0:00:13.767,0:00:24.633 जीवन, स्वतंत्रता तथा प्रसन्नता का अनुगमन । 0:00:24.633,0:00:27.008 हम प्रसन्नता को बाहर ढूंढने में जीवन बिता देते 0:00:27.008,0:00:30.003 हैं मानों वह कोई वस्तु हो । 0:00:30.003,0:00:39.004 हम अपनी इच्छाओं तथा लालसाओं के गुलाम बन गए हैं । 0:00:39.004,0:00:41.033 प्रसन्नता कोई ऐसी वस्तु नहीं जिसे ढूंढा जाए 0:00:41.033,0:00:44.006 या सस्ते सूट की तरह खरीदा जा सके । 0:00:44.006,0:00:45.767 यह माया, 0:00:45.767,0:00:46.633 भ्रम है रूप का 0:00:46.633,0:00:51.006 अंतहीन खेल । 0:00:51.006,0:00:53.167 बौद्ध परंपरा में, 0:00:53.167,0:00:56.433 संसार या पीड़ा का अंतहीन चक्र, 0:00:56.433,0:00:58.833 प्रसन्नता की अभिलाषा एवं पीड़ा 0:00:58.833,0:01:03.133 से मुक्ति से परिपूर्ण है । 0:01:03.133,0:01:07.004 फ्रॉयड ने इसे `प्रसन्नता सिद्धांत़` के रूप में उल्लिखित किया है । 0:01:07.004,0:01:10.233 हम वही सब करने का प्रयास करते हैं जिससे प्रसन्नता मिले या 0:01:10.233,0:01:12.233 कुछ ऐसा प्राप्त किया जा सके जो हम चाहते 0:01:12.233,0:01:19.667 हैं या उन सबसे छुटकारा, जो हम नहीं चाहते। 0:01:19.667,0:01:23.633 यहां तक कि पैरामेशियम जैसा साधारण जीव यह कार्य करता है । 0:01:23.633,0:01:25.009 इसे प्रेरक के प्रति प्रतिक्रिया कहा जाता है । 0:01:25.009,0:01:30.833 पैरामेशियम से हटकर मनुष्यों के अधिक विकल्प हैं । 0:01:30.833,0:01:34.004 हम सोचने के लिए स्वतंत्र हैं और वही समस्या का आधार है । 0:01:34.004,0:02:03.006 हम चाहते क्या हैं, यही सोचना नियंत्रण से बाहर हो गया है । 0:02:03.006,0:02:14.067 आधुनिक समाज की दुविधा यही है कि हम विश्व को समझना चाहते हैं, 0:02:14.067,0:02:17.433 लेकिन अपनी आंतरिक चेतना से नहीं, 0:02:17.433,0:02:20.067 बल्कि वैज्ञानिक साधनों तथा विचारों के माध्यम से बाहरी 0:02:20.067,0:02:25.833 संसार की मात्रात्मकता एवं गुणवत्ता मूल्यांकित करते हैं । 0:02:25.833,0:02:30.333 चिंतन से केवल अधिक सोच-विचार एवं अधिकाधिक प्रश्न उत्पन्न होते हैं । 0:02:30.333,0:02:33.633 हम जब आंतरिक संसार को जानना चाहते हैं जिससे विश्व उत्पन्न और दिशा-निर्देशित होता है, 0:02:33.633,0:02:35.667 तब हम इस सारतत्व को बाहरी रूप से ग्रहण करने लगते हैं । 0:02:35.667,0:02:39.001 हम इसे एक जीवंत वस्तु या अपनी प्रकृति 0:02:39.001,0:02:44.567 के अंतर्भूत के रूप में ग्रहण नहीं करते । 0:02:44.567,0:02:47.009 प्रसिद्ध मनश्चिकित्सक कार्ल जुंग जिन्होंने कहा “वह व्यक्ति जो बाहर देखता है, 0:02:47.009,0:02:56.000 वह सपने देखता है और वह जो अपने अंदर झांकता है, वह जागृत हो जाता है ।” 0:02:56.000,0:03:00.433 जागने और प्रसन्न होने की इच्छा गलत नहीं है । 0:03:00.433,0:03:04.033 गलत यह है कि खुशी को बाहर तलाशा जाए, 0:03:04.033,0:03:34.633 जबकि इसे केवल भीतर पाया जा सकता है । 0:03:34.633,0:03:39.733 भाग चार: सोच से आगे- लेक तहोए, कैलिफोर्निया, एरिक श्मिट– गूगल के सीईओ की 0:03:39.733,0:03:45.833 शिल्पविज्ञानी सम्मेलन में 4 अगस्त, 2010 को उल्लिखित विस्मयकारी सांख्यिकी । 0:03:45.833,0:03:48.433 श्मिट के अनुसार, सभ्यता के प्रारंभ से 2003 तक हमने 0:03:48.433,0:03:51.267 जितनी सूचना निर्मित की, उतना अब हम प्रत्येक 0:03:51.267,0:03:54.006 दो दिन में उत्पन्न करते हैं । 0:03:54.006,0:04:02.067 जो है 5 एक्साबाईट्स डेटा के बराबर । 0:04:02.067,0:04:05.006 मानव इतिहास में कभी इतनी सोच नहीं 0:04:05.006,0:04:08.733 रही और न ही ग्रह पर इतनी हलचल। 0:04:08.733,0:04:15.003 ऐसा तो नहीं कि हम हर समय किसी एक समस्या का समाधान तो कर नहीं पाते, दो और 0:04:15.003,0:04:18.467 समस्याएं उत्पन्न करते हैं? 0:04:18.467,0:04:20.005 क्या यह सोच ठीक है जो अत्यधिक 0:04:20.005,0:04:23.133 प्रसन्नता की ओर न ले जाए? 0:04:23.133,0:04:26.933 क्या हम अधिक प्रसन्न हैं? 0:04:26.933,0:04:27.000 अधिक स्थितप्रज्ञ? 0:04:27.000,0:04:30.267 क्या इस प्रकार की सोच से अधिक आनंदित हैं? 0:04:30.267,0:04:33.167 या यह हमें जीवन के गहन तथा 0:04:33.167,0:04:34.933 अधिक अर्थपूर्ण अनुभव से 0:04:34.933,0:04:39.007 अलग या असंबद्ध करती है? 0:04:39.007,0:04:45.003 सोचना, क्रियाशील होना और कार्य करना, 0:04:45.003,0:04:47.005 इन्हें जीव के अस्तित्व के साथ संतुलित करना होगा । 0:04:47.005,0:05:04.333 अंततोगत्वा हम मनुष्य हैं, मनुष्य के कार्य नहीं । 0:05:04.333,0:05:09.533 हम परिवर्तन और स्थायित्व एक साथ चाहते हैं । 0:05:09.533,0:05:13.133 हमारा हृदय जीवन के सर्पिल से, 0:05:13.133,0:05:15.033 परिवर्तन के नियम से असंबद्ध हो गया है, 0:05:15.033,0:05:18.033 चूंकि हमारा सोचने वाला मस्तिष्क हमें स्थिरता, 0:05:18.033,0:05:23.067 सुरक्षा तथा चेतनाओं के शमन की ओर संचालित करता है । 0:05:23.067,0:05:28.133 विकृत सम्मोहन से हम हत्या, सुनामी, 0:05:28.133,0:05:34.001 भूकंप एवं युद्धों को देखते हैं । 0:05:34.001,0:05:37.933 हम लगातार अपना मन मस्तिष्क व्यस्त रखते हैं और उसमें सूचनाएँ भरते हैं। 0:05:37.933,0:05:41.004 हर कल्पनीय उपकरण से टीवी कार्यक्रमों का प्रसारण। 0:05:41.004,0:05:43.006 खेल और पहेलियाँ । 0:05:43.006,0:05:44.367 पाठ संदेश । 0:05:44.367,0:05:47.833 और प्रत्येक संभव मामूली कार्य । 0:05:47.833,0:05:49.567 हम अपनी चेतनाओं व संवेदनों के शमन के 0:05:49.567,0:05:53.267 लिए नई छवियों, नई सूचना तथा नए तरीकों 0:05:53.267,0:06:00.667 से अनंत बहाव में स्वयं घिर जाते हैं । 0:06:00.667,0:06:04.133 शांत आंतरिक चिंतन के समय हमें हृदय में एहसास होता 0:06:04.133,0:06:08.367 है कि हमारी वर्तमान वास्तविकता से आगे भी जीवन 0:06:08.367,0:06:11.867 है चूंकि हम भूखे प्रेतों के संसार में जीते हैं । 0:06:11.867,0:06:24.067 अनंत लालसाओं से भरे और कभी संतुष्ट न होने वाले । 0:06:24.067,0:06:25.733 ग्रहों के आसपास हमने इतने आंकड़े फैलाए हैं, 0:06:25.733,0:06:30.033 जिनमें संसार के निर्धारण और समस्याओं के निर्धारण के लिए इतनी सोच, 0:06:30.033,0:06:33.267 इतने विचार दिए, जो केवल इस कारण से हैं 0:06:33.267,0:06:38.467 चूंकि ये मस्तिष्क से निकले हैं । 0:06:38.467,0:06:45.009 सोच ने इतना सारा बखेड़ा पैदा किया है जिसमें रहने के लिए हम अभिशप्त हैं । 0:06:45.009,0:06:50.533 हम बीमारियों, शत्रुता और समस्याओं से जूझते रहते हैं । 0:06:50.533,0:06:55.033 विडंबना यह है कि जिसका हम प्रतिरोध करते हैं वही अस्तित्व में है । 0:06:55.033,0:06:59.167 आप जिसका जितना प्रतिरोध करते हैं, वह उतना ही ताकतवर हो जाता है । 0:06:59.167,0:07:02.001 मांसपेशियों के व्यायाम की तरह, जिससे आप छुटकारा 0:07:02.001,0:07:05.007 पाना चाहते हैं, दरअसल उसे मजबूत बना रहे हैं । 0:07:05.007,0:07:09.733 ऐसे में, सोचने का विकल्प क्या है ? 0:07:09.733,0:07:32.633 इस ग्रह पर अस्तित्व बनाए रखने के लिए मनुष्य किस अन्य प्रक्रिया का प्रयोग कर सकता है? 0:07:32.633,0:07:35.867 यद्यपि हाल की शताब्दियों में पश्चिमी संस्कृति 0:07:35.867,0:07:39.667 ने चिंतन तथा विश्लेषण का प्रयोग करते हुए भौतिक को उद्भासित किया, 0:07:39.667,0:07:42.005 तथापि अन्य प्राचीन संस्कृतियों ने आंतरिक विकास 0:07:42.005,0:07:48.006 के लिए समान रूप से सुविज्ञ प्रौद्योगिकी विकसित की है । 0:07:48.006,0:07:51.003 हमारे आंतरिक संसार के साथ हमारा संपर्क टूटने के 0:07:51.003,0:07:56.000 कारण ही हमारे ग्रह पर असंतुलन उत्पन्न हुआ है । 0:07:56.000,0:07:59.667 प्राचीन आप्त वाक्य "स्वयं को जानो” 0:07:59.667,0:08:04.567 को रूप के बाहरी संसार के अनुभव की कामना से प्रतिस्थापित किया गया है । 0:08:04.567,0:08:07.967 “मैं कौन हूं?” इसका उत्तर आपके व्यावसायिक कार्ड पर 0:08:07.967,0:08:15.767 व्यवसाय को वर्णित करने जितना सरल नहीं । 0:08:15.767,0:08:19.433 बौद्धधर्म में, आप अपनी चेतना की विषयवस्तु नहीं हैं । 0:08:19.433,0:08:22.633 आप केवल चिंतन या विचारों का संग्रह नहीं, 0:08:22.633,0:08:35.733 चूंकि चिंतन के पीछे वही एक है जो चिंतन का साक्षी है । 0:08:35.733,0:08:40.007 आदेश सूचक `स्वयं को जानो` एक जेन कोआन है, एक अनुत्तरित पहेली। 0:08:40.007,0:08:45.433 अंततोगत्वा उत्तर जानने के प्रयत्न में मस्तिष्क थक जाएगा । 0:08:45.433,0:08:49.833 केवल अहं अभिज्ञान ही है जिसे उत्तर या प्रयोजन चाहिए, 0:08:49.833,0:08:56.833 किसी कुत्ते द्वारा अपनी पूंछ का पीछा करने के समान। आप कौन हैं, 0:08:56.833,0:09:00.967 इस सत्य को उत्तर की आवश्यकता नहीं, 0:09:00.967,0:09:08.267 चूंकि सभी प्रश्न अहंशील मस्तिष्क की देन हैं । 0:09:08.267,0:09:16.433 आप मस्तिष्क नहीं हैं। 0:09:16.433,0:09:25.067 सत्य अधिक उत्तरों में नहीं है बल्कि कम प्रश्नों में है। 0:09:25.067,0:09:26.733 जैसाकि जोसेफ कैंपबेल ने कहा है 0:09:26.733,0:09:30.233 “मैं उन लोगों में विश्वास नहीं करता जो जीवन का अर्थ खोज रहे हैं, 0:09:30.233,0:09:53.000 बल्कि मैं उन लोगों में विश्वास करता हूं जो जीवन का अनुभव कर रहे हैं ।” 0:09:53.000,0:09:57.002 जब बुद्ध से पूछा गया “आप क्या हैं?” तो उन्होंने बस कहा, 0:09:57.002,0:09:59.367 “मैं जागा हुआ हूं” । 0:09:59.367,0:10:07.567 जागृत होना, इसका क्या अर्थ है ? 0:10:07.567,0:10:10.006 बुद्ध ने सटीक तौर पर नहीं कहा, चूंकि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन 0:10:10.006,0:10:13.367 का खिलना अलग है लेकिन उन्होंने एक बात कही। 0:10:13.367,0:10:22.000 यह पीड़ा का अंत है । 0:10:22.000,0:10:24.001 प्रत्येक बड़ी धार्मिक परंपरा में जागृत 0:10:24.001,0:10:26.567 अवस्था के लिए एक नाम है। 0:10:26.567,0:10:27.008 स्वर्ग, 0:10:27.008,0:10:29.033 निर्वाण 0:10:29.033,0:10:31.533 या मोक्ष । 0:10:31.533,0:10:37.533 केवल शांत चित्त की आवश्यकता है ताकि प्रकृति के बहाव को महसूस किया जा सके - 0:10:37.533,0:10:40.767 अन्यथा जब आपका चित्त शांत हो, तब यह आपके मन में घटित होगा। 0:10:40.767,0:10:44.000 उस स्थैर्य में आंतरिक ऊर्जाएं जागृत हो जाएंगी और आप 0:10:44.000,0:10:48.004 बिना प्रयास के कार्य संपन्न करने में सक्षम हो जाएंगे । 0:10:48.004,0:10:56.002 जैसा कि टॉलस्टाय ने कहा है “चि चेतना का अनुपालन करता है”। 0:10:56.002,0:10:58.833 स्थिरता प्राप्त होने पर व्यक्ति पौधों तथा पशुओं की 0:10:58.833,0:11:00.008 बुद्धिमत्ता भी सुनना आरंभ कर देता है। 0:11:00.008,0:11:05.567 स्वप्नों में हल्की सी फुसफसाहट को व्यक्ति 0:11:05.567,0:11:07.533 सूक्ष्म प्रक्रिया से सीख जाता है, 0:11:07.533,0:11:11.633 जिससे वे स्वप्न भौतिक रूप में सामने आ जाते हैं । 0:11:11.633,0:11:16.767 ताओ ते चिंग में इस प्रकार के 0:11:16.767,0:11:22.667 जीवन को “वेइ वू वेइ” कहते हैं । 0:11:22.667,0:11:25.233 `करना, न करना` बुद्ध ने इस मार्ग को मध्यम मार्ग कहा है जो 0:11:25.233,0:11:28.167 जागृति की ओर ले जाता है । 0:11:28.167,0:11:31.467 अरस्तू ने स्वर्णिम मध्यमान को वर्णित किया 0:11:31.467,0:11:35.567 – दो चरम सीमाओं के बीच मध्य, अर्थात् सौंदर्य का मार्ग । 0:11:35.567,0:11:38.007 बहुत अधिक प्रयास नहीं, लेकिन बहुत कम भी नहीं। 0:11:38.007,0:11:57.333 Yचिन एवं यांग का संपूर्ण संतुलन। 0:11:57.333,0:12:00.004 वेदांत की माया या संभ्रम की धारणा यह है कि हम 0:12:00.004,0:12:03.033 परिवेश का अनुभव नहीं करते, 0:12:03.033,0:12:08.267 बल्कि विचारों द्वारा सृजित इसका प्रक्षेपण करते हैं । 0:12:08.267,0:12:11.000 निस्संदेह आपके विचार कुछेक तरीके से कंपायमान 0:12:11.000,0:12:15.833 संसार का अनुभव करवाते हैं, लेकिन हमारे 0:12:15.833,0:12:21.567 आंतरिक समत्व को बाहरी घटनाओं की आवश्यकता नहीं। 0:12:21.567,0:12:26.667 बाहरी संसार पर विश्वास, 0:12:26.667,0:12:30.367 विज्ञान के बुनियादी सिद्धांत पर टिका है । 0:12:30.367,0:12:34.002 लेकिन हमारी संवेदनाएं हमें केवल अप्रत्यक्ष सूचना देती हैं। 0:12:34.002,0:12:37.005 इस मस्तिष्क निर्मित भौतिक संसार के बारे में हमारी धारणाएं संवेदनाओं के 0:12:37.005,0:12:44.167 माध्यम से हमेशा निस्यंदित होती हैं और इसलिए हमेशा अपूर्ण रहती हैं । 0:12:44.167,0:12:49.002 कंपन का एक क्षेत्र है जो सभी संवेदनों में अंतर्निहित है। 0:12:49.002,0:12:53.000 ऐसी स्थिति के लोगों को `सिनेस्थेसिया` कहा जाता है, 0:12:53.000,0:12:57.267 जो कभी-कभार विभिन्न तरीकों से इस कंपनशील क्षेत्र का अनुभव करते हैं। 0:12:57.267,0:13:01.005 `सिनेस्थेसिया`, ध्वनियों को एक संवेदन से दूसरे 0:13:01.005,0:13:05.433 के रंगों या आकारों में देख सकता है। 0:13:05.433,0:13:13.002 `सिनेस्थेसिया` संवेदनाओं के संश्लेषण या अंतरमिश्रण से संबद्ध हैं । 0:13:13.002,0:13:15.967 चक्र तथा संवेदनाएं संपार्श्व की तरह हैं 0:13:15.967,0:13:19.967 जिससे कंपन का अविच्छिनन्न निस्यंदन होता है । 0:13:19.967,0:13:22.007 ब्रह्माण्ड में सभी वस्तुएं कंपित हो रही हैं 0:13:22.007,0:13:27.008 लेकिन भिन्न गति और नैरंतर्य से । 0:13:27.008,0:13:31.333 होरस का नेत्र छह प्रतीकों से बना है, 0:13:31.333,0:13:34.433 प्रत्येक में एक संवेदना का प्रतिनिधित्व है । 0:13:34.433,0:13:36.009 प्राचीन वैदिक प्रणाली की तरह, 0:13:36.009,0:13:44.004 विचार को संवेदना के रूप में माना गया है । 0:13:44.004,0:13:45.933 शरीर द्वारा संवेदनाओं की अनुभूति 0:13:45.933,0:13:48.009 के साथ-साथ विचार प्राप्त होते हैं। 0:13:48.009,0:13:54.367 वे उसी कंपन स्रोत से उत्पन्न होते हैं । 0:13:54.367,0:13:56.004 चिंतन बस एक साधन है । 0:13:56.004,0:13:57.767 छह संवेदनाओं में एक । 0:13:57.767,0:14:01.007 लेकिन हमने इसे ऐसी उच्च स्थिति में विकसित किया है कि हम 0:14:01.007,0:14:07.000 स्वयं की पहचान अपने विचारों से करते हैं । 0:14:07.000,0:14:10.533 वास्तव में यह तथ्य कि हम छह संवेदनाओं में एक के रूप में 0:14:10.533,0:14:12.667 चिंतन की पहचान नहीं करते, अत्यंत महत्वपूर्ण है । 0:14:12.667,0:14:17.867 हम चिंतन में ऐसे लिप्त हैं कि सोच-विचार को संवेदना के रूप में 0:14:17.867,0:14:20.733 व्याख्यायित करना मछली को जल के बारे में बताने की तरह हैं । 0:14:20.733,0:14:31.867 जल, कैसा जल? 0:14:31.867,0:14:34.667 उपनिषदों में कहा गया है, वह नहीं जिसे नेत्र देख सकता है, 0:14:34.667,0:14:40.009 बल्कि वह जिसके माध्यम से नेत्र देखता है। 0:14:40.009,0:14:47.006 उसे शाश्वत ब्रह्म के रूप में जानें, न कि वह जिसकी लोग यहाँ आराधना करते हैं । 0:14:47.006,0:14:54.033 उसे नहीं जिसे कान सुन सकते हैं बल्कि वह, जिससे कान सुनते हैं । 0:14:54.033,0:15:03.033 उसे शाश्वत ब्रह्म जानें न कि वह जिसकी लोग यहाँ आराधना करते हैं । 0:15:03.033,0:15:09.003 वह नहीं जिसे बोलना स्पष्ट कर सकता है बल्कि वह, जिसके द्वारा बोल उजागर होते हैं । 0:15:09.003,0:15:22.007 उसे शाश्वत ब्रह्म जानें न कि वह जिसकी लोग यहाँ आराधना करते हैं । 0:15:22.007,0:15:28.009 वह नहीं जो मस्तिष्क सोच सकता है, बल्कि वह, जिससे मस्तिष्क सोचता है । 0:15:28.009,0:16:04.005 उसे शाश्वत ब्रह्म जानें न कि वह जिसकी लोग यहाँ आराधना करते हैं । 0:16:04.005,0:16:07.233 गत दशक में, मस्तिष्क के 0:16:07.233,0:16:10.667 अनुसंधान ने बड़ी प्रगति की है । 0:16:10.667,0:16:13.533 वैज्ञानिकों ने न्यूरो प्लास्टिीसिटी की खोज की; 0:16:13.533,0:16:17.005 एक ऐसा शब्द जो यह विचार व्यक्त करता है कि मस्तिष्क के भौतिक तार, 0:16:17.005,0:16:21.003 इसके माध्यम से संचरित होने वाले विचारों के अनुसार परिवर्तित हो जाते हैं । 0:16:21.003,0:16:24.033 कनाडाई मनोवैज्ञानिक डोनाल्ड हेब्ब ने जैसा इसे स्पष्ट किया “तंत्रिका-कोशिकाएँ, 0:16:24.033,0:16:35.000 जो एक साथ सक्रिय होती है, एक साथ जुड़ती है ”। 0:16:35.000,0:16:41.000 तंत्रिका-कोशिका एक साथ जुड़ने का अभिप्राय है जब कोई व्यक्ति सतत ध्यान की मनोदशा में होता है । 0:16:41.000,0:16:43.367 इसका अर्थ हुआ कि आपके द्वारा वास्तविकता के अपने 0:16:43.367,0:16:45.633 आत्मनिष्ठ अनुभव को निर्देशित करना संभव है। 0:16:45.633,0:16:50.167 शाब्दिक रूप में, यदि आपके विचार भय, चिंता, उद्विग्नता तथा नकारात्मकता से परिपूर्ण हैं, 0:16:50.167,0:16:56.004 तो आप इन विचारों को अधिकाधिक पनपने के लिए संयोजन बढ़ाते हैं । 0:16:56.004,0:16:58.008 यदि आप अपने विचारों को प्रेम, दया, 0:16:58.008,0:17:01.008 कृतज्ञता तथा प्रसन्नता के लिए निर्देशित करते हैं, 0:17:01.008,0:17:05.633 तो आप उन अनुभवों की पुनरावृत्ति के लिए तार सृजित करते हैं । 0:17:05.633,0:17:10.033 लेकिन तब क्या करें यदि हम हिंसा तथा पीड़ा से घिरे हों ? 0:17:10.033,0:17:15.767 क्या यह भ्रांति या महात्वाकांक्षी विचार जैसा नहीं ? 0:17:15.767,0:17:18.233 न्यूरोप्लास्टिसिटी उस आधुनिक धारणा के समान नहीं है जैसे आप सकारात्मक 0:17:18.233,0:17:21.833 सोच से अपनी वास्तविकता का सृजन कर सकते हैं । 0:17:21.833,0:17:25.067 यह वास्तव में वही है जिसे बुद्ध ने 0:17:25.067,0:17:28.667 2500 वर्ष पूर्व सिखाया था । 0:17:28.667,0:17:33.867 विपासना-ध्यान या अंतर्दर्शी-ध्यान को आत्मनिर्देशित न्यूरोप्लास्टीसिटी 0:17:33.867,0:17:39.333 के रूप में वर्णित किया जा सकता है । 0:17:39.333,0:17:45.833 आप अपनी वास्तविकता ठीक उसी रूप में स्वीकारते हैं – जैसा कि वह वास्तव में है । 0:17:45.833,0:17:50.867 लेकिन आप विचार के पूर्वाग्रह या प्रभाव के 0:17:50.867,0:17:54.633 बिना कंपायमान या ऊर्जावान स्तर 0:17:54.633,0:17:56.833 पर संवेदन की गहराई में अनुभव करते हैं । 0:17:56.833,0:18:00.533 तना के गहन तल पर सतत ध्यान के माध्यम से वास्तविकता 0:18:00.533,0:18:18.005 की समूची विभिन्न धारणा के लिए तार उत्पन्न हो जाते हैं । 0:18:18.005,0:18:21.233 अधिकांशतः हम इसके विपरीत सोचते हैं । 0:18:21.233,0:18:27.008 हम अपने तंत्रिकीय संजाल से बाहरी विश्व आकार पर सतत विचार करते रहते हैं लेकिन 0:18:27.008,0:18:34.767 हमारे आंतरिक समत्व को बाहरी घटनाओं पर आश्रित रहने की आवश्यकता नहीं है। 0:18:34.767,0:18:37.867 परिस्थितियों का कोई महत्व नहीं। 0:18:37.867,0:18:42.067 केवल मेरी चेतना का महत्व है। 0:18:42.067,0:18:44.867 संस्कृत में ध्यान का अर्थ है परिमापन से मुक्ति । 0:18:44.867,0:18:47.001 सभी तुलनाओं से मुक्त । 0:18:47.001,0:18:48.008 सभी अच्छाइयों (आने वाली स्थितियों) से मुक्त । 0:18:48.008,0:18:51.667 आप कुछ और बनने का प्रयास नहीं कर रहे हो । 0:18:51.667,0:18:57.333 आप जो हैं उसी में संतुष्ट हैं । 0:18:57.333,0:19:01.033 भौतिक यथार्थ की पीड़ाओं से ऊपर उठने का 0:19:01.033,0:19:03.133 मार्ग इसे पूर्ण रूप से स्वीकारने में ही है । 0:19:03.133,0:19:05.433 यह मानना कि हां यह है । 0:19:05.433,0:19:08.133 इसलिए यह आपके भीतर घटित हो जाता है, 0:19:08.133,0:19:21.001 न कि आप इसके भीतर होते हो । 0:19:21.001,0:19:23.008 कोई व्यक्ति इस प्रकार कैसे रह सकता है 0:19:23.008,0:19:27.467 कि चेतना अपनी अंतर्वस्तु से अधिक देर तक न टकराए? 0:19:27.467,0:19:32.267 कैसे कोई व्यक्ति ह्रदय से छोटी-छोटी महत्वाकांक्षाओं को हटा सकता है । 0:19:32.267,0:19:35.133 चेतना में संपूर्ण क्रांति होनी चाहिए । 0:19:35.133,0:19:41.006 बाहरी संसार से आंतरिक संसार की ओर अभिविन्यास में मूलभूत रूपांतरण । 0:19:41.006,0:19:45.009 यह इच्छा या केवल प्रयास द्वारा लाई गई क्रांति नहीं है । 0:19:45.009,0:19:48.008 बल्कि यह समर्पण से संभव है । 0:19:48.008,0:20:00.733 वास्तविकता की यथावत् स्वीकृति । (“केवल ह्रदय से ही आप आकाश छू सकते हैं”- रूमी) 0:20:00.733,0:20:05.033 ईसा के खुले ह्रदय की छवि इस विचार को गहनता से संप्रेषित करती है 0:20:05.033,0:20:08.005 कि व्यक्ति को सभी प्रकार के कष्टों के लिए तैयार रहना चाहिए, 0:20:08.005,0:20:11.633 यदि व्यक्ति को विकासात्मक स्रोत के लिए अपने को खुला रखना है, 0:20:11.633,0:20:14.008 तो उसे यह सब स्वीकारना चाहिए। 0:20:14.008,0:20:17.433 इसका अर्थ यह नहीं कि आप पर-पीड़ित बन जाओ, 0:20:17.433,0:20:18.008 आप दुख की ओर न देखो, 0:20:18.008,0:20:23.133 लेकिन जब वह आए, 0:20:23.133,0:20:27.167 जो अनिवार्यतः होता है, तो आप इसकी वास्तविकता को 0:20:27.167,0:20:32.333 स्वीकारें न कि किसी अन्य वास्तविकता की अभिलाषा करें। 0:20:32.333,0:20:33.833 हवाईवासियों का पुराना विश्वास है कि केवल 0:20:33.833,0:20:37.002 हृदय के माध्यम से ही हम सत्य पा सकते हैं । 0:20:37.002,0:20:44.467 हृदय की अपनी बुद्धिमत्ता मस्तिष्क से विशिष्ट होती है । 0:20:44.467,0:20:47.633 मिस्रवासियों का विश्वास है कि हृदय मस्तिष्क नहीं, 0:20:47.633,0:20:49.233 मानव बुद्धिमत्ता का स्रोत है । 0:20:49.233,0:20:51.009 हृदय को ही आत्मा तथा 0:20:51.009,0:20:54.008 व्यक्तित्व का केन्द्र माना गया। 0:20:54.008,0:20:58.033 यह हृदय के माध्यम से ही संभव हुआ है कि दिव्यात्मा ने प्राचीन 0:20:58.033,0:21:05.533 मिस्रवासियों को उनके सच्चे मार्ग का ज्ञान दिया । 0:21:05.533,0:21:08.433 इस कथन में हृदय के सारतत्व को वर्णित किया गया है । " 0:21:08.433,0:21:11.033 इसे अच्छा समझा गया है कि सरल 0:21:11.033,0:21:13.006 हृदय से जीवन के पार जाएँ । 0:21:13.006,0:21:21.005 इसका तात्पर्य है कि आपने ठीक से जिया । 0:21:21.005,0:21:25.003 एक वैश्विक या आदर्श स्थिति यह है कि हृदय केन्द्र के जागृत 0:21:25.003,0:21:28.267 होने पर अपनी ऊर्जा की प्रक्रिया में लोगों को 0:21:28.267,0:21:44.005 ब्रह्माण्ड की ऊर्जा का अनुभव हो जाता है । 0:21:44.005,0:21:46.009 जब आप स्वयं को इस प्रेम की अनुभूति करने देते हैं, 0:21:46.009,0:21:49.567 प्रेम अनुभव करने लगते हैं, 0:21:49.567,0:21:53.067 जब आप अपने आंतरिक संसार को बाहरी संसार से संबद्ध करते हैं, 0:21:53.067,0:21:56.667 तो सब एकाकार हो जाता है । 0:21:56.667,0:22:00.867 कोई तारों के संगीत का अनुभव कैसे करता है? 0:22:00.867,0:22:04.467 हृदय कैसे खुलता है ? 0:22:04.467,0:22:09.167 श्री रमण महर्षि ने कहा है “ईश्वर आपके भीतर है, 0:22:09.167,0:22:12.067 आपकी तरह है, 0:22:12.067,0:22:14.233 और ईश्वर अनुभूति या आत्मानुभूति 0:22:14.233,0:22:15.967 के लिए आपको कुछ नहीं करना है। 0:22:15.967,0:22:20.367 यह पहले ही आपकी वास्तविक और प्राकृतिक स्थिति है । 0:22:20.367,0:22:22.667 सभी प्रकार की अभिलाषाओं – 0:22:22.667,0:22:24.006 याचनाओं को त्याग दें, 0:22:24.006,0:22:28.033 अपना ध्यान भीतर मोड़ें और अपना मन `स्व` को समर्पित कर दें, 0:22:28.033,0:22:30.005 अपने ह्रदय में उतर जाएं । 0:22:30.005,0:22:35.000 इसे अपने वर्तमान का जीवंत अनुभव बनाने के लिए 0:22:35.000,0:22:48.005 आत्मान्वेषण एक प्रत्यक्ष तथा तात्कालिक मार्ग है ।” 0:22:48.005,0:22:52.033 जब आप ध्यानमग्न होते हैं और अपने भीतर, अपनी आंतरिक जीवंत संवेदनाएं देखते हैं, 0:22:52.033,0:22:58.133 तो वास्तव में आप अपना परिवर्तन देखते हैं । 0:22:58.133,0:23:01.367 परिवर्तन की यह शक्ति, ऊर्जा परिवर्तन के आकार में 0:23:01.367,0:23:03.008 उद्भूत होती है और आगे बढ़ती जाती है । 0:23:03.008,0:23:08.567 वह मात्रा, जिसमें व्यक्ति विकसित या जागृत हुआ है, 0:23:08.567,0:23:11.267 वह दशा है जिसमें व्यक्ति ने प्रत्येक क्षण 0:23:11.267,0:23:13.467 को अंगीकार करने के लिए क्षमता 0:23:13.467,0:23:16.267 अर्जित की है या परिस्थितियों, पीड़ा और 0:23:16.267,0:23:19.567 आनंद के सतत परिवर्तित मानवीय प्रवाह 0:23:19.567,0:23:29.033 को परमानंद में रूपांतरित कर दिया है । 0:23:29.033,0:23:32.767 `युद्ध और शांति` के लेखक लियो टॉल्स्टाय ने कहा है 0:23:32.767,0:23:36.005 “प्रत्येक व्यक्ति संसार को बदलने की सोचता है, 0:23:36.005,0:23:45.004 लेकिन कोई भी व्यक्ति स्वयं को बदलने की नहीं सोचता ।” 0:23:45.004,0:23:47.733 डार्विन ने कहा है कि जीव के अस्तित्व के लिए 0:23:47.733,0:23:52.367 अत्यधिक महत्वपूर्ण विशेषता ताकत या बुद्धिमत्ता 0:23:52.367,0:24:08.006 की नहीं बल्कि परिवर्तन के अनुकूलन की है । 0:24:08.006,0:24:11.767 अंगीकार करने में कुशल हो जाना चाहिए । 0:24:11.767,0:24:15.333 यही बुद्ध की शिक्षा है “अणिका” – 0:24:15.333,0:24:19.767 प्रत्येक वस्तु प्रकट और विलुप्त, 0:24:19.767,0:24:21.007 परिवर्तित हो रही है – 0:24:21.007,0:24:31.007 सतत परिवर्तन। पीड़ा इसलिए अस्तित्व में है क्योंकि हम विशिष्ट स्वरूप से मोहासक्त हो जाते हैं । 0:24:31.007,0:24:34.006 जब आप अणिका को समझते हुए स्वयं के प्रत्यक्षदर्शी अंश से जुड़ जाओगे, 0:24:34.006,0:25:12.933 तो ह्रदय में परमानंद उत्पन्न हो जाएगा । 0:25:12.933,0:25:26.867 पूरे इतिहास में संतों, महात्माओं और योगियों ने सर्वसम्मति से पवित्र 0:25:26.867,0:25:31.067 मिलन का वर्णन किया है जो ह्रदय में घटित होता है । 0:25:31.067,0:25:33.667 भले ही क्रॉस के सेंट जॉन का लेखन हो, 0:25:33.667,0:25:36.000 रूमी का काव्य हो 0:25:36.000,0:25:39.767 या भारत की तांत्रिक शिक्षाएं, 0:25:39.767,0:25:41.867 इन सभी भिन्न शिक्षाओं ने ह्रदय के सूक्ष्म रहस्य 0:25:41.867,0:25:47.133 को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है । 0:25:47.133,0:25:50.733 हृदय में शिव और शक्ति की संयुक्ति है । 0:25:50.733,0:25:54.567 पुरुषोचित प्रभाव जीवन के सर्पिल में उतरता है 0:25:54.567,0:25:59.233 और स्त्री-सुलभता परिवर्तन के प्रति समर्पण करती है । 0:25:59.233,0:26:00.067 इन सबका दर्शन 0:26:00.067,0:26:06.733 और बिना शर्त उनकी स्वीकृति । 0:26:06.733,0:26:08.133 अपना हृदय उद्घाटित करने के उपक्रम में 0:26:08.133,0:26:11.533 आपको परिवर्तन भी स्वीकार करना होगा। 0:26:11.533,0:26:14.233 इस ठोस प्रतीत होने वाले संसार में 0:26:14.233,0:26:15.533 रहने के लिए इसके साथ नृत्य करें, 0:26:15.533,0:26:17.167 इसमें शामिल हों, 0:26:17.167,0:26:18.433 पूर्ण रूप में जिएं, 0:26:18.433,0:26:20.005 पूर्णतः प्रेम करें, 0:26:20.005,0:26:23.003 लेकिन यह भी जानें कि यह नश्वर है और अंततोगत्वा 0:26:23.003,0:26:30.000 सभी रूपाकार समाप्त या परिवर्तित हो जाते हैं । 0:26:30.000,0:26:33.008 परमानंद वह ऊर्जा है जो नीरवता के प्रति प्रतिक्रिया दर्शाती है । 0:26:33.008,0:26:37.006 यह चेतना से सभी विषय-वस्तुओं को हटाने से आती है । 0:26:37.006,0:26:42.033 नीरवता से उत्पन्न यह परमानंद ऊर्जा की विषयवस्तु ही चेतना है । 0:26:42.033,0:26:45.033 ह्रदय की नई चेतना । 0:26:45.033,9:59:59.000 चेतना जो सभी प्राणियों से संबद्ध है[br]�