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सांख्यकी का परिचय : माध्य,माध्यिका और बहुलक|

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    हम अब सांख्यिकी की दुनिया की सैर करेंगे, जो वास्तव में
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    आंकड़ो को समझती है, और हमें आंकड़ो के बारे में सोचने का मौका देती है|
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    सांख्यकी, पूरी तरह से आंकड़ो के बारे में है|
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    और जैसे ही हम सांख्यकी की दुनिया में सैर करेंगे,
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    तब हम वो बहुत कुछ करेंगे जिसे हम "वर्णनात्मक सांख्यकी" कहते है|
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    यदि हमारे पास कुछ आंकड़े है और हम उसके बारे में कुछ बताना चाहते है, बिना सभी आंकड़े दिए--
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    क्या हम किसी तरह से आंकड़ो के कुछ छोटे समूह से सभी आंकड़ो के बारे में बता सकते है?
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    तो हम इस तरह की बातो पर ध्यान देना चाहते है|
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    और जब हम "वर्णनात्मक सांख्यकी" पर अपनी पकड़ कर लेंगे,
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    तब हम उन आंकड़ो के बारे में अनुमान लगा कर निष्कर्ष निकाल सकेंगे, निर्णय ले सकेंगे, और फिर हम बहुत सारी "आनुमानिक सांख्यकी" करेंगे-- और अनुमान लगायेंगे|
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    इस राह पर चलते हुए, आओ देखे की हम आंकड़ो का कैसे वर्णन कर सकते है|
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    मान लो की हमारे पास बहुत सारे संख्याये है, इन्हें "आंकड़े" कहते है|
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    जैसे हम बाग़ के पेड़ पोधो की लम्बाई नाप रहे है|
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    मान लो की हमारे पास 6 पोधे है और उनकी लम्बाइया है-
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    4 इंच, 3 इंच, 1 इंच, 6 इंच, 1 इंच और 7 इंच|
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    अच्छा, अब कोई दुसरे कमरे में बेठे पूछे, बिना पोधो की और देखे
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    "कितने लम्बे है ये पोधे?" और और वो बस एक संख्या सुनना चाहता है, जो किसी तरह से सभी पोधो की लम्बाई का प्रतिनिधित्व करती हो|
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    हम ऐसे कैसे कर सकते है इसे?
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    आप भी यही पूछोगे की कैसे निकाले? शायद मुझे बस एक ऐसी संख्या चाहिए? शायद मै उनके बीच वाली संख्या चाहता हूँ?
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    या फिर मै वह संख्या चाहता हु जो बारबार सबसे ज्यादा आ रही है? या फिर मै वह संख्या चाहता हूँ जो उन सभी संख्याओ का केंद्र है?
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    यदि आप इनमे से कुछ भी सोच रहे है, तो आप वही कर रहे है
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    जो वो लोग कर रहे थे जो वर्णनात्मक सांख्यकी लेकर आये|
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    हम जानना चाहते है -"की ... ये कैसे किया जा सकता है? "
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    अच्छा पर हम शुरू करेंगे, औसत की तरकीब पर विचार कर के| रोजमर्रा की भाषा में, "औसत" एक विशिष्ट मतलब रखती है, "क्या मतलब"? जब औसत की बात होती है तो उसका मतलब होता है- "समांतर माध्य"
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    पर सांख्यकी में, औसत का मतलब इससे ज्यादा विस्तृत है:
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    इसका वास्तविक मतलब है, मुझे एक "विशिष्ट" या "बिचली" संख्या या... वास्तव में यह एक प्रयास है आंकड़ो की "केंद्रीय प्रवृत्ति" को नापने का|
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    तब फिर से, आप के पास कुछ संख्याये है, आप किसी तरह से उन्हें एक संख्या (औसत) से प्रदर्शित करना चाहते है, जो की किसी तरह इस संख्याओ में विशिष्ट या बिचली या केंद्रीय संख्या हो|
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    और हम देखेंगे, की औसत कई तरह की होती है|
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    पहली वह, जिससे आप जानते होंगे| यह वह है, जब पूछा जाता है की इस परीक्षा की औसत क्या है? या औसत ऊचाई क्या है? और यह है- "माध्य"
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    मै इसे पीले रंग में लिख रहा हूँ| "समांतर माध्य"
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    यह सभी संख्याओ को जोड़ कर उनकी गिनती से विभाजित करने से मिलती है|
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    और यह लोगो द्वारा रचित परिभाषा है, जिसे हम उपयोगी पाते है-
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    सभी संख्याओ को जोड़कर उनकी गिनती से विभाजित करने से प्राप्त होती है|
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    तब इन आंकड़ो का समांतर माध्य क्या है?
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    चलो इसे निकालते है| यह है- 4+3+1+6+1+7 भागा ... ये कितने आंकड़े है, 6, सही 6 तब हम इसे 6 से विभाजित कर देंगे|
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    और हमें मिलेगा: 4 +3 = 7 +1 = 8 +6 = 14 +1 = 15 +7 = 22 | एक बार दोहरा लेता हूँ- 7, 8, 14, 15, 22 ... भागा 6|
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    और हम इसे मिश्रित संख्या में लिख सकते है, जब 22 को 6 से विभाजित करेंगे तो आएगा 3 और शेष बचा 4| जो हुआ 3 सही 4 बटा 6 जो की 3 और 2/3 के बराबर है| इसे हम दशमलव में 3.6 पुनरावर्त लिख सकते है|
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    हम इसे इनमे से किसी तरह से लिख सकते है किन्तु एक प्रतिनिधित्व करने वाली संख्या है, यह एक "केंद्रीय प्रवृत्ति" को बताती है|
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    ये सभी लोगो द्वारा बने गई है, ऐसा नहीं की किसी ने इन्हें खोजा है|
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    धार्मिक किताबे कहती है की- "इस तरह "समांतर माध्य" को परिभाषित होना चाहिए|
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    यह पूरी तरह शुद्ध गणना नहीं है जैसे की, वेल्त्लाल्ल्स के अध्धयन से वृत की खोज|
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    यह लोगो द्वारा बने गई चीज है, जो उपयोगी है|
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    वैसे, औसत मापने के और भी तरीके है, मापने के एक विशिष्ट प्रतिनिधि या औसत|
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    एक दूसरा तरीका है, बहुत विशिष्ट माध्यिका संख्या, और मै इसे गुलाबी रंग से लिखूंगा|
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    और माध्यिका एक प्रतिनिधि संख्या के रूप में|
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    यदि आप सभी संख्याओ क्रम (आरोही / अवरोही) से जमा ले तब उनके बीच की संख्या, माध्यिका कह लाती है|
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    तब इस आंकड़ो के समूह की माध्यिका क्या होगी?
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    तब इस आंकड़ो के समूह की माध्यिका क्या होगी?
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    हमारे पास है- 1, और 1,3,4,6 और 7| बिचली संख्या क्या है?
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    लेकिन हमारे पास सम संख्याये है, जिस कारण हमारे पास बिचली संख्या नहीं है, या- यों कहा जाये की दो बिचली संख्याये है|
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    3 और 4
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    और इस परिस्थिति में जहाँ हमारे पास दो बिचली संख्याये है, तब हम उनमे दोंपो संख्याओ के बीच की संख्या लेंगे,
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    यानि इन दोनों संख्याओ का समांतर माध्य , माध्यिका निकालने के लिए|
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    तब 3 और 4 के बीच की संख्या हुई 3.5, और इस तरह इस स्थिति में माध्यिका हुई 3.5 |
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    अत: जब आपके पास आंकड़ो की संख्या सम हो तब मध्यिका बीच की दो संख्याओ का समान्तर माध्य होता है|
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    और जब आपके पास आंकड़ो की संख्या विषम हो, तब थोडा आसान काम है|
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    अब मै आपको भिन्न प्रकार का आंकड़ो का समूह देता हूँ|
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    यह है आंकड़ो का समूह, और मैंने इसे पहले ही क्रमबध कर दिया है:
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    हमारे पास है- 0,7,50, 10000 और 1,000,000 |
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    एक बड़ा ही अजीब सा समूह| इस परिस्थिति में माध्यिका क्या होगी?
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    हमारे पास 5 संख्याये है, एक विषम संख्या| इसमें आसान है बिचली संख्या निकालना|
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    बीच की संख्या वह है, जो दो से बड़ी है, और दो से छोटी|
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    यह है सही बीच में| इस सवाल में माध्यिका है 50 |
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    अब, केंद्रीय प्रवृत्ति को मापने का तीसरा तरीका, जो सबसे कम काम लिया जाता है: बहुलक|
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    यह सुनने में थोडा कठिन लगता है, पर यह बहुत ही आधारभूत तरीका है: आंकड़ो के समूह में सर्वाधिक पाई जाने वाली संख्या, बहुलक कहलाती है|
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    और बहुलक तब क्या होगा, जब सभी संख्या एक बार ही आये, तब कोई बहुलक नहीं होगा|
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    परन्तु हमारे आंकड़ो के समूह में बहुलक क्या है? हमारे पास एक 4, एक 3, दो 1, एक 6 और एक 7 है
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    तब सर्वाधिक पाई जाने वाली संख्या हुई 1| और इसलिए ही बहुलक हुआ-1
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    अभी हमने औसत को भिन्न प्रकार से निकाला, बिल्कुल भिन्न तरीको से, और हम सांख्यकी के अध्धयन में देखंगे की
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    यह अच्छा है भिन्न चीजो के लिए|
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    यह बहुत ज्यादा काम लिया जाता है, भिन्न चीजो के लिए,
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    माध्यिका तब बहुत उपयोगी होती है जब आपके पास अजीब संख्याये हो जो माध्य को बेकार कर दे|
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    बहुलक भी ऐसी परिस्थितियों में काम आ सकता है जहा एक संख्या कई बार आ रही हो|
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    अभी के लिए इतना काफी है, अगले विडियो में हम सांख्यकी की और गहराई में जायेंग|
Title:
सांख्यकी का परिचय : माध्य,माध्यिका और बहुलक|
Description:

माध्य,माध्यिका और बहुलक का इस्तेमाल करते हुए आंकड़ो को प्रदर्शित करना

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Video Language:
English
Duration:
08:54

Hindi subtitles

Incomplete

Revisions