इस साल अपनी बेटियों को बताइए, कैसे हम काॅफी की तलब करते हुए उठे लेकिन उसकी जगह सुबह के अखबारों में बिखरी लाशें पाई, हमारी बहनों, पतियों या पत्नियों, छोटे बच्चों की जलग्रस्त प्रतिकृतियाँ इस साल जब आपकी बच्ची पूछे, जो उसे ज़रूर करना चहिए, उसे बताइए इसे आने में देर हो गई स्वीकार कीजिए कि जिस साल हमें आज़ादी मिली, तब भी हम पूरे तौर से उसके मालिक नही बने तब भी कानून थे कि हम अपने निजी हिस्सों का किस तरह वापर करें जब वह हमारे कोमल सिलवटों को छूते रहे, बिना हमारी इजाज़त की फ़िक्र किए मर्दों पर लागू होने वाले कोई कानून नहीं बनाए गए हमें बचना सिखाया गया था, इंतज़ार करना, डरना, छिपना सिखाया गया और भी रुकना, अभी तक रुकना हमे बताया कि हम खामोश रहें पर इस युद्ध-काल में अपनी बच्चियों को बताइए एक साल, पिछले हज़ारों की तरह ही, बीत गया तो पिछले दो दशकों से, हमने अपनी आँखें पोंछ दी, ध्वजों के संदूकों से सजी, क्लब के मौका-ए-वारदात को खाली कर दिया, सड़क पर चीखें, अपने जिस्मों को ज़मीन पर लिटाया, हमारे शहीदों के शवों के पास, रोये, "बेशक हम मायने रखते थे," गुमशुदाओं के लिए इबादत की इस साल औरतें रोयी हैं रोयी हैं वे। उस ही साल, हम तैयार हुए । जिस साल हमने अपना खौफ़ खोया, और हिम्मती बेपरवाही के साथ चलें उस ही साल हमने बंदूकों को डटकर देखा आसमान के सारसों के गीत गाए, झुके और टाला हिजाबों में सोना पकड़ा, मौत की धमकियाँ इकट्ठा की, खुदको देशभक्त के नाम से जाना कहा, "हम अब 35 के हुए हैं, वक्त आ गया है घर बसाने का, अपना साथी ढूँढने का," बच्चे-सी खुशी के लिए सड़कों के नक्शे बनाए, सिर्फ़ डर को शर्मिंदा किया, खुदको मोटा बुलाया, जिसका मतलब, ज़ाहिर है, कमाल था. इस साल, हम औरतें थी, न किसी की दुल्हन, न कोई ज़ेवर न कोई नीच लिंग न कोई रियायत,बल्कि औरते अपने बच्चों को सिखाएं। उन्हें याद दिलाइए कि सीधी-सादी बनी और नीच बने रहने का साल बीत चुका है हम में से कुछ ने पहली दफा कहा कि हम औरतें हैं एकता की इस शपथ को सच-मुच माना हम में से कुछ को बच्चे हुए और कुछ को नहीं हुए और हम में से किसी ने नहीं पूछा कि क्या इससे हम असली या माकूल या सच हुए जब वह इस साल के बारे में आप से पूछेगी, आपकी बेटी, क्या आपकी औलाद है, या आपके जीत की वारिस उसका के दिलासा देनेवाले इतिहास , जो औरतों की ओर लड़खड़ा रहा है उसे ताज्जुब होगा और वह उत्सुकता से पूछेगी, भले उसे आपकी कुरबानी का एहसास नही होगा, पर आपके अंदाज़े को वह पाक मानेगी जिज्ञासा से पूछते, "आप कहाँ थी? क्या आप लड़ी? क्या आप डरी हुई थी या डरानेवाली थी? दीवारों पर आपके अफसोस का रंग कैसे लगा? जब वक्त था उस साल आपने औरतों के लिए क्या किया? यह रास्ता आपने मेरे लिए बनाया, कौन सी हड्डियों को टूटना पड़ा? क्या आपने काफ़ी कर लिया, क्या आप ठीक हो, माँ? और क्या आप एक हीरो हो?" वो मुशकिल सवाल पूछेगी उसे परवाह नहीं होगी आप की भृकुटि के वक्र की आप की पकड़ के वज़न की आप के उल्लेख सम्बंधित नहीं पूछगी आपकी बेटी, जिस के लिए आपने इतना कुछ किया, वो जानना चाहेगी क्या तोहफा लाये आप, कोनसी रौशनी आपने बुझने से बचायी जब वह शिकार के लिए रात को आये तब आप सो रहे थे या जाग गए थे आपको जागने की क्या कीमत भरनी पड़ी? इस साल, जब हमने कहा समय आ गया है, आप ने अपने विशेषाधिकार से क्या किया? दूसरों के घिनोनेपन का घूट पी गए? क्या आप ने मुह मोड़ा या आग में झाँक के देखा? क्या आपने अपना हुनर पहचाना या उसे बोझ समझ लिया? क्या आपके "बुरे" और "दूसरों से कम" उपनामो ने आपको मूर्ख बनाया? क्या आपने दिल खोल के पढ़ाया या मुट्ठी भींच कर आप कहाँ थे? उसे सच बताना अपनी ज़िन्दगी बनाओ पुष्टि करो कहो "बेटी मैं वहां कड़ी थी" वह पल मेरे चेहरे पर खंजर की तरह खिंचा है और मैंने उसे पीछे धकेला काट कर तुम्हारे लिए जगह बनाई सच बताओ किस तरह हर कुटिल परिस्थिति के बावजूद आप बाहादुर थे और हमेशा बहादुरों के साथ खड़े थे खासकर उन दिनों जब आप अकेले ही थे वह भी आप की तरह ही पैदा हुई जैसे आप की माँ और उनके साथ आपकी बहनें बहादुरों के समय, हमेशा की तरह उसे बताओ की वह सही समय पर पैदा हुई थी सही समय पर नेतृत्व करने के लिए (तालियाँ)