काफी समय तक,
दो रहस्य मुझपर
मंडरा रहे थे।
मैं उन्हें समझ नहीं पा रहा था
और सच बोलूं तो, मैं उनके बारे में
पता लगाने से डरता था।
पहला रहस्य था कि
मैं ४० साल का हूँ,
और मेरे पुरे जीवनकाल में,
लगातार कहीं सालो से,
गंभीर डिप्रेशन और तनाव बड़ा है,
यूनाइटेड स्टेट्स में, ब्रिटेन में,
और पूरी पश्चिमी दुनिया में।
मैं उसका कारण समझना चाहता था।
यह हमारे साथ क्यों हो रहा है?
क्यों हर साल गुजरने पर,
और ज्यादा लोगो को अपना
दिन काटने में तकलीफ हो रही है?
और मुझे यह समझना था,
क्यूंकि इसमें मेरा निजी रहस्य भी था।
जब मैं किशोर अवस्था में था,
मैं अपने डॉक्टर के पास गया
और उन्हें अपनी भावना समझाई,
जैसे दर्द का रिसाव हो रहा था मुझसे।
वो मेरे बस में नहीं था,
मुझे उसका कारण समझ नहीं आ रहा था,
मुझे उससे शर्मिंदगी महसूस होती थी।
मेरे डॉक्टर ने एक कहानी बताई
जिसका इरादा अब मुझे नेक लगता है,
पर कुछ ज्यादा ही आसान कर दी गयी थी।
पूरी तरह से गलत नहीं।
मेरे डॉक्टर बोले, "मुझे पता है
लोग ऐसे क्यों हो जाते है।
कुछ लोगों के दिमाग में खुद ब खुद
रासायनिक असंतुलन हो जाता है --
तुम उनमें से एक हो।
हमें बस तुम्हें कुछ दवा देनी होगी,
जो तुम्हारा रासायन
संतुलन में ले आएगा।"
मैंने दवा लेनी चालू की,
नाम पक्सिल या सेरोक्सत था,
वो ही चीज़ का हर देश में
अलग नाम होता है।
मुझे अच्छा लगा,
मुझे असली बढ़ावा मिला।
पर ज्यादा समय बाद नहीं,
दर्द की अनुभूति फिर से होने लगी।
इसलिए मेरी दवा की
मात्रा बढ़ा बड़ा दी गयी
१३ साल तक, मैंने
अधिकतम मात्रा ली
जो क़ानूनी तौर पर ले सकते है।
पर उन १३ सालो में काफी बार,
और लगभग हमेशा आखिर में,
मैं काफी दर्द में था।
मैंने खुदसे पूछा,
"यह क्या चल रहा है?
क्यूंकि तुम वो सब कर रहे हो
जो उस कहानी के अनुसार कहा गया है
जो सभ्यता पर हावी है --
क्यों फिर यह अनुभव?"
इसलिए यह २ पहेली के तय
तक जाने के लिए,
एक किताब के लिए जो मैंने लिखी
मैं पूरी दुनिया की
यात्रा पर निकला,
मैंने ४०,००० मील की यात्रा की।
मैं इस दुनिया के मुख्य विशेषज्ञों
के साथ बैठना चाहता
डिप्रेशन और तनाव के कारण जानने
और उससे जरुरी, उनके उपाय जानने,
और जो लोग इस डिप्रेशन और तनाव
से बाहर निकले हैं
उनके हर वो तरीके जानने।
और मैंने बहुत कुछ सीखा
उन अद्भुत लोगों से
जिन्हें मैं अपनी यात्रा में मिला।
पर मुझे लगता है जो मैंने सीखा
उसका मूलतत्व था,
अब तक, हमारे पास वैज्ञानिक सबूत है
डिप्रेशन और तनाव के
९ विभिन्न कारणों के।
उनमें से २ तो हमारे जीव विज्ञान में है।
जीन आपको इस समस्या के प्रति
और संवेदनशील बना सकती है,
हालांकि वो आपका भाग्य नहीं लिखती।
और जब आप डिप्रेस होते हैं
मस्तिष्क परिवर्तन असलियत में हो सकता है।
जो बहार निकलना मुश्किल कर सकता है।
पर ज्यादातर कारण जो साबित हुए है
डिप्रेशन और तनाव के
वे जीव विज्ञान में नहीं है।
वो हमारे रहने के तरीके में हैं।
और एक बार आप वो समझ जाएं,
वो विभिन्न प्रकार के
उपाय प्रस्तुत करते हैं
जिनका प्रस्ताव लोगों को देना चाहिए
दवा के विकल्प के साथ।
जैसे कि,
अगर आप अकेले हैं तो
डिप्रेशन की सम्भावना ज्यादा है।
अगर आपके काम में आपका
नियंत्रण नहीं है,
आपको जो बोला गया है वो ही करना है,
डिप्रेशन की सम्भावना ज्यादा हो जाती है।
अगर आप प्राकृतिक दुनिया में
शायद ही कभी निकलते हैं,
आपके डिप्रेस होने ही सम्भावना बढ़ जाती है।
और एक चीज़ डिप्रेशन और तनाव के
बहुत सारे कारणों को जोड़ती है
जो मैंने सीखी।
सब नहीं, पर बहुत सारे।
यहाँ सबको पता है
सबकी स्वभाविक शारीरिक
जरूरते है, हैं ना?
जाहिर है।
हमें खाना चाहिए, पानी चाहिए,
छत, शुद्ध हवा चाहिए।
अगर मैं वो चीज़े तुमसे ले लूँ,
तुम बहुत जल्द बड़ी मुश्किल में आ जाओगे।
पर साथ ही,
हर इंसान की
मनोवैज्ञानिक जरूरते भी हैं।
महसूस होना चाहिए कि आप कहीं के सदस्य हो।
आपकी ज़िन्दगी का कोई
मतलब और मकसत है।
कि लोग आपकी कदर करते हैं।
आपका एक भविष्य है
जिसका कोई अर्थ है।
और यह संस्कृति जो हमने बनाई है
वो बहुत चीज़ो में अच्छी है।
और बहुत चीज़े पहले से
सुधरी हैं --
मैं खुश हूँ मैं ज़िंदा हूँ।
पर हम दिन पर दिन कम अच्छे हो रहे
इन गहरी दबी हुई मनोवैज्ञानिक
जरूरतों को पूरा करने में।
और सिर्फ यह ही एक चीज़ नहीं
जो हो रही है,
पर मुझे लगता है यह एक महत्वपूर्ण
कारण है कि यह समस्या बढ़ रही है।
और मुझे यह समझने में बहुत कठिनाई हुई।
मुझे काफ़ी जुज़ना पड़ा इस सोच के साथ
कि डिप्रेशन सिर्फ एक दिमागी
समस्या नहीं
बल्कि बहुत कारणों वाली है
जिसमें काफी हमारे रहने के तरीके में है।
और मेरे लिए सच में सब
सूलज़ने लगा जब
एक दिन, मैं साउथ अफ्रीका के
एक मनोचिकित्सक का इंटरव्यू लेने गया
नाम था डॉ. डेरेक समरफील्ड।
बहुत अच्छे व्यक्ति थे।
डॉ. समरफील्ड २००१ में
कंबोडिया में थे,
जब पहली बार रासायनिक
हताशारोधी लाया गया
उस देश के लोगों के लिए।
स्थानीय डॉक्टर्स, कंबोडिया के लोगों
ने इसके बारे में नहीं सुना था,
वो पूछ रहे थे, "क्या है ये?"
और डॉ. ने समझाया।
उन् लोगों ने फिर बोला,
"हमें यह नहीं चाहिए,
हमारे पास हताशारोधी है."
"इसका क्या मतलब है?" डॉ. ने पूछा
उन्हें लगा ये कोई हर्बल चिकित्सा
की बात कर रहे हैं।
जैसे सत. जॉन का पौधा,
गिंकगो बिलोबा, ऐसा कुछ।
उसकी जगह, उन्होंने एक कहानी बताई।
उनके समुदाय में एक किसान था
जो चावल की खेती करता था।
एक दिन वो बारूदी सुरंग पर खड़ा हो गया
यूनाइटेड स्टेट्स के साथ
युद्ध का शेष,
विस्फोट में उसका पैर चला गया
उसको बनावटी पैर दिया गया,
कुछ समय बाद वो चावल की खेती
में काम करने गया।
पर पानी के अंदर काम करना
बहुत पीड़ाकारी था
जब पैर नकली हो तो,
मुझे लगता है वो काफी दर्दनाक था
जहाँ विस्फोट हुआ वहां जाके
फिरसे काम करना।
वो किसान पुरे दिन रोने लगा,
बिस्तर से उठने से मना कर देता,
उसके सारे लक्षण
क्लासिक डिप्रेशन के थे।
कंबोडिया के डॉक्टर ने कहा,
"तब हमने उससे
हताशारोधी दी।"
डॉ. समरफील्ड ने पूछा
"क्या था वो?"
उन्होंने समझाया कि
वे उसके पास जाके बैठे।
उसकी बात सुनी।
उनको समझ आया की यह दर्द का मतलब बनता है --
उसके लिए उसके डिप्रेशन में
यह देखना मुश्किल था,
पर असलियत में, उसकी ज़िन्दगी में
यह कारण बिलकुल स्पष्ट थे।
एक डॉक्टर ने लोगो से बात करते हुए
यह हिसाब लगाया,
"अगर हम इसके लिए एक गाय ला दें,
तो यह एक ग्वाला बन सकता है,
वह इस दशा में नहीं रहेगा
जो उसे इतना सत्ता रही है,
उसे चावल की खेती
नहीं करनी पड़ेगी।"
तो उन्होंने एक गाय ला दी।
कुछ हफ्तों में,उसका रोना बंद हो गया,
एक महिने के अंदर, उसका डिप्रेशन चला गया।
उन्होंने डॉ. समरफील्ड से कहा,
"तो आपने देखा, डॉक्टर,
वह गाय, हताशारोधी थी,
यह ही आपका कहना था ना?"
(हंसी)
(तालियाँ)
अगरआपको डिप्रेशन के बारे में
ये ही बोला गया है जो मुझे,
और यहाँ बैठे अधिकतर लोगों को,
तो यह एक बुरा मज़ाक लग रहा होगा।
"मैं डॉक्टर के पास
हताशारोधी लेने गया,
उसने मुझे गाय दे दी।"
पर जो बात वो कम्बोडियन डॉक्टर्स
को सहज में पता थी,
इस एक, अवैज्ञानिक कथा
पर आधारित,
वह दुनिया की मुख्य
चिकित्सा संस्था भी,
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन,
हमें सालो से बोलने का प्रयास कर रही है,
श्रेष्ठ वैज्ञानिक प्रमाण पर आधारित।
अगर तुम निराश हो,
अगर तुम्हें तनाव है,
तुम कमज़ोर या पागल नहीं हो,
तुम टूटे टुकड़ो का,
कोई यंत्र नहीं हो।
तुम एक इंसान हो जिसकी जरूरते अधूरी हैं।
और यह सोचना इतना ही जरुरी है
कि वो कम्बोडियन डॉक्टर्स
और वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन
क्या नहीं बोल रहे।
उन्होनें किसान को ये नहीं बोला,
"दोस्त, तुम्हें खुद को
नियंत्रण में लाना होगा।
तुम्हे खुदसे इस मुसीबत को
समझके इसका हल निकालना होगा।"
उल्टा, उन्होनें बोला की,
"हम संघठन में,
मिलझुल कर
इस समस्या का
हल निकालेंगे।"
ये ही हर निराश इंसान को चाहिए,
और हर निराश इंसान
इसके योग्य है।
इसलिए यूनाइटेड स्टेट्स के
एक प्रमुख डॉक्टर ने,
विश्व स्वास्थ्य दिवस में,
अपने आधिकारिक वक्तव्य
पर, २०१७ में,
बोलै की हमे रासायनिक असंतुलन
के बारे में कम और हमारे
रहने के तरीको के असंतुलन के बारे में
ज्यादा बात करनी चाहिए।
दवा कुछ लोगों को राहत देती है --
उसने मुझे कुछ समय तक राहत दी --
पर क्यूंकि यह समस्या जीव विज्ञानं
से भी ज्यादा भित्तर जाती है,
सुझाव भी उतनी गहराई में जाने चाहिए।
पर मैंने जब यह पहली बार समझा,
मुझे याद है मैंने सोचा की,
"ठीक है, मुझे वैज्ञानिक सबूत
दिख रहे हैं,
मैंने बहुत सारी खोज पढ़ी है,
मैंने विशेषज्ञों का इंटरव्यू
लिया है जिन्होनें यह समझाया,
पर मैं सोचता रहा, "हम
यह कैसे कर सकते हैं?"
जो चीज़े हमें निराश कर रही हैं
वो ज्यादातर और उलझी हुई होती है
उस कंबोडिया के
किसान की अपेक्षा।
इस समझ की शुरुआत भी कहाँ से करें?
पर, वो लम्बी यात्रा मेरी किताब ले लिए,
पूरी दुनिया में,
मैं लोगों से मिलता रहा
जो हूबहू वो ही कर रहे थे,
सिडनी से, सं फ्रांसिस्को तक,
साओ पाउलो तक।
मैं लोगों से मिलता रहा,
जो समझ रहे थे,
डिप्रेशन और तनाव के
गहरे कारणों को
और एकजुट होकर, उन्हें सुलझा रहे थे।
ज़ाहिर है, मैं सब अद्धभुत लोगों
के बारे में नहीं बता सकता
जिन्हें मैं मिला और लिखा,
या वो ९ कारण डिप्रेशन और तनाव
के जो मैंने सीखे,
क्यूंकि यहाँ मुझे १० घंटे
नहीं देंगे बोलने के लिए --
इसकी शिकायत आप उन्हें कर सकते हैं।
पर मैं २ कारणों को केंद्रित करना चाहूंगा
और २ हल जो
उसे निकलते हैं,
पहला यह।
हम मानव इतिहास के
सबसे तनहा समाज हैं।
हाल ही में हुए एक अध्ययन में
अमेरिकन्स से पूछा गया,
"क्या आपको लगता है
कि आप किसीके करीब नहीं?"
३९ प्रतिशत लोगों ने
हाँ कहा।
"किसी के करीब नहीं।"
अकेलेपन के अंतर्राष्ट्रीय
प्रमाण में,
ब्रिटैन और बचा हुआ एउरोपे
अमरीका के ठीक पीछे आता है,
अगर किसीको आत्मसंतुष्टि हो रही हो,
(हंसी)
मैंने बहुत समय यह चर्चा की
दुनिया के विशेषज्ञों से
अकेलेपन पर,
एक अध्भुत व्यक्ति
प्रोफेसर जॉन कासियप्पो,
जो चिकागो में थे,
मेरे मन में एक सवाल था
जो उनकी खोज के बारे में
प्रोफेसर कासियप्पो ने पूछा,
"हमारा आस्तित्व क्या है?
हम यहाँ क्यों है,जिन्दा क्यों हैं?"
एक मुख्य कारण
यह है की हमारे पूर्वज
अफ्रीका के सवाना में
एक चीज़ में माहिर थे।
वे उन जानवर से बड़े नहीं थे
जिनका वो शिकार करते,
वे उन् जानवर से
तेज़ नहीं थे,
पर वे एकजुट होने में
काफी अच्छे थे
हुए सहयोग देने में।
यह हमारी जाति की महाशक्ति थी --
हम एकजुट होते,
जैसे मधुमखियाँ छत्ते में रहने के लिए
विकसित हुई,
मनुष्य झुण्ड में विकसित हुआ।
और हम पहले मनुष्य हैं
जो अपना झुण्ड छोड़ रहे हैं।
हुए इससे हमें बहुत बूरा लगता है।
पर ऐसा होना जरुरी नहीं।
मेरी किताब के नायक,
बल्कि मेरी ज़िन्दगी के,
डॉक्टर सैम एवेरिंगटोन हैं।
वह एक सामान्य चिकित्सक हैं
पूर्व लन्दन के गरीब हिस्से में,
जहाँ मैं बहुत साल रहा।
सैम असुविधाजनक स्तिथी में थे,
क्यूंकि उनके पास बहुत रोगी थे
जो गंभीर डिप्रेशन और
तनाव में थे।
और मेरी तरह, वो रासायनिक
हताशारोधी के खिलाफ नहीं थे,
उन्हें लगता था यह कुछ लोगों को
कुछ सुकून देती थी।
पर उन्हें २ चीज़े दिख रही थी।
पहला, उनके मरीज़ काफी समय
निराशा और तनाव में रहते
स्वाभाविक कारणों से,
जैसे अकेलापन।
दूसरा, हलाकि दवा कुछ लोगों को
कुछ सुकून दे रही थी,
बहुत लोगों की समस्या
वो नहीं सुलझा रही थी।
जो मुख्य समस्या थी।
एक दिन, सैम ने एक
अलग तरीका सोचा।
एक औरत उनके
दवा खाने में आई,
नाम था लिसा कन्निंघम।
मैंने लिसा को बाद में जाना।
लिसा अपने घर में बंध रहती
गंभीर डिप्रेशन और तनाव से
७ साल तक।
जब वो सैम के पास आई
उसे बोला गया, "चिंता मत करो,
हम तुम्हें यह दवा देते रहेंगे,
पर हम कुछ और भी
सलाह देंगे।
तुम इस केंद्र में
हफ्ते में २ बार आओ
दूसरे निराश और तनाव लोगों
के समूह से मिलने,
यह बात करने नहीं की तुम कितनी दुखी हो,
पर कुछ अर्थपूर्ण कार्य खोजने
जो तुम मिलकर कर सको
ताकि तुम्हें अकेलापन और यह, न लगे
कि ज़िन्दगी का कोई मकसत नहीं।"
पहली बार जब यह लोग एकझुट हुए,
लिसा को तनाव से
उल्टियां होने लगी,
उसके लिए यह ले पाना इतना मुश्किल था।
पर लोगों ने उसकी पीठ मली,
उन्होंने बात करनी चालू की,
"हम क्या कर सकते हैं?"
यह शेहरी पूर्व लन्दन
के लोग थे,
इन्हें बागबानी के बारे में नहीं पता था।
उन्होंने कहा, "क्यों न हम
बाग़बानी सीखे?"
डॉक्टर के केंद्र के पीछे
एक जगह थी
जो सिर्फ गुल्मभुमी थी।
"क्यों न इसको बग़ीचा बनाएं?"
उन्होंने पुस्तकालय से
पुस्तक लेनी चालू की,
यू टूब वीडियो देखने लगे।
उन्होंने मिटटी में
काम करना चालू किया।
वे मौसम के बारे में
सिखने लगे।
बहुत सबूत है कि प्राकृतिक
दुनिया से संपर्क में रहना
प्रभावशाली हताशारोधी होता है।
पर वो उससे भी जरुरी
कुछ करने लगे।
वो एक कुटुम्भ बनाने लगे।
एक समूह बनाने लगे।
एक दूसरे का ध्यान रखने लगे।
अगर कोई एक नहीं आता,
तो दूसरे सारे उसके
पास जाते -- "तुम ठीक हो?"
उसकी मदद करते समझने में
उसको क्या तकलीफ है।
जैसे लिसा ने मुझे बताया,
"जैसे बगीचा खिलने लगा,
हम खिलने लगे।"
इस तरीके को सामूहिक सलाह
बोलते है,
यह पूरे यूरोप में फ़ैल रहा है।
और एक छोटा, पर
बढ़ता हुआ सबूत है
कि यह वास्तव में अर्थपूर्ण
गिरावट ला सकता है
डिप्रेशन और तनाव में।
एक दिन मैं बगीचे में खड़ा था
जो लिसा और उसके कभी डिप्रेस
दोस्तों ने बनाया था --
बहुत सुन्दर बगीचा था --
और यह सोच रहा था,
यह बहुत कुछ एक ऑस्ट्रेलियन प्रोफेसर
हघ मक्के से प्रेरित है।
बहुत बार जब लोगों को
निराशा होती है, हमारे समाज में,
हम उन्हें क्या बोलते हैं --
"तुम्हें बस अपने जैसा रहना है,
वास्तविक रहो।"
जबकि हमें बोलना
चाहिए कि
"खुद जैसे मत रहो।
जैसे हो वैसे मत रहो।
एकजुट होकर रहो।
समूह का हिस्सा बनो।"
(तालियाँ )
इन मुश्किलों का हल
इसमें नहीं की अपने साधन
से ज्यादा से ज्यादा निकाले
एक अकेले व्यक्ति की तरह --
वो एक कारण है जो हमें इस संकट में लाया है।
वो खुद से बड़ी किसी चीज़
से जुड़ने में है।
और यह जोड़ता है
एक और कारण से
जो डिप्रेशन और तनाव
पैदा करते हैं।
यह सबको पता है
जंक फूड ने हमारी डाइट पर कब्जा कर लिया है
और हमें शारीरिक रूप से बीमार कर दिया।
मैं ऐसा श्रेष्ठता की भावना
के साथ नहीं कहता,
मैं खुद म्क्दोनाल्ड्स से
यहाँ आया हूँI
मैंने देखा कि तुम सब स्वस्थ TED नाश्ता
खा रहे हो, मैं सोचा ऐसा कैसे।
लेकिन जैसे जंक फूड ने हम पर कब्ज़ा कर लिया
और हमें शारीरिक रूप से बीमार कर दिया,
उसी तरह एक प्रकार के जंक मूल्यों ने
हमारे दिमाग पर कब्जा कर लिया और हमें
मानसिक रूप से बीमार कर दिया।
हज़ारों सालों से,
दार्शनिकों ने कहा है,
अगर आपको लगता है कि जीवन पैसे
के बारे में है और स्थिति और दिखावा,
तो आपको बेकार महसूस होगा।
यह एक सटीक उद्धरण नहीं है
शोपेनहावर का,
लेकिन उसने जो कुछ कहा, उसका सार है।
अजीब बात है, शायद ही किसीने
वैज्ञानिक रूप से इसकी जांच की थी,
जब तक मैं एक असाधारण व्यक्ति से
नहीं मिला, नाम था प्रोफेसर टिम कसेर,
जो इलिनोइस के नॉक्स कॉलेज में हैं,
और वो इस पर खोज़ कर रहे हैं
लगभग 30 वर्षों से।
और उनकी खोज कई
महत्वपूर्ण बातें बताती है।
पेहला, जितना तुम विश्वास करोगे
आप खरीद के प्रदर्शित कर सकते हैं
उदासी से अपना रास्ता,
एक अच्छे जीवन की ओर ,
उतना अधिक आपके उदास और चिंतित
बनने की संभावना है।
और दूसरी बात,
एक समाज के रूप में, हम इन मान्यताओं
से बहुत अधिक प्रेरित हो गए हैं।
मेरे पूरे जीवनकाल में,
विज्ञापन, इंस्टाग्राम और उन जैसी चीज़ो
के वजन के तहत।
जैसे मैं इस बारे में सोचा,
मुझे एहसास हुआ कि हम सभी को बताया गया है
जन्म से, आत्मा के लिए एक प्रकार का जंक।
हमें प्रशिक्षित किया गया है ख़ुशी
की तलाश गलत स्थानों में करने के लिए,
और जैसे जंक फ़ूड आपकी
पोषण सम्बन्धी जरूरते पूरी नहीं करता
और वास्तव में आपको भनायक महसूस कराता है,
जंक मूल्य आपकी
मनोवैज्ञानिक जरूरते पूरी नहीं करते,
और आपको एक अच्छे जीवन से दूर ले जाते हैं।
लेकिन जब मैंने पहली बार समय बिताया
प्रोफेसर कासर के साथ
और मैं यह सब सिख रहा था,
मुझे अजीब भावनाओं का मिश्रण महसूस हुआ।
क्योंकि एक तरफ,
मुझे यह वाकई चुनौतीपूर्ण लगा।
मकितनी बार मेरी अपनी ज़िन्दगी में,
जब मैंने नीचे महसूस किया,
मैंने किसी तरह से इसका उपाय करने की कोशिश
की दिखावा, भव्य बाहरी समाधान से।
और मैं देख सकता था कि क्यों
यह मेरे लिए काम नहीं किया।
मैंने यह भी सोचा,
क्या यह स्पष्ट नहीं है?
क्या यह लगभग तुच्छ नहीं?
अगर मैं यहाँ सबको बोलूं,
कोई भी झूठ नहीं बोलेगा
अपनी मृत्युशय्या पर
और सभी जूतों के बारे में सोचें जो आपने
खरीदे और सभी रीट्वीट जो मिले,
आप उन क्षणों के बारे में सोचेंगे
प्यार, अर्थ
और आपके जीवन के सम्बन्धो के।
यह तो बिलकुल आम बात लगती है।
लेकिन मैं बात करता रहा
प्रोफ़ेसर से और कहता रहा,
“मुझे यह विचित्र दोहरापन
क्यों लग रहा है ? "
और उन्होंने कहा, "किसी स्तर पर,
हम सभी इन बातों को जानते हैं।
लेकिन इस संस्कृति में,
हम उनके द्वारा नहीं जीते। "
हम इतनी अच्छी तरह जानते हैं
वे आम बन गए हैं,
पर हम उनके द्वारा नहीं जीते।
मैं पूछता रहा कि क्यों, हम क्यों
जानते हैं कुछ इतना गहरा,
लेकिन इसके द्वारा नहीं जीते?
और थोड़ी देर बाद,
प्रोफेसर कासर ने मुझसे कहा,
“क्योंकि हम एक मशीन में रहते हैं
जो ऐसा तैयार किया गया है कि हम अनदेखा
करें कि जीवन में क्या महत्वपूर्ण है। ”
मुझे इसके बारे में बहुत सोचना पड़ा
“क्योंकि हम एक मशीन में रहते हैं
जो ऐसा तैयार किया गया है कि हम अनदेखा
करते हैं जीवन में क्या महत्वपूर्ण है। ”
और प्रोफ़ेसर कासेर यह पता लगाना चाहते थे
अगर हम उस मशीन को बाधित कर सकते हैं।
उन्होंने इसमें बहुत खोज की,
मैं आपको एक उदाहरण बताता हूँ,
और मैं सभी से आग्रह करता हूं अपने दोस्तों
और परिवार के साथ यह कोशिश करने।
नाथन डुंगन नामक एक व्यक्ति को,
किशोरों और वयस्कों का एक समूह मिला
सत्रों की एक श्रृंखला के लिए एक साथ आना
एक समय की अवधि में, मिलने के लिए।
और इस समूह के मकसद का एक हिस्सा था
लोगों को अपनी ज़िन्दगी के
एक पल के बारे में सोचने के लिए
जहाँ उन्हें सच में
अर्थ और उद्देश्य मिला।
अलग लोगों के लिए,
अलग चीज़े थी।
कुछ लोगों के लिए, वह गाना बजाने में,
लिखने में, किसी की मदद करने में था --
मुझे यकीन है हर कोई यहाँ
कुछ ऐसा सोच सकता है, है न?
और इस समूह के मकसद का
एक हिस्सा था लोगों से पूछना,
“ठीक है, आप कैसे अपने जीवन को
और समर्पित कर सकते हैं
इन पलों को हासिल करने
जिसमें अर्थ और उद्देश्य हो,
और कम, मुझे नहीं पता,
बकवास खरीदने में जिसकी ज़रूरत नहीं,
लोगों को दिखाने और सोशल मीडिया
में डालने ताकि लोग कहें,
"मुझे जलन हो रही है।"
और उन्होंने जो पाया, वह था
बस इन बैठकों से,
यह एक प्रकार का शराबी बेनामी था
उपभोक्तावाद के लिए, है ना?
लोगों को ये बैठकें करवाना,
इन मूल्यों को स्पष्ट करना,
उन अनुसार कृत्य करने का दृढ़ संकल्प
और एक दूसरे के साथ जांच करना,
लोगों के मूल्यों में उल्लेखनीय बदलाव लाया।
यह उन्हें इस तूफान से दूर ले गया जो
अवसाद पैदा करने वाले संदेश
जो प्रशिक्षण दे रहे थे खुशी की तलाश
गलत स्थानों पर करने,
और अधिक सार्थक
और पौष्टिक मूल्य की ओर
जो हमें अवसाद से बहार निकालता।
लेकिन सभी समाधानों के साथ जो मैंने देखा
और जिनके बारे में लिखा है,
और कई जिनके बारे में यहाँ
बात नहीं कर सकता,
मैं सोचता रहा,
तुम्हें पता है: मुझे इतनी देर क्यों लगी
इन अंतर्दृष्टि को देखने के लिए
क्योंकि जब आप उन्हें लोगों को समझाते हैं -
उनमें से कुछ अधिक जटिल होते हैं,
लेकिन सभी नहीं -
जब आप लोगों को यह समझाते हैं,
यह बहुत मुश्किल नहीं है, है ना?
कुछ स्तर पर, हम ये बातें
जानते हैं।
हमें इसे समझना इतना कठिन क्यों लगता है?
मुझे लगता है इसके कई कारण हैं।
लेकिन मुझे लगता है कि एक कारण है
कि हमें अपनी समझ बदलनी होगी
कि अवसाद और चिंता
वास्तव में क्या हैं।
बहुत वास्तविक
जैविक योगदान हैं
अवसाद और चिंता के।
लेकिन अगर हम जीव विज्ञान को
पूरी तस्वीर बना देते हैं,
जो मैंने लम्बे समय तक किया
जैसा, मैं बहस करूँगा, हमारी संस्कृति
ने किया लगभग मेरी पूरी ज़िन्दगी,
हम लोगों से संक्षेप में कह रहे हैं,
और यह किसी का इरादा नहीं है,
लेकिन हम अस्पष्ट तरीके से
लोगो को कह रहे हैं,
"आपके दर्द का कोई मतलब नहीं है।
यह सिर्फ एक खराबी है।
यह एक कंप्यूटर प्रोग्राम में एक गड़बड़
की तरह है,
यह आपके सिर में बस एक वायरिंग समस्या है। "
पर मैं अपनी ज़िन्दगी में
तब ही बदलाव ला सका
जब मुझे एहसास हुआ कि
अवसाद कोई खराबी नहीं है।
एक संकेत है।
आपका अवसाद एक संकेत है।
वो आपको कुछ बता रहा है।
(तालियां)
हमें कुछ कारणों से ऐसा महसूस होता है,
और उन्हें देखना कठिन हो सकता है
अवसाद के घेरे में -
मैं वास्तव में अच्छे से समझता हूं
व्यक्तिगत अनुभव से।
लेकिन सही मदद से,
हम इन समस्याओं को समझ सकते हैं
और हम इन समस्याओं को एक साथ
सुलझा सकते हैं।
लेकिन ऐसा करने के लिए,
सबसे पेहला कदम
है कि इन संकेतों का अपमान करना
बंद करना होगा
यह कहकर कि वे कमजोरी की निशानी हैं,
या पागलपन या विशुद्ध रूप से जैविक,
कुछ लोगों को छोड़कर।
हमें शुरू करने की जरूरत है
इन संकेतों को सुनने की,
क्योंकि वे हमें बता रहे हैं
कुछ ऐसा जो हमें सच में सुनना चाहिए।
जब हम सही मायने में है
इन संकेतों को सुनेंगे,
और इन संकेतों का मान
सम्मान करेंगे,
हम देखना शुरू करेंगे
मुक्ति देने वाला, पोषण करने वाला,
गहरा समाधान।
हमारे चारों तरफ जो गायें इंतजार कर रही हैं
धन्यवाद।
(तालियां)