -
4:21 - 4:22मेरी दुनिया ख़त्म हो गयी।
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4:24 - 4:26और जब मैं संभली और उन्हें देखा,
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4:26 - 4:28तो लगा की मेरा दुःख बहुत छोटा था।
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4:28 - 4:30यहाँ मुद्दा माँ के मदद करने का था।
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4:31 - 4:32मेरे पिता डॉक्टर हैं,
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4:32 - 4:36और उनकी वजह से हमें बहुत सहारा मिला,
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4:36 - 4:38और उन्होंने बड़े बहतरीन तरीक़े से
माँ का ख़याल रखा। -
4:39 - 4:41पर मैं भी जो बन पड़े,
करना चाहती थी, -
4:42 - 4:44तो मैंने सब कुछ करने लगी।
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4:44 - 4:45हम सब करने लगे।
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4:46 - 4:48वैकल्पिक दवाई रिसर्च करी,
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4:48 - 4:51खानपान, ऐक्यूपंक्चर।
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4:52 - 4:53आख़िर मैंने उन से पूछा,
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4:53 - 4:55"तुम चाहती हो कि
मैं ये करूँ?" -
4:55 - 4:57और उन्होंने कहा, "न।"
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4:57 - 5:00उन्होंने कहा, "अपनी ताक़त बचा के रखो।
आगे ज़रूरत होगी।" -
5:04 - 5:06उन्हें पता था की क्या हो रहा है
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5:06 - 5:07उन्हें वो पता था जो डाक्टरों
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5:07 - 5:10और विशेषज्ञों और इंटर्नेट
को भी नहीं पता था: -
5:10 - 5:12की वो इस से कैसे गुज़रना चाहती थी।
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5:13 - 5:14बस उनसे पूछने
भर की देर थी -
5:16 - 5:18और मुझे समझ आया कि
सब ठीक करने में -
5:18 - 5:19तो मैं ये चूक जाऊँगी।
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5:20 - 5:22तो मैंने बस उनके साथ समय बिताना
शुरू किया, -
5:22 - 5:24चाहे जैसे भी हो,
चाहे जैसी भी स्थिति आए, -
5:25 - 5:27बस उनकी बात सुनना शुरू किया।
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5:28 - 5:32जहाँ मैं पहले बहस में लगी थी,
अब बस समर्पण कर चुकी थी, -
5:33 - 5:36होनी को बदलने की जद्दोजहद
को छोड़ कर -
5:36 - 5:38बस उनके साथ रहने को तैयार हो कर।
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5:40 - 5:41जैसे समय की गति ही धीमी हो गयी थी,
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5:42 - 5:43दिन, तारीख सब बेमानी हो गए थे।
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5:45 - 5:46हमने एक दिनचर्या बना ली थी।
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5:47 - 5:51हर सुबह मैं उनके बिस्तर में घुस
कर चिपक कर सो जाती थी। -
5:51 - 5:53मेरा भाई नाश्ते के लिए आ जाता था
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5:53 - 5:56और हमें उसके कार की आवाज़ सुन कर
बहुत अच्छा लगता था। -
5:56 - 5:58और में उन्हें उठा कर, उनके दोनो हाथ थाम कर
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5:59 - 6:01उन्हें रसोई तक ले जाती थी।
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6:02 - 6:05उन्हें ख़ुद के बनाए बड़े से मग में
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6:05 - 6:07कॉफ़ी पीना बड़ा अच्छा लगता था,
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6:08 - 6:10और आइरिश सोडा ब्रेड उन्हें
पसंद थी। -
6:12 - 6:13फिर वो स्नान करती थीं,
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6:13 - 6:14उन्हें बहुत अच्छा लगता था।
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6:14 - 6:16उन्हें गरम पानी पसंद था,
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6:16 - 6:19और में इसे जितना अच्छा हो सके, कर देती थी,
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6:19 - 6:21एक स्पा जैसा।
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6:21 - 6:23कभी कभी मेरी बहन भी मदद
करती थी। -
6:23 - 6:25हम गरम किए तौलिए
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6:25 - 6:28और चप्पलें तैयार रखते थे
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6:28 - 6:30जिस से एक सेकेंड भी उन्हें ठंड न लगे।
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6:31 - 6:32हम उनके बाल सुखाते थे।
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6:33 - 6:36मेरे भाई शाम को अपने बच्चों के साथ
आ जाते थे, -
6:36 - 6:38और वो दिन का सबसे ख़ास हिस्सा होता था।
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6:39 - 6:41धीरे धीरे, वहील चेअर का
इस्तेमाल होने लगा, -
6:42 - 6:44और उनकी भूख मिट गयी,
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6:44 - 6:49तो बहुत ही छोटे छोटे कपों
में काफ़ी पीने लगीं। -
6:51 - 6:53और अब मैं उनका ध्यान नहीं रख पाती थी,
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6:53 - 6:55तो हमने नहाने में मदद
करने के लिए किसी को रखा। -
6:56 - 6:59ये दिनचर्या हमारे लिए
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6:59 - 7:01ज़रूरी पूजा जैसी हो गयी,
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7:02 - 7:04और हम दिन पर दिन इसे करते रहे
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7:04 - 7:05जैसे जैसे कैन्सर बढ़ा।
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7:06 - 7:08ये बहुत कठिन और नम्र कर देने
वाला अनुभव था, -
7:08 - 7:11और बिलकुल वैसा था जैसा हम चाहते थे।
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7:12 - 7:14हम इसे "सुंदर कठिनाई" कहते थे।
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7:16 - 7:20वो अक्टूबर 26 2012 को चल बसीं।
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7:20 - 7:24कैन्सर पता लगने के 1 साल और 3 हफ़्ते बाद।
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7:25 - 7:26वो बस चली गयीं।
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7:30 - 7:31मेरे भाई, बहन, पिता और मैं
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7:32 - 7:35एक दूसरे को सहारा देने के लिए साथ आए।
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7:36 - 7:38मानो हमारे पुराने रिश्ते
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7:38 - 7:40और रोल हवा हो गए
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7:40 - 7:43और हम बस इस अनजान जगह
साथ थे, -
7:43 - 7:44एक सी चीज़ को महसूस करते
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7:45 - 7:46और एक दूसरे का ख़याल रखते।
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7:48 - 7:50मैं उनकी बहुत शुक्रगुज़ार हूँ।
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7:53 - 7:57मैं अकेले स्टूडीओ में काम करते हुए
अपना समय बिताती हूँ, -
7:57 - 8:00मुझे अंदाज़ा ही नहीं था की ऐसे
जुड़ना -
8:00 - 8:03इतना ज़रूरी और इतना सहारा दे सकता है।
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8:03 - 8:04ये सब से महत्वपूर्ण बात थी।
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8:06 - 8:08मैंने हमेशा यही तो चाहा था।
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8:09 - 8:14तो अंत्येष्टि के बाद, मुझे वापस
अपने स्टूडीओ जाना था। -
8:16 - 8:18मैंने अपना समान कार में भरा
और ब्रुकलिन चली गयी, -
8:18 - 8:21क्यूँकि मैं पेंटिंग ही जानती थी,
मैं उसमें जुट गयी। -
8:22 - 8:24और फिर कुछ अलग ही हुआ।
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8:27 - 8:31जैसे अपने भीतर भारी चीज़ों
को आज़ादी मिल गयी हो। -
8:34 - 8:39वो सुरक्षित, सम्हाल के सब करने वाला तारिक
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8:39 - 8:42जिस से मैं अपना सारा काम करती थी,
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8:42 - 8:43वो सब झूठ था,
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8:43 - 8:44वो काम ही नहीं आया।
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8:45 - 8:48और मुझे डर गयी - अब मेरा पेंट
करने का मन ही नहीं करता था। -
8:51 - 8:53तो मैं जंगलों में चली गयी।
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8:53 - 8:56मैंने सोचा, बाहर निकालने
की कोशिश करते हैं, -
8:56 - 9:00मैंने अपने पेंट लिए,
और मैं प्रकृति चित्र नहीं बनाती थी, -
9:00 - 9:03और किसी ख़ास विधा में तो बिलकुल
नहीं बनाती थी, -
9:03 - 9:05तो ना कोई लगाव था, ना कोई आशा,
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9:05 - 9:08और मैं खुल कर पेंट करने लगी।
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9:08 - 9:10मैंने एक पानी वाली पेंटिंग को
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9:10 - 9:12रात भर बाहर छोड़ दिया।
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9:13 - 9:16जंगल में एक रोशनी के बग़ल में।
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9:16 - 9:19सुबह तक इसमें तमाम कीड़े चिपक गए थे।
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9:21 - 9:23मगर मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ा।
किसी बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। -
9:23 - 9:26उन सब पेंटिंग को स्टूडीओ ले जा के,
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9:26 - 9:28उन्हें घिसा, उनमे छेद किए,
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9:28 - 9:31उनपे थिनर उँडेल दिया,
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9:31 - 9:33और पेंट लगाया, उनके ऊपर और बनाया,
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9:33 - 9:34कही कोई प्लान नहीं था,
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9:35 - 9:37मगर मैं देख रही थी की कुछ हो रहा था।
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9:39 - 9:41ये वो कीड़े वाली पेंटिंग है।
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9:42 - 9:44मैं कोई असल जगह बनाने की
कोशिश में नहीं थी। -
9:44 - 9:49इनकी उथलपथल और गड़बड़ियाँ
मुझे आकर्षित करते थे, -
9:49 - 9:50और कुछ नया सा घटना शुरू हुआ गया।
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9:52 - 9:53मैं फिर से जिज्ञासु हो उठी।
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9:54 - 9:57ये जंगलों में बनायी एक और पेंटिंग है।
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9:58 - 10:00बस एक कमी थी,
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10:00 - 10:03की मेरे रंग अब मेरे बस में नहीं रह गए थे।
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10:03 - 10:06बस अपने आप सब होता चलता था,
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10:06 - 10:09ना समझना ना बताना।
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10:10 - 10:14और वही अस्तव्यस्त उबाल भरी हलचल
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10:14 - 10:16एक कहानी कह रही थी।
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10:18 - 10:21मैं अपने विद्यार्थी जीवन जितनी
उत्सुक और जिज्ञासु हो गयी थी। -
10:22 - 10:26और फिर में इन पेंटिंगो में लोगों
को डालने लगी, -
10:26 - 10:28और मुझे ये नया परिवेश बहुत अच्छा लगा
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10:28 - 10:32मैं लोगों को और इस परिवेश दोनो को
मिलना चाहती थी। -
10:34 - 10:36जब मुझे समझ आया की ये कैसे करना है,
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10:36 - 10:39तो मैं बिलकुल पसर से गयी,
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10:39 - 10:42शायद अड्रेनलिन के वजह से,
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10:42 - 10:45मगर मेरे लिए वो बढ़िया लक्षण था।
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10:45 - 10:48तो अब मैं आपको दिखाना चाहती हूँ
की मैं क्या करती रही हूँ। -
10:48 - 10:52अभी तक इसे किसी ने नहीं देखा है,
समझ लीजिए, ख़ास झलक है, -
10:52 - 10:53मेरे अगले शो की,
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10:53 - 10:54अब तक इतना
हो चुका है। -
10:56 - 10:58विशाल जगह
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10:59 - 11:01अलग थलग बाथटब की जगह।
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11:01 - 11:04बाहर की ओर जाना, अंदर बंद होने के बजाय।
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11:05 - 11:07कंट्रोल छोड़ना,
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11:08 - 11:10गड़बड़ को एकाकार करना,
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11:10 - 11:11इजाज़त देना --
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11:12 - 11:14कि खोट होती है तो हो जाए।
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11:16 - 11:17और उन्हीं त्रुटियों में,
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11:17 - 11:19एक नाज़ुकपन का एहसास निकालना।
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11:19 - 11:23मैं अपने अंदर की गहरी भावनाओं तक
पहुँच सकी, -
11:26 - 11:27उस इंसानी जुड़ाव तक
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11:28 - 11:32जो तब ही हो सकता है जब
पूरी तरह से आज़ाद हो कर जुड़ा जाए। -
11:34 - 11:35अपनी पेंटिंग में वही लाना चाहती हूँ।
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11:38 - 11:40तो मैंने ये सीखा कि ---
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11:41 - 11:44हम अब अपने जीवन में
बड़ी त्रासदियों से गुज़रेंगे, -
11:45 - 11:47शायद नौकरी, करियर,
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11:47 - 11:50रिश्ते, प्यार, जवानी से जुड़े।
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11:52 - 11:54हम बीमार हो जाएँगे,
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11:54 - 11:55हम अपनो को खो देंगे।
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11:56 - 11:59इस तरह के नुक़सान हमारे
वश के बाहर हैं। -
11:59 - 12:00ये कभी भी हो सकते हैं,
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12:01 - 12:02और ये हमें तोड़ डालते हैं।
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12:04 - 12:06तो मैं कहती हूँ , तोड़ने दो।
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12:07 - 12:09गिर जाओ। अपनी क्षणभंगुरता का सामना करो।
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12:11 - 12:13उसे रोकने की नाकाम कोशिश से आगे जाओ
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12:13 - 12:15उसे बदलने में मत उलझो।
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12:15 - 12:17ऐसा बस होता है।
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12:19 - 12:21और तब वो जगह मिलेगी,
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12:21 - 12:24और उस जगह में अपनी कमज़ोरी से सामना होगा,
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12:24 - 12:26वो मिलेगा जो आपके लिए सबसे ज़रूरी होगा,
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12:26 - 12:27आपका सबसे गहरा ध्येय।
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12:29 - 12:30और उस से जुड़ने के लिए उत्सुक
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12:32 - 12:35जो वहाँ है,
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12:35 - 12:37जागता और जीता।
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12:38 - 12:39हम सब वही खोज रहे हैं।
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12:41 - 12:44आइए कुछ ख़ूबसूरत सा ढूँढे
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12:45 - 12:48इस दुनिया में - जो अनजान, अप्रत्याशित,
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12:49 - 12:50बल्कि बदसूरत भी है।
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12:51 - 12:53धन्यवाद।
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12:53 - 12:56(तालियाँ)
- Title:
- कैसे किसी को खोना एक आर्टिस्ट को ख़ूबसूरती की खोज पर ले गया।
- Speaker:
- अलीसा मंक्स
- Description:
-
पेंटर अलीसा मंक्स अप्रत्याशित और अनजान दुनिया में ख़ूबसूरती और प्रेरणा पाती हैं। एक काव्यात्मक और दोस्ती भरी बातचीत में, वो अपने जीवन, रंगों, कैनवस के अनुभव साझा करती हैं, एक आर्टिस्ट और एक इंसान के तौर पर अपनी यात्रा से हमें गुज़ारती हैं।
- Video Language:
- English
- Team:
- closed TED
- Project:
- TEDTalks
- Duration:
- 13:08
Abhinav Garule approved Hindi subtitles for How loss helped one artist find beauty in imperfection | ||
Abhinav Garule accepted Hindi subtitles for How loss helped one artist find beauty in imperfection | ||
Swapnil Dixit edited Hindi subtitles for How loss helped one artist find beauty in imperfection | ||
Swapnil Dixit edited Hindi subtitles for How loss helped one artist find beauty in imperfection | ||
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