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पेंसिल उत्तम क्यों है

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    पेंसिल के उपयोग के अनुभव में,
    ध्वनि की भूमिका बड़ी महत्त्वपूर्ण होती है।
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    उसकी रगड़ की आवाज़
    साफ़ सुनाई देती है।
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    (रगड़ की आवाज़)
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    [छोटी चीज़ें। बड़े विचार।]
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    [पेंसिल के बारे में कैरोलिन वीवर के विचार]
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    पेंसिल एक अत्यन्त साधारण वस्तु है।
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    यह लकड़ी से बनती है
    जिस पर पेंट की कुछ परतें होती हैं
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    रबड़ लगा होता है और भीतर का भाग,
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    ग्रेफाइट, मिट्टी और पानी से बना होता है।
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    हाँ, सैकड़ों लोगों को सदियाँ लग गई
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    इसे यह रूप देने में।
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    और यह सहकार्य का लंबा इतिहास ही
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    इसे एक उत्तम वस्तु बनाता है।
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    पेंसिल की कहानी
    ग्रेफाइट से शुरू होती है।
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    लोगों ने इस नए पदार्थ के
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    उपयोगी अनुप्रयोगों की खोज की।
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    उन्होंने इसे छोटी छड़ों में काट लिया
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    और इसे धागे या भेड़ की खाल
    या कागज़ में लपेट दिया
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    और इसे लंदन की गलियों में बेचा
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    लिखने या चित्र बनाने के काम के लिये।
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    कई बार,
    किसानों और चरवाहों को भी बेचा गया,
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    जो इससे जानवरों पर
    निशान लगाते थे।
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    फ्रांस में,
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    निकोलस-जैक्स कॉन्टे ने ग्रेफाइट पीसने का
    तरीका खोजा,
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    उसे चिकनी मिट्टी
    और पानी के साथ मिलाया।
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    उसके बाद, इस लेई को साँचे में डाला
    और उसे भट्ठी में पकाया,
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    और नतीजतन
    ग्रेफाइट बहुत मज़बूत बन गया
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    जो कि टूटता नहीं था,
    चिकना था, इस्तेमाल में--
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    उस दौर में मौजूद
    किसी भी चीज़ से कहीं बेहतर था,
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    और आज भी, पेंसिल बनाने में
    यही तरीका काम आता है।
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    इस बीच, अमेरिका में,
    मैसाचुसेट्स के कॉनकॉर्ड में,
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    हेनरी डेविड थोरो ने ग्रेडिंग स्केल बनाया
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    पेंसिल की
    विभिन्न प्रकार की कठोरता के लिये।
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    इसे एक से चार में वर्गीकृत किया,
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    सामान्य उपयोग के लिये
    नंबर दो आदर्श कठोरता थी।
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    पेंसिल जितनी नर्म होगी,
    उसमें ग्रेफाइट उतना अधिक होगा,
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    और उसकी लिखायी
    उतनी गहरी और साफ़ होगी।
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    पेंसिल जितनी सख्त होगी,
    उसमें मिट्टी उतनी ज़्यादा होगी
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    और उसकी लिखायी उतनी ही हल्की और पतली होगी।
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    मूलरूप से, जब पेंसिल हाथ से बनती थी,
    वह गोल होती थी।
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    उन्हें बनाने का आसान तरीका नहीं था,
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    और यह अमेरिकी ही थे
    जिन्होंने इस कला का मशीनीकरण किया।
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    कई लोग जोसेफ़ डिक्सन को श्रेय देते हैं
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    उन प्रथम अन्वेषक में से एक होने का
    जिन्होंने असली मशीनों का विकास किया
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    लकड़ी की पतली पट्टी काटने,
    लकड़ी में छेद करने के लिये,
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    उन पर गोंद लगाने को...
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    और उन्होंने तरीका खोजा
    इसे आसान बनाने और बरबादी कम करने का।
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    पेंसिल को षट्कोण बनाने का,
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    जो कि उसका मानक बन गया।
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    पेंसिल के शुरूआती दिनों से ही,
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    लोगों को पसंद था कि
    इससे लिखा मिट जाता है।
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    मूलरूप से, ब्रेड के टुकड़े
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    पेंसिल का लिखा मिटाने के लिये
    लगाये जाते थे
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    और बाद में, रबर और झांवा।
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    रबड़ को जोड़ने का काम 1858 में हुआ,
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    हाईमन लिपमैन ने पहली पेंसिल पेटेंट करवायी
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    जिसमें रबड़ लगा था,
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    जिसने पेंसिल के मायने ही बदल दिये।
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    दुनिया की पहली पीली पेंसिल
    कोह-इ-नूर 1500 थी।
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    कोह-इ-नूर ने अजीब प्रयोग किया
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    उन्होंने पेंसिल पर पीले पेंट की
    14 परतें चढ़ा दी
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    और उसे 14-कैरट सोने में डुबो दिया।
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    सबके लिये अलग तरह की पेंसिल थी
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    और हर पेंसिल की अपनी कहानी है।
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    ब्लैकविंग 602 प्रसिद्ध है
    क्योंकि बहुत से लेखक इसे काम में लाते हैं,
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    ख़ासतौर पर जॉन स्टीनबेक
    और व्लादिमीर नबोकोव।
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    और फिर, आपके पास डिक्सन पेंसिल कंपनी है।
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    उन्होंने डिक्सन टिकॉन्डेरोगा दी।
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    यह एक आइकन है,
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    पेंसिल से यही याद आती है
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    स्कूल से यही याद आती है।
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    और मैं सोचती हूँ
    पेंसिल सचमुच एक ऐसी चीज़ है,
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    एक औसत उपभोक्ता
    कभी नहीं सोचता,
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    यह कैसी बनी या क्यों बनी
    जैसी वह है,
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    क्योंकि यह हमेशा से ऐसा ही रही है।
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    मेरे विचार से, कुछ नहीं किया जा सकता
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    पेंसिल को इससे बेहतर बनाने के लिये।
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    यह उत्तम है।
Title:
पेंसिल उत्तम क्यों है
Speaker:
कैरोलिन वीवर
Description:

पेंसिल का आकार षट्कोण क्यों होता है, और उन्हें अपना विशेष पीला रंग कैसे मिला? पेंसिल की दुकान की मालिक कैरोलिन वीवर हमें पेंसिल का दिलचस्प इतिहास बता रही हैं।

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TED Series
Duration:
03:39
Omprakash Bisen approved Hindi subtitles for Why the pencil is perfect
Omprakash Bisen accepted Hindi subtitles for Why the pencil is perfect
Omprakash Bisen edited Hindi subtitles for Why the pencil is perfect
Purnima Pandey edited Hindi subtitles for Why the pencil is perfect

Hindi subtitles

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