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Loving Without Need — Mooji Answers #6 During Coronavirus

  • 0:00 - 0:07
    कोरोनावायरस की महामारी के दौरान
    मूजी उत्तर देते हैं
  • 0:07 - 0:09
    दुनियाभर से उनके शिष्यों और
  • 0:09 - 0:13
    सत्य के खोजियों द्वारा रखे गए
    सवालों का मूजी जवाब देते हैं।
  • 0:13 - 0:16
    बिना ज़रूरत के प्यार करना
    ३ अप्रैल २०२०
    (उपशीर्षक सहित)
  • 0:18 - 0:21
    'प्रिय मूजी, प्रिय संघ।'
  • 0:21 - 0:23
    'संघ' मतलब वो सब लोग जो
  • 0:23 - 0:27
    एक ही आवाज़ की पुकार से,
    एक साथ आएँ हैं,
  • 0:27 - 0:30
    जो हमेशा सत्य की अव्यक्तिगत आवाज़ है।
  • 0:30 - 0:33
    वह कहती है, 'अब वक़्त आ गया है,
  • 0:33 - 0:36
    इस जीवन में।
    आओ, आओ और सत्य को खोज लो।'
  • 0:36 - 0:40
    बहुत सारे तरीके हैं जिनसे हम
    सत्य को खोज सकते हैं,
  • 0:40 - 0:44
    कई विभिन्न आकारों में,
    विभिन्न धर्मों के द्वारा,
  • 0:44 - 0:46
    विभिन्न प्रथाओं में,
  • 0:46 - 0:49
    क्योंकि ईश्वर अनंत है,
    ईश्वर अमित है!
  • 0:49 - 0:52
    तुम ईश्वर को किसी एक धर्म में
    सीमित करके यह नहीं
  • 0:52 - 0:54
    कह सकते कि,
    'सिर्फ यही धर्म ईश्वर को जानता है'।
  • 0:54 - 0:57
    ये बकवास बातें हैं।
  • 0:57 - 1:00
    जितने तरह-तरह के लोग हैं,
  • 1:00 - 1:04
    उनमें से हर एक ईश्वर को पा सकता है,
    एक तरह से।
  • 1:04 - 1:07
    ना कि सिर्फ अपनी कल्पना से,
  • 1:07 - 1:11
    बल्कि अगर वह प्रेरणा उनके भीतर है,
  • 1:11 - 1:14
    वह प्रेरणा पहले ही ईश्वर की
    कृपा से उठी है,
  • 1:14 - 1:21
    और वह उन्हें उस रास्ते तक लेकर जाएगी
    जो उनके लिए सही और उचित है।
  • 1:21 - 1:25
    'मैं खुश और शुक्रगुज़ार हूँ आपको जानकर ...'
  • 1:25 - 1:27
    सॉरी, 'आप मोंटे सहजा सकुशल पहुँच गए
  • 1:27 - 1:31
    यह जानकर मैं खुश और शुक्रगुज़ार हूँ।
  • 1:31 - 1:34
    इस पत्र के संभव हो पाने के लिए
    आपको शुक्रिया।
  • 1:34 - 1:38
    इस संकट की स्तिथि को इतनी देखभाल,
  • 1:38 - 1:43
    उदारता, और विवेक से
    सँभालने के लिए धन्यवाद।
  • 1:43 - 1:45
    आपके प्यार भरे स्वभाव के लिए धन्यवाद।'
  • 1:45 - 1:49
    धन्यवाद। यह कौन है?
    केट्चा।
  • 1:49 - 1:52
    'मेरे अनुभव में यह वक़्त गहराई में
  • 1:52 - 1:55
    जाने का एक विशेष अवसर है।
  • 1:55 - 2:00
    ऋषिकेश शिविर में ऑनलाइन
    भाग लेने का अवसर मेरे लिए
  • 2:00 - 2:05
    भीतर मुड़ने की शुरुआत थी।
    जीवन इस वक़्त रोजमर्रा की
  • 2:05 - 2:10
    ज़िन्दगी में शिविर जैसी
    परिस्तिथि प्रदान कर रहा है।'
  • 2:10 - 2:13
    हाँ, यह सच है।
  • 2:13 - 2:19
    'इस संकट-शिविर में, मेरा सवाल यह है।
  • 2:19 - 2:24
    वायरस को फैलने से रोकने के लिए
    संपर्क को नकारने पर,
  • 2:24 - 2:31
    रिश्तों को लेकर हर तरह की
    समस्याएँ उठ रही हैं।
  • 2:31 - 2:33
    एक ओर, मैं देख रही हूँ कि कैसे,
  • 2:33 - 2:37
    मैं बहुत खुश हूँ अपने-आप के साथ रह कर।'
  • 2:37 - 2:44
    और 'यहाँ' सिर्फ 'इस्सनेस्स' है,
    या सिर्फ वह 'जो है'।
  • 2:44 - 2:46
    'जब मैं अकेली होती हूँ,
  • 2:46 - 2:48
    मैं सिर्फ वैसे हूँ जैसे मैं अपने साथ हूँ।
  • 2:48 - 2:51
    यह बहुत स्वाभाविक महसूस होता है।
  • 2:51 - 2:55
    मैं सिर्फ वैसे हूँ जैसे मैं वास्तव में हूँ।'
  • 2:55 - 3:01
    'कभी-कभी मन की अवस्थाएँ आती हैं,
    जिनसे मैं जुड़ जाती हूँ,
  • 3:01 - 3:04
    पर यह देखा जाता है और गुज़र जाता है।'
  • 3:04 - 3:09
    'तो कभी-कभी मन की अवस्थाएँ आती हैं,
    और एक क्षण के लिए,
  • 3:09 - 3:12
    मैं विचलित होती हूँ,
    उनसे उलझ या जुड़ जाती हूँ,
  • 3:12 - 3:17
    पर फिर धीरे-धीरे, मेरी उन्हें देखने की शक्ति
    और आदत आ जाती है, और मैं
  • 3:17 - 3:22
    देखती हूँ कि वे गुज़र जाते हैं, तो मुझे
    उनके पीछे भागना नहीं पड़ता है।' बहुत अच्छा।
  • 3:22 - 3:28
    'दूसरी ओर,
    शायद जीवन में एक मूल अविश्वास की वजह से,
  • 3:28 - 3:33
    अपनेआप को लोगों से
    जोड़ लेने का बड़ा चक्कर है,
  • 3:33 - 3:37
    खासकर कि मेरे करीबी रिश्तों में,
  • 3:37 - 3:42
    एसी धारणा कि 'अकेले खुद से नहीं हो पायेगा',
  • 3:42 - 3:46
    इन लोगों के बिना जीवन नहीं जी पाऊँगी।'
  • 3:46 - 3:49
    ठीक है। मुझे पानी पीने की ज़रुरत है।
  • 3:56 - 3:59
    यह थोड़ा ठंडा है।
  • 3:59 - 4:03
    मैं बढ़िया सी, थोड़ी रायबुश चाय पियूँगा।
  • 4:03 - 4:08
    या यह तुलसी चाय है? अभी देखते हैं।
  • 4:08 - 4:11
    तुलसी, यह अच्छी है।
  • 4:16 - 4:19
    धन्यवाद। अब देखते हैं।
  • 4:22 - 4:24
    तो, यह एक लम्बा वाक्य है।
  • 4:24 - 4:28
    'दूसरी ओर,
    खासकर कि मेरे करीबी रिश्तों में,
  • 4:28 - 4:31
    खुद को लोगों से
    जोड़ लेने का बड़ा चक्कर है।'
  • 4:31 - 4:35
    'खुद को लोगों से जोड़ लेने की काफ़ी आदत है।'
  • 4:35 - 4:39
    आप में से कुछ को शायद यह पता होगा
    और यह आदत भी होगी।
  • 4:39 - 4:45
    'शायद जीवन में एक मूल अविश्वास की वजह से।'
  • 4:45 - 4:47
    जीवन में एक अविश्वास है,
  • 4:47 - 4:52
    इसलिए तुम खुद को लोगों से जोड़ लेती हो
    साथ ले लिए,
  • 4:52 - 4:55
    और शायद, एक सुरक्षा की भावना के लिए।
  • 4:55 - 5:02
    'मेरी एसी धारणा है कि,
    'अकेले खुद से नहीं हो पायेगा',
  • 5:02 - 5:06
    इन लोगों के बिना जीवन नहीं जी पाऊँगी।'
  • 5:06 - 5:11
    तो, यहाँ केट्चा कह रही है,
  • 5:11 - 5:18
    'रिश्तों में
    मेरा लोगों के साथ काफ़ी जुड़ाव रहता है,
  • 5:18 - 5:26
    जो शायद जीवन में एक
    मूल अविश्वास की वजह से आता है।'
  • 5:26 - 5:29
    और यह कई लोगों के लिए सामान्य है।
  • 5:29 - 5:32
    उनका जीवन में विश्वास नहीं है।
  • 5:32 - 5:35
    उनका जीवन में एक विश्वास
    नहीं बना है,
  • 5:35 - 5:39
    ना ही जो भरोसा जीवन में हो सकता है
    वे उसे देख पाए हैं,
  • 5:39 - 5:42
    या तो सीखी-सिखाई बातों की वजह से,
  • 5:42 - 5:47
    या कोइ ग़लतफ़हमी कि
    तुम्हें चीज़ें काबू में रखनी हैं,
  • 5:47 - 5:50
    नहीं तो वे किसी तरह की
  • 5:50 - 5:54
    अस्तव्यस्तता में बिखर जाएँगी,
  • 5:54 - 5:57
    और सब कुछ तबाह हो जायेगा।
  • 5:57 - 6:03
    और हद से ज़्यादा इस तरह के विचार,
  • 6:03 - 6:05
    भावनाएँ और डर, वास्तव में
  • 6:05 - 6:09
    बिलकुल जगह नहीं छोड़ते हैं कि तुम
  • 6:09 - 6:13
    अपनी स्वाभाविक शांति की अवस्था का
    आनंद ले पाओ।
  • 6:13 - 6:15
    इसलिए तुम
    बहुत अभावग्रस्त बन जाते हो,
  • 6:15 - 6:19
    लोग तुम्हें आराम पहुँचाए,
    और तुम्हें
  • 6:19 - 6:24
    सुरक्षित होने का एहसास दिलाएँ,
    और इन सब के तुम मुहताज हो जाते हो।
  • 6:24 - 6:26
    और तुम्हें यह भी महसूस होता है
  • 6:26 - 6:30
    कि, खुद से,
    तुम पूरी तरह से सशक्त नहीं हो पाओगे।
  • 6:30 - 6:33
    ये दुर्बल विचार हैं।
  • 6:33 - 6:38
    पूरी सत्यता में अपने स्व के साथ,
    तुम शक्तिपूर्ण हो!
  • 6:38 - 6:41
    स्व के साथ, असल में, इसका मतलब है कि
  • 6:41 - 6:45
    तुम वास्तव में कौन हो इससे तुम अवगत हो,
  • 6:45 - 6:48
    नाकि सिर्फ एक व्यक्ति-पहचान,
  • 6:48 - 6:53
    वो सारी सनक, विचित्रता, पागलपन
  • 6:53 - 6:56
    जो एक व्यक्ति होने के साथ आ सकती है,
  • 6:56 - 7:00
    पर जब तुम इन सब के परे जा चुके हो,
  • 7:00 - 7:05
    शुद्ध चैतन्य, शुद्ध स्वभाव, शुद्ध प्रज्ञा,
  • 7:05 - 7:13
    शुद्ध प्रेम-अनवेषण और
    विशालता के स्थान में,
  • 7:13 - 7:16
    वह शक्तिपूर्ण है।
  • 7:16 - 7:18
    वह ताकत नहीं है ...
  • 7:18 - 7:22
    तुम सशक्त होते हो,
    पर वह लोगों पर ताकत जमाना नहीं है,
  • 7:22 - 7:25
    बल्कि उन्हें सही अर्थ में
    प्यार करने की शक्ति है,
  • 7:25 - 7:28
    बिना ज़रुरत के या अभावग्रस्त बने।
  • 7:28 - 7:34
    तो यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात है, केट्चा।
  • 7:34 - 7:36
    तुम्हारी यह भावना है कि,
  • 7:36 - 7:40
    तुम इस तरह के रिश्तों के बिना
    जीवन नहीं जी पाओगी।
  • 7:40 - 7:43
    तो यह एक बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी है,
  • 7:43 - 7:50
    और ऐसा जिससे अच्छा है कि, और तुम ज़रूर,
    इस अभावग्रस्त भाव से ऊपर उठोगी।
  • 7:50 - 7:58
    क्योंकि जब तुम किसी के भी साथ
    एक रिश्ते में हो, और तुम अभावग्रस्त हो,
  • 7:58 - 8:05
    तुम किसी तरह से उनके जीवन में भी
    काफ़ी घुटन सी लेकर आते हो।
  • 8:05 - 8:08
    शायद शुरुआत में उनका अहंकार
    इससे और फूल जाए कि
  • 8:08 - 8:13
    किसी को उनकी ज़रुरत है।
    पर वास्तव में तुम्हें उनकी ज़रुरत नहीं है।
  • 8:13 - 8:17
    जब किसी को लगता है कि तुम्हें उनकी ज़रुरत है,
    वे तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार कर सकते हैं।
  • 8:17 - 8:20
    तुम हर तरह के
    दुर्व्यवहार के लिए खुल जाते हो।
  • 8:20 - 8:23
    और तुम दुर्व्यवहार सहन करते हो,
    क्योंकि तुम सोचते हो,
  • 8:23 - 8:27
    'मैं दुर्व्यवहार सहन करके उनका साथ चाहूँगी
    बजाय इसके कि
  • 8:27 - 8:30
    दुर्व्यवहार न हो पर उनका साथ भी न हो।'
  • 8:30 - 8:33
    इस तरह की विचित्रताएँ हो सकती हैं
  • 8:33 - 8:41
    जब हम अपने असली केंद्र में
    स्थित नहीं होते हैं।
  • 8:41 - 8:43
    'और एक धारणा है कि,
  • 8:43 - 8:48
    ये लोग भी मेरे बिना जी नहीं पाएँगे।'
  • 8:48 - 8:53
    अब यह अनादर करना है मनुष्य जीवन में
  • 8:53 - 8:58
    उस शक्ति का जो, संभवतः या वस्तुतः,
    आंतरिक है।
  • 8:58 - 9:03
    इंसान सिर्फ कोई चाय का कपड़ा नहीं है,
  • 9:03 - 9:07
    पूरा गीला, टेबल के ऊपर छोड़ा हुआ।
  • 9:07 - 9:09
    तुम्हारे पास इतना सामर्थ्य है!
  • 9:09 - 9:12
    तुम्हारे पास, तुम्हारे भीतर ईश्वर शक्ति है,
  • 9:12 - 9:15
    प्रभेद करने का सामर्थ्य और शक्ति।
  • 9:15 - 9:17
    देखने, आत्‍मविश्‍लेषण, चिंतन करने की,
  • 9:17 - 9:23
    अपने देखने में पक्के होने की,
    विकसित होने की, बढ़ने की,
  • 9:23 - 9:26
    और प्रज्ञा, और करुणा और आनंद की,
  • 9:26 - 9:29
    अपने अंदर एक ऐसे प्रेम को खोजने की
  • 9:29 - 9:31
    जो पूरे संसार को शामिल करता है,
  • 9:31 - 9:36
    और उस प्रेम से फीके न पड़कर बल्कि
  • 9:36 - 9:40
    और प्रबलता से उसे उत्तेजित करने की शक्ति।
  • 9:40 - 9:45
    इसलिए कृपया, जो तुम हो,
    मन को उसका अपमान मत करने दो,
  • 9:45 - 9:48
    क्योंकि जब वह ऐसा करता है,
  • 9:48 - 9:51
    वह तुमसे तुम्हारी स्वाभाविक शक्ति
    छीन लेता है,
  • 9:51 - 9:55
    और फिर तुम्हें
    पीड़ा के दलदल में फंसा लेता है।
  • 9:55 - 10:00
    यह बदल सकता है! यह बदल सकता है।
  • 10:00 - 10:03
    यह बहुत बहुत-सारे लोगों के लिए बदला है!
  • 10:03 - 10:06
    और वे सभी लोग जो जागृत हुए हैं,
  • 10:06 - 10:08
    जो प्रबुद्ध हुए हैं,
  • 10:08 - 10:12
    मतलब खुद के सत्य को खोज पाना,
    उन्होंने रास्ते में
  • 10:12 - 10:15
    ऐसी अवस्थाओं को अनुभव किया है।
  • 10:15 - 10:18
    पर उन्होंने विश्वास किया!
  • 10:18 - 10:22
    उन्हें पहले ही बताया गया था कि
  • 10:22 - 10:25
    मन इन चीज़ों को लेकर आएगा।
  • 10:25 - 10:28
    इसलिए कभी-कभी इसे धोकेबाज़ कहा जाता है।
  • 10:28 - 10:31
    इसलिए कभी-कभी इसे शैतान कहा जाता है।
  • 10:31 - 10:34
    वह मन जो मनोमिति अवस्था में है ...
  • 10:34 - 10:40
    मैं उस साधारण मन की बात नहीं कर रहा
    जो कुछ काम करने के लिए इस्तमाल करते हैं।
  • 10:40 - 10:45
    वह एक अद्भुत शक्ति है,
    जो उसका हिस्सा है जो स्व है!
  • 10:45 - 10:52
    पर जैसे ही ईश्वर से उजागर हुई
    स्व की शक्ति ने
  • 10:52 - 10:56
    शरीर से जुड़कर फिर व्यक्ति रूप लिया,
  • 10:56 - 11:01
    तुम्हारी ही वास्तविक शक्ति से
    उत्पन्न होती एक शक्ति, मनोमिति मन
  • 11:01 - 11:05
    के रूप में आई, और तुम्हारे दोस्त और दुश्मन
  • 11:05 - 11:08
    दोनों की भूमिका निभाने के लिए विकसित हुइ।
  • 11:08 - 11:11
    और ईश्वर ने ऐसा खेल रचा है,
  • 11:11 - 11:14
    कि किसी तरह,
    मनोमिति मन के प्रभाव के परे जाने
  • 11:14 - 11:18
    और अपने स्व को फिर जीतने के लिए, हम
  • 11:18 - 11:21
    अपने अनुभव और प्रभेद का इस्तमाल करेंगे।
  • 11:26 - 11:28
    'बहुत ही अभावग्रस्त होना
  • 11:28 - 11:34
    और इस अभावग्रस्ततता को लोगों पर डालने से
    अत्याचार होने की स्थति बन रही है।
  • 11:34 - 11:36
    मैं इसे कैसे रोक सकती हूँ?
  • 11:36 - 11:40
    मूजी, प्लीज़ इसमें मेरी मदद कीजिये।'
  • 11:40 - 11:42
    'बहुत अभावग्रस्त होना और इस
  • 11:42 - 11:47
    अभावग्रस्तता को दूसरों पर डालने से
    अत्याचार की स्थति बन रही है।'
  • 11:47 - 11:49
    अच्छा, मैं तुम्हें बताता हूँ।
  • 11:49 - 11:53
    यह कहकर, तुम मुझे दिखा रही हो कि
    तुम पहले ही इससे अवगत हो।
  • 11:53 - 11:56
    तुम इससे अवगत हो कि
    मन यह आकार ले कर रहा है।
  • 11:56 - 11:58
    तुम मन नहीं हो।
  • 11:58 - 12:02
    तो जब मन इस तरह से उठता है,
  • 12:02 - 12:04
    तुम इस मन के खेल की साक्षी की तरह
  • 12:04 - 12:09
    यह शक्ति अपने स्व में रखो,
  • 12:09 - 12:17
    और इससे जुड़ो मत, इस खेल में शमिल मत हो।
  • 12:17 - 12:23
    सहजता से साक्षी की तरह रहो,
    जो कि निष्पक्ष है और ईश्वर का ही है,
  • 12:23 - 12:26
    न कि उस सांसारिक मन में
  • 12:26 - 12:32
    जो तुम्हारे आनंद और खूबसूरती को
    बिगाड़ने में लगा है।
  • 12:32 - 12:35
    और तुम्हें इसके लिए
    बहुत ज़्यादा तत्पर होना चाहिए।
  • 12:35 - 12:38
    इसकी ओर बहुत ज़्यादा केंद्रित रहो।
  • 12:38 - 12:42
    और याद रखो कि कृपा तुम्हारे साथ है।
  • 12:42 - 12:46
    और यह कि तुम्हारे जीवन का
    सबसे बड़ा उद्देश्य यही है।
  • 12:46 - 12:51
    सबसे बड़ा अवसर मन के मनोमिति
  • 12:51 - 12:59
    या कपटी रूप के प्रभाव के परे जाना है।
  • 12:59 - 13:03
    और ईश्वर तुम्हारे साथ है।
  • 13:03 - 13:09
    इसलिए मैंने कहा, मन पर विश्वास मत करो!
  • 13:09 - 13:13
    क्योंकि, शुरुआत में, यह तुम्हें धोखा देगा।
  • 13:13 - 13:15
    लेकिन उसके साथ ही,
    ऊँचा उठने
  • 13:15 - 13:18
    और स्व को फिर जीतने के लिए,
  • 13:18 - 13:22
    एक जागृत जीव की पुण्य अवस्था तक पहुँचने के लिए
  • 13:22 - 13:27
    मन तुम्हारे लिए बहुत, बहुत ज़रूरी है।
  • 13:27 - 13:30
    हम सभी को किसी तरह इस से गुज़रना पड़ता है।
  • 13:30 - 13:33
    ईश्वर ने संसार की रचना इस तरह करी है कि,
  • 13:33 - 13:37
    हम सभी अच्छाई और बुराई, सही और गलत,
  • 13:37 - 13:41
    भरोसा न करने लायक चीज़ों पर भरोसा करने का झुकाव,
  • 13:41 - 13:46
    न्याय और अन्याय,
    डंक लेकर भी विष के परे जाने के
  • 13:46 - 13:51
    इस द्विविधता के खेल को अनुभव करेंगे।
  • 13:51 - 13:56
    यह सब, और भी जितनी तकलीफें तुम्हें आयी हैं,
  • 13:56 - 13:58
    'वह इन सबसे बढ़कर है',
  • 13:58 - 14:03
    ऐसा कहा जाता है,
    'जो तुममें है, बजाय उसके जो संसार में है'।
  • 14:03 - 14:09
    मतलब कि तुममें जो शक्ति है वह मौजूद है
    पर तुम्हें उसे ग्रहण करने की ज़रुरत है।
  • 14:09 - 14:13
    तुम्हें अवश्य अपने ह्रदय में स्थित ईश्वर की शक्ति
    और कृपा से जुड़ना चाहिए।
  • 14:13 - 14:15
    और यह मुश्किल नहीं है।
  • 14:15 - 14:22
    मेरी सभी बातें तुम्हें उसे खोजने में
    मदद कर रही हैं।
  • 14:30 - 14:33
    'प्लीज इसमें मेरी मदद कीजिये, मूजी।
  • 14:33 - 14:38
    मैं इस पीड़ायुक्त 'खेल' को
    त्यागने के लिए इच्छुक और तैयार हूँ,
  • 14:38 - 14:41
    पर ऐसा लगता है कि इसमें कुछ है
  • 14:41 - 14:45
    जिससे में अभी भी अचेत हूँ।'
  • 14:45 - 14:51
    ठीक है, यह जो कुछ भी इसमें है,
    वह आदत की वजह से मौजूद है।
  • 14:51 - 14:54
    क्योंकि कभी-कभी मन या यह वंचक,
  • 14:54 - 14:57
    तुम्हें ऐसी चीज़ों का वादा कर सकता है
  • 14:57 - 15:02
    जो तुम्हारी आत्मा को ललचाने वाली हैं।
  • 15:02 - 15:08
    ये वे चीज़ें हैं जो तुम्हारी कल्पनाओं, वासनाओँ,
  • 15:08 - 15:17
    और प्रक्षेपों को मनुष्य स्तर पर
    पूरा करने का वादा करती हैं।
  • 15:17 - 15:23
    दैहिक स्तर पर वह तुम्हारा मन बहला सकती है,
  • 15:23 - 15:28
    पर तुम्हें आनंद नहीं दे सकती है।
  • 15:28 - 15:33
    वह तुम्हें एकाकीपन तो दे सकती है
    पर शांति नहीं।
  • 15:36 - 15:39
    वह तुम्हें मनुष्य स्तर पर सफलता दे सकती है,
  • 15:39 - 15:46
    पर दुनिया की मूर्ख चीज़ों के परे जाना नहीं।
  • 15:46 - 15:48
    यह याद रखो।
  • 15:52 - 15:59
    'प्लीज़ यह अंधकार मिटाकर
    मुझे एक गहरे समर्पण में ले चलिए।'
  • 15:59 - 16:07
    मैं जो भी तुम्हें बता रहा हूँ केट्चा,
    वह अंधकार को
  • 16:07 - 16:14
    हटा रहा है, मिटा रहा है या
    उसके पार लेकर जा रहा है।
  • 16:14 - 16:18
    असल में,
  • 16:18 - 16:22
    ईश्वर सम्पूर्ण है।
  • 16:22 - 16:24
    और तुममें जो
    ईश्वर का बीज है,
  • 16:24 - 16:28
    जो ईश्वर का भाव है, वह भी सम्पूर्ण है।
  • 16:28 - 16:32
    तुम्हारा व्यक्ति रूप अपूर्ण है।
  • 16:32 - 16:35
    अकसर हम अपने व्यक्ति रूप को
    और पूर्ण बनाने की कोशिश करते हैं।
  • 16:35 - 16:38
    यह एक बड़ी नदी है, जो भी ईश्वर ने बनायी है।
  • 16:38 - 16:43
    कई लोग, व्यक्ति-रूप से इतने तेज जुड़ाव की वजह से,
  • 16:43 - 16:46
    इस व्यक्तिगत विकास के रास्ते पर चलेंगे।
  • 16:46 - 16:51
    वह ठीक है। वह हो सकता है।
    ईश्वर उसका ख्याल रखता है।
  • 16:51 - 16:55
    पर मैं कहता हूँ कि
    ईश्वर पूर्ण तरह से तुम्हारे भीतर भी है।
  • 16:55 - 17:02
    और अपूर्ण व्यक्ति को संपूर्ण बनाने की कोशिश करने के बजाय,
  • 17:02 - 17:06
    मैं कहूँगा कि, इस मार्ग पर,
  • 17:06 - 17:11
    अगर तुम 'तुम कौन हो' के अन्धकार को हटाओगे,
  • 17:11 - 17:15
    तो तुम पाओगे कि,
    मुझे तुम कौन हो के सत्य को तुम्हारे
  • 17:15 - 17:20
    पास लाना नहीं पड़ेगा,
    क्योंकि जब तुम अंधकार का परदा खोलोगे,
  • 17:20 - 17:26
    सत्य खुद को प्रत्यक्ष करने के लिए
    पहले ही मौजूद है।
  • 17:26 - 17:29
    हमारी बातें सिर्फ इसी के बारे में हैं।
  • 17:29 - 17:32
    और ये क्रियात्मक हैं।
  • 17:32 - 17:36
    ये संभव हैं।
  • 17:36 - 17:42
    इन तक पहुँचा जा सकता है।
    नहीं, 'पहुँच' उचित शब्द नहीं है।
  • 17:42 - 17:45
    प्राप्य कह सकते हैं, उस अवस्था के लिए।
  • 17:45 - 17:49
    सर्वोच्च मायने में, वह हर चीज़
  • 17:49 - 17:53
    जिसे तुम खोज रहे हो,
    पहले ही तुम्हारे भीतर है।
  • 17:53 - 17:57
    'अत्यंत गहरे प्रेम भाव में।
    केट्चा।'
  • 17:57 - 18:03
    मैं कुछ कह कर समाप्त करना चाहता हूँ।
  • 18:03 - 18:08
    रूमी नामक महान सूफ़ी संत,
  • 18:08 - 18:11
    कई लोग रूमी को जानते हैं।
  • 18:11 - 18:16
    उन्होंने कुछ कहा था
    जो मैं अक्सर अपनी बातों में बताता हूँ।
  • 18:16 - 18:23
    वह कहते हैं, 'मैं दरवाज़ा खटखटाए जा रहा हूँ।'
  • 18:23 - 18:26
    खटखटा रहा हूँ।
    कि, 'मुझे अंदर आने दें।
  • 18:26 - 18:30
    मुझे अंदर आने दें।' खटखटा रहा हूँ।
  • 18:30 - 18:32
    'अचानक दरवाज़ा खुलता है।
  • 18:32 - 18:39
    मुझे एहसास होता है कि
    मैं अंदर से खटखटाए जा रहा था।'
  • 18:39 - 18:45
    जब मैंने यह पहली बार सुना था,
    यह इतना प्रबल था!
  • 18:45 - 18:50
    सबसे सच्चे मायने में, हम सब पहले से ही अंदर हैं।
  • 18:50 - 18:53
    हमारा स्वाभाव ईश्वर में शामिल है।
  • 18:53 - 18:58
    हम जो हैं, जो हमारा मूलभूत स्वभाव है,
  • 18:58 - 19:00
    वह ईश्वर से समरस है।
  • 19:00 - 19:06
    जब हम सीखते हैं, और मजबूर होते हैं
    इस द्विविधता के संसार में जीने के लिए,
  • 19:06 - 19:10
    जहाँ इतनी सारी शक्तियों का प्रभाव है,
  • 19:10 - 19:17
    हम स्वभावतः भूल जाते हैं,
    और खुद को सिर्फ मानव शरीर,
  • 19:17 - 19:25
    और अनुकूलन,
    और इस दुनिया का ज्ञान समझ बैठते हैं।
  • 19:25 - 19:27
    फिर, एक समय,
    हमें एहसास होता है,
  • 19:27 - 19:31
    कि हमारी सारी कोशिशों से,
    पदार्थवादिक और
  • 19:31 - 19:34
    स्थूल रूप में हर चीज़ को
    पा लेने के बाद भी,
  • 19:34 - 19:38
    यह हमें शांति, आनंद और
    सम्पूर्णता तक नहीं लेकर आया है।
  • 19:38 - 19:46
    तो हम खुद को ज़िन्दगी के दरवाज़े पर
    खटखटाते हुए पाते है। [खटखटाने की आवाज़]
  • 19:46 - 19:48
    'प्लीज़ मुझे अंदर आने दें।
  • 19:48 - 19:52
    यहाँ निःस्नेह और अकेला सा हो गया है।
  • 19:52 - 19:58
    प्लीज़ मुझे अंदर आने दें।
    [खटखटाने की आवाज़] प्लीज़ खोलिये।'
  • 19:58 - 20:03
    और फिर दरवाज़ा खुलता है।
  • 20:03 - 20:08
    सिर्फ दरवाज़ा खुलने पर ...
    जिसका क्या मतलब है?
  • 20:14 - 20:22
    जब तुम दिल से भगवान के दरवाज़े को खटखटाते हो,
  • 20:22 - 20:27
    भगवान तुम्हारे लिए दरवाज़ा खोलते हैं।
  • 20:27 - 20:31
    तुम पहले से ही अंदर हो।
  • 20:31 - 20:33
    खुलता हुआ दरवाज़ा तुम्हें
  • 20:33 - 20:39
    दिखाता है और कहता है,
    'मेरे बच्चे, पर तुम तो पहले से ही अंदर हो'।
  • 20:39 - 20:42
    क्या बेवकूफी है।
    तुम सदा यहीं थे, पर
  • 20:42 - 20:46
    सही मायने में,
    तुम इससे अवगत नहीं होते कि तुम यहीं हो।
  • 20:46 - 20:48
    तुम स्वयं को भूल गए!
  • 20:48 - 20:52
    और तुम कल्पना करते हो कि
    तुम स्व के बाहर हो,
  • 20:52 - 20:54
    और तुम पीड़ित होते हो।
  • 20:54 - 20:58
    लेकिन फिर भी, तुम्हारी पीड़ा तुम्हें फिर यहाँ लेकर आयी,
  • 20:58 - 21:01
    दरवाज़े पर खटखटाते हुए,
    'मुझे अंदर आने दें'।
  • 21:01 - 21:06
    तुम्हें उस निराशाजनक स्थिति तक आने की ज़रुरत थी,
  • 21:06 - 21:11
    'प्लीज़ मुझे आने दें। प्लीज़ मुझे बचा लें।'
  • 21:11 - 21:18
    दरवाज़ा खुलता है और तुम्हें एहसास होता है,
    'मैं पहले से ही यहाँ हूँ।'
  • 21:18 - 21:22
    इस दरवाज़े का खुलना कृपा का बरसना है
  • 21:22 - 21:27
    जो तुम्हारा वास्तविक स्वाभाव दिखाती है।
  • 21:27 - 21:36
    मानव जाति के लिए यह पीड़ा और कठिनाई का समय
    हमें दरवाज़ा खटखटाने पर
  • 21:36 - 21:41
    मजबूर कर रहा है।
    [खटखटाने की आवाज़]
  • 21:41 - 21:44
    'हमारी मदद करो।
    मेरी मदद करो।
  • 21:44 - 21:49
    मेरी मदद करो। मुझे मरना नहीं है।'
  • 21:49 - 21:53
    वह जो मुक्त है, और जिसे भगवान मिल गए हैं,
  • 21:53 - 21:56
    उसे मृत्यु का डर नहीं है,
  • 21:56 - 21:59
    क्योंकि वह जानता है कि वह मर नहीं सकता!
  • 21:59 - 22:07
    शरीर चला जायेगा। हर एक शरीर जाएगा!
  • 22:07 - 22:12
    पर तुम तुम्हारा शरीर नहीं हो।
  • 22:12 - 22:18
    हर शरीर नष्ट होगा।
  • 22:18 - 22:24
    पर तुम तुम्हारा शरीर नहीं हो!
  • 22:24 - 22:26
    अगर तुम्हारा नाम जॉन है,
  • 22:26 - 22:31
    तो तुम्हारा शरीर नहीं जानता है
    कि तुम्हारा नाम जॉन है।
  • 22:31 - 22:34
    वह सिर्फ एक माध्यम है,
  • 22:34 - 22:37
    जीव और आत्मा को आश्रय देने के लिए
  • 22:37 - 22:41
    ईश्वर के द्वारा बनाया गया एक साधन है।
  • 22:41 - 22:48
    इसलिए यह एक दिव्य विधान है कि
  • 22:48 - 22:51
    ईश्वर की साँस तुममें बसती है,
  • 22:51 - 22:54
    ईश्वर का भाव तुम्हारे भीतर है।
  • 22:54 - 22:57
    जब यह भाव चैतन्य में जागृत होता है,
  • 22:57 - 22:59
    जब तुम उससे अवगत होते हो,
  • 22:59 - 23:03
    तुम अपने जीवन में समृद्ध होने लगते हो।
  • 23:03 - 23:09
    और मैं कहता हूँ कि,
    यह एक खूबसूरत बात है ज़िन्दगी की,
  • 23:09 - 23:13
    कि हम सब और अधिक सौंदर्य में,
  • 23:13 - 23:15
    और गहरी चेतना में,
  • 23:15 - 23:19
    सत्य के और ऊँचे चैतन्य में विकसित हो सकते हैं।
  • 23:19 - 23:23
    और यह वो सत्य है, जो,
    कहते हैं, 'तुम्हें मुक्त करता है'।
  • 23:23 - 23:29
    मतलब, वह तुम्हें,
    तुम्हारी आंतरिक मुक्ति से अवगत करता है,
  • 23:29 - 23:32
    जो ईश्वर की संतान होने के नाते
    तुम्हारे भीतर है,
  • 23:32 - 23:37
    या शुद्ध चैतन्य, अगर तुम वैसे कहना चाहो।
  • 23:37 - 23:44
    इसलिए, एक ऐसे समय में,
    जब वाकई हमारे पास समय है,
  • 23:44 - 23:51
    इन कुछ विचारों और इशारों को
    बाँटने का अवसर देने के लिए,
  • 23:51 - 23:53
    और तुम्हारे खत लिखने और
  • 23:53 - 23:57
    इन चीज़ों को देखने का अवसर देने के लिए,
  • 23:57 - 24:02
    धन्यवाद, धन्यवाद, धन्यवाद!
  • 24:02 - 24:04
    हमारे पास वाकई में समय है।
  • 24:04 - 24:11
    यह समय जब हम यहाँ हैं,
    हमें भेंट दिया जा रहा है,
  • 24:11 - 24:17
    और मुझे लगता है कि इस तरह इसका इस्तमाल करना
    बेहतरीन तरीकों में से एक है!
  • 24:17 - 24:22
    समय का सबसे महान उपयोग
    सत्य को खोजना है,
  • 24:22 - 24:25
    ईश्वर को खोजना है,
    खुद को खोजना है,
  • 24:25 - 24:31
    जिस भी तरह से हम कहना चाहें,
    पर यह एक ही सत्य है!
  • 24:31 - 24:35
    इसलिए इसमें क़ायम रहो।
    और तुम्हें ढेर सारा आशीर्वाद।
  • 24:35 - 24:42
    हमारी यात्रा उतनी ही धीमी और भारी होगी,
    जितना ज़्यादा
  • 24:42 - 24:44
    हम खुद को एक वस्तु मानते हैं।
  • 24:44 - 24:48
    जितना तुम ऐसा सोचते हो,
    उतना भारी होता है।
  • 24:48 - 24:50
    जितना तुम्हें यह एहसास होता है कि
  • 24:50 - 24:53
    किसी तरह यह समझ बन रही है,
  • 24:53 - 24:58
    'मैं जानती भी नहीं हूँ कि मैं कौन हूँ,
    लेकिन,
  • 24:58 - 25:01
    कुछ तो मेरे अंदर बस खुल रहा है
  • 25:01 - 25:05
    और यहाँ और आनंद और आकाश है।
  • 25:05 - 25:08
    मुझे काफी हल्का और विनम्र महसूस हो रहा है।
  • 25:08 - 25:11
    मैं जीवन की विद्रोही नहीं हूँ।
  • 25:11 - 25:15
    मुझे जीवन से प्रेम है!
    और मुझे जीने से प्रेम है।
  • 25:15 - 25:19
    और मैं दूसरों की और अपने लोगों की
  • 25:19 - 25:22
    और ज़्यादा परवाह कर रही हूँ।
  • 25:22 - 25:26
    किसी तरह,
    सभी लोग मेरे अपने लोग बन रहे हैं।'
  • 25:26 - 25:30
    तुम्हें बहुत शुभकामनाएँ।
    तुम्हारे ध्यान और समय के लिए धन्यवाद।
  • 25:30 - 25:33
    ईश्वर तुम्हें धन्य रखें।
    और फिर मिलते हैं।
  • 25:33 - 25:36
    नमस्ते।
  • 25:40 - 25:43
    कॉपीराइट © २०२० मूजी मीडिआ लि.
    सर्वाधिकार आरक्षित
  • 25:43 - 25:46
    इस रिकॉर्डिंग का कोई भाग मूजी मीडिआ लि. की
  • 25:46 - 25:49
    प्रत्यक्ष अनुमति के बिना
    पुनः प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
Title:
Loving Without Need — Mooji Answers #6 During Coronavirus
Description:

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Video Language:
English
Duration:
25:50

Hindi subtitles

Incomplete

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