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त्रासदी के बाद क्या होता है? क्षमादान

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    आज़िम ख़मीसा: हम मनुष्यों के जीवन में
    बहुत से निर्णायक क्षण आते हैं।
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    कई बार ये क्षण आनंदपूर्ण होते हैं,
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    और कई बार उदासी से भरे,
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    त्रासदीपूर्ण।
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    परंतु यदि हम इन निर्णायक क्षणों में,
    सही चुनाव कर पाएँ,
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    तो हम खुद में और दूसरों में
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    सचमुच एक चमत्कार प्रकट कर सकते हैं।
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    मेरा इकलौता बेटा, तारिक,
    यूनिवर्सिटी में पढ़ता था,
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    दयालु, उदार, अच्छा लेखक,
    बहुत अच्छा फ़ोटोग्राफर,
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    नेशनल जियोग्राफिक में
    काम करने की चाह थी,
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    एक खूबसूरत लड़की से उसकी सगाई हो चुकी थी,
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    शुक्रवार और शनिवार को
    पिज़्ज़ा बांटने का काम करता था।
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    उसे एक युवा गिरोह द्वारा
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    फर्जी पते पर बुलाया गया।
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    और गिरोह के दीक्षा संस्कार में,
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    एक १४-वर्षीय ने गोली चलाकर उसे मार डाला।
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    एक मासूम, निहत्थे युवक की
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    अचानक, निर्मम मौत;
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    एक परिवार के लिए असहनीय गम;
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    वह भ्रम, जब आप एक नई घृणित वास्तविकता को
    अपनाने की कोशिश करते हैं।
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    कहने की ज़रूरत नहीं
    मेरा जीवन थम सा गया।
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    मेरे लिए दूसरे शहर में रहने वाली
    उसकी माँ को फ़ोन करना
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    मेरे लिए सबसे मुश्किल काम था।
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    आप एक माँ को कैसे बताते
    कि वह अपने बेटे से कभी मिल नहीं पाएगी,
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    ना ही उसकी हंसी सुन पाएगी,
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    ना ही उसे गले लगा सकेगी?
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    मैं एक सूफी मुस्लिम हूँ।
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    दिन में दो बार नमाज़ पढ़ता हूँ।
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    और कभी-कभी,
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    गहरे आघात और गहरी त्रासदी में
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    रोशनी की एक झलक दिखती है।
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    तो मुझे नमाज़ पढ़ते समय एहसास हुआ
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    कि बंदूक के दोनों ओर पीड़ित थे।
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    यह देखना तो आसान है
    कि मेरा बेटा १४-वर्षीय के हाथों मारा गया,
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    थोड़ा जटिल है यह देख पाना
    कि वह अमरीकी समाज के हाथों मारा गया।
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    और इससे सवाल उठता है,
    अमरीकी समाज है कौन?
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    वह मैं और आप ही तो हैं,
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    क्योंकि मैं नहीं मानता
    कि समाज ऐसे ही बन जाता है।
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    मुझे लगता है कि इस समाज को
    बनाने में हम सभी ज़िम्मेदार हैं।
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    और जहाँ बच्चे ही बच्चों का मार डालें
    वह कोई सभ्य समाज की निशानी नहीं।
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    तो तारिक की मौत के नौ महीनों बाद,
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    मैंने तारिक ख़मीसा फांउडेशन की शुरूआत की
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    और तारिक ख़मीसा फांउडेशन
    का मुख्य लक्ष्य है
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    इस युवा हिंसा के चक्र को तोड़कर
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    बच्चों को बच्चों
    द्वारा मारे जाने से रोकना।
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    और हमारे पास तीन जनादेश हैं।
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    सबसे पहला और महत्वपूर्ण है
    बच्चों का जीवन बचाना।
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    ऐसा करना ज़रूरी है।
    हम रोज़ कितने ही जीवन खो देते हैं।
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    हमारा दूसरा जनादेश
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    सही विकल्पों को सशक्त करना है
    ताकि बच्चे गलत राह पर जाकर
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    गिरोह और अपराध और नशे
    और शराब और हथियारों का जीवन ना चुनें।
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    और अहिंसा, करूणा, सहानुभूति,
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    क्षमा के सिद्धांत सिखाना ही
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    हमारा तीसरा जनादेश है।
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    मैंने एक मामूली सी बात को लेकर शुरू किया
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    कि हिंसक बनना सीखा जाता है।
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    कोई बच्चा हिंसक पैदा नहीं होता।
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    यदि आप इसे सामान्य सत्य मान लें,
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    अहिंसक होना भी सीखा जा सकता है,
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    पर आपको सिखाना होगा,
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    क्योंकि बच्चे
    इसके सम्पर्क में आकर नहीं सीखेंगे।
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    उसके बाद, मैं अपने इस भाई के पास गया,
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    इस रवैये के साथ
    कि हम दोनों ने अपना बेटा खोया है।
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    मेरा बेटा तो मर गया।
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    इनका दोहता व्यस्क जेल प्रणाली खा गई।
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    और मैंने इन्हें मेरा साथ देने को कहा।
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    जैसा कि आप देख रहे हैं,
    २२ सालों के बाद भी हम साथ हैं,
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    क्योंकि मैं तारिक को जीवित नहीं कर सकता,
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    यह टोनी को जेल से नहीं निकाल सकते,
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    पर हम दोनों एक काम कर सकते हैं
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    कि हमारे समुदाय का कोई भी युवा मरे नहीं
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    और ना ही जेल की सलाखों के पीछे जाए।
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    अल्लाह की कृपा से,
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    तारिक ख़मीसा फांउडेशन सफल रही है।
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    हमारा एक सुरक्षिक स्कूल मॉडल है
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    जिसके चार अलग कार्यक्रम हैं।
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    पहले में मेरे और प्लेस
    के साथ बैठक होती है।
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    हमारा परिचय करवाया जाता है,
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    इस आदमी के दोहते ने
    इस आदमी के बेटे को मार डाला,
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    और यह दोनों एक साथ यहाँ हैं।
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    हमारे पास कक्षा में पाठ्यक्रम है।
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    स्कूल के बाद सलाह देने का कार्यक्रम है,
    और हम एक शांति क्लब बनाते हैं।
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    और मुझे आपको बताते हुए खुशी है
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    कि अहिंसा के ये सिद्धांत सिखाने के अलावा,
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    हम बच्चों के स्कूल से निलम्बन और निष्कासन
    में ७० प्रतिशत कमी करने में सफल हुए हैं,
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    (तालियाँ)
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    जो बहुत बड़ी संख्या है।
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    (तालियाँ)
  • 4:31 - 4:33
    जो बहुत बड़ी संख्या है।
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    तारिक की मौत के पाँच सालों बाद,
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    और मुझे अपनी क्षमा की यात्रा
    पूर्ण करने के लिए,
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    मैं उस युवक से मिलने गया
    जिसने मेरे बेटे को मारा था।
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    वह १९ वर्ष का था।
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    और मुझे वह मुलाकात याद है
    क्योंकि हम...
  • 4:47 - 4:49
    वह अब ३७ का है, अभी भी जेल में...
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    पर उस पहली मुलाकात में,
    हमने नज़रें मिलाई।
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    मैं उसकी आँखों में देख रहा था,
    वह मेरी आँखों में देख रहा था,
  • 4:55 - 4:59
    और मैं उसकी आँखों में हत्यारे को
    खोज रहा था, जो मुझे नहीं मिला।
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    मैंने उसकी आँखों से
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    उसकी मानवता को स्पर्ष किया, तो जाना
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    कि उसके भीतर का वह प्रकाश
    मेरे भीतर के प्रकाश से भिन्न नहीं था
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    ना ही किसी और के भीतर के प्रकाश से।
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    तो मैं उसकी अपेक्षा नहीं कर रहा था।
    वह अपने किए पर शर्मिंदा था।
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    वह स्पष्टवादी था। वह शिष्ट था।
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    और मैं बता सकता था
    कि मेरी क्षमा से वह बदल गया था।
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    तो, इसके साथ ही कृपया स्वागत करें
    मेरे भाई, प्लेस का।
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    (तालियाँ)
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    प्लेस फीलिक्स: टोनी,
    मेरी इकलौती बेटी का इकलौता बच्चा है।
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    टोनी का जन्म हुआ
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    जब मेरी बेटी मात्र १५ वर्ष की थी।
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    मातृत्व इस संसार का सबसे कठिन कार्य है।
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    इस संसार में इससे कठिन कार्य कोई नहीं
    कि आप एक नन्हीं जान को बड़ा करें
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    उसे सुरक्षित रखें,
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    सही स्थिति में रखें
    कि वह जीवन में सफल हो पाए।
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    टोनी ने बचपन में बहुत हिंसक अनुभव किए।
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    उसने लॉस एंजल्स में गिरोहों की आपस में
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    स्वचालित हथियारों से बरसती आग में अपने
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    सबसे प्यारे चचेरे भाई की हत्या होते देखी।
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    वह बहुत दर्द से पीड़ित था।
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    टोनी मेरे साथ रहने आ गया।
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    मैं चाहता था कि उसके पास वह सब हो
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    जो एक बच्चे को सफल होने के लिए चाहिए।
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    पर इस खास शाम को,
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    मेरे साथ कई साल बिताने के बाद,
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    और सफल होने के लिए कई प्रयत्न करने के बाद
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    और एक सफल इन्सान बनने की मेरी चाह पर
    पूरा उतर पाने की कोशिश में
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    टोनी इस खास शाम को घर से भाग गया,
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    उन लोगों के पास चला गया
    जिन्हें वह अपना दोस्त समझता था,
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    उसे नशा करवाया और शराब पिलाई गई
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    और उसने वह सब किया
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    क्योंकि उसने सोचा
    कि उससे वह बेफिक्र महसूस करेगा।
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    पर उससे केवल उसका तनाव और बढ़ा
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    और उसकी सोच...
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    और भी खतरनाक हो गई।
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    उसे एक डकैती में बुलाया गया,
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    उसे एक ९एमएम की हैंडगन दी गई।
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    और एक १८-वर्षीय जिसने उसे आदेश दिया
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    और दो १४-वर्षीय लड़के जिन्हें
    वह दोस्त समझता था, उनकी मौजूदगी में
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    उसने तारिक ख़मीसा को गोली मार दी,
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    जो इस आदमी का बेटा था।
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    कोई शब्द ब्यान नहीं कर सकते
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    एक बच्चे को खोने का गम।
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    मेरी समझ के अनुसार मेरा दोहता
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    इस आदमी की हत्या का ज़िम्मेदार था,
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    बड़े-बूढ़ों के कहे अनुसार
    मैं प्रार्थना में गया,
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    और वहाँ प्रार्थना करने लगा।
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    श्रीमान ख़मीसा और मुझ में एक समानता है,
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    जो हम जानते नहीं थे,
    अच्छे इन्सान होने के अलावा,
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    हम दोनों ईश्वर में ध्यान लगाते हैं।
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    (हंसी)
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    इससे मुझे बहुत मदद मिली
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    क्योंकि इससे मुझे मार्गदर्शन
    और स्पष्टता के लिए एक अवसर मिला
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    कि मैं इस स्थिति में इस आदमी
    और इसके परिवार की सहायता कैसे करूँ।
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    और मेरी प्रार्थना स्वीकार हुई,
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    क्योंकि मुझे इस आदमी के घर पर
    मिलने के लिए बुलाया गया,
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    इनके माता-पिता से मिला,
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    इनकी बीवी, भाई, उनके परिवारों से मिला
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    और इस इन्सान की अगुआई में ईश्वर में
    विश्वास रखने वाले लोगों के साथ मिलकर
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    जो क्षमा की भावना लिए,
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    एक रास्ता निकाला, मुझे अवसर दिया
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    कि मैं कुछ काम आ सकूँ
    और इन्हें और बच्चों को
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    एक ज़िम्मेदार व्यस्क के साथ रहने का महत्व,
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    अपने गुस्से पर अच्छी तरह से
    ध्यान देने के महत्व,
  • 8:16 - 8:18
    ध्यान लगाने का महत्व बता सकूँ।
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    तारिक ख़मीसा फांउडेशन में
    हमारे जो कार्यक्रम हैं
  • 8:21 - 8:24
    उनसे बच्चों को बहुत कुछ मिलेगा
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    जिसका वे उम्र भर प्रयोग कर सकते हैं।
  • 8:26 - 8:29
    यह ज़रूरी है कि हमारे बच्चे समझें
    कि स्नेही, ध्यान रखने वाले बड़े लोग
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    उनकी परवाह करते हैं और समर्थन भी,
  • 8:31 - 8:35
    पर ज़रूरी है कि हमारे बच्चे
    ईश्वर में ध्यान लगाना सीखें,
  • 8:35 - 8:37
    शांतिप्रिय बनना सीखें,
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    ध्यान लगाना सीखें
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    और बाकी बच्चों के साथ
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    दयालु, भावनात्मक
  • 8:43 - 8:45
    और प्यार भरी बातचीत करना सीखें।
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    हमारे समाज में प्यार की ज़रूरत है
  • 8:47 - 8:50
    और इसीलिए हम यहाँ हैं
    बच्चों के साथ इस प्यार को बाँटने के लिए,
  • 8:50 - 8:52
    क्योंकि हमारे बच्चे ही
    हमारे लिए राह बनाएँगे,
  • 8:53 - 8:55
    क्योंकि हम सभी
    हमारे बच्चों पर निर्भर होंगे।
  • 8:55 - 8:59
    जैसे-जैसे हम बूढ़े होकर निवृत्त होंगे,
    वे इस संसार पर राज करेंगे,
  • 8:59 - 9:02
    तो जितना प्यार हम उन्हें सिखाएंगे,
    वे हमें वापिस देंगे।
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    आशीर्वाद। धन्यवाद।
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    (तालियाँ)
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    अ.ख़: मेरा जन्म केन्या में हुआ,
    इंगलैंड में शिक्षा,
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    और मेरे भाई बैपटिस्ट हैं।
  • 9:17 - 9:19
    मैं एक सूफी मुस्लिम हूँ।
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    यह अफ्रीकी अमरीकी हैं,
  • 9:21 - 9:24
    पर मैं इन्हें हमेशा कहता हूँ,
    अफ्रीकी अमरीकी तो मैं हूँ।
  • 9:24 - 9:25
    मैं अफ्रीका में पैदा हुआ। आप नहीं।
  • 9:25 - 9:28
    (हंसी)
  • 9:28 - 9:30
    और मैं अमरीका का नागरिक बना।
  • 9:30 - 9:32
    मैं पहली पीढ़ी का नागरिक हूँ।
  • 9:32 - 9:36
    और मुझे लगा कि अमरीकी नागरिक होने के नाते,
  • 9:36 - 9:39
    अपने बेटे की हत्या में
  • 9:39 - 9:42
    मुझे अपने हिस्से की
    ज़िम्मेदारी तो माननी होगी।
  • 9:42 - 9:46
    क्यों? क्योंकि बंदूक
    तो अमरीकी बच्चे ने ही चलाई थी।
  • 9:46 - 9:48
    आप कह सकते हैं,
    उसने मेरे इकलौते बेटे को मार डाला,
  • 9:48 - 9:51
    उसे तो फांसी लटकाया जाना चाहिए।
  • 9:52 - 9:54
    उससे समाज का सुधार कैसे होगा?
  • 9:54 - 9:58
    और मैं जानता हूँ आप शायद सोच रहे होंगे
    कि उस नौजवान का क्या हुआ।
  • 9:59 - 10:03
    वह अभी भी जेल में है।
    २२ सितम्बर को ३७ वर्ष का हुआ,
  • 10:04 - 10:05
    पर मेरे पास एक अच्छी खबर है।
  • 10:05 - 10:08
    १२ सालों से हम उसे जेल से
    बाहर लाने की कोशिश कर रहे हैं।
  • 10:08 - 10:11
    आखिरकार वह एक साल में हमारे साथ होगा।
  • 10:11 - 10:15
    (तालियाँ)
  • 10:18 - 10:21
    और मैं बहुत खुश हूँ
    कि वह हमारे साथ आने वाला है,
  • 10:21 - 10:23
    क्योंकि मैं जानता हूँ हमने उसे बचा लिया,
  • 10:23 - 10:27
    पर वह हज़ारों छात्रों को बचाएगा
  • 10:27 - 10:29
    जब वह स्कूलों में अपना बयान देगा
  • 10:29 - 10:32
    जहाँ हम नियमित रूप से जाते हैं।
  • 10:33 - 10:36
    जब वह बच्चों से कहेगा,
    "११ वर्ष की उम्र में गिरोह में शामिल हुआ।
  • 10:36 - 10:39
    जब मैं १४ वर्ष का था,
    मैंने श्रीमान खमीसा के बेटे को मार डाला।
  • 10:39 - 10:41
    पिछले कई साल जेल में बिताए।
  • 10:41 - 10:44
    तुम्हें बता रहा हूँ: इसका कोई फायदा नहीं,"
  • 10:44 - 10:47
    आपको लगता है बच्चे उसकी बात सुनेंगे?
  • 10:47 - 10:50
    हाँ, क्योंकि उसकी आवाज़ के उतार-चढ़ाव में
  • 10:50 - 10:53
    उस इन्सान की आवाज़ होगी
    जिसने बंदूक चलाई थी।
  • 10:53 - 10:58
    और मैं जानता हूँ
    वह समय को वापिस मोड़ना चाहता है।
  • 10:58 - 11:00
    ऐसा होना तो मुमकिन नहीं।
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    काश मुमकिन होता।
    मेरा बेटा मुझे वापिस मिल जाता।
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    मेरे भाई को उनका दोहता मिल जाता।
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    तो मुझे लगता है
    यह क्षमा की शक्ति प्रदर्शित करता है।
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    तो यहाँ महत्वपूर्ण बात क्या है?
  • 11:15 - 11:18
    मैं इस सत्र के अंत में
    यह उद्धरण कहना चाहूँगा,
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    जो मेरी चौथी किताब का आधार है,
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    जो कि संयोगवश,
  • 11:23 - 11:25
    उस किताब की प्रस्तावना टोनी ने लिखी थी।
  • 11:27 - 11:31
    तो उसमें लिखा है: सद्भावना की
    निरंतरता ही मित्रता को जन्म देती है।
  • 11:31 - 11:33
    बम फेंक कर तो
    आप मित्र नहीं बना सकते, हैं न?
  • 11:33 - 11:35
    सद्भावना दिखा कर ही आप मित्र बना सकते हैं।
  • 11:35 - 11:36
    वह तो स्पष्ट सी बात है।
  • 11:36 - 11:39
    तो निरंतर सद्भावना से मित्रता बनती है,
  • 11:39 - 11:41
    निरंतर मित्रता से विश्वास बनता है,
  • 11:41 - 11:44
    निरंतर विश्वास से सहानुभूति पनपती है,
  • 11:44 - 11:46
    निरंतर सहानुभूति से करूणा पैदा होती है,
  • 11:46 - 11:49
    और निरंतर करूणा से शांति का उदय होता है।
  • 11:49 - 11:51
    मैं इसे शांति का सूत्र कहता हूँ।
  • 11:51 - 11:57
    इसकी सद्भावना, दोस्ती, विश्वास, सहानुभूति,
    करुणा और शांति से शुरूआत होती है।
  • 11:57 - 12:00
    परंतु लोग मुझे पूछते हैं,
    जिसने आपके बेटे को मारा
  • 12:00 - 12:02
    आप उसके प्रति सहानुभूति
    कैसे दिखा सकते हैं?
  • 12:03 - 12:05
    मैं उन्हें कहता हूँ
    आप क्षमादान से ऐसा कर सकते हैं।
  • 12:05 - 12:07
    जैसा कि स्पष्ट है कि मेरे लिए सफल रहा।
  • 12:08 - 12:09
    मेरे परिवार के लिए सफल रहा।
  • 12:09 - 12:12
    टोनी के लिए चमत्कार किया,
  • 12:12 - 12:14
    उनके परिवार के लिए सफल रहा,
  • 12:14 - 12:17
    यह आपके और आपके परिवार
    के लिए सफल हो सकता है,
  • 12:18 - 12:20
    इज़राइल और फ़िलिस्तीन ,
    उत्तर और दक्षिणी कोरिया,
  • 12:21 - 12:23
    इराक, अफगानिस्तान, इरान और सीरिया
    के लिए काम कर सकता है।
  • 12:23 - 12:26
    संयुक्त राज्य अमरीका के लिए
    सफल हो सकता है।
  • 12:27 - 12:30
    तो मेरी बहनो और थोड़े से भाइयो,
  • 12:30 - 12:31
    मैं आपसे इजाज़त लेता हूँ...
  • 12:31 - 12:33
    (हंसी)
  • 12:33 - 12:35
    इस बात के साथ कि शांति सम्भव है।
  • 12:36 - 12:38
    मैं कैसे जानता हूँ?
  • 12:38 - 12:40
    क्योंकि मैं शांति महसूस करता हूँ।
  • 12:40 - 12:42
    बहुत-बहुत धन्यवाद। नमस्ते।
  • 12:42 - 12:45
    (तालियाँ)
Title:
त्रासदी के बाद क्या होता है? क्षमादान
Speaker:
अज़ीम ख़मीसा, प्लेस फीलिक्स
Description:

१९९५ की एक भयानक रात को, प्लेस फीलिक्स के १४-वर्षीय दोहते ने नशे, शराब और अपनेपन की एक झूठी भावना में धुत होकर अज़ीम ख़मीसा के बेटे को गिरोह के दीक्षा संस्कार में मार डाला। इस भयानक घटना ने अज़ीम ख़मीसा और प्लेस फीलिक्स को ईश्वर के ध्यान में लीन कर दिया, क्षमा करो और क्षमा पाओ... और साहस और सुलह के इस कार्य में, दोनों मिले और एक कभी ना टूटने वाले बंधन में बंध गए। एक साथ मिलकर, उन्होंने अपनी कहानी को एक बेहतर और अधिक दयालु समाज के लिए एक रूपरेखा के रूप में उपयोग किया है, जहाँ त्रासदी के शिकार लोग अपना गम भूल सकते हैं और आगे बढ़ सकते हैं। उनकी अकाल्पनिक कहानी आपको द्रवित कर देगी। ख़मीसा कहते हैं, "शांति संभव है। मैं यह कैसे जानता हूँ? क्योंकि मैं शांति महसूस करता हूँ।"

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
13:06

Hindi subtitles

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