भारत में, परिवार बहुत बडे होते हैं। आप सब ने इसके बारे में सुना ही होगा। जिसका मतलब है कि बहुत सारे पारिवारिक समारोह होते हैं। तो बचपन में, मेरे माँ-बाप मुझे इन समारोहों में ले जाते थे लेकिन एक चीज़ जिसके लिए मैं हमेशा उतावली रहती थी, वह थी मेरे भाई-बहनों के साथ खेलना और एक चाचा है जो हमेशा होते है। हमेशा तैयार, हमारे साथ उछल-कूद करते हमारे साथ खेल खेलते, हम बच्चों के साथ बहुत मौज-मस्ती करते यह आदमी बहुत कामयाब था : वे दबंग और ताकतवर थे। पर फिर मैंने इस चुस्त और तंदुरुस्त आदमी की सेहत को बिगड़ते देखा। उन्हे पार्किंसंस रोग हो गया था। पार्किंसंस रोग में तंत्रिका तंत्र की अधोगति होती है। मतलब कि जो इंसान पहले आत्मनिर्भर हुआ करता था, अब अचानक उसे सरल कार्य, जैसे कॉफी पीना, झटकों के कारण, मुश्किल लग रहे हैं मेरे चाचा ने चलने के लिए वॉकर का प्रयोग करना शुरू किया और मुड़ने के लिए उन्हें सचमुच एक बार में एक कदम लेना पड़ता, ऐसे, और इसमें अर्सा बीत जाता। तो यह इंसान, जो सबके ध्यान का केंद्र का हुआ करते, पारिवारिक समारोहों में, अब लोगों के पीछे छिपने लगा। वे लोगों की आँखों में दिख रही दया से छिप रहे थे। और यह ऐसे इकलौते नही हैं दुनिया में हर साल, 60,000 लोगों को पार्किंसंस रोग हो जाने की सूचना दी जाती है। और यह संख्या सिर्फ बढ़ती जा रही है। डिज़ाइनर होने के नाते, हम यह ख्वाब देखते हैं कि हम इन बहुमुखी समस्याओं को सुल्झाएँ एक उपाय जो सब कुछ सुलझा दे, लेकिन हर बार ऐसा होना ज़रूरी नही आप आसान समस्याओं को निशाना बना सकते हो। और उनके लिए छोटे उपाय निकाल सकते हो, जिसका अंततः कोई बड़ा प्रभाव पड़े। तो मेरा मकसद पार्किंसंस रोग का इलाज करना नही था, बल्कि उनके दैनिक कार्य सरल करना था, और फिर उनके जीवन पर असर करना तो फिर, सबसे पहली समस्या जिसे निशाना बनाया जाए वह है झटक, है न ? मेरे चाचा ने बताया कि उन्होने बाहर जाकर चाय-काॅफी पीना बंद कर दिया सिर्फ शर्मिंदगी के मारे तो फिर क्या, मैंने एक ऐसा कप बनाया जिससे कुछ न गिरे यह सिर्फ अपने आकार के बल पर काम करता है जब भी उनको झटके आते है, तब ऊपर का वक्र पेय को अंदर ही धकेल देता है साधारण कप की तुलना में, इसमें पेय कप के भीतर ही रहता है पर अहम बात यह है कि यह चीज़ खास तौर पर पार्किंसंस के मरीज़ के लिए नही है यह तो किसी ऐसे कप की तरह दिखता है जो आप, मैं या कोई भी अनाड़ी इस्तेमाल कर सकता है और यह उन्हें इसका उपयोग करने के लिए तसल्ली देती है और वे लोगों में घुल-मिल सकते है तो खैर, एक मुसीबत सुलझ गई और कई बाकी है। इतना वक्त जब मैं उनका इंटरव्यू ले रही थी, उनसे सवाल कर रही थी तब मुझे ज्ञात हुआ कि मुझे बस ऊपर-ऊपर की जानकारी मिल रही थी या सिर्फ मेरे सवालों के जवाब मिल रहे थे पर नया नज़रिया पाने के लिए मुझे और गहराई में जाना होगा तो फिर मैंने सोचा, चलो, उनके रोज़ के कामों को ज़रा ग़ौर से देखते है जब वह खा रहे है, दूरदर्शन देख रहे है और जब मैं उन्हे खाने के मेज की ओर चलते देख रही थी। तब मुझे यह खयाल आया कि यह आदमी, जिसके लिए समतल ज़मीन पर चलना इतना मुश्किल है, वह सीड़ियाँ कैसे चढ़ता होगा ? क्योंकि भारत में खास कटघरे नहीं होते आपको सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए जैसे विकसित देशों में होते हैं बंदे को असल में सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है। तो उन्होने मुझे बताया। "अच्छा, मैं तुम्हें दिखाता हूँ कैसे करते है" देखते हैं कि मैंने क्या देखा तो उन्हे यहाँ पहुँचने में बहुत वक्त लगा। और इस दौरान मैं सोच रही हूँ "हे भगवान, क्या ये सच में यह करनेवाले है? क्या ये वाकई, सच में, बिना अपने वाॅकर के यह करनेवाले है?" और फिर... (हँसी) और मोड़, कितनी आसानी से ले लिए उन्होंने तो --- चौंक गए? खैर, मैं भी चौकी थी। तो यह इंसान, जो समतल ज़मीन पर चल नहीं पा रहा था, अचानक वह सीढ़ियाँ चढ़ने में माहिर था इस पर अनुसंधान करने पर मुझे पता चला कि यह निरंतर गतिवान के कारण है एक और आदमी है जिसके लक्षण भी यही थे, और वह वॉकर का उपयोग करता है पर उसे साइकिल पर रखते ही उसके सारे लक्षण गायब हो जाते हैं क्योंकि यह निरंतर गतिवान है तो मेरे लिए अहम बात थी सीढ़ियाँ चढ़ने के इस एहसास का अनुवाद करना समतल ज़मीन पर चलने में और उन पर बहुत सारी तरकीबें आज़माई और जाँची गई पर आखिरकार जो काम आई वह यह थी । चलिए देखते हैं (हँसी) (तालियाँ) वह और तेज़ चले, है न? (तालियाँ) मैं इसे सीढ़ियों की माया कहती हूँ और सचमुच जब यह सीढ़ियों की माया अचानक खत्म हुई, तब वह तुरंत रुक गए और इसे कहते है चाल का जमना तो यह बहुत बार होता है, तो क्यों न सीढ़ियों की यह माया हर कमरे में हो ताकि वे और भी आश्वस्त हो? जानते हैं, टैकनोलजी हर बात का जवाब नहीं है जिसकी हमे ज़रूरत है वे हैं मनुष्य-केंद्रित उपाय बड़ी आसानी मैं इसे फलाव बना सकती थी, या फिर गूगल ग्लास, या वैसा कुछ लेकिन मैं आसान फर्श पर छापने पर अड़ी रही यह छपाई अस्पतालों में ले जाई जा सकती है ताकि वे निश्चिंत रहें। मैं चाहती हूँ कि पार्किंसंस रोग का हर मरीज़ वैसा महसूस करे, जैसा मेरे चाचा ने उस दिन किया उन्होंने मुझे बताया कि मैंने उन्हे पहले जैसा महसूस कराया आज की दुनिया में, " स्मार्ट " और हैटेक पर्यायवाची बन चुके हैं, और दुनिया दिन प्रतिदिन और भी स्मार्ट होती जा रही है किंतु स्मार्ट कुछ आसान, फिर भी प्रभावशाली क्यों नही हो सकता? हमें बस थोड़ी सी हमदर्दी, और थोड़ी सी जिज्ञासा की ज़रूरत है वहाँ पहुँचने के लिए, ग़ौर से देखने के लिए पर वहाँ रुकना नहीं हैं चलिए, हम सब इन जटिल मसलों को ढूँढ़ते हैं इनसे डरिए मत उन्हें छोटी-छोटी समस्याओं में तोड़ दीजिए और उनके लिए सरल उपाय ढूँढिए उन उपायों को परखना, ज़रूरत पड़े तो नाकामयाब ही क्यों न हो जाना पर नए नज़रिए के साथ, उसे बेहतर करने के लिए ज़रा सोचिए, अगर हम सब आसान उपाय ढूँढ लाए, तो हम क्या-क्या कर सकते हैं कैसी होती यह दुनिया अगर हम अपने सारे आसान उपायों को इकट्ठा करते ? चलिए, एक और भी स्मार्ट दुनिया बनाते हैं, मगर सादगी के साथ धन्यवाद। (तालियाँ)