फ़िर्दौस: कला और अंदरूनी समरसता का क्षेत्र | इब्राहीम ज़ोक़ | TEDxPunjabUniversity
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0:11 - 0:13(गीत)
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1:10 - 1:13"गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
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1:14 - 1:17चले भी आओ
कि गुलशन का कारोबार चले" -
1:18 - 1:20मैं सोचने लगा और मैं सोचता रहता
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1:20 - 1:24कि वसंत की इस वार्ता की शुरुआत कैसे करूँ।
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1:24 - 1:26बहार, स्परले,
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1:26 - 1:29जिसके लिए इंसान की लालसा
निर्वासन से रही है। -
1:31 - 1:34जिसके लिए पैगंबर मुहम्मद -की चाहत थी
शांति हो उस पर - -
1:34 - 1:37जिसके लिए इकबाल, घनी, फैज़,
और बहुत लोगों की लालसा थी। -
1:40 - 1:42जिसके लिए मेरी और आपकी लालसा है।
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1:42 - 1:46मुझे लगा मेरे ख्याल फ़िज़ूल हैं,
लेकिन वे बेकार तो नहीं। -
1:46 - 1:49एक दिन मैंने एक सपना देखा
कि मैं किसी के सामने फैज़ की -
1:49 - 1:52दो पंक्तियाँ सुना रहा हूँ
जैसे रूमी का कोई मसनवी। -
1:53 - 1:57जिसे मैं अच्छे से जानता,
जो उन्होंने लिखी जब वे कैदी थे। -
1:57 - 1:58जब मैं जगा,
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1:58 - 2:00मैं इस ताज़े ख्व़ाब को
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2:00 - 2:03समझने बैठा।
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2:04 - 2:07क़फ़स उदास है यारों
सबा से कुछ तो कहो -
2:07 - 2:11कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा
आज ज़िक्र-ए-यार चले। -
2:12 - 2:15जैसे इंसान की शुरुआत से
ख्वाइश थी की -
2:15 - 2:17वह जीवन के जेल और दुख के पिंजरे से निकले,
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2:17 - 2:19जो असल में दोनों एक हैं।
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2:19 - 2:22जैसे पतझड़ में वसंत की उम्मीद।
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2:25 - 2:32इंसान चूँकि आज़ाद पैदा हुआ है,
उसके पास मर्ज़ी की खूबी है। -
2:34 - 2:40इंसान को पतझड़ में वसंत का
इंतज़ार होता है और कैद में आज़ादी का। -
2:42 - 2:44बहार - वसंत,
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2:44 - 2:46हमें इसलिए पता है क्योंकि
हम पतझड़ के बारे में जानते हैं। -
2:47 - 2:49क्या आप कभी सोचते हो
कि प्रकृति चक्र में -
2:49 - 2:52वसंत का दौर जारी क्यों नहीं रहता?
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2:53 - 2:56हाँ, क्योंकि जारी रहना मतलब
बदलाव होने की काबिलियत न होना। -
2:57 - 2:59इंसान प्रगतिशील है।
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2:59 - 3:03बदलाव बंद होना मतलब प्रगति का बंद होना।
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3:04 - 3:08पतझड़ का उद्देश्य है
वसंत की लालसा। -
3:08 - 3:12इंसान और प्रकृति
एक दूसरे से अलग नहीं हैं। -
3:12 - 3:14बस यह अंतर है
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3:14 - 3:20कि प्रकृति का बदलाव
सांगत है और उसकी प्रणाली होती है -
3:20 - 3:24और इंसान के बदलाव की
कोई प्रणाली नहीं होती। -
3:25 - 3:29एक कांच के टुकड़े को
सिर्फ़ तब आकृति दे सकते हैं जब वह गरम हो, -
3:29 - 3:32वर्ना वह टूट जाएगा।
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3:33 - 3:36यह मुश्किलें, यह संघर्ष
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3:36 - 3:39जो हमारी ज़िन्दगी में हैं,
यह बेवजह नहीं हैं। -
3:39 - 3:43यह जीवन की बुनियादी
चीज़ों के बारे में बताते हैं। -
3:43 - 3:46इकाई, जड़ें, उत्पति जैसे -
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3:46 - 3:52आप खुद ही अपने अस्तित्व की
जड़, इकाई, और उत्पति हैं। -
3:52 - 3:59यह जैसे एक स्थल से
पूरे ब्रह्माण्ड तक का सफ़र है। -
4:00 - 4:05एक स्थल, एक बिंदु
जो इंसान का अहंकार है -
4:05 - 4:07और स्वयं का एहसास
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4:07 - 4:11जैसे उस बिंदु का पूरे ब्रह्माण्ड
तक का प्रसार है -
4:11 - 4:14जैसे यह ब्रह्माण्ड का प्रसार हुआ था।
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4:18 - 4:20जैसे प्रकृति की चीज़ें
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4:20 - 4:24ब्रह्माण्ड के एक कायदे के अन्दर
एक दूसरे से आकर्षित होती हैं, -
4:24 - 4:27इंसान का जीवन भी कुछ कायदों पर चलता है,
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4:27 - 4:31जो इंसान की मर्ज़ी की सियाही
से बने निर्णयों का -
4:31 - 4:34परिणाम लिखते हैं।
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4:34 - 4:39नौ साल पहले तक मैं रुढ़िवादी था
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4:39 - 4:42जो एक कठोर और नियमित
राह पर चल रहा था -
4:42 - 4:47जो किन्ही लोगों द्वारा बनाए धर्म,
और सामजिक मानक का था। -
4:47 - 4:51एक निर्देशित जीवन
जो मैं अपनी मर्ज़ी से जी रहा था, -
4:51 - 4:54बिना सवाल, बिना तर्क किए।
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4:55 - 4:59मैं हमारी समाज की एक भीड़ का
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5:01 - 5:02सामान्य हिस्सा था।
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5:02 - 5:06ऐसी जीवनशैली हमारी आज़ादी पर रोक डालती है
और हमारी रचनात्मकता को दबाती है। -
5:08 - 5:10आठ साल पहले,
मैं दसवी कक्षा में था -
5:10 - 5:12जब मैंने कुछ ऐसा अनुभव किया
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5:12 - 5:16जिसके पहले मुझे उस हद तक
दुख की भावना का नहीं पता था। -
5:23 - 5:25दर्द, मुश्किलात, बीमारी;
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5:25 - 5:29इनका एक महत्त्वपूर्ण मगर
न पहचाना हुआ उद्देश्य है। -
5:29 - 5:34वे आपको अलहदगी और
आत्मनिरीक्षण की तरफ़ धकेलते हैं, -
5:34 - 5:36ताकि आप सोच और जान पाएँ
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5:36 - 5:40कि क्या क्या है, और क्या नहीं है
जो आप सोचते थे की वह था। -
5:43 - 5:45उससे निकलना ज़रूरी है
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5:47 - 5:50और दूसरी ओर एक दूसरा समंदर है
जो आपकी डुबकी का इंतज़ार कर रहा है। -
5:51 - 5:52जब आप निकलते हैं,
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5:52 - 5:55आपको बेहतर पता होता है
कि वसंत वाकई कैसा दीखता है। -
5:56 - 5:58उसके रंग, उसकी खुशबुएँ
प्रकृति के गीत, -
5:58 - 6:01लोग, उनकी खुशियाँ, उनकी पीड़ाएँ,
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6:01 - 6:03आपके रक्त का बहाव।
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6:05 - 6:07एक दुख, जिसमें मैंने खुद को दे दिया,
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6:08 - 6:11उसने मेरे जीवन की दिशा
180 डिग्री तक बदल दी। -
6:11 - 6:15मैं सोचने लगा, तर्क करने लगा,
सब पर सवाल करने लगा। -
6:15 - 6:20सोच पाना, महसूस कर पाना
एक कला है जिसके लिए सब काबिल हैं। -
6:25 - 6:28और मैं उनको सबसे खूबसूरत मानता हूँ
जो इस कला को जानते हैं। -
6:32 - 6:35संदेशवाहक, तत्वज्ञानी,
रहस्यवादी, वैज्ञानिक, -
6:36 - 6:39और दूसरे रचनाकार और विचारक,
वे सब कलाकार हैं, -
6:39 - 6:42और उनकी वार्ता,
वसंत की वार्ता है। -
6:44 - 6:50खुद को पहचानना वह रोशनी है
जो ख़ुशी को बेहतरीन बनती है, -
6:50 - 6:53और दुख इस सफ़र का
वह रहस्मय आनंद है -
6:53 - 6:55जो आपको बनाती है,
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6:55 - 7:02आपके दिल को उस प्याले की तरह बनाती है
जिसमें जीवन की मदिरा है। -
7:02 - 7:05मदिरा, जो परमानंद का पर्याय है।
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7:06 - 7:10वह प्याला, जिसे प्रोफेट मुहम्मद -
पीस बी अपॉन हिम - -
7:10 - 7:15ने अपने जूनून से बनाया था,
लोगों के लिए, ऊपर वाले के लिए, अनंत था। -
7:16 - 7:21जितना गहरा आपके जीवन का प्याला होगा,
उतना जीवन उसमें समा पाएगा। -
7:24 - 7:26एक खूबसूरत याद -
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7:27 - 7:30सबसे खूबसूरत यादों में से एक,
सबसे पुरानी, -
7:30 - 7:32जब मैं 18 महीनों का था,
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7:32 - 7:34मेरा पहला एडवेंचर,
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7:35 - 7:37छोटा और यादगार,
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7:37 - 7:43मेरे गाँव बनु में हमारे घर के पास वाली जगह
तक का एक सफ़र, -
7:43 - 7:45एक बगीचे तक,
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7:46 - 7:49मेरे दादा बजी की कलाकृति,
जो उन्होंने जूनून के साथ बनाई थी। -
7:51 - 7:52एक दिन मेरी दादी,
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7:53 - 7:56अपने मुलायम और नाज़ुक हाथों में
मुझे ले जा रही थी -
7:56 - 8:01और बाकी सब, मेरी माँ भी
हमारे पीछे -
8:02 - 8:03उस बगीचे तक चल रहे थे।
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8:04 - 8:08वह बगीचा मेरे लिए
बहुत मायने रखता है। -
8:09 - 8:14बजी ने उसमें कितना समय,
ऊर्जा और ख्याल दिया था। -
8:16 - 8:20अगर एक पौधा
अपने पत्ते पतझड़ में खोता, -
8:20 - 8:21दूसरा खिलता।
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8:21 - 8:22यह जैसे था कि
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8:22 - 8:25बजी को हमेशा वसंत की लालसा थी
और फिर उन्होंने वह बनाया -
8:25 - 8:28जो हमेशा उम्मीदवार था,
हमेशा खिलता, -
8:28 - 8:30हमेशा बड़ा होता।
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8:34 - 8:37वह बगीचा कुछ सालों बाद
समय के साथ गायब हो गया -
8:37 - 8:40उस दिन जब मेरी दादी चल बसी
जब मैं छह साल का था। -
8:41 - 8:44एक दिन, हवा की तरह, हर जगह।
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8:46 - 8:49मैंने अब्बू को कितनी बार सुना है
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8:50 - 8:54एक मताल, एक कहावत पश्तो,
मेरी मातृभाषा में कहते - -
8:54 - 8:57(पश्तो में कहावत)
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8:58 - 9:03"अगर आप एक राक्षस से छुटकारा नहीं पा सकते,
उसे गले लगाना सीखो।" -
9:03 - 9:06फिर मैं उनको गले लगाने लगा
जिनसे मैं भाग नहीं सकता था, -
9:06 - 9:09और मैं सीमाओं से परे सोचने लगा
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9:11 - 9:12और जिसकी मदद से मैं
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9:13 - 9:18रिहा होकर ईमानदारी के पथ पर चलते लगा।
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9:20 - 9:26ईमानदारी एक ही आधार है
जिसमें हम एक दूसरे से अलग हैं। -
9:26 - 9:29कोई लिंग, पैसा, जाति, रंग, प्रस्सिद्धता
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9:30 - 9:32या इन्स्ताग्राम पर फौलोवर के अंक
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9:32 - 9:36के आधार पर किसी से
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9:37 - 9:40बड़ा या छोटा नहीं होता।
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9:44 - 9:49पाँच साल पहले मैंने इन्स्ताग्राम
के बारे में एक दोस्त से सुना था। -
9:49 - 9:52तब मैं यूँ ही तसवीरें लेता था,
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9:52 - 9:54और वक़्त को एक याद की तरह
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9:57 - 10:00कैद करना चाहता था।
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10:01 - 10:03फिर मैंने इन्स्ताग्राम पर अकाउंट बनाया
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10:04 - 10:06और समय के साथ इन्स्ताग्राम ने
मुझे मेरे काम में -
10:07 - 10:09बेहतर बनाया और फिर
मैं कला के इस नए माध्यम से -
10:09 - 10:13व्यक्त करने की ख़ुशी महसूस करने लगा।
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10:15 - 10:20और वक़्त के साथ फोटो और विडियो
मेरे जूनून में विक्सित हो गए। -
10:21 - 10:24और कुछ समय बाद
लोगों के प्रति मेरे प्यार और सहनुभूति से -
10:24 - 10:27मैंने सोशल मीडिया पर
#MerayPyaarayLog का हैशटैग बनाया। -
10:29 - 10:33इंसानी सम्बन्ध के
अनुभूति और पहचान के लिए। -
10:34 - 10:36एक विचार जो इस दूरी को कम पर पाएँ।
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10:39 - 10:43ताकि हम एक दूसरे को
अपने खुशियों और दुख के लिए पहचान पाएँ -
10:43 - 10:46ख़ासकर की उनको
जो हमारे समाज में दबे हुए हैं। -
10:48 - 10:50मेरे प्यारे लोग।
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10:51 - 10:55मेरा एक बहुत अज़ीज़ हमनवा दोस्त है
एक दिन मुझसे कहता है कि -
10:56 - 11:00मेरा दिमाग घूम जाता है जब मैं लोगों को
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11:01 - 11:04इस्लाम और जनतंत्र के नज़रिए से देखता हूँ,
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11:04 - 11:07और जब मैंदूसरी तरफ़ तुम्हारी नज़र से
मेरे प्यारे लोग -
11:07 - 11:09की शकल में उनके लिए लाड देखता हूँ।
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11:10 - 11:16यानी की तुम्हारे यह प्यारे लोग
सोचने की कोशिश ही नहीं करते, -
11:16 - 11:20जैसे इनको पता ही नहीं कि
इनके पास सोचने जैसी इतनी बड़ी ख़ूबी है। -
11:21 - 11:23न मक़सद से आशना है,
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11:23 - 11:27न मक़सद से आशना होने की जुस्तजू।
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11:28 - 11:31कहता है कि इसने तो हमें
बर्बाद कर दिया है, -
11:31 - 11:36हमें इनके हिस्से का भी सोचना पड़ता है
लेकिन कुछ कर नहीं सकते। -
11:38 - 11:41मैंने मुस्कुराकर कहा कि
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11:42 - 11:44बर्बाद नहीं,
हाँ, हमें थका दिया है बहुत। -
11:50 - 11:52किसी भी वास्तु का उद्देश्य
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11:52 - 11:54मानव जीवन को चलाना है
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11:54 - 11:57लेकिन उनमें जीवन का उद्देश्य नहीं है।
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11:57 - 12:02दौलत, पॉवर, शौहरत, वह चमकती वस्तुएँ हैं
जो सोना नहीं है। -
12:03 - 12:08यह एक हवसी अहंकार की
इच्छाएँ हैं, जो अंदरूनी ही हैं। -
12:09 - 12:13जब हम सिर्फ़ लेते हैं, और देते नहीं हैं,
हम जीवन का संतुलन बिगाड़ते हैं। -
12:15 - 12:18तब्रिज़ के शम्स अपनी आत्मकथा में कहते हैं,
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12:19 - 12:22"जब मैं बच्चा था, वे मुझसे कहते
'तुम दुखी क्यों हो? -
12:22 - 12:25क्या तुम्हें कपड़े चाहिए?
क्या तुम्हें पैसे चाहिए?' -
12:26 - 12:28मैं उनसे कहता,
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12:28 - 12:31'किआप मुझसे वह सब ले लें,
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12:31 - 12:37जो कपड़े मैं पहनता हूँ
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12:37 - 12:43और मुझे फिर वह दे दें
जो मैं ढूँढ रहा हूँ, जो चाहता हूँ।" -
12:47 - 12:51खुद को जानो, अपने हुनर को जानो, अपनी
काबिलियत को जानो, अपनी खूबियों को जानो। -
12:54 - 12:59और उन सब से
दुनिया को अच्छाई के रूप में दो। -
12:59 - 13:02एक दूसरे के लिए दिल में
नफ़रत मत रखो। -
13:02 - 13:05ईमानदार, क्षमाशील, और सच्चे रहो।
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13:06 - 13:07अच्छे रिश्ते बनाओ।
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13:08 - 13:11यह हमारी ज़िम्मेदारी है,
अगर हम ईमानदार रहेंगे, -
13:11 - 13:15तो कैसे वह वसंत नहीं आएगा
जिसकी हमें लालसा है। -
13:17 - 13:19"ओ गुणी ऊपर वाले,
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13:20 - 13:22इस दुनिया को मेरे लिए स्वर्ग बना दो।
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13:22 - 13:24जिसका तरीका आसन है,
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13:24 - 13:26तीन शब्दों से बना,
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13:27 - 13:28जैसे मैंने पहले भी कहा है,
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13:29 - 13:32मुझे मेरा प्यार, मेरी जवानी,
और मदिरे का प्याला दे दो। -
13:32 - 13:36बहुत से फूल, थोड़े दोस्त,
और एक म्लान शाम। -
13:37 - 13:40जो थोड़े थोड़े समय में
मेरे मन की अराजकता को शांत कर जाए। -
13:41 - 13:44मैं हूँ इब्राहीम ज़ोक़,
और यह है मेरे दिल का बयान। -
13:44 - 13:46धन्यवाद।
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13:46 - 13:49(तालियाँ)
- Title:
- फ़िर्दौस: कला और अंदरूनी समरसता का क्षेत्र | इब्राहीम ज़ोक़ | TEDxPunjabUniversity
- Description:
-
#MerayPyaareLog
हड्डियों में थोड़ी झनझनाहट, बोतल में एक सन्देश है जो इब्राहीम ज़ोक़ (एक फोटोग्राफर-राइटर) दुनिया को देना चाहते हैं। वे बताते हैं कि कैसे एक दूसरे से जुड़कर भी हम जुड़े नहीं हैं। हम स्तिथियों की इंसानियत से अप्रभावित हैं और सिर्फ़ ऊपर ऊपर से चीज़ें देखते हैं।
ज़ोक़ अपने नीजी अनुभवों के बारे में बताते हैं और वसंत की लालसा के बारे में, कि बिना वसंत का पतझड़ में बदले, हमें उस खिलते फूल और गर्माहट देने वाले सूरज की कीमत नहीं समझ आएगी।
यह टॉक एक TEDx इवेंट पर TED कांफ्रेंस का फॉर्मेट का इस्तेमाल करके दी गयी थी लेकिन एक एक लोकल समुदाय द्वारा स्वतंत्र रूप से आयोजित। और जानने के लिए https://www.ted.com/tedx पर जाएँ।
- Video Language:
- English
- Team:
- closed TED
- Project:
- TEDxTalks
- Duration:
- 13:56
Arvind Patil approved Hindi subtitles for Firdaus: A realm of art and inner harmony | Ibrahim Zauq | TEDxPunjabUniversity | ||
Arvind Patil accepted Hindi subtitles for Firdaus: A realm of art and inner harmony | Ibrahim Zauq | TEDxPunjabUniversity | ||
Arvind Patil edited Hindi subtitles for Firdaus: A realm of art and inner harmony | Ibrahim Zauq | TEDxPunjabUniversity | ||
Gunjan Hariramani edited Hindi subtitles for Firdaus: A realm of art and inner harmony | Ibrahim Zauq | TEDxPunjabUniversity | ||
Gunjan Hariramani edited Hindi subtitles for Firdaus: A realm of art and inner harmony | Ibrahim Zauq | TEDxPunjabUniversity | ||
Gunjan Hariramani edited Hindi subtitles for Firdaus: A realm of art and inner harmony | Ibrahim Zauq | TEDxPunjabUniversity |