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५०० शरणार्थियों वाला जहाज़ डुबता है| दो बचनेवालों की कहानी

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    हर रोज़, मैं ऐसी दुखद कहानियां सुनती हूँ
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    जिनमें लोग अपनी जान बचाने के लिए
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    खतरनाक सीमाओं और
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    विद्वेषपूर्ण समुद्रों को पार कर जाते है।
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    किन्तु एक कहानी है जो
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    मुझे रातों को जगाये रखती है,
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    और वह है डोआ की कहानी।
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    एक १९ वर्षीया, सीरिया की शरणार्थी,
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    वह मिस्र में दिहाड़ी पर काम करते हुए
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    एक कष्टपूर्ण अस्तित्व जी रही थी।
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    उसके पिता हमेशा सीरिया में अपने सम्पन्न
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    व्यापार के बारे में सोचते रहते थे,
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    जिसके एक बम ने चिथड़े उड़ा दिए थे।
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    और वह युद्ध, जिसकी वजह से वह वहां आये थे
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    उसे भी चार वर्ष हो चुके थे।
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    और जिस समुदाय ने कभी
    उनका वहां स्वागत किया था
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    उनसे ऊब चुका था।
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    और एक दिन, मोटरसाइक्ल
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    सवारों ने उसका अपहरण करने की कोशिश की।
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    एक समय की महत्वाकांक्षी विद्यार्थी
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    जो केवल अपने भविष्य की सोचती थी,
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    अब हर समय डरी हुई रहती थी।
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    किन्तु वह आशापूर्ण भी थी,
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    क्यूंकि वह एक साथी सीरियन शरणार्थी
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    बासेम के साथ प्यार करती थी।
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    बासेम भी मिस्र में संघर्ष कर रहा था,
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    और उसने डोआ से कहा,
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    "आओ, हम यूरोप चलें; शरण और सुरक्षा मांगे।
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    मैं काम करूंगा, तुम पढ़ना--
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    एक नयी ज़िन्दगी का वादा।"
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    और उसने उसके पिता से
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    शादी के लिए उसका हाथ मांग लिया।
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    किन्तु वह जानते थे कि यूरोप जाने के लिए
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    उन्हें अपनी ज़िन्दगी दांव पर लगानी होगी,
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    भूमध्य सागर को पार करना ,
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    अपने हाथ काट कर तस्करों को देना,
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    जो अपनी क्रूरता के लिए जाने जाते थे।
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    और डोआ को पानी से बहुत डर लगता था।
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    वह हमेशा से डरती थी।
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    उसने तैरना कभी सीखा ही नहीं था।
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    उस वर्ष अगस्त का महीना था,
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    और पहले ही २००० लोग
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    भूमध्य सागर को पार करते हुए मर चुके थे,
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    किन्तु डोआ की एक दोस्त
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    उत्तरी यूरोप तक पहुँच गयी थी,
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    और उसने सोचा," शायद हम भी पहुँच सकते हैं।"
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    उसने अपने माता पिता से पूछा कि
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    क्या वह जा सकते हैं,
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    और एक बहुत दर्दनाक बहस के बाद,
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    उन्होंने हाँ कर दी,
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    और बासेम ने अपनी उम्र भर की कमाई--
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    २५०० डॉलर प्रत्येक के लिए--
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    तस्करों को दे दी।
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    वह शनिवार की सुबह थी
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    जब बुलावा आया,
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    और उन्हें बस में बिठाकर
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    समुद्र तट ले जाया गया,
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    समुद्र तट पर सैंकड़ों लोग।
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    फिर छोटी किश्तियों में बिठाकर एक पुरानी
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    मछली पकड़ने वाली नाव में ले जाया गया,
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    ५०० लोगों को नाव में भर दिया गया,
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    ३०० नीचे, ५०० ऊपर,उनमे थे
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    सीरियाई, फिलिस्तीनी, अफ़्रीकी,
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    मुस्लिम, और ईसाई,
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    १०० बच्चे, ६ वर्षीय सैंड्रा को मिलाकर--
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    और १८ महीने का मासा।
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    उस नाव में परिवार भरे हुए थे,
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    कंधे से कन्धा मिलाये हुए,
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    पाँव से पाँव।
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    डोआ अपनी टांगे छाती से
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    लगाये बैठी थी,
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    बासेम उसका हाथ पकड़े था।
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    पानी पर दूसरा दिन,
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    वे चिंता से ग्रसित थे
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    और अशांत समुद्र
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    की वजह से बीमार।
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    तीसरा दिन, डोआ को एक पूर्वाभास हुआ।
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    और उसने बासेम को कहा,
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    "मुझे डर है हम नहीं कर पाएंगे।
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    मुझे लगता है नाव डूबने वाली है।"
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    और बासेम ने उसे कहा,
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    "कृपया धीरज रखो,
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    हम स्वीडन पहुंचेंगे,
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    हम शादी करेंगे
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    और हमारा एक भविष्य होगा। "
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    चौथा दिन, मुसाफिर उत्तेजित होने लगे थे।
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    उन्होंने कप्तान से पूछा,
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    "हम वहां कब पहुंचेंगे?"
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    उसने उन्हें चुप रहने को कहा,
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    और उन्हें अपमानित भी किया।
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    उसने कहा, "हम १६ घंटों में
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    इटली के तट पर पहुँच जायेंगे।"
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    वे कमज़ोर और निढाल थे।
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    उन्होंने एक किश्ती आते देखी -
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    एक छोटी किश्ती जिसमें १० लोग सवार थे,
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    और वह उनपर चिल्लाने लगे,
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    गाली गलौज करने लगे,
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    डंडे फेंकने लगे, और उन्हें
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    नाव में से उतर कर छोटी किश्ती में
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    बैठने को बोलने लगे,
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    जो समुद्री यात्रा के अयोग्य थी।
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    माता पिता अपने बच्चों
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    के लिए भयभीत थे,
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    और उन सबने उतरने से
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    मना कर दिया।
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    वे गुस्से में किश्ती को ले गए,
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    आधे घंटे के बाद, वापिस आकर
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    जान बूझ कर डोआ की नाव
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    की एक तरफ छेद करने लगे,
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    ठीक नीचे, जहां वह
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    और बासेम बैठे थे।
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    और उसने उनकी चीखें सुनी,
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    "मछलियों को तुम्हारा गोश्त खाने दो!"
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    और वे हंसने लगे जैसे ही नाव
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    उल्ट कर डूबने लगी।
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    डेक के नीचे के ३०० लोगों
    का जीवन तो
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    समाप्त ही था।
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    डोआ ने नाव को पकड़ रखा था
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    जैसे वह डूब रही थी,
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    और एक छोटे से बच्चे को नाव के प्रोपेलर
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    द्वारा कटते हुए देख कर वह सहम गयी थी।
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    बासेम ने उससे कहा," कृपया छोड़ दो ,नहीं तो
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    तुम भी खींची जाओगी
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    और मोटर तुम्हे भी काट देगी।"
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    और याद है-- वह तैर नहीं सकती।
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    किन्तु उसने छोड़ दिया और
    अपनी टांगें और बाहें हिलाने लगी,
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    यह सोचते हुए कि,
    "यह तैरना है। "
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    और चमत्कार देखिये,
    बासेम को एक जीवन रक्षक चक्र मिला।
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    बच्चों के खेलने वाला चक्र
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    जिसके साथ वह तरणताल और
    शांत समुद्र में खेल सकते हैं।
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    और डोआ उस चक्र पर चढ़ गयी,
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    उसकी टांगें और बाहें दोनों तरफ
    लटक रही थीं।
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    बासेम एक अच्छा तैराक था,
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    तो वह उसका हाथ पकड़ कर
    पानी में चलता रहा।
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    उनके आस पास मृत शरीर थे।
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    आरम्भ में लगभग १०० लोग जीवित बचे,
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    जो समूहों में इकठे होने लगे,
    अपने बचाव के लिए प्रार्थना करने लगे।
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    किन्तु जब एक दिन गुज़र गया और कोई नहीं आया,
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    कुछ लोगों ने उम्मीद छोड़ दी,
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    और डोआ और बासेम देखते रहे.
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    कैसे दूर लोगों ने अपनी जीवन रक्षा जैकेट
    उतारीं और पानी में डूब गए।
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    एक आदमी जिसके कंधे पर एक
    छोटा बच्चा बैठा था, उनके पास आया,
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    नौ महीने का-- मालेक।
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    वह आदमी एक गैस कनस्तर पकड़े हुए तैर रहा था
    और वह उनसे बोला,
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    "मुझे डर है कि मैं ज़िंदा नहीं बचूंगा।
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    मैं बहुत कमज़ोर हो गया हूँ। मुझ में अब
    वह साहस नहीं बचा है।"
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    और उसने नन्हे मालेक को डोआ
    और बासेम को सौंप दिया,
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    उसे जीवन रक्षा चक्र पर बिठा दिया।
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    तो अब वह तीन थे,
    डोआ, बासेम, और नन्हा मालेक।
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    मुझे यहां कहानी में एक विराम लेने
    दीजिये, ठीक यहाँ पर
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    एक प्रशन पूछने के लिए:
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    डोआ जैसे शरणार्थी ऐसे
    जोखिम क्यों मोल लेते हैं?
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    लाखों शरणार्थी निर्वास में रह रहे हैं,
    अधर में लटके हुए।
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    वे ऐसे देशों में रह रहे हैं[भाग रहे हैं]
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    जहाँ चार सालों से युद्ध चल रहा है।
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    यदि वे वापिस भी जाना चाहें,
    तो नहीं जा सकते।
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    उनके घर, उनके व्यापार,
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    उनके शहर और उनके कसबे
    पूरी तरह से नष्ट हो चुके हैं।
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    यह UNESCO द्वारा नामित एक
    विश्व धरोहर शहर है,
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    सीरिया में होम्स।
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    तो लोग पडोसी देशों की ओर
    भागते रहते हैं,
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    और हम उनके लिए रेगिस्तान में
    शरणार्थी शिविर बना देते हैं।
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    हज़ारों लोग ऐसे शिविरों में रहते हैं,
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    और हज़ारों से भी ज़्यादा, लाखों,
    कस्बों और शहरों में रहते हैं।
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    और वह समुदाय,
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    वह पड़ोसी देश जिन्होंने कभी
    उनका स्वागत किया था
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    खुले दिलों के साथ
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    अभिभूत हो चुके हैं।
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    स्कूल, पीने के पानी की व्यवस्था, स्वच्छता,
    यह सब पर्याप्त हैं ही नहीं।
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    यहां तक कि अमीर यूरोपीय देश भी
    भारी निवेश के बिना इतने सारे
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    शरणार्थियों का प्रवाह नहीं संभाल पाते।
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    सीरिया युद्ध ने लगभग चालिस लाख लोगों
    को सीमा के पार जाने को मजबूर कर दिया,
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    किन्तु सत्तर लाख से भी ज्यादा लोग
    देश के भीतर भाग रहे हैं।
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    इसका अर्थ है कि सीरिया की आधी से ज्यादा
    जनसँख्या को भागने के लिए
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    मजबूर होना पड़ा।
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    उन पडोसी देशों के पास वापिस चलते हैं
    जिन्होंने अनेकों को शरण दी।
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    उन्हें लगता है कि अमीर देशों ने
    उनके समर्थन में बहुत कम योगदान दिया है।
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    दिन महीनों में, और महीने सालों
    में बदलते जा रहे हैं।
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    शरणार्थी अस्थायी तौर पर प्रवास करते हैं।
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    पानी में डोआ और बासेम के
    पास वापिस चलते हैं।
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    यह उनका दूसरा दिन था और बासेम कमज़ोर
    पड़ रहा था।
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    और अब डोआ की बारी थी बासेम से कहने की
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    "मेरी जान, हमारे भविष्य की आशा को मत छोडो।
    हम ज़रूर कामयाब होंगे।"
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    और उसने उसको कहा,
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    "मुझे माफ़ कर दो मेरी जान,
    कि मैंने तुम्हे इस मुश्किल में फंसाया।
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    मैंने कभी किसी और को इतना नहीं चाहा
    जितना मैं तुम्हें चाहता हूँ।"
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    और उसने अपने आप को पानी में छोड़ दिया,
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    और डोआ देखती रही अपनी ही आँखों के सामने
    अपनी जान को पानी में डूबते हुए।
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    उस दिन थोड़ी देर बाद,
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    डोआ के पास एक माँ अपनी १८ महीने की नन्ही
    बच्ची, मासा को लेकर आई।
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    यह वही नन्ही बच्ची थी जिसकी तस्वीर
    आपको जीवन रक्षक जैकेटों
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    के साथ मैंने पहले दिखाई थी।
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    उसकी बड़ी बहिन सैंड्रा
    पानी में डूब चुकी थी,
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    और उसकी माँ जानती थी की उसे अपनी
    बच्ची को बचाने के लिए
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    कुछ भी करना पड़ेगा।
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    और उसने डोआ से कहा,
    "कृपया इस बच्ची को ले लो।
  • 9:50 - 9:55
    इसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लो।
    मैं नहीं बच पाऊँगी।"
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    और फिर वह चली गयी और डूब गयी।
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    तो वह १९ वर्षीय शरणार्थी डोआ
    जिसे पानी से बहुत भय था,
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    जो तैर नहीं सकती थी,
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    ने अपने आप को दो नन्हे बच्चों
    का उत्तरदायी पाया।
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    और वह प्यासे थे, भूखे थे और
    उत्तेजित थे,
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    और उसने उनका दिल बहलाने का
    पूरा प्रयत्न किया,
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    उन्हें गाने सुनाये, कुरान की
    शमस सुनाई।
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    उनके आस पास मृत शरीर फूल कर
    काले पड़ रहे थे।
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    दिन में धूप बहुत तेज़ थी।
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    रात में शीतल चाँद और धुंद थी।
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    बहुत ही भयावह दृश्य था।
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    पानी में चौथे दिन, बच्चों के साथ
    चक्र में बैठी डोआ
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    शायद ऐसी दिख रही थी।
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    चौथे दिन एक औरत उसके पास आई
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    और एक और बच्चे को लेने के लिए बोली--
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    एक नन्हा बालक, केवल चार वर्ष का।
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    जब डोआ ने बच्चे को ले लिया
    और उसकी माँ डूब गयी,
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    वह रोते हुए बच्चे से बोली,
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    "वह सिर्फ तुम्हारे लिए पानी
    और भोजन लेने गयी है।"
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    किन्तु उसके दिल की धड़कन
    जल्द ही रुक गयी,
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    और डोआ को उस नन्हे बालक को
    पानी में छोड़ना पड़ा।
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    बाद में उस दिन,
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    उसने उम्मीद से आसमान की तरफ देखा,
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    क्यूंकि उसे दो हवाई जहाज़
    उड़ते हुए दिखाई दिए।
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    और उसने अपनी बाहें हिलायी,
    इस आशा से कि शायद वह उसे देख लेंगे,
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    किन्तु वह जहाज़ जल्द ही चले गए।
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    उस दोपहर को, जब सूरज डूब रहा था,
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    उसने एक नाव देखी, एक व्यापारी जहाज़।
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    और उसने कहा, "हे भगवान, काश
    यह मुझे बचा लें। "
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    उसने अपनी बाहें हिलायी और उसे लगा कि वह
    लगभग दो घंटे तक चिल्लाती रही।
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    अब अँधेरा हो चुका था,
    किन्तु अंत में खोजबत्तीने उसे ढूंढ लिया
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    और उन्होंने एक रस्सी फेंकी,
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    एक महिला को दो छोटे बच्चों के
    साथ देख कर वह हैरान थे।
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    उन्होंने उन्हें जहाज़ पर खींच लिया,
    उन्हें ऑक्सीजन और कम्बल दिए,
  • 11:58 - 12:01
    और एक यूनानी हेलीकाप्टर उन्हें
    क्रीट के द्वीप पर
  • 12:01 - 12:04
    ले जाने के लिए आया।
  • 12:04 - 12:08
    किन्तु डोआ ने नीचे देख कर पूछा,
    "मालेक का क्या होगा?"
  • 12:08 - 12:12
    और उन्होंने उसे बताया की वह नन्ही
    बच्ची बच नहीं पायी--
  • 12:12 - 12:16
    उसने जहाज़ के दवाखाने में
    अपनी आखरी सांस ली थी।
  • 12:16 - 12:22
    किन्तु डोआ को यकीन था की जब उन्हें
    बचाव जहाज़ पर लाया गया था,
  • 12:22 - 12:27
    तो वह नन्ही बच्ची मुस्कुरा रही थी।
  • 12:27 - 12:34
    उस विनाश में ५०० में से
    केवल ११ लोग बच पाये।
  • 12:34 - 12:39
    उस हादसे की कोई अंतर्राष्ट्रीय
    जांच नहीं हुई।
  • 12:39 - 12:43
    कुछ संचार माध्यमों ने समुद्र
    में हुई सामूहिक हत्या के बारे में लिखा,
  • 12:43 - 12:45
    दर्दनाक हादसा,
  • 12:45 - 12:47
    किन्तु वह सिर्फ एक दिन के लिए।
  • 12:47 - 12:53
    और फिर समाचार बदलते गए।
  • 12:53 - 12:57
    इस बीच, क्रीट में एक
    बच्चों के अस्पताल में,
  • 12:57 - 13:02
    नन्ही मासा मौत के बिलकुल करीब थी।
  • 13:02 - 13:05
    वह बहुत ही निर्जलित थी।
    उसके गुर्दे काम नहीं कर रहे थे।
  • 13:05 - 13:08
    उसका ग्लूकोस स्तर बहुत ही निम्न था।
  • 13:08 - 13:11
    डॉक्टरों ने बचाने की भरपूर कोशिश की
  • 13:11 - 13:15
    और यूनानी नर्सें उसके पास रही, उसे
  • 13:15 - 13:17
    पकड़ती, उसे सीने से लगाती,
    उसे गाने सुनातीं।
  • 13:17 - 13:22
    मेरे सहयोगी भी उसे मिलने गए और
    उस के साथ अरबी में प्यारी बातें की।
  • 13:22 - 13:28
    आश्चर्यजनक रूप से, नन्ही मासा बच गयी।
  • 13:28 - 13:34
    और जल्द ही युनानी अख़बारों में
    चमत्कारी बच्ची की खबरें छपने लगी,
  • 13:34 - 13:40
    जो पानी में बिना भोजन और बिना कुछ
    पिए हुए जीवित रही,
  • 13:40 - 13:46
    और पूरे देश से उसे गोद लेने के लिए
    प्रस्ताव आने लगे।
  • 13:46 - 13:49
    और इस बीच, डोआ क्रीट में
    किसी और अस्पताल में थी,
  • 13:49 - 13:52
    कमज़ोर, निर्जलित।
  • 13:52 - 13:58
    जैसे ही वह अस्पताल से निकली मिस्र के
    एक परिवार ने उसे अपने घर में ले लिया ।
  • 13:58 - 14:03
    और शीघ्र ही डोआ की खबर
    सब जगह फ़ैल गयी,
  • 14:03 - 14:07
    और फेसबुक पर एक फ़ोन नंबर भी
    प्रकाशित कर दिया गया।
  • 14:07 - 14:11
    सन्देश आने लगे।
  • 14:11 - 14:16
    "डोआ, तुम्हे पता है कि मेरे
    भाई के साथ क्या हुआ?
  • 14:16 - 14:23
    मेरी बहन? मेरे माता-पिता? मेरे मित्र?
    तुम्हे पता है बच पाये या नहीं?
  • 14:23 - 14:27
    उनमें से एक सन्देश में लिखा था,
  • 14:27 - 14:32
    "मुझे लगता है की तुमने मेरी
    नन्ही भतीजी, मासा को बचाया है।"
  • 14:32 - 14:36
    और उसमें यह तस्वीर थी।
  • 14:36 - 14:38
    यह मासा के चाचा का सन्देश था,
  • 14:38 - 14:43
    एक सीरियाई शरणार्थी जो अपने परिवार
    और मासा की बड़ी बहन
  • 14:43 - 14:46
    के साथ स्वीडन पहुँच गया था।
  • 14:46 - 14:51
    हम आशा करते हैं की जल्द ही मासा उनके
    साथ फिर से मिल जाएगी स्वीडन में,
  • 14:51 - 14:58
    और तब तक, उसका एथेंस में एक सुन्दर
    अनाथालय में ध्यान रखा जा रहा है।
  • 14:58 - 15:05
    और डोआ? उसके बचने के बारे में भी सभी
    को पता चल गया।
  • 15:05 - 15:09
    और संचार माध्यम ने इस साधारण महिला
    के बारे में लिखा,
  • 15:09 - 15:13
    और कोई सोच भी नहीं सकता कि
    वह कैसे जीवित रही
  • 15:13 - 15:16
    समुद्र में ऐसी मुश्किलों में,
  • 15:16 - 15:20
    और फिर किसी की जान भी बचा पायी।
  • 15:20 - 15:26
    द अकादमी ऑफ़ एथेंस, यूनान की
    एक प्रतिष्ठित संस्था,
  • 15:26 - 15:29
    ने उसे वीरता पुरुस्कार से सम्मानित किया,
  • 15:29 - 15:32
    और वह इस सब सराहना के लायक है,
  • 15:32 - 15:36
    और वह एक और मौके के योग्य है।
  • 15:36 - 15:40
    किन्तु वह अब भी स्वीडन जाना चाहती है।
  • 15:40 - 15:42
    वह वहाँ अपने परिवार के
    साथ मिलना चाहती है।
  • 15:42 - 15:46
    वह मिस्र से अपनी माता और अपने पिता और
    अपने छोटे भाई बहनों को भी
  • 15:46 - 15:48
    मिस्र से दूर वहां ले कर जाना चाहती है,
  • 15:48 - 15:51
    और मेरा विश्वास है कि वह सफल होगी।
  • 15:51 - 15:54
    वह वकील या राजनीतिज्ञ बनना चाहती है
  • 15:54 - 15:59
    या कोई ऐसा जो अन्याय के खिलाफ लड़ सके।
  • 15:59 - 16:03
    वह एक असाधारण उत्तरजीवी है।
  • 16:03 - 16:06
    किन्तु मैं पूछना चाहती हूँ:
  • 16:06 - 16:08
    क्या होता यदि उसे यह जोखिम न उठाना पड़ता?
  • 16:08 - 16:11
    उसे यह सब क्यों करना पड़ा?
  • 16:11 - 16:16
    उसके लिए यूरोप में पढ़ने का कोई
    कानूनी तरीका क्यों नहीं था ?
  • 16:16 - 16:21
    क्यों मासा एक हवाई जहाज़
    में बैठ कर स्वीडन नहीं जा सकती थी?
  • 16:21 - 16:24
    क्यों बासेम को कोई काम नहीं मिल सकता था?
  • 16:24 - 16:30
    क्यों हमारे समय के सबसे
    बुरे युद्ध के पीड़ित सीरियाई
  • 16:30 - 16:34
    शरणार्थियों के लिए कोई
    विशाल पुनर्वास कार्यक्रम नहीं है?
  • 16:34 - 16:41
    संसार में १९७० में विएतनामियों के लिए
    ऐसा किया गया था। अब क्यों नहीं ?
  • 16:41 - 16:45
    क्यों इतना कम निवेश है उन
    पड़ोसी देशों में जो इतने सारे
  • 16:45 - 16:49
    शरणार्थियों को शरण दे रहे हैं?
  • 16:49 - 16:52
    और मूल प्रश्न क्यों,
  • 16:52 - 16:58
    इतना कम किया जा रहा है इन युद्धों को
    रोकने के लिए, इस अत्याचार
  • 16:58 - 17:03
    और इस गरीबी को रोकने के लिए, जो इतने सारे
    लोगों को धकेल रहा है
  • 17:03 - 17:06
    यूरोप के समुद्र तट की ओर?
  • 17:06 - 17:09
    जब तक यह मामले सुलझाये नहीं जायेंगे,
  • 17:09 - 17:12
    सुरक्षा और पनाह को ढूंढते हुए
  • 17:12 - 17:16
    लोग समुद्र की तरफ जाते रहेंगे।
  • 17:16 - 17:18
    और फिर आगे क्या होगा?
  • 17:18 - 17:21
    यह तो यूरोप के चुनाव की बात है।
  • 17:21 - 17:25
    मैं आम जनता के डर को समझ सकती हूँ।
  • 17:25 - 17:32
    लोग अपनी सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, संस्कृति
    के परिवर्तनों के बारे में चिंतित हैं।
  • 17:32 - 17:37
    किन्तु क्या वह मानव जीवन बचाने
    से ज़्यादा आवश्यक है?
  • 17:37 - 17:40
    क्यूंकि यहाँ पर कुछ मौलिक बात है
  • 17:40 - 17:43
    जो बाकि सब से बहुत अधिक महत्वपूर्ण है,
  • 17:43 - 17:47
    और वह है हमारी सामान्य मानवता।
  • 17:47 - 17:51
    युद्ध अथवा अत्याचार से भागते किसी भी
  • 17:51 - 17:56
    व्यक्ति को सुरक्षा की खोज में समुद्र
    लांघते हुए मरने की नौबत नहीं आनी चाहिए।
  • 17:56 - 18:03
    (तालियां)
  • 18:03 - 18:04
    एक बात निश्चित है,
  • 18:04 - 18:07
    उन खतरे से भरी किश्तियों पर कोई
    शरणार्थी नहीं होता, यदि वह
  • 18:07 - 18:10
    वहाँ फल फूल सकते, जहाँ वह रहते हैं।
  • 18:10 - 18:13
    और कोई प्रवासी वह खतरनाक
    सफर नहीं करता
  • 18:13 - 18:17
    यदि उसके पास अपने और अपने बच्चों के
    खाने के लिए पर्याप्त भोजन होता।
  • 18:17 - 18:19
    और कोई अपनी उम्र भर की बचत
  • 18:19 - 18:22
    उन बदनाम तश्करों के हाथ नहीं देता
  • 18:22 - 18:25
    यदि प्रवास करने का कोई वैध तरीका होता।
  • 18:25 - 18:29
    नन्ही मासा
  • 18:29 - 18:31
    और डोआ
  • 18:31 - 18:33
    और बासेम की तरफ से
  • 18:33 - 18:38
    और उन ५०० से जो उनके साथ
    डूब गए थे ,
  • 18:38 - 18:42
    क्या हम यह निश्चित कर सकते हैं कि
    उनकी मौत बेकार नहीं जाएगी?
  • 18:42 - 18:46
    क्या हम इस घटना से प्रेरित होकर,
  • 18:46 - 18:53
    एक ऐसे संसार का निर्णय लें सकेंगे जिसमें
    प्रत्येक जीवन का मूल्य हो।
  • 18:53 - 18:54
    धन्यवाद।
  • 18:54 - 19:01
    (तालियाँ)
Title:
५०० शरणार्थियों वाला जहाज़ डुबता है| दो बचनेवालों की कहानी
Speaker:
मेलीस्सा फ्लेमिंग
Description:

बहुत अधिक भार से लदे ५०० शरणार्थियों वाले जहाज़ पर एक युवती, एक असम्भाव्य नायिका के रूप में उभरती है। UN की शरणार्थी संस्था की मलिस्सा फ्लेमिंग द्वारा वर्णित, यह केवल एक, ऐसी ज़बरदस्त कहानी है जो एक मानवीय चेहरा दे पाती है मनुष्यों की उन वास्तविक संख्याओं को जो बेहतर ज़िन्दगी की खोज में पलायन कर रहे हैं... जैसे- जैसे शरणार्थी जहाज़ आते जाते हैं...

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
19:15

Hindi subtitles

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