मैं सिर्फ़ 14 साल का था अरुंद दुरफ दुकानोकी गलीमे घुस्कर मैने एक खिलोना लुटा और बिल्डिंग से बाहर आते ही एक ने मेरी बाँह पकड़ी, तो मैं भागा। गली में आगे भाग कर मैं चहारदीवारी पर चढ़ा और जैसे ही उस के ऊपर पहुँचा, बैग में पड़े लूट के 3000 सिक्कों के वज़न ने मुझे वापस ज़मीन पर गिरा दिया। और मैंने ऊपर एक सिक्यरिटी गार्ड को खड़ा हुआ पाया, और उसने कहा, "छोटू, अगली बार वो ही चुराना जिसका वज़न ढो सको।" (ठहाका) वहाँ से मुझे बच्चों के जेल ले जाया गया और जब मुझे अपनी माँ की देख रेख में छोड़ गया, तो मेरे अंकल के पहले शब्द थे, "पकड़े कैसे गए?" मैंने कहा, "भाई, बैग बहुत भारी हो गया था।" वो बोले , "सारे सिक्के एक साथ ले के नहीं भागने थे।" मैंने कहा, "इतने छोटे सिक्के थे। क्या करता मैं?" और ठीक दस मिनट बाद, वो और मैं दूसरी गेम मशीन लूटने निकल पड़े। घर जाने के लिए पट्रोल ख़रीदना था। तो ऐसी थी मेरी ज़िंदगी। मैं ओकलैंड, कैलिफ़ोर्निया में पला बढ़ा, अपनी माँ और नज़दीकी रिश्तेदारों के साथ, जो कि कोकीन के नशेड़ी थे। मैं कभी दोस्तों, कभी रिश्तेदारों के घर रहता था तो कभी बेघर लोगों के सरकारी आश्रयो में। अक्सर खाना भी फ़्री जगहों पर और परमार्थ के लिए चलने वाली रसोईयो में होता था। गैंगबाज़ी में मेरा गुरु एक दोस्त बोला: दुनिया में सिर्फ़ पैसे की चलती है पैसा सब कुछ दे सकता है। और पैसा इन गलियों का राजा है। और अगर आप पैसे के पीछे भागेंगे, तो या तो ग़लत लोगों तक पहुँचेंगे, या सही लोगों तक। इस सीख के कुछ ही दिन बाद, मैंने अपना पहला अपराध किया, किसी ने मुझ से पहली बार कहा था की मुझ में भी क़ाबलियत है और कोई मुझ में भी विश्वास करता है। कभी किसी ने मुझे वकील बनने को नहीं कहा, या डॉक्टर या इंजीनियर बनने को। मतलब, मैं ये सब कैसे कर सकता था? मुझे तो लिखना पढ़ना तक नहीं आता था। मैं बिलकुल निरक्षर था। मैं सोचता था की अपराध मेरा एकमात्र रास्ता है। और फिर एक दिन मैं किसी से बात कर रहा था और उसने मुझसे कहा कि हम एक जगह डकैती कर सकते हैं। और हमने वो डकैती डाल दी। सच बात ये थी की मैं पल बढ़ रहा था दुनिया के सब से रईस देश में, यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका में, लेकिन मेरी माँ ख़ून बेच कर पैसे कमाने वालों की लाइन में खड़ी मिलती थी 40 डॉलर में अपना ख़ून बेच कर अपने बच्चों का पेट भरने के लिए। आज तक उनकी बाँहों में सुइयों के निशान देखे जा सकते हैं। तो मुझे अपने लोगों की परवाह नहीं थी। ना उन्हें मेरी कोई फ़िक्र थी। वहाँ हर कोई जो मन आए करता था, जो चाहिए उसे पाने के लिए, ड्रग बेचना, चोरी डाका करना ख़ून बेचना सब लोग ग़लत पैसा कमा रहे थे। और मैं भी हर तरीक़े का पैसा कमाता था। बस पैसा ज़रूरी था। सिर्फ़ पैसे का ही महत्व था और मैं बचपन से इस तरह के जीवन का ग़ुलाम था, ग़लत उदाहरणों से सीख कर। 17 साल की उम्र में मुझे डाके और ख़ून के लिए गिरफ़्तार कर लिया गया और जल्दी मुझे समझ आ गया की जेल में तो पैसे की और भी ज़्यादा चलती है, तो मुझे भी शामिल होना था। एक दिन मैं अख़बार का खेल वाला पन्ना ले कर अपने सेल पार्ट्नर से पढ़वाने ले गया, और ग़लती से बिज़नस वाला पन्ना ले आया। तो इस बूढ़े आदमी ने पूछा, "लड़के, तुम स्टॉक ख़रीदते हो?" और मैंने कहा, "वो क्या ?" उसने कहा, "ये वो जगह है जहाँ श्वेत लोग अपना सारा पैसा रखते हैं।" (ठहाका) और पहले बार मुझे आशा की कोई किरण दिखी, की भविष्य हो सकता है। उसने मुझे संक्षेप में समझाया की स्टॉक क्या होता है, मगर ये सिर्फ़ एक झलक थी। मतलब, मैं ये कैसे करता? मुझे पढ़ना, लिखना, कुछ नहीं आता था। अपनी निरक्षरता छिपाने के मेरे तरीक़े यहाँ इस मामले में काम नहीं आने वाले थे। मैं जैसे पिंजरे में फँस गया था, शिकारियों के बीच शिकार जैसे, अपनी आज़ादी के लिए लड़ते हुए। मैं दिशाहीन और थका हुआ था और कोई विकल्प नहीं था। तो जब मैं 20 साल का हुआ, मैंने अपने जीवन का सबसे कठिन काम किया। मैंने एक किताब उठायी, और वो मेरे जीवन का सबसे कठिन क्षण था, पढ़ना सीखना की कोशिश करना, अपने परिवार से अलग राह पे जाना, गैंग के दोस्तों से अलग। बहुत ही कठिन था, भाई! एक लड़ाई जैसी थी। मगर मुझे अंदाज़ा ही नहीं था कि मुझे अपने जीवन की सबसे ग़ज़ब का उपहार मिल रहा था: उपहार आत्म-सम्मान का, ज्ञान और अनुशासन का। मैं पढ़ने को ले कर इतना उत्साहित था कि जो भी मिलता था, मैं पढ़ जाता था: टॉफ़ी की पन्नी, कपड़ों के स्टिकर, ट्रैफ़िक साइन, सब कुछ। मैं जुनून से पढ़ रहा था! (तालियाँ) बस पढ़ते ही जा रहा था। मुझे पढ़ने और स्पेलिंग सीखने में ज़बरदस्त मज़ा आ रहा था। एक गैंग वाले दोस्त ने पूछा, "भाई, क्या खा रहा है?" मैंने कहा, "सी ए अन डी वाई, कैंडी।" (ठहाका) उस ने कहा, "मुझे भी थोड़ा दो।" मैंने कहा, "एन ओ, नो।" (ठहाका) बहुत मज़ा आ रहा था। मतलब, मैं अब जीवन में पहली बार ख़ुद पढ़ सकता था। मुझे लगा जैसे मेरे पाँवो में पंख लगे हों। और फिर 22 के उम्र में, आत्म विश्वास से भरे होने पर, मुझे उस बूढ़े की बात याद आयी। तो मैंने अख़बार का बिज़नेस वाला पन्ना उठाया। मुझे इन रईस श्वेत लोगों से मिलना था। (ठहाका) तो मैं उस मौक़े की तलाश में रहने लगा। जैसे जैसे मैंने अपना काम बढ़ाया और लोगों को सिखाने का कि अपने पैसे रुपए का कैसे ध्यान रखें, मुझे ये समझ आ गया की अपने किए के लिए ज़िम्मेदार होना होगा। ये सच था कि मैं बहुत कठिन परिवेश में पला था, मगर मैंने अपराध की राह ख़ुद चुनी थी, और मुझे उस की ज़िम्मेदारी लेनी होगी। और मैंने वो ज़िम्मेदारी ली। मैंने जेल गए लोगों के लिए एक पाठ्यक्रम तैयार किया कि कैसे जेल में कमाए गए पैसे को उपयोग मी लाये । अग़ल हम रहन सहन ठीक रखे तो हमें ऐसे तरीक़े आ जाएँगे जिस से हम जेल से छूटने के बाद अपने पैसे को ठीक से इस्तेमाल करें जैसे की तमाम वो लोग करते हैं जो बिना अपराध किए जीते हैं। तब मुझे पता चला कि मार्केट वॉच के हिसाब से, 60 पर्सेंट से ज़्यादा अमरीकियों के पास 1,000 डॉलर से भी काम की बचत है। स्पोर्ट्स इलस्ट्रेटेड कहता है कि 60 पर्सेंट से ज़्यादा NBA और NFL खिलाड़ी कंगाल होते हैं। 40 प्रतिशत से ज़्यादा शादियाँ आर्थिक कारणों से टूटती हैं। आख़िर चल क्या रहा था? (ठहाका) मतलब जो लोग उम्र भर काम करते हैं, कार, कपड़े, घर ख़रीदते हैं, अगर वो महीने की सैलरी पर जीते हैं? तो आख़िर कैसे हम जेल गए हुए लोगों के मदद करेंगे अपराध छोड़ने में अगर वो अपने पैसे का ख़याल नहीं रख सके? हमारी लगी पड़ी है। (ठहाका) हमें कोई बेहतर तरीका चाहिए। ऐसे तो नहीं चलने वाला है। तो--- मैंने सोचा। मेरी ज़िम्मेदारी बनते है की इस रास्ते पर चलते लोगों की मदद करूँ, और ये अजीब था क्योंकि अब मैं लोगों की फ़िक्र कर रहा था तो मैंने सोचा था की वो भी मेरी फ़िक्र करेंगे। आर्थिक समझ ना होना एक बीमारी जैसा है जो कि अल्प-संख्यको और ग़रीब तबके के लोगों को विकलांग करती है कई कई पीढ़ियों तक, और इस बीमारी से ताक़त के साथ लड़ना होगा। ख़ुद से ये सवाल कीजिए: ऐसा कैसे है कि 50 प्रतिशत अमरीकी जनता रुपए पैसे की समझ के बिना जीते है, वो भी इतने रईस देश में? हमारी पहुँच न्याय तक, सामाजिक स्तर पर, जीने के स्तर, परिवहन और भोजन तक, ये सब पैसे पर निर्भर करते है जिसे ज़्यादातर लोग समझते ही नहीं। ये बहुत बढ़ी गड़बड़ है! ये महामारी जैसा ख़तरनाक है और जनता की सुरक्षा के प्रति बहुत बड़ा ख़तरा भी है। कैलिफ़ोरनिया के सुधार विभाग के अनुसार, 70% प्रतिशत से ज़्यादा क़ैदी पैसे से जुड़े अपराधों के आरोपी हैं: डकैती, चोरियाँ, ग़बन, फिरौती -- और ये लिस्ट बहुत लम्बी है। एक और बात जानिए: एक औसत क़ैदी जो कैलिफ़ोरनिया के जेल सिस्टम में जाता है बिना किसी आर्थिक शिक्षा के, वो 30 सेंट प्रति घंटे कमाता है, क़रीब 800 डॉलर सालाना, उसकी कोई बचत वग़ैरह नहीं होती है, और जब वो जेल से छूटता है तो उसे 200 डॉलर दे कर कहा जाता है, "शुभकामनायें! कोशिश कीजिए फिर से जेल ना जाना पड़े।" बिना किसी तैयारी के, या भविष्य के आर्थिक प्लान के, वो करे क्या? वो भी 60 की उम्र में? एक अच्छी नौकरी ढूँढे, या उसी आपराधिक राह पर निकल जाए जिस ने उसे जेल तक पहुँचाया था? आप टैक्स देते हैं, आप बताइए। देखिए, उस की पढ़ाई के कमी ने उस का रास्ता निश्चित कर दिया है। तो हम इस बीमारी से कैसे निपटें? मैंने एक कार्यक्रम की सह-स्थापना की जिसे हम फ़ायनैन्शल एमपोवेरमेंट इमोशनल लिटरेसी कहते हैं यानि FEEL, और ये हमें सिखाता है की आप भावनात्मक फ़ैसलों को अपने आर्थिक फ़ैसलों से अलग कैसे रखें, और चार ऐसे नियम जो आपको आर्थिक रूप से ठीक रखेंगे: बचत करने का सही तरीक़ा, अपने रहन सहन को क़ाबू में रखना उधार ठीक तरीक़े से लेना और अपने पैसे को अलग अलग जगह लगाना जिस से आपका पैसा आपके लिए काम कर सके, बजाय इस के की आप पैसे के लिए काम करें। जेल गए लोगों को इन हुनर को सीखना होगा अगर वो वापस समाज में जाना चाहता हैं। बिना इस के पूरी तरह समाज में लौटना नामुमकिन है। ये सोच की केवल पेशेवर लोग ही निवेश और पैसे की देखभाल कर सकते हैं सरासर ग़लत है, और जो भी आप से ये कहता है, वो झूठा है। (तालियाँ) पेशेवर व्यक्ति बिलकुल आम आदमी से ज़्यादा बेहतर हो सकता है, मगर कोई आपसे बेहतर ये नहीं जानता है कि आपको कब कितने पैसे की ज़रूरत पड़ेगी, और इस लिहाज़ से आप भी पेशेवर ही हुए। आर्थिक समझ कोई हुनर नहीं है, देवियों और सज्जनों, वो जीने का एक तरीक़ा है। आर्थिक स्थिरता उस तरीक़े से जीने का फल है। आर्थिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति टैक्स देने वाला नागरिक बन सकता है, और आर्थिक रूप से स्वस्थ टैक्स देने वाला नागरिक सदा वैसा बना रह सकता है। इस से हमें जोड़ने का मौक़ा मिलता है उन लोगों को जो हमारी बात सुनते हैं जैसे परिवार और दोस्त, उन युवा लोगों से जो अभी भी अपराध को पैसा कमाने का इकलौता रास्ता समझते हैं। तो आइए डर और तनाव से आगे बढ़ें जो आर्थिक योजनाओं से लगता है और उन बातों से लगता है जो हमें आसपास सुनने को मिलती हैं। और अपने समाज को विकलांग करती इस समस्या की जड़ तक पहुँचे और लोगों को ज़िम्मेदार और बेहतर ज़िंदगी जीने वाला बनायें। और आइए ऐसा पाठ्यक्रम बनाए जो सरल हो और सीधा साधा हो जो जड़ तक पहुँचता हो, आर्थिक सजगता और भावनात्मक समझ की जड़ तक। और अगर यहाँ आप दर्शकों में बैठ कर सोच रहे हैं, "ओह, मैं इन सब चीज़ों से ऊपर हूँ," तो बस मेरी क्लास आ जाइए -- (ठहाका) मैं आपको दिखाऊँगा कि आपके भावनात्मक फ़ैसले की क़ीमत कितनी होती है। (तालियाँ) बहुत बहुत धन्यवाद। (तालियाँ)