ये ठीक वो क्षण है
जब मैनें टिंकरंग स्कूल का निर्माण करना शुरु किया था।
टिंकरिंग स्कूल ऐसी जगह है जहाँ बच्चों को लकडियाँ
हथौडी, और ऐसे ही खतरनाक से सामान से खेलने दिया जाता है,
इस विश्वास के साथ कि
वो खुद को चोट नहीं पहुँचायेंगे,
दूसरों को भी आहत नहीं करेंगे।
टिंकरिंग स्कूल में कोई सधा हुआ पाठ्यक्रम नहीं है।
और परीक्षायें भी नहीं होती हैं।
हम किसी को भी कुछ खास चीज़ नहीं सिखाना चाहते हैं।
जब बच्चे आते हैं,
तमाम सारा सामान उन्हें चुनौती देता है,
लकडियाँ और कीलें और रस्सियाँ और पहिये,
और तमाम औज़ार, असली, सचमुच के औज़ार।
ये बच्चों के लिये छः दिन का मग्न कर देने वाल अनुभव होता है।
और इस संदर्भ में, हम उन्हें पूरा समय देते हैं।
समय, जिसकी हमेशा कमी होती है
उनके अति-व्यस्त जीवन में।
हमारा लक्षय ये है कि जब वो जायें
तो उन्हें बेहतर अंदाज़ा हो कि चीजें कैसे बनती हैं,
मुकाबले उसके जब वो आये थे,
और एक गहरा अंदरूनी अहसास हो
कि आप चीज़ों से छेडछाड कर के युक्ति निकाल सकते हैं।
कुछ भी... योजना के हिसाब से नहीं होता है. कभी भी नहीं।
(हँसी)
और बच्चे जल्दी ही सीख लेते हैं
कि प्रोजेक्ट खराब हो सकते हैं --
(हँसी)
और इस बात से सहज हो जाते हैं कि हर अगला कदम
उन्हें प्रोजेक्ट में एक कदम आगे बढाता है,
सफ़लता की ओर,
या फ़िर असफ़लता की ओर।
हम ऐसे ही गुड्मुड स्केच बना कर शुरुवात करते हैं।
और कभी कभी असल-सी दिखती योजनायें भी बनाते हैं।
और कभी हम बस चीज़ बनाना शुरु कर देते हैं।
'निर्माण' इस अनुभव का केंद्र बिंदु है।
असल दुनिया जैसा, गहरे पैठा हुआ
और पूरी तरह से हाथ आयी समस्या को समर्पित।
रॉबिन और मैं, सहयोगियों के रूप में,
प्रोजेक्ट को लगातार
कार्य पूर्ण होने की दिशा में बढाते हैं।
सफ़लता तो असल में कार्य के करने में है।
और नाकामयाबियों की सराहना और विश्लेशण किया जाता है।
समस्यायें पहेलियों के रूप में देखी जाती हैं,
और रुकावटें छू-मंतर हो जाती हैं।
जब किसी खास कठिनाई का सामना होता है,
या कोई बडी गडबड या जटिलता,
एक बडा ही रोचक व्यवहार दिखता है: सजावट।
(हँसी)
अधूरे प्रोजेक्ट की सजावट
एक तरीके से संरचना के अंडे को सेने जैसा है।
और इन मध्यांतरों से बहुत ही गहरी सोच
और नये गज़ब के समाधान निकलते हैं,
उन्हें मध्यांतरों जो दो क्षण पहले हमें हतोत्साहित कर रहे थे।
हर प्रकार का पदार्थ इस्तेमाल के लिये मौजूद है।
यहाँ तक कि बोरिंग, घृणित, प्लास्टिक की थैलियाँ भी
एक पुल का निर्माण कर सकती हैं -
और हमारी कल्पना से भी ज्यादा मजबूत।
और जो चीजें ये बनाते हैं,
वो उन्हें खुद ही आश्वर्यचकित कर देती हैं।
विडियो: तीन, दो, एक, जाओ!
गेवर टली: ये झूला जो सात साल के बच्चों ने बनाया है।
विडियो: याहू....!
(अभिवादन)
गेवर टली: धन्यवाद, आज बहुत आनंद आया।
(अभिवादन)