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कोरोनावायरस की महामारी के दौरान
मूजी उत्तर देते हैं
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दुनियाभर से उनके शिष्यों और
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सत्य के खोजियों द्वारा रखे गए
सवालों का मूजी जवाब देते हैं।
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बिना ज़रूरत के प्यार करना
३ अप्रैल २०२०
(उपशीर्षक सहित)
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'प्रिय मूजी, प्रिय संघ।'
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'संघ' मतलब वो सब लोग जो
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एक ही आवाज़ की पुकार से,
एक साथ आएँ हैं,
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जो हमेशा सत्य की अव्यक्तिगत आवाज़ है।
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वह कहती है, 'अब वक़्त आ गया है,
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इस जीवन में।
आओ, आओ और सत्य को खोज लो।'
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बहुत सारे तरीके हैं जिनसे हम
सत्य को खोज सकते हैं,
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कई विभिन्न आकारों में,
विभिन्न धर्मों के द्वारा,
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विभिन्न प्रथाओं में,
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क्योंकि ईश्वर अनंत है,
ईश्वर अमित है!
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तुम ईश्वर को किसी एक धर्म में
सीमित करके यह नहीं
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कह सकते कि,
'सिर्फ यही धर्म ईश्वर को जानता है'।
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ये बकवास बातें हैं।
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जितने तरह-तरह के लोग हैं,
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उनमें से हर एक ईश्वर को पा सकता है,
एक तरह से।
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ना कि सिर्फ अपनी कल्पना से,
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बल्कि अगर वह प्रेरणा उनके भीतर है,
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वह प्रेरणा पहले ही ईश्वर की
कृपा से उठी है,
-
और वह उन्हें उस रास्ते तक लेकर जाएगी
जो उनके लिए सही और उचित है।
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'मैं खुश और शुक्रगुज़ार हूँ आपको जानकर ...'
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सॉरी, 'आप मोंटे सहजा सकुशल पहुँच गए
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यह जानकर मैं खुश और शुक्रगुज़ार हूँ।
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इस पत्र के संभव हो पाने के लिए
आपको शुक्रिया।
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इस संकट की स्तिथि को इतनी देखभाल,
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उदारता, और विवेक से
सँभालने के लिए धन्यवाद।
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आपके प्यार भरे स्वभाव के लिए धन्यवाद।'
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धन्यवाद। यह कौन है?
केट्चा।
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'मेरे अनुभव में यह वक़्त गहराई में
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जाने का एक विशेष अवसर है।
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ऋषिकेश शिविर में ऑनलाइन
भाग लेने का अवसर मेरे लिए
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भीतर मुड़ने की शुरुआत थी।
जीवन इस वक़्त रोजमर्रा की
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ज़िन्दगी में शिविर जैसी
परिस्तिथि प्रदान कर रहा है।'
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हाँ, यह सच है।
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'इस संकट-शिविर में, मेरा सवाल यह है।
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वायरस को फैलने से रोकने के लिए
संपर्क को नकारने पर,
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रिश्तों को लेकर हर तरह की
समस्याएँ उठ रही हैं।
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एक ओर, मैं देख रही हूँ कि कैसे,
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मैं बहुत खुश हूँ अपने-आप के साथ रह कर।'
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और 'यहाँ' सिर्फ 'इस्सनेस्स' है,
या सिर्फ वह 'जो है'।
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'जब मैं अकेली होती हूँ,
-
मैं सिर्फ वैसे हूँ जैसे मैं अपने साथ हूँ।
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यह बहुत स्वाभाविक महसूस होता है।
-
मैं सिर्फ वैसे हूँ जैसे मैं वास्तव में हूँ।'
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'कभी-कभी मन की अवस्थाएँ आती हैं,
जिनसे मैं जुड़ जाती हूँ,
-
पर यह देखा जाता है और गुज़र जाता है।'
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'तो कभी-कभी मन की अवस्थाएँ आती हैं,
और एक क्षण के लिए,
-
मैं विचलित होती हूँ,
उनसे उलझ या जुड़ जाती हूँ,
-
पर फिर धीरे-धीरे, मेरी उन्हें देखने की शक्ति
और आदत आ जाती है, और मैं
-
देखती हूँ कि वे गुज़र जाते हैं, तो मुझे
उनके पीछे भागना नहीं पड़ता है।' बहुत अच्छा।
-
'दूसरी ओर,
शायद जीवन में एक मूल अविश्वास की वजह से,
-
अपनेआप को लोगों से
जोड़ लेने का बड़ा चक्कर है,
-
खासकर कि मेरे करीबी रिश्तों में,
-
एसी धारणा कि 'अकेले खुद से नहीं हो पायेगा',
-
इन लोगों के बिना जीवन नहीं जी पाऊँगी।'
-
ठीक है। मुझे पानी पीने की ज़रुरत है।
-
यह थोड़ा ठंडा है।
-
मैं बढ़िया सी, थोड़ी रायबुश चाय पियूँगा।
-
या यह तुलसी चाय है? अभी देखते हैं।
-
तुलसी, यह अच्छी है।
-
धन्यवाद। अब देखते हैं।
-
तो, यह एक लम्बा वाक्य है।
-
'दूसरी ओर,
खासकर कि मेरे करीबी रिश्तों में,
-
खुद को लोगों से
जोड़ लेने का बड़ा चक्कर है।'
-
'खुद को लोगों से जोड़ लेने की काफ़ी आदत है।'
-
आप में से कुछ को शायद यह पता होगा
और यह आदत भी होगी।
-
'शायद जीवन में एक मूल अविश्वास की वजह से।'
-
जीवन में एक अविश्वास है,
-
इसलिए तुम खुद को लोगों से जोड़ लेती हो
साथ ले लिए,
-
और शायद, एक सुरक्षा की भावना के लिए।
-
'मेरी एसी धारणा है कि,
'अकेले खुद से नहीं हो पायेगा',
-
इन लोगों के बिना जीवन नहीं जी पाऊँगी।'
-
तो, यहाँ केट्चा कह रही है,
-
'रिश्तों में
मेरा लोगों के साथ काफ़ी जुड़ाव रहता है,
-
जो शायद जीवन में एक
मूल अविश्वास की वजह से आता है।'
-
और यह कई लोगों के लिए सामान्य है।
-
उनका जीवन में विश्वास नहीं है।
-
उनका जीवन में एक विश्वास
नहीं बना है,
-
ना ही जो भरोसा जीवन में हो सकता है
वे उसे देख पाए हैं,
-
या तो सीखी-सिखाई बातों की वजह से,
-
या कोइ ग़लतफ़हमी कि
तुम्हें चीज़ें काबू में रखनी हैं,
-
नहीं तो वे किसी तरह की
-
अस्तव्यस्तता में बिखर जाएँगी,
-
और सब कुछ तबाह हो जायेगा।
-
और हद से ज़्यादा इस तरह के विचार,
-
भावनाएँ और डर, वास्तव में
-
बिलकुल जगह नहीं छोड़ते हैं कि तुम
-
अपनी स्वाभाविक शांति की अवस्था का
आनंद ले पाओ।
-
इसलिए तुम
बहुत अभावग्रस्त बन जाते हो,
-
लोग तुम्हें आराम पहुँचाए,
और तुम्हें
-
सुरक्षित होने का एहसास दिलाएँ,
और इन सब के तुम मुहताज हो जाते हो।
-
और तुम्हें यह भी महसूस होता है
-
कि, खुद से,
तुम पूरी तरह से सशक्त नहीं हो पाओगे।
-
ये दुर्बल विचार हैं।
-
पूरी सत्यता में अपने स्व के साथ,
तुम शक्तिपूर्ण हो!
-
स्व के साथ, असल में, इसका मतलब है कि
-
तुम वास्तव में कौन हो इससे तुम अवगत हो,
-
नाकि सिर्फ एक व्यक्ति-पहचान,
-
वो सारी सनक, विचित्रता, पागलपन
-
जो एक व्यक्ति होने के साथ आ सकती है,
-
पर जब तुम इन सब के परे जा चुके हो,
-
शुद्ध चैतन्य, शुद्ध स्वभाव, शुद्ध प्रज्ञा,
-
शुद्ध प्रेम-अनवेषण और
विशालता के स्थान में,
-
वह शक्तिपूर्ण है।
-
वह ताकत नहीं है ...
-
तुम सशक्त होते हो,
पर वह लोगों पर ताकत जमाना नहीं है,
-
बल्कि उन्हें सही अर्थ में
प्यार करने की शक्ति है,
-
बिना ज़रुरत के या अभावग्रस्त बने।
-
तो यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात है, केट्चा।
-
तुम्हारी यह भावना है कि,
-
तुम इस तरह के रिश्तों के बिना
जीवन नहीं जी पाओगी।
-
तो यह एक बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी है,
-
और ऐसा जिससे अच्छा है कि, और तुम ज़रूर,
इस अभावग्रस्त भाव से ऊपर उठोगी।
-
क्योंकि जब तुम किसी के भी साथ
एक रिश्ते में हो, और तुम अभावग्रस्त हो,
-
तुम किसी तरह से उनके जीवन में भी
काफ़ी घुटन सी लेकर आते हो।
-
शायद शुरुआत में उनका अहंकार
इससे और फूल जाए कि
-
किसी को उनकी ज़रुरत है।
पर वास्तव में तुम्हें उनकी ज़रुरत नहीं है।
-
जब किसी को लगता है कि तुम्हें उनकी ज़रुरत है,
वे तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार कर सकते हैं।
-
तुम हर तरह के
दुर्व्यवहार के लिए खुल जाते हो।
-
और तुम दुर्व्यवहार सहन करते हो,
क्योंकि तुम सोचते हो,
-
'मैं दुर्व्यवहार सहन करके उनका साथ चाहूँगी
बजाय इसके कि
-
दुर्व्यवहार न हो पर उनका साथ भी न हो।'
-
इस तरह की विचित्रताएँ हो सकती हैं
-
जब हम अपने असली केंद्र में
स्थित नहीं होते हैं।
-
'और एक धारणा है कि,
-
ये लोग भी मेरे बिना जी नहीं पाएँगे।'
-
अब यह अनादर करना है मनुष्य जीवन में
-
उस शक्ति का जो, संभवतः या वस्तुतः,
आंतरिक है।
-
इंसान सिर्फ कोई चाय का कपड़ा नहीं है,
-
पूरा गीला, टेबल के ऊपर छोड़ा हुआ।
-
तुम्हारे पास इतना सामर्थ्य है!
-
तुम्हारे पास, तुम्हारे भीतर ईश्वर शक्ति है,
-
प्रभेद करने का सामर्थ्य और शक्ति।
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देखने, आत्मविश्लेषण, चिंतन करने की,
-
अपने देखने में पक्के होने की,
विकसित होने की, बढ़ने की,
-
और प्रज्ञा, और करुणा और आनंद की,
-
अपने अंदर एक ऐसे प्रेम को खोजने की
-
जो पूरे संसार को शामिल करता है,
-
और उस प्रेम से फीके न पड़कर बल्कि
-
और प्रबलता से उसे उत्तेजित करने की शक्ति।
-
इसलिए कृपया, जो तुम हो,
मन को उसका अपमान मत करने दो,
-
क्योंकि जब वह ऐसा करता है,
-
वह तुमसे तुम्हारी स्वाभाविक शक्ति
छीन लेता है,
-
और फिर तुम्हें
पीड़ा के दलदल में फंसा लेता है।
-
यह बदल सकता है! यह बदल सकता है।
-
यह बहुत बहुत-सारे लोगों के लिए बदला है!
-
और वे सभी लोग जो जागृत हुए हैं,
-
जो प्रबुद्ध हुए हैं,
-
मतलब खुद के सत्य को खोज पाना,
उन्होंने रास्ते में
-
ऐसी अवस्थाओं को अनुभव किया है।
-
पर उन्होंने विश्वास किया!
-
उन्हें पहले ही बताया गया था कि
-
मन इन चीज़ों को लेकर आएगा।
-
इसलिए कभी-कभी इसे धोकेबाज़ कहा जाता है।
-
इसलिए कभी-कभी इसे शैतान कहा जाता है।
-
वह मन जो मनोमिति अवस्था में है ...
-
मैं उस साधारण मन की बात नहीं कर रहा
जो कुछ काम करने के लिए इस्तमाल करते हैं।
-
वह एक अद्भुत शक्ति है,
जो उसका हिस्सा है जो स्व है!
-
पर जैसे ही ईश्वर से उजागर हुई
स्व की शक्ति ने
-
शरीर से जुड़कर फिर व्यक्ति रूप लिया,
-
तुम्हारी ही वास्तविक शक्ति से
उत्पन्न होती एक शक्ति, मनोमिति मन
-
के रूप में आई, और तुम्हारे दोस्त और दुश्मन
-
दोनों की भूमिका निभाने के लिए विकसित हुइ।
-
और ईश्वर ने ऐसा खेल रचा है,
-
कि किसी तरह,
मनोमिति मन के प्रभाव के परे जाने
-
और अपने स्व को फिर जीतने के लिए, हम
-
अपने अनुभव और प्रभेद का इस्तमाल करेंगे।
-
'बहुत ही अभावग्रस्त होना
-
और इस अभावग्रस्ततता को लोगों पर डालने से
अत्याचार होने की स्थति बन रही है।
-
मैं इसे कैसे रोक सकती हूँ?
-
मूजी, प्लीज़ इसमें मेरी मदद कीजिये।'
-
'बहुत अभावग्रस्त होना और इस
-
अभावग्रस्तता को दूसरों पर डालने से
अत्याचार की स्थति बन रही है।'
-
अच्छा, मैं तुम्हें बताता हूँ।
-
यह कहकर, तुम मुझे दिखा रही हो कि
तुम पहले ही इससे अवगत हो।
-
तुम इससे अवगत हो कि
मन यह आकार ले कर रहा है।
-
तुम मन नहीं हो।
-
तो जब मन इस तरह से उठता है,
-
तुम इस मन के खेल की साक्षी की तरह
-
यह शक्ति अपने स्व में रखो,
-
और इससे जुड़ो मत, इस खेल में शमिल मत हो।
-
सहजता से साक्षी की तरह रहो,
जो कि निष्पक्ष है और ईश्वर का ही है,
-
न कि उस सांसारिक मन में
-
जो तुम्हारे आनंद और खूबसूरती को
बिगाड़ने में लगा है।
-
और तुम्हें इसके लिए
बहुत ज़्यादा तत्पर होना चाहिए।
-
इसकी ओर बहुत ज़्यादा केंद्रित रहो।
-
और याद रखो कि कृपा तुम्हारे साथ है।
-
और यह कि तुम्हारे जीवन का
सबसे बड़ा उद्देश्य यही है।
-
सबसे बड़ा अवसर मन के मनोमिति
-
या कपटी रूप के प्रभाव के परे जाना है।
-
और ईश्वर तुम्हारे साथ है।
-
इसलिए मैंने कहा, मन पर विश्वास मत करो!
-
क्योंकि, शुरुआत में, यह तुम्हें धोखा देगा।
-
लेकिन उसके साथ ही,
ऊँचा उठने
-
और स्व को फिर जीतने के लिए,
-
एक जागृत जीव की पुण्य अवस्था तक पहुँचने के लिए
-
मन तुम्हारे लिए बहुत, बहुत ज़रूरी है।
-
हम सभी को किसी तरह इस से गुज़रना पड़ता है।
-
ईश्वर ने संसार की रचना इस तरह करी है कि,
-
हम सभी अच्छाई और बुराई, सही और गलत,
-
भरोसा न करने लायक चीज़ों पर भरोसा करने का झुकाव,
-
न्याय और अन्याय,
डंक लेकर भी विष के परे जाने के
-
इस द्विविधता के खेल को अनुभव करेंगे।
-
यह सब, और भी जितनी तकलीफें तुम्हें आयी हैं,
-
'वह इन सबसे बढ़कर है',
-
ऐसा कहा जाता है,
'जो तुममें है, बजाय उसके जो संसार में है'।
-
मतलब कि तुममें जो शक्ति है वह मौजूद है
पर तुम्हें उसे ग्रहण करने की ज़रुरत है।
-
तुम्हें अवश्य अपने ह्रदय में स्थित ईश्वर की शक्ति
और कृपा से जुड़ना चाहिए।
-
और यह मुश्किल नहीं है।
-
मेरी सभी बातें तुम्हें उसे खोजने में
मदद कर रही हैं।
-
'प्लीज इसमें मेरी मदद कीजिये, मूजी।
-
मैं इस पीड़ायुक्त 'खेल' को
त्यागने के लिए इच्छुक और तैयार हूँ,
-
पर ऐसा लगता है कि इसमें कुछ है
-
जिससे में अभी भी अचेत हूँ।'
-
ठीक है, यह जो कुछ भी इसमें है,
वह आदत की वजह से मौजूद है।
-
क्योंकि कभी-कभी मन या यह वंचक,
-
तुम्हें ऐसी चीज़ों का वादा कर सकता है
-
जो तुम्हारी आत्मा को ललचाने वाली हैं।
-
ये वे चीज़ें हैं जो तुम्हारी कल्पनाओं, वासनाओँ,
-
और प्रक्षेपों को मनुष्य स्तर पर
पूरा करने का वादा करती हैं।
-
दैहिक स्तर पर वह तुम्हारा मन बहला सकती है,
-
पर तुम्हें आनंद नहीं दे सकती है।
-
वह तुम्हें एकाकीपन तो दे सकती है
पर शांति नहीं।
-
वह तुम्हें मनुष्य स्तर पर सफलता दे सकती है,
-
पर दुनिया की मूर्ख चीज़ों के परे जाना नहीं।
-
यह याद रखो।
-
'प्लीज़ यह अंधकार मिटाकर
मुझे एक गहरे समर्पण में ले चलिए।'
-
मैं जो भी तुम्हें बता रहा हूँ केट्चा,
वह अंधकार को
-
हटा रहा है, मिटा रहा है या
उसके पार लेकर जा रहा है।
-
असल में,
-
ईश्वर सम्पूर्ण है।
-
और तुममें जो
ईश्वर का बीज है,
-
जो ईश्वर का भाव है, वह भी सम्पूर्ण है।
-
तुम्हारा व्यक्ति रूप अपूर्ण है।
-
अकसर हम अपने व्यक्ति रूप को
और पूर्ण बनाने की कोशिश करते हैं।
-
यह एक बड़ी नदी है, जो भी ईश्वर ने बनायी है।
-
कई लोग, व्यक्ति-रूप से इतने तेज जुड़ाव की वजह से,
-
इस व्यक्तिगत विकास के रास्ते पर चलेंगे।
-
वह ठीक है। वह हो सकता है।
ईश्वर उसका ख्याल रखता है।
-
पर मैं कहता हूँ कि
ईश्वर पूर्ण तरह से तुम्हारे भीतर भी है।
-
और अपूर्ण व्यक्ति को संपूर्ण बनाने की कोशिश करने के बजाय,
-
मैं कहूँगा कि, इस मार्ग पर,
-
अगर तुम 'तुम कौन हो' के अन्धकार को हटाओगे,
-
तो तुम पाओगे कि,
मुझे तुम कौन हो के सत्य को तुम्हारे
-
पास लाना नहीं पड़ेगा,
क्योंकि जब तुम अंधकार का परदा खोलोगे,
-
सत्य खुद को प्रत्यक्ष करने के लिए
पहले ही मौजूद है।
-
हमारी बातें सिर्फ इसी के बारे में हैं।
-
और ये क्रियात्मक हैं।
-
ये संभव हैं।
-
इन तक पहुँचा जा सकता है।
नहीं, 'पहुँच' उचित शब्द नहीं है।
-
प्राप्य कह सकते हैं, उस अवस्था के लिए।
-
सर्वोच्च मायने में, वह हर चीज़
-
जिसे तुम खोज रहे हो,
पहले ही तुम्हारे भीतर है।
-
'अत्यंत गहरे प्रेम भाव में।
केट्चा।'
-
मैं कुछ कह कर समाप्त करना चाहता हूँ।
-
रूमी नामक महान सूफ़ी संत,
-
कई लोग रूमी को जानते हैं।
-
उन्होंने कुछ कहा था
जो मैं अक्सर अपनी बातों में बताता हूँ।
-
वह कहते हैं, 'मैं दरवाज़ा खटखटाए जा रहा हूँ।'
-
खटखटा रहा हूँ।
कि, 'मुझे अंदर आने दें।
-
मुझे अंदर आने दें।' खटखटा रहा हूँ।
-
'अचानक दरवाज़ा खुलता है।
-
मुझे एहसास होता है कि
मैं अंदर से खटखटाए जा रहा था।'
-
जब मैंने यह पहली बार सुना था,
यह इतना प्रबल था!
-
सबसे सच्चे मायने में, हम सब पहले से ही अंदर हैं।
-
हमारा स्वाभाव ईश्वर में शामिल है।
-
हम जो हैं, जो हमारा मूलभूत स्वभाव है,
-
वह ईश्वर से समरस है।
-
जब हम सीखते हैं, और मजबूर होते हैं
इस द्विविधता के संसार में जीने के लिए,
-
जहाँ इतनी सारी शक्तियों का प्रभाव है,
-
हम स्वभावतः भूल जाते हैं,
और खुद को सिर्फ मानव शरीर,
-
और अनुकूलन,
और इस दुनिया का ज्ञान समझ बैठते हैं।
-
फिर, एक समय,
हमें एहसास होता है,
-
कि हमारी सारी कोशिशों से,
पदार्थवादिक और
-
स्थूल रूप में हर चीज़ को
पा लेने के बाद भी,
-
यह हमें शांति, आनंद और
सम्पूर्णता तक नहीं लेकर आया है।
-
तो हम खुद को ज़िन्दगी के दरवाज़े पर
खटखटाते हुए पाते है। [खटखटाने की आवाज़]
-
'प्लीज़ मुझे अंदर आने दें।
-
यहाँ निःस्नेह और अकेला सा हो गया है।
-
प्लीज़ मुझे अंदर आने दें।
[खटखटाने की आवाज़] प्लीज़ खोलिये।'
-
और फिर दरवाज़ा खुलता है।
-
सिर्फ दरवाज़ा खुलने पर ...
जिसका क्या मतलब है?
-
जब तुम दिल से भगवान के दरवाज़े को खटखटाते हो,
-
भगवान तुम्हारे लिए दरवाज़ा खोलते हैं।
-
तुम पहले से ही अंदर हो।
-
खुलता हुआ दरवाज़ा तुम्हें
-
दिखाता है और कहता है,
'मेरे बच्चे, पर तुम तो पहले से ही अंदर हो'।
-
क्या बेवकूफी है।
तुम सदा यहीं थे, पर
-
सही मायने में,
तुम इससे अवगत नहीं होते कि तुम यहीं हो।
-
तुम स्वयं को भूल गए!
-
और तुम कल्पना करते हो कि
तुम स्व के बाहर हो,
-
और तुम पीड़ित होते हो।
-
लेकिन फिर भी, तुम्हारी पीड़ा तुम्हें फिर यहाँ लेकर आयी,
-
दरवाज़े पर खटखटाते हुए,
'मुझे अंदर आने दें'।
-
तुम्हें उस निराशाजनक स्थिति तक आने की ज़रुरत थी,
-
'प्लीज़ मुझे आने दें। प्लीज़ मुझे बचा लें।'
-
दरवाज़ा खुलता है और तुम्हें एहसास होता है,
'मैं पहले से ही यहाँ हूँ।'
-
इस दरवाज़े का खुलना कृपा का बरसना है
-
जो तुम्हारा वास्तविक स्वाभाव दिखाती है।
-
मानव जाति के लिए यह पीड़ा और कठिनाई का समय
हमें दरवाज़ा खटखटाने पर
-
मजबूर कर रहा है।
[खटखटाने की आवाज़]
-
'हमारी मदद करो।
मेरी मदद करो।
-
मेरी मदद करो। मुझे मरना नहीं है।'
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वह जो मुक्त है, और जिसे भगवान मिल गए हैं,
-
उसे मृत्यु का डर नहीं है,
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क्योंकि वह जानता है कि वह मर नहीं सकता!
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शरीर चला जायेगा। हर एक शरीर जाएगा!
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पर तुम तुम्हारा शरीर नहीं हो।
-
हर शरीर नष्ट होगा।
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पर तुम तुम्हारा शरीर नहीं हो!
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अगर तुम्हारा नाम जॉन है,
-
तो तुम्हारा शरीर नहीं जानता है
कि तुम्हारा नाम जॉन है।
-
वह सिर्फ एक माध्यम है,
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जीव और आत्मा को आश्रय देने के लिए
-
ईश्वर के द्वारा बनाया गया एक साधन है।
-
इसलिए यह एक दिव्य विधान है कि
-
ईश्वर की साँस तुममें बसती है,
-
ईश्वर का भाव तुम्हारे भीतर है।
-
जब यह भाव चैतन्य में जागृत होता है,
-
जब तुम उससे अवगत होते हो,
-
तुम अपने जीवन में समृद्ध होने लगते हो।
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और मैं कहता हूँ कि,
यह एक खूबसूरत बात है ज़िन्दगी की,
-
कि हम सब और अधिक सौंदर्य में,
-
और गहरी चेतना में,
-
सत्य के और ऊँचे चैतन्य में विकसित हो सकते हैं।
-
और यह वो सत्य है, जो,
कहते हैं, 'तुम्हें मुक्त करता है'।
-
मतलब, वह तुम्हें,
तुम्हारी आंतरिक मुक्ति से अवगत करता है,
-
जो ईश्वर की संतान होने के नाते
तुम्हारे भीतर है,
-
या शुद्ध चैतन्य, अगर तुम वैसे कहना चाहो।
-
इसलिए, एक ऐसे समय में,
जब वाकई हमारे पास समय है,
-
इन कुछ विचारों और इशारों को
बाँटने का अवसर देने के लिए,
-
और तुम्हारे खत लिखने और
-
इन चीज़ों को देखने का अवसर देने के लिए,
-
धन्यवाद, धन्यवाद, धन्यवाद!
-
हमारे पास वाकई में समय है।
-
यह समय जब हम यहाँ हैं,
हमें भेंट दिया जा रहा है,
-
और मुझे लगता है कि इस तरह इसका इस्तमाल करना
बेहतरीन तरीकों में से एक है!
-
समय का सबसे महान उपयोग
सत्य को खोजना है,
-
ईश्वर को खोजना है,
खुद को खोजना है,
-
जिस भी तरह से हम कहना चाहें,
पर यह एक ही सत्य है!
-
इसलिए इसमें क़ायम रहो।
और तुम्हें ढेर सारा आशीर्वाद।
-
हमारी यात्रा उतनी ही धीमी और भारी होगी,
जितना ज़्यादा
-
हम खुद को एक वस्तु मानते हैं।
-
जितना तुम ऐसा सोचते हो,
उतना भारी होता है।
-
जितना तुम्हें यह एहसास होता है कि
-
किसी तरह यह समझ बन रही है,
-
'मैं जानती भी नहीं हूँ कि मैं कौन हूँ,
लेकिन,
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कुछ तो मेरे अंदर बस खुल रहा है
-
और यहाँ और आनंद और आकाश है।
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मुझे काफी हल्का और विनम्र महसूस हो रहा है।
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मैं जीवन की विद्रोही नहीं हूँ।
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मुझे जीवन से प्रेम है!
और मुझे जीने से प्रेम है।
-
और मैं दूसरों की और अपने लोगों की
-
और ज़्यादा परवाह कर रही हूँ।
-
किसी तरह,
सभी लोग मेरे अपने लोग बन रहे हैं।'
-
तुम्हें बहुत शुभकामनाएँ।
तुम्हारे ध्यान और समय के लिए धन्यवाद।
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ईश्वर तुम्हें धन्य रखें।
और फिर मिलते हैं।
-
नमस्ते।
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कॉपीराइट © २०२० मूजी मीडिआ लि.
सर्वाधिकार आरक्षित
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इस रिकॉर्डिंग का कोई भाग मूजी मीडिआ लि. की
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प्रत्यक्ष अनुमति के बिना
पुनः प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।